HI/Prabhupada 0021 - ये देश में इतने सारे तलाक क्यों होते है: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0021 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1976 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 8: Line 8:
[[Category:Hindi Language]]
[[Category:Hindi Language]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0020 - कृष्ण को समझना इतना सरल नहीं है|0020|HI/Prabhupada 0022 - कृष्ण भूखे नहीं है|0022}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 16: Line 19:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|WT16rZpPLrA|Why So Many Divorces In This Country -<br />Prabhupāda 0021}}
{{youtube_right|Zdih9be0vBE|ये देश में इतने सारे तलाक क्यों होते है<br /> -Prabhupāda 0021}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>http://vaniquotes.org/w/images/760526SB.HON_clip1.mp3</mp3player>  
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/760526SB.HON_clip1.mp3</mp3player>  
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 28: Line 31:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
तो यह जीवन का सामान्य तरीका है । हर कोई इन भौतिक गतिविधियों में लगा हुअा है, और भौतिक गतिविधि का बुनियादी सिद्धांत है ग्रहस्थ, पारिवारिक जीवन । पारिवारिक जीवन, वैदिक प्रणाली के अनुसार, या कहीं भी, जिम्मेदारी का जीवन है पत्नी, बच्चों का पोषण करने के लिए । हर कोई व्यस्त है । वे सोचते हैं कि यह ही एकमात्र मेरा कर्तव्य है । "परिवार का पोषण, यही मेरा कर्तव्य है । जितने आराम से संभव हो । यही मेरा कर्तव्य है । " यह कोइ सोचता नहीं कि इस तरह का कर्तव्य जानवरों द्वारा भी किया जाता है । उन्हें भी बच्चे हैं, और वे उन्हे खिला रहे हैं । क्या अंतर है ? इसलिए यहां यह शब्द उपयोग किया गया है मूढ । मूढ का मतलब है गधा । इस तरह के काम में जो लगे हुए हैं, भुन्जान: प्रपिबन् खादन प्रपिबन प्रपिबन का मतलब है पीना , और भुन्जान: का मतलब है खाना । खाते वक़्त, पीते वक़्त, खादन, चबाते वक़्त, चर्व चस्य राज प्रेय (?) खाद्य सामग्रियॉ चार प्रकार की होती हैं । कभी हम चबाते हैं, कभी हम निगलते हैं, कभी हम चाटते हैं, (संस्कृत), कभी हम पीते हैं । तो खाद्य पदार्थ चार प्रकार के होते हैं । इसलिए हम गाते हैं चतु: विधा श्री-भगवत-प्रसादात । चतु" विघा का मतलब है चार प्रकार । इसलिए हम अर्च विग्रह को इतने सारे खाद्य पदार्थों की पेशकश करते हैं इन चार श्रेणियों मे से । कुछ चबाए जाते हैं, कुछ चाटे जाते हैं, कुछ निगले जाते हैं । इस तरह से । तो भुन्जान: प्रपिबन खादन स्नेह-यन्त्रित: पिता और माता बच्चों की देखभाल करते हैं, कैसे उन्हें खाद्य पदार्थ दें । हमने देखा है माता यशोदा कृष्ण को खिलाती हैं । एक ही बात है । यही अंतर है । हम आम बच्चे को खिला रहे हैं, जो बिल्लियॉ और कुत्ते भी करते हैं लेकिन माता यशोदा भी कृष्ण को खिला रही हैं । वही प्रक्रिया । प्रक्रिया में कोई अंतर नहीं है, लेकिन एक में कृष्ण केंद्र हैं और दुसरा केंद्र है मनगढ़ंत फर्क यही है . जब यह कृष्ण केंद्रित है, तो यह आध्यात्मिक है, और जब यह मनगढ़ंत केंद्रित है, तो यह भौतिक है । कोई अंतर नहीं है भौतिक अौर... यह अंतर है । वहाँ है ... जैसे कामुक इच्छाऍ और प्यार, शुद्ध प्रेम । कामुक इच्छाअों और शुद्ध प्यार के बीच क्या अंतर है ? यहाँ हम मिलते हैं, आदमी और औरत, कामुक इच्छाअों के साथ मिश्रण और कृष्ण भी गोपियों के साथ मिलते हैं । ऊपर-ऊपर से वे एक ही बात लगते हैं । लेकिन क्या फर्क है ? तो यह अंतर समझाया गया है लेखक द्वारा चैतन्य-चरितामृत में, कि कामुक इच्छाओं और प्यार के बीच अंतर क्या है ? यह समझाया गया है । उन्होंने कहा है, अात्मेंद्रिय-प्रीति-वांछा तारे-बली 'काम' (सीसी आदि ४१६५) "जब मैं अपने इन्द्रियों को संतुष्ट करना चाहता हूँ, तो वह काम है ।" लेकिन कृष्नेन्द्रिय-प्रीति-इच्छा धरे 'प्रेम' नाम, "और जब हम कृष्ण की इन्द्रियों को संतुष्ट करना चाहते हैं, तो यह प्रेम है, प्रेम ।" फर्क यही है । यहाँ इस भौतिक संसार में प्रेम नहीं है क्योंकि आदमी और औरत, उन्हे पता नहीं है कि, "मैं इस आदमी के साथ मिलती हूं,, वह आदमी जो मुझे संतुष्टी देता है । " नहीं । "मैं अपनी इच्छाओं को पूरा करूँगी ।" यह बुनियादी सिद्धांत है । आदमी सोचता है कि "इस औरत के साथ मिलकर, मैं अपनि इन्द्रिय को संतुष्ट करूँगा," और औरत सोच रही है कि "इस आदमी के साथ मिलकर, मैं अपनी इच्छा को पूरा करूँगी ।" इसलिए यह पश्चिमी देशों में बहुत प्रचलित है, जैसे ही कठिनाई होती है व्यक्तिगत इन्द्रिय संतुष्टि में, तुरंत तलाक । इस देश में यह मनोवैज्ञानिक है, क्यों इतने सारे तलाक हैं । मूल कारण यह है कि "जैसे ही मुझे संतुष्टि नहीं मिलती है , तो मुझे नहीं चाहिए ।" यह श्रीमद-भागवतम् में कहा गया है कि: दां- पतयं रतिं एव हि । इस युग में, पति और पत्नी मतलब है सेक्स संतुष्टि, व्यक्तिगत । कोई सवाल ही नहीं है कि "हम एक साथ रहेंगे; हम कृष्ण को संतुष्ट करेंगे प्रशिक्षिण द्वारा कि कृष्ण को कैसे संतुष्ट किया जा सकता है । " यहि कृष्ण भावनामृत आंदोलन है ।
तो यह जीवन जीने का सामान्य तरीका है। हर कोई इन भौतिक गतिविधियों में लगा हुअा है, और भौतिक गतिविधि का बुनियादी सिद्धांत है ग्रहस्थ, पारिवारिक जीवन । पारिवारिक जीवन, वैदिक प्रणाली के अनुसार, या कहीं भी, पत्नी, बच्चों का पोषण करने के लिए जिम्मेदारी का जीवन है । हर कोई व्यस्त है । वे सोचते हैं कि यह ही मेरा एकमात्र कर्तव्य है । "परिवार का पोषण करना, यही मेरा कर्तव्य है । जितने आराम से संभव हो सके । यही मेरा कर्तव्य है ।" यह कोई नहीं सोचता कि इस तरह का कर्तव्य जानवरों द्वारा भी किया जाता है । उनके भी बच्चे हैं, और वे उन्हे खिला रहे हैं । क्या अंतर है ? इसलिए यहां मूढ शब्द का उपयोग किया गया है । मूढ का अर्थ है गधा । इस तरह के काम में जो लगे हुए हैं, भुंजान: प्रपिबन् खादन् प्रपिबन् प्रपिबन् का अर्थ है पीना, और भुंजान: का अर्थ है खाना । खाते हुए, पीते हुए, खादन्, चबाते हुए, चर्व चस्य राज प्रेय खाद्य-पदार्थ चार प्रकार के होते हैं । कभी हम चबाते हैं, कभी हम निगलते हैं, कभी हम चाटते हैं, (संस्कृत), कभी हम पीते हैं । तो खाद्य पदार्थ चार प्रकार के होते हैं । इसलिए हम गाते हैं चतु: विधा श्री-भगवत-प्रसादात् । चतु: विघा का अर्थ है चार प्रकार के । इसलिए हम अर्च विग्रह को इन चार श्रेणियों मे से इतने सारे खाद्य पदार्थ अर्पण करते हैं । कुछ चबाए जाते हैं, कुछ चाटे जाते हैं, कुछ निगले जाते हैं । इस तरह से ।
 
