HI/Prabhupada 0005 - प्रभुपाद की जीवनी तीन मिनटों में
Interview -- September 24, 1968, Seattle
साक्षात्कर्ता: क्या अाप मुझे अपने जीवन के बारे में कुछ बता सकते हैं ?
जैसे कि, अापने शिक्षा कहाँ से प्राप्त की, आप कैसे कृष्ण के शिष्य बने ।
प्रभूपाद: मेरा जन्म अौर शिक्षण कलकत्ता में हुअा ।
कलकत्ता मेरा घर है ।
मेरा जन्म१८९६ मे हुअा, और मैं अपने पिता का प्रिय बच्चा था,
तो मेरी शिक्षा थोडी देर से शुरु हुइ,
और फिर भी, मैं आठ साल के लिए उच्च माध्यमिक, हाई स्कूल में शिक्षित किया गया था ।
प्राथमिक विद्यालय में चार साल, उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, आठ साल,
कॉलेज में, चार साल ।
फिर मैं गांधी के आंदोलन, राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए ।
लेकिन अच्छे संयोग से मैंने १९२२ में, मेरे गुरु महाराज, मेरे आध्यात्मिक गुरु से मुलाकात की ।
और तब से, मैं इस मार्ग से आकर्षित हो गया,
और धीरे - धीरे मैंने अपना घरेलू जीवन त्याग दिया ।
मैं अभी भी तीसरे वर्ष का छात्र था जब १९१८ में मेरी शादी हो गयी ।
और इसलिए मैरे अपने बच्चों भी हो गए ।
मैं व्यवसाय कर रहा था ।
फिर १९५४ में मैने अपने पारिवारिक जीवन से संन्यास ले लिया ।
चार साल के लिए मैं अकेला था, किसी भी परिवार के बिना ।
फिर मैंने नियमित रूप से १९५९ में सन्यास ले लिया ।
तब मैने किताबें लिखने के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया ।
मेरा पहला प्रकाशन १९६२ में आया था, और तीन पुस्तकें थी जब
तब मैं १९६५ में अापके देश के लिए निकला
और मैं सितंबर १९६५ में यहां पर पहुंच गया ।
तब से मैं यूरोपीय देशों में, अमेरिका, कनाडा, में इस कृष्ण भावनामृत का प्रचार करने की कोशिश कर रहा हूँ ।
और धीरे - धीरे केंद्रों का विकिस हो रहा है ।
शिष्य भी बढ़ रहे हैं ।
देखता हूँ अागे क्या होने वाला है ।
साक्षात्कर्ता: आप खुद कैसे शिष्य बने ?
आप क्या थे, या एक शिष्य बनने से पहले आप क्या पालन करते थे ?
प्रभूपाद: वह ही सिद्धांत जैसे मैंने अापको बतया, विश्वास ।
मेरा एक दोस्त, वह मुझे जबरन घसीट कर ले गया मेरे आध्यात्मिक गुरु के पास ।
और जब मैनें अपने आध्यात्मिक गुरु के साथ बात की, तब मैं प्रेरित हो गया ।
और तब से, अंकुर शुरू हुअा ।