HI/Prabhupada 0023 - मृत्यु से पहले कृष्ण भावनाभावित हो जाअो

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Sri Isopanisad Invocation Lecture -- Los Angeles, April 28, 1970

तो यहाँ कहा गया है कि इस ब्रह्मांड का अपना ही समय है, पूर्णता की शक्ति से बद्ध । ब्रह्मांड भी बड़ा विशाल शरीर, भौतिक शरीर है। इतना ही । जैसे तुम्हारा शरीर, सब कुछ सापेक्ष है । आधुनिक विज्ञान, सापेक्षता का कानून । एक परमाणु, एक छोटा कण, छोटी चींटी, तो उसे एक सापेक्ष जीवन मिला है, तुम्हे सापेक्ष जीवन मिला है । इसी प्रकार, यह विशाल शरीर, यह हो सकता है कि यह ब्रह्मांड मौजूद रहे कई लाखों वर्षों तक, लेकिन यह हमेशा के लिए मौजूद नहीं रहेगा । यह एक तथ्य है । क्योंकि यह बहुत विशाल है, इसलिए यह कुछ करोड़ों साल के लिए रह सकता है, लेकिन यह खत्म हो जाएगा । यही प्रकृति का नियम है । और जब समय पूरा हो जाएगा, तब यह अस्थायी अभिव्यक्ति समाप्त हो जाएगी पूर्णता की व्यवस्था के द्वारा, सर्वोच्च पूर्णता । अपका समय जब पूरा हो जाएगा, और नहीं, श्रीमान, इस शरीर में । कोई भी रोक नहीं सकता है । व्यवस्था इतनी मजबूत है । तुम नहीं कह सकते हो "मुझे रहने दो ।" असल में ऐसा होता है । जब मैं भारत में था, इलाहाबाद, हमारे एक, एक ज्ञात दोस्त, वह बहुत अमीर आदमी था । तो वह मर रहा था । तो वह डॉक्टर से अनुरोध कर रहा था "अाप मुझे कम से कम चार साल नहीं दे सकता हो जीवित रहने के लिए ? मैंने कुछ योजना बनाई है, अाप समझ रहे हैं । मैं उसे खत्म नहीं कर पाया । " तुम समझ रहे हो । अाशा-पाश-शतैर् बद्धा: । यह राक्षसी प्रवृत्ति है । हर कोई सोचता है कि "ओह, मुझे यह करना है । मुझे यह करना है ।" नहीं । डॉक्टर या डॉक्टर के पिता या उसके पिता, कोई वैज्ञानिक इसे रोक नहीं सकता है । " ओह, नहीं, श्रीमान । कोई चार साल नहीं । चार मिनट भी नहीं । तम्हे तुरंत जाना होगा ।" यही कानून है । तो उस क्षण के अाने से पहले, व्यक्ति को बहुत निपुण होना चाहिए कृष्ण भावनामृत को अनुभव करने के लिए । तूर्णम यतेत । तूर्णम् का अर्थ है तेज़ी से, बहुत जल्दी तुम्हे कृष्ण भावनामृत का अनुभव करना चाहिए । अनु ... अगला, मृत्यु से पहले, अगली मृत्यु के अाने से पहले, तुम्हे अपना कार्य समाप्त करना ही होगा । यही बुद्धिमत्ता है। अन्यथा हार होगी । धन्यवाद