HI/710321 बातचीत - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
Daivasimha (talk | contribs) (Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७१ Category:HI/अम...") |
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next)) |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - बॉम्बे]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - बॉम्बे]] | ||
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | |||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/710320 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710320|HI/710324 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710324}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710321R1-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"यह उनका कर्तव्य है कि वे मुझे सम्मान प्रदान करे, जितना सम्मान कृष्ण को दिया जाता है; उससे अधिक । यह उनका कर्तव्य है। लेकिन मेरा कर्तव्य यह नहीं है कि मैं यह घोषणा करूं कि मैं कृष्ण बन गया हूं। फिर यह मायावादी है। फिर यह ख़त्म,सब कुछ ख़त्म हो जायेगा। आध्यात्मिक गुरु सेवक भगवान है, और कृष्ण भगवान हैं, और क्योंकि निरपेक्ष क्षेत्र में सेवक और मालिक के बीच कोई अंतर नहीं है...अंतर है। सेवक हमेशा जानता है कि "मैं सेवक हूं," और मालिक जानता है कि "मैं मालिक हूँ," हालांकि तो भी कोई भेद नहीं है। यही निरपेक्ष है।"|Vanisource:710321 - Conversation - Bombay|७१०३२१ - वार्तालाप - बॉम्बे}} | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710321R1-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"यह उनका कर्तव्य है कि वे मुझे सम्मान प्रदान करे, जितना सम्मान कृष्ण को दिया जाता है; उससे अधिक । यह उनका कर्तव्य है। लेकिन मेरा कर्तव्य यह नहीं है कि मैं यह घोषणा करूं कि मैं कृष्ण बन गया हूं। फिर यह मायावादी है। फिर यह ख़त्म,सब कुछ ख़त्म हो जायेगा। आध्यात्मिक गुरु सेवक भगवान है, और कृष्ण भगवान हैं, और क्योंकि निरपेक्ष क्षेत्र में सेवक और मालिक के बीच कोई अंतर नहीं है...अंतर है। सेवक हमेशा जानता है कि "मैं सेवक हूं," और मालिक जानता है कि "मैं मालिक हूँ," हालांकि तो भी कोई भेद नहीं है। यही निरपेक्ष है।"|Vanisource:710321 - Conversation - Bombay|७१०३२१ - वार्तालाप - बॉम्बे}} |
Revision as of 23:15, 20 July 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यह उनका कर्तव्य है कि वे मुझे सम्मान प्रदान करे, जितना सम्मान कृष्ण को दिया जाता है; उससे अधिक । यह उनका कर्तव्य है। लेकिन मेरा कर्तव्य यह नहीं है कि मैं यह घोषणा करूं कि मैं कृष्ण बन गया हूं। फिर यह मायावादी है। फिर यह ख़त्म,सब कुछ ख़त्म हो जायेगा। आध्यात्मिक गुरु सेवक भगवान है, और कृष्ण भगवान हैं, और क्योंकि निरपेक्ष क्षेत्र में सेवक और मालिक के बीच कोई अंतर नहीं है...अंतर है। सेवक हमेशा जानता है कि "मैं सेवक हूं," और मालिक जानता है कि "मैं मालिक हूँ," हालांकि तो भी कोई भेद नहीं है। यही निरपेक्ष है।" |
७१०३२१ - वार्तालाप - बॉम्बे |