HI/710803 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लंडन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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: सर्व धर्मान परित्यज्य
: सर्व धर्मान परित्यज्य
: मां एकम शरणम व्रज  
: मां एकम शरणम व्रज  

Latest revision as of 16:40, 17 June 2023

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"अगर कोई इस प्रक्रिया को अपनाता है, तो वह शुद्ध हो जाता है। यह हमारा प्रचार है। हम उसके पिछले कर्मों का हिसाब नहीं ले रहे हैं। कलयुग में हर किसी के पिछले कर्म बहुत अच्छे नहीं हैं। इसलिए हम पिछले कर्मों के बारे में विचार नहीं करते हैं। हम आपसे बस निवेदन करते हैं कि आप कृष्ण भावनामृत को अपनाएं। और कृष्ण भी कहते हैं कि,
सर्व धर्मान परित्यज्य
मां एकम शरणम व्रज
अहम् त्वाम सर्व पापेभ्यो...

(भ.गी. १८.६६) यह हो सकता है कि मैं अपने पिछले जीवन में बहुत पापी था, लेकिन जब मैं कृष्ण के सामने आत्मसमर्पण करता हूं, तो वह मुझे आश्रय देता है और मैं मुक्त हो जाता हूँ। वह हमारी प्रक्रिया है। हम पिछले कर्मों के बारे में विचार नहीं करते हैं। हर कोई अपने पिछले कर्मों में पापी हो सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अगर वह कृष्ण की शरण में आ जाता है, जैसा कि कृष्ण कहते हैं, तो कृष्ण हमें संरक्षण देंगे। यही हमारा प्रचार है।”

710803 - प्रवचन श्री.भा. ०६.०१.१५ - लंडन