HI/710212 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद गोरखपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"दुर्भाग्यवश मायावादी, वे, या तो शास्त्रों के अपर्याप्त ज्ञान की निधि के कारण या अपने सनकों द्वारा, वे कहते हैं कि" कृष्णा या विष्णु, जब आते हैं, या पूर्ण सत्य जब अवतरित होते हैं, वे एक भौतिक शरीर को धारण करते हैं, स्वीकार करते हैं।" यह एक तथ्य नहीं है। कृष्ण कहते हैं, सम्भवामि आत्म मायया (भ.गी. ४.६) ऐसा नहीं है कि कृष्ण किसी भौतिक शरीर को स्वीकार करते हैं। नहीं। कृष्ण का ऐसा कोई भेद नहीं है, भौतिक (अस्पष्ट)। इसलिए कृष्ण कहते हैं, अवाजानन्ति मां मुद्दा मानुशीम तनुं आश्रितम (भ.गी. ९.११): "क्योंकि मैं खुद को धारण करता हूं, इंसान के रूप में अवतरित होता हूँ, मूढ़ा या दुष्ट मेरे बारे में सोचते हैं या मेरा मज़ाक उड़ाते हैं।”
710212 - प्रवचन चै.च. मद्य ६.१४९-५० - गोरखपुर