HI/731105 बातचीत - श्रील प्रभुपाद दिल्ली में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/731105R2-DELHI_ND_01.mp3</mp3player>|"जो आत्मसमर्पण करता है, वह पहले से ही कर्म-फल है; वह चुकता है, समाप्त हो गया है। यदि वह स्वयं को फिर से कर्म के लिए नहीं देता है, केवल यज्ञाते कर्म, कोई अन्य कर्म नहीं करता है, तो वह प्रतिरक्षित है। इसलिए यदि आप पहले से ही कृष्ण के काम में लगे हुए हैं, तो आप प्रतिरक्षात्मक हैं। और जैसे ही आप किसी भी व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करते हैं- कर्म-बंधन। बस इतना ही। यह बहुत अच्छा उदाहरण है: एक सैनिक। तो जब तक वह सैनिक है, लड़ रहा है, कई आदमियों को रहा है - उसका व्यवसाय मारना है-वह... उसे पूरा लाभ दिया जाता है। और जैसे ही अपने खाते के लिए वह एक आदमी को मारता है, उसे फांसी दे दी जाती है।"|Vanisource:731105 - Conversation B - Delhi|731105 - बातचीत ब - दिल्ली}}
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Latest revision as of 06:03, 25 January 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जो आत्मसमर्पण करता है, वह पहले से ही कर्म-फल है; वह चुकता है, समाप्त हो गया है। यदि वह स्वयं को फिर से कर्म के लिए नहीं देता है, केवल यज्ञाते कर्म, कोई अन्य कर्म नहीं करता है, तो वह प्रतिरक्षित है। इसलिए यदि आप पहले से ही कृष्ण के काम में लगे हुए हैं, तो आप प्रतिरक्षात्मक हैं। और जैसे ही आप किसी भी व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करते हैं- कर्म-बंधन। बस इतना ही। यह बहुत अच्छा उदाहरण है: एक सैनिक। तो जब तक वह सैनिक है, लड़ रहा है, कई आदमियों को रहा है - उसका व्यवसाय मारना है-वह... उसे पूरा लाभ दिया जाता है। और जैसे ही अपने खाते के लिए वह एक आदमी को मारता है, उसे फांसी दे दी जाती है।"
731105 - बातचीत ब - दिल्ली