HI/750106 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/750106SB-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"चिकित्सा विज्ञान, वे विभिन्न कोशिकाओं का अध्ययन करने की कोशिश कर रहे हैं , लेकिन कोशिकाएं किस क्रिया से आई हैं ? प्रभाव से या प्राकृति के हेरफेर से । " प्रकृतेः क्रियमाणानि " (भगवद्गीता ३.२७)। और प्रकृति सर्वोच्च भगवान कृष्ण के निर्देशन में काम कर रही है । " मयाद्धक्षेण प्रकृतिः " (भगवद्गीता ९.१०) इसलिए, अंततः परमेश्वर के सर्वोच्च अध्यक्षता में सब कुछ चल रहा है । लेकिन यह कैसे चल रहा है, हम समझा नहीं सकते । हमें सीमित ज्ञान मिला है । इसलिए शास्त्र कहते हैं, 'अटकलें लगाने की कोशिश करें, क्योंकि आप अपूर्ण हैं, लेकिन चीजें इस तरह से चल रही हैं' । "|Vanisource:750106 - Lecture SB 03.26.29 - Bombay|750106 - प्रवचन SB 03.26.29 - बॉम्बे}}
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Latest revision as of 04:34, 4 January 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
चिकित्सा विज्ञान, वे विभिन्न कोशिकाओं का अध्ययन करने का प्रयास कर रहे हैं, परंतु कोशिकाएं किस क्रिया से आई हैं ? प्रभाव से या प्रकृति के हेरफेर से । प्रकृतेः क्रियमाणानि (भ.गी. ३.२७) । और प्रकृति परम भगवान कृष्ण के निर्देशन में कार्य कर रही है । मयाध्यक्षेण प्रकृतिः (भ.गी. ९.१०) । इसीलिए, अंततः, परमेश्वर के सर्वोच्च अध्यक्षता में सब कुछ चल रहा है । परंतु यह कैसे चल रहा है, हम समझा नहीं सकते । हमें सीमित ज्ञान मिला है । इसलिए शास्त्र कहते हैं, 'अटकलें न लगाएं क्योंकि आप अपूर्ण हैं, परंतु चीजें किस प्रकार चल रही हैं' । समझने का प्रयास करे ।
750106 - प्रवचन श्री.भा. ३.२६.२९ - बॉम्बे