HI/710319 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Revision as of 06:35, 18 October 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"कई सारे देहि है। देहि का अर्थ है, जो इस भौतिक शरीर को स्वीकार करता है, वह देहि कहलाता है। भगवद-गीता में भी कहा गया है, कौमारं यौवनं जरा ,तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति (भ.ग.२.१३) । देहिं इहा देहिषु । तो देहि का अर्थ मैं यह शरीर नहीं हूं, लेकिन मैंने इस शरीर को स्वीकार किया है। ठीक उसी तरह जैसे हम एक तरह की पोशाक स्वीकार करते हैं, उसी तरह, मेरी इच्छा के अनुसार, मेरे कर्म के अनुसार, मैंने एक निश्चित प्रकार का शरीर स्वीकार किया है, और उस शरीर के अनुसार, मैं विभिन्न प्रकार के दर्द और सुखों के अधीन हूँ । यही चल रहा है। " |
७१०३१९ - प्रवचन श्री. भा .१०.२२.३५ - बॉम्बे |