HI/740319 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७४]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७४]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - वृंदावन]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - वृंदावन]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/740319SB-VRNDAVAN_ND_01.mp3</mp3player>|"तो, अपश्यतां आत्म-तत्त्वं ([[Vanisource:SB 2.1.2|श्री.भा. ०२.०१.०२]]), जो लोग आत्मा की सच्चाई के बारे में देखने के लिए बहुत बुद्धिमान नहीं हैं, वे उलझ गए हैं। यह कैसे उलझन है? देह-आपत्य, यह शरीर और संतान, बच्चे, पत्नी के गर्भ से उस शरीर से जन्मे, देहापत्य कलातादृशु आत्म सईंयेषु ([[Vanisource:SB 2.1.4|श्री.भा. ०२.०१.०४]])। हर कोई सोच रहा है कि 'मुझे अच्छी पत्नी मिली है। मुझे बहुत अच्छे बच्चे मिले हैं। मुझे अपना अच्छा समाज मिल गया है, राष्ट्र', इत्यादि, इतने सारे। देहापत्य-कलातादृशु। और वह सोच रहा है कि 'वे मेरे सैनिक हैं, यहाँ यह लड़ाई है, अस्तित्व के लिए संघर्ष'। हर कोई अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है, और हर कोई सोच रहा है, 'वे मेरे सैनिक हैं। ये, मेरी पत्नी, बच्चे, समाज, दोस्ती, राष्ट्र, वे मुझे सुरक्षा देंगे। 'लेकिन कोई भी सुरक्षा नहीं दे सकता। इसलिए उसका यहाँ व्याख्या किया गया है  प्रमत्तः, पगला। कोई भी आपको सुरक्षा नहीं दे सकता है।"|Vanisource:740319 - Lecture SB 02.01.04 - Vrndavana|740319 - प्रवचन SB 02.01.04 - वृंदावन}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/740316 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|740316|HI/740330 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|740330}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/740319SB-VRNDAVAN_ND_01.mp3</mp3player>|"तो, अपश्यतां आत्म-तत्त्वं ([[Vanisource:SB 2.1.2|श्री.भा. ०२.०१.०२]]), जो लोग आत्मा की सच्चाई के बारे में देखने के लिए बहुत बुद्धिमान नहीं हैं, वे उलझ गए हैं। यह कैसे उलझन है? देह-आपत्य, यह शरीर और संतान, बच्चे, पत्नी के गर्भ से उस शरीर से जन्मे, देहापत्य कलातादृशु आत्म सईंयेषु ([[Vanisource:SB 2.1.4|श्री.भा. ०२.०१.०४]])। हर कोई सोच रहा है कि 'मुझे अच्छी पत्नी मिली है। मुझे बहुत अच्छे बच्चे मिले हैं। मुझे अपना अच्छा समाज मिल गया है, राष्ट्र', इत्यादि, इतने सारे। देहापत्य-कलातादृशु। और वह सोच रहा है कि 'वे मेरे सैनिक हैं, यहाँ यह लड़ाई है, अस्तित्व के लिए संघर्ष'। हर कोई अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है, और हर कोई सोच रहा है, 'वे मेरे सैनिक हैं। ये, मेरी पत्नी, बच्चे, समाज, दोस्ती, राष्ट्र, वे मुझे सुरक्षा देंगे। 'लेकिन कोई भी सुरक्षा नहीं दे सकता। इसलिए उसका यहाँ व्याख्या किया गया है  प्रमत्तः, पगला। कोई भी आपको सुरक्षा नहीं दे सकता है।"|Vanisource:740319 - Lecture SB 02.01.04 - Vrndavana|740319 - प्रवचन श्री.भा, ०२.०१.०४ - वृंदावन}}

Latest revision as of 23:02, 4 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो, अपश्यतां आत्म-तत्त्वं (श्री.भा. ०२.०१.०२), जो लोग आत्मा की सच्चाई के बारे में देखने के लिए बहुत बुद्धिमान नहीं हैं, वे उलझ गए हैं। यह कैसे उलझन है? देह-आपत्य, यह शरीर और संतान, बच्चे, पत्नी के गर्भ से उस शरीर से जन्मे, देहापत्य कलातादृशु आत्म सईंयेषु (श्री.भा. ०२.०१.०४)। हर कोई सोच रहा है कि 'मुझे अच्छी पत्नी मिली है। मुझे बहुत अच्छे बच्चे मिले हैं। मुझे अपना अच्छा समाज मिल गया है, राष्ट्र', इत्यादि, इतने सारे। देहापत्य-कलातादृशु। और वह सोच रहा है कि 'वे मेरे सैनिक हैं, यहाँ यह लड़ाई है, अस्तित्व के लिए संघर्ष'। हर कोई अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है, और हर कोई सोच रहा है, 'वे मेरे सैनिक हैं। ये, मेरी पत्नी, बच्चे, समाज, दोस्ती, राष्ट्र, वे मुझे सुरक्षा देंगे। 'लेकिन कोई भी सुरक्षा नहीं दे सकता। इसलिए उसका यहाँ व्याख्या किया गया है प्रमत्तः, पगला। कोई भी आपको सुरक्षा नहीं दे सकता है।"
740319 - प्रवचन श्री.भा, ०२.०१.०४ - वृंदावन