तो भुंजान: प्रपिबन् खादन् बालकम् स्नेह-यन्त्रित: पिता और माता बच्चों की देखभाल करते हैं, कैसे उन्हें खाद्य पदार्थ दें । हमने देखा है माता यशोदा कृष्ण को खिलाती हैं । एक ही बात है । यही अंतर है । हम आम बच्चे को खिला रहे हैं, जो बिल्लियाँ और कुत्ते भी करते हैं लेकिन माता यशोदा कृष्ण को खिला रही हैं । वही प्रक्रिया । प्रक्रिया में कोई अंतर नहीं है, लेकिन एक में कृष्ण केंद्र हैं और दुसरा मनगढ़ंत केंद्र है अंतर यही है जब कृष्ण केंद्र में हैं, तो यह आध्यात्मिक है, और जब केंद्र मनगढ़ंत है, तो यह भौतिक है । कोई अंतर नहीं है भौतिक अौर... यह अंतर है । वहाँ है ... जैसे कामुक इच्छाएं और प्रेम, शुद्ध प्रेम । कामुक इच्छाअों और शुद्ध प्रेम के बीच क्या अंतर है ? यहाँ हम मिलते हैं, पुरुष और स्त्री , कामुक इच्छाअों के साथ, और कृष्ण भी गोपियों के साथ मिलते हैं । ऊपर-ऊपर से वे एक ही बात लगते हैं । लेकिन क्या फर्क है ? तो यह अंतर समझाया गया है लेखक द्वारा चैतन्य-चरितामृत में, कि कामुक इच्छाओं और प्रेम के बीच अंतर क्या है ? यह समझाया गया है । उन्होंने कहा है, अात्मेंद्रिय-प्रीति-वांछा तारे-बली 'काम' ([[Vanisource:CC Adi 4.165|चैतन्य चरितामृत आदि ४.१६५]]) "जब मैं अपने इन्द्रियों को संतुष्ट करना चाहता हूँ, तो वह काम है ।" लेकिन, कृष्नेन्द्रिय-प्रीति-इच्छा धरे 'प्रेम' नाम, "और जब हम कृष्ण की इन्द्रियों को संतुष्ट करना चाहते हैं, तो यह प्रेम है, प्रेम ।" फर्क यही है ।
 
यहाँ इस भौतिक संसार में प्रेम नहीं है क्योंकि पुरुष और स्त्री, उन्हे पता नहीं है कि, "मैं इस पुरुष के साथ मिलती हूं, वह पुरुष जो मेरे साथ इच्छाओं की पूर्ति करता है । " नहीं । "मैं अपनी इच्छाओं को पूरा करूँगी ।" यह बुनियादी सिद्धांत है । पुरुष सोचता है कि "इस स्त्री के साथ मिलकर, मैं अपनि इन्द्रिय को संतुष्ट करूँगा," और स्त्री सोच रही है कि "इस पुरुष के साथ मिलकर, मैं अपनी इच्छा को पूरा करूँगी ।" इसलिए यह पश्चिमी देशों में बहुत प्रचलित है, जैसे ही व्यक्तिगत इन्द्रिय तृप्ति में कठिनाई होती है, तुरंत तलाक । यह मनोवैज्ञानिक है, क्यों इतने सारे तलाक होते हैं इसे देश में । मूल कारण यह है कि "जैसे ही मुझे संतुष्टि नहीं मिलती है, तो मुझे नहीं चाहिए ।" यह श्रीमद-भागवतम् में कहा गया है कि: दां-पत्यं रतिं एव हि ([[Vanisource:SB 12.2.3|श्रीमद भागवतम् १२.२.३]])। इस युग में, पति और पत्नी का अर्थ है मैथुन की संतुष्टि, व्यक्तिगत । कोई सवाल ही नहीं है कि "हम एक साथ रहेंगे; हम कृष्ण को संतुष्ट करेंगे प्रशिक्षिण द्वारा कि कृष्ण को कैसे संतुष्ट किया जा सकता है ।" यहि कृष्ण भावनामृत आंदोलन है ।  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture on SB 6.1.26 -- Honolulu, May 26, 1976

तो यह जीवन जीने का सामान्य तरीका है। हर कोई इन भौतिक गतिविधियों में लगा हुअा है, और भौतिक गतिविधि का बुनियादी सिद्धांत है ग्रहस्थ, पारिवारिक जीवन । पारिवारिक जीवन, वैदिक प्रणाली के अनुसार, या कहीं भी, पत्नी, बच्चों का पोषण करने के लिए जिम्मेदारी का जीवन है । हर कोई व्यस्त है । वे सोचते हैं कि यह ही मेरा एकमात्र कर्तव्य है । "परिवार का पोषण करना, यही मेरा कर्तव्य है । जितने आराम से संभव हो सके । यही मेरा कर्तव्य है ।" यह कोई नहीं सोचता कि इस तरह का कर्तव्य जानवरों द्वारा भी किया जाता है । उनके भी बच्चे हैं, और वे उन्हे खिला रहे हैं । क्या अंतर है ? इसलिए यहां मूढ शब्द