HI/701215 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद इंदौर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७० Category:HI/अ...") |
No edit summary |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७०]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९७०]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - इंदौर]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - इंदौर]] | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/701215SB-INDORE_ND_01.mp3</mp3player>|" यम यम वापी स्मरण भावम त्यजते अन्ते कलेवरम ( | <!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/701214 बातचीत - श्रील प्रभुपाद इंदौर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|701214|HI/701215b बातचीत - श्रील प्रभुपाद इंदौर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|701215b}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/701215SB-INDORE_ND_01.mp3</mp3player>|" यम यम वापी स्मरण भावम त्यजते अन्ते कलेवरम ( भ.गी ८.६ ]। इसका अर्थ है मृत्यु के समय यदि कोई कृष्ण , नारायण का स्मरण करता है, तो उसका पूरा जीवन सफल होता है। क्योंकि मृत्यु के समय मन की स्थिति, व्यक्ति को अगले जीवन तक ले जाएगी। जिस प्रकार सुगंध हवा द्वारा ले जाई जाती है, उसी प्रकार, हमारी मानसिकता हमें एक अलग प्रकार के शरीर में ले जाएगी। यदि हमने वैष्णव, शुद्ध भक्त के समान अपनी मानसिकता विकसित की है, तो हम तुरंत वैकुंठ चले जाएंगे। यदि हमने एक सामान्य कर्मी के रूप में अपनी मानसिकता का निर्माण किया है ,तो हमे इस भौतिक जगत के भीतर रहना होगा उस प्रकार की मानसिकता का आनंद लेने के लिए जो हमने विकसित की है।"|Vanisource:701215 - Lecture SB 06.01.27 - Indore|701215 - प्रवचन श्री.भा. ०६-०१-२७ - इंदौर}} |
Revision as of 16:28, 30 September 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
" यम यम वापी स्मरण भावम त्यजते अन्ते कलेवरम ( भ.गी ८.६ ]। इसका अर्थ है मृत्यु के समय यदि कोई कृष्ण , नारायण का स्मरण करता है, तो उसका पूरा जीवन सफल होता है। क्योंकि मृत्यु के समय मन की स्थिति, व्यक्ति को अगले जीवन तक ले जाएगी। जिस प्रकार सुगंध हवा द्वारा ले जाई जाती है, उसी प्रकार, हमारी मानसिकता हमें एक अलग प्रकार के शरीर में ले जाएगी। यदि हमने वैष्णव, शुद्ध भक्त के समान अपनी मानसिकता विकसित की है, तो हम तुरंत वैकुंठ चले जाएंगे। यदि हमने एक सामान्य कर्मी के रूप में अपनी मानसिकता का निर्माण किया है ,तो हमे इस भौतिक जगत के भीतर रहना होगा उस प्रकार की मानसिकता का आनंद लेने के लिए जो हमने विकसित की है।" |
701215 - प्रवचन श्री.भा. ०६-०१-२७ - इंदौर |