का उपयोग किया गया है । मूढ का अर्थ है गधा । इस तरह के काम में जो लगे हुए हैं, भुंजान: प्रपिबन् खादन् । प्रपिबन् । प्रपिबन् का अर्थ है पीना, और भुंजान: का अर्थ है खाना । खाते हुए, पीते हुए, खादन्, चबाते हुए, चर्व चस्य राज प्रेय । खाद्य-पदार्थ चार प्रकार के होते हैं । कभी हम चबाते हैं, कभी हम निगलते हैं, कभी हम चाटते हैं, (संस्कृत), कभी हम पीते हैं । तो खाद्य पदार्थ चार प्रकार के होते हैं । इसलिए हम गाते हैं चतु: विधा श्री-भगवत-प्रसादात् । चतु: विघा का अर्थ है चार प्रकार के । इसलिए हम अर्च विग्रह को इन चार श्रेणियों मे से इतने सारे खाद्य पदार्थ अर्पण करते हैं । कुछ चबाए जाते हैं, कुछ चाटे जाते हैं, कुछ निगले जाते हैं । इस तरह से ।

तो भुंजान: प्रपिबन् खादन् बालकम् स्नेह-यन्त्रित: पिता और माता बच्चों की देखभाल करते हैं, कैसे उन्हें खाद्य पदार्थ दें । हमने देखा है माता यशोदा कृष्ण को खिलाती हैं । एक ही बात है । यही अंतर है । हम आम बच्चे को खिला रहे हैं, जो बिल्लियाँ और कुत्ते भी करते हैं लेकिन माता यशोदा कृष्ण को खिला रही हैं । वही प्रक्रिया । प्रक्रिया में कोई अंतर नहीं है, लेकिन एक में कृष्ण केंद्र हैं और दुसरा मनगढ़ंत केंद्र है । अंतर यही है । जब कृष्ण केंद्र में हैं, तो यह आध्यात्मिक है, और जब केंद्र मनगढ़ंत है, तो यह भौतिक है । कोई अंतर नहीं है भौतिक अौर... यह अंतर है । वहाँ है ... जैसे कामुक इच्छाएं और प्रेम, शुद्ध प्रेम । कामुक इच्छाअों और शुद्ध प्रेम के बीच क्या अंतर है ? यहाँ हम मिलते हैं, पुरुष और स्त्री , कामुक इच्छाअों के साथ, और कृष्ण भी गोपियों के साथ मिलते हैं । ऊपर-ऊपर से वे एक ही बात लगते हैं । लेकिन क्या फर्क है ? तो यह अंतर समझाया गया है लेखक द्वारा चैतन्य-चरितामृत में, कि कामुक इच्छाओं और प्रेम के बीच अंतर क्या है ? यह समझाया गया है । उन्होंने कहा है, अात्मेंद्रिय-प्रीति-वांछा तारे-बली 'काम' (चैतन्य चरितामृत आदि ४.१६५) "जब मैं अपने इन्द्रियों को संतुष्ट करना चाहता हूँ, तो वह काम है ।" लेकिन, कृष्नेन्द्रिय-प्रीति-इच्छा धरे 'प्रेम' नाम, "और जब हम कृष्ण की इन्द्रियों को संतुष्ट करना चाहते हैं, तो यह प्रेम है, प्रेम ।" फर्क यही है ।

यहाँ इस भौतिक संसार में प्रेम नहीं है क्योंकि पुरुष और स्त्री, उन्हे पता नहीं है कि, "मैं इस पुरुष के साथ मिलती हूं, वह पुरुष जो मेरे साथ इच्छाओं की पूर्ति करता है । " नहीं । "मैं अपनी इच्छाओं को पूरा करूँगी ।" यह बुनियादी सिद्धांत है । पुरुष सोचता है कि "इस स्त्री के साथ मिलकर, मैं अपनि इन्द्रिय को संतुष्ट करूँगा," और स्त्री सोच रही है कि "इस पुरुष के साथ मिलकर, मैं अपनी इच्छा को पूरा करूँगी ।" इसलिए यह पश्चिमी देशों में बहुत प्रचलित है, जैसे ही व्यक्तिगत इन्द्रिय तृप्ति में कठिनाई होती है, तुरंत तलाक । यह मनोवैज्ञानिक है, क्यों इतने सारे तलाक होते हैं इसे देश में । मूल कारण यह है कि "जैसे ही मुझे संतुष्टि नहीं मिलती है, तो मुझे नहीं चाहिए ।" यह श्रीमद-भागवतम् में कहा गया है कि: दां-पत्यं रतिं एव हि (श्रीमद भागवतम् १२.२.३)। इस युग में, पति और पत्नी का अर्थ है मैथुन की संतुष्टि, व्यक्तिगत । कोई सवाल ही नहीं है कि "हम एक साथ रहेंगे; हम कृष्ण को संतुष्ट करेंगे प्रशिक्षिण द्वारा कि कृष्ण को कैसे संतुष्ट किया जा सकता है ।" यहि कृष्ण भावनामृत आंदोलन है ।