HI/Prabhupada 0024 - कृष्ण इतने दयालु है

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Lecture on SB 3.25.26 -- Bombay, November 26, 1974

जब अर्जुन अामने सामने कृष्ण को देख रहा था - कृष्ण भगवद्- गीता पढ़ा रहे थे - वह कृष्ण को देखना और भगवद्- गीता का पढ़ना, यह एक ही बात है । कोई अंतर नहीं है । किसी किसी का कहना है कि, "वह अर्जुन बहुत भाग्यशाली था कृष्ण को अामने सामने देख पाने के लिए अौर शिक्षा ले पाने का लिए ।" यह सही नहीं है । कृष्ण, उन्हे तुरंत देखा जा सकता है, अगर तुम्हारे पास देखने के लिए आंखें हो तो । इसलिए यह कहा जाता है, प्रेमान्जन छुरित ... प्रेमा और भक्ति, एक ही बात है । प्रेमान्जन छुरित भक्ति विलोचनेन संत: सदैव ह्रदयेशु विलोकयंति (ब्र स ५।३८) । मैं इस संबंध में एक कहानी सुनाता हूँ, कि दक्षिण भारत में एक ब्राह्मण, रंगनाथ मंदिर में, वह पढ़ रहा था भगवद्- गीता । और वह अनपढ़ था । उसे संस्कृत नहीं अाती थी, और न ही कोई अक्षर, अनपढ़ । तो लोग, पड़ोस में, जानते थे कि "यह आदमी अनपढ़ है, और वह भगवद्- गीता पढ़ रहा है ।" वह भगवद्- गीता खोल रहा है, "उह, उह", वैसे वह था । तो कोइ मज़ाक कर रहा था "अरे, ब्राह्मण, तुम कैसे भगवद्- गीता पढ़ रहे हो ?" वह समझ सकता था कि, "मैं अनपढ़ हूँ इसलिए यह आदमी मज़ाक उडा रहा है ।" तो इस तरह से, चैतन्य महाप्रभु भी उस दिन उपस्थित थे रंगनाथ मंदिर में, और वे समझ सकते थे कि, "यहां एक भक्त है ।" तो वे उससे मिले अौर उन्होंने पूछा, "मेरे प्यारे ब्राह्मण, तुम क्या पढ़ रहे हो ?" तो वह यह भी समझ सकता था कि "यह आदमी मज़ाक नहीं कर रहा है ।" तो उसने कहा "श्रीमान, मैं भगवद्- गीता पढ़ रहा हूँ । मैं भगवद्- गीता पढ़ने की कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन मैं अनपढ़ हूँ । तो मेरे गुरु महाराज ने कहा कि 'तुम्हे दैनिक अठारह अध्यायों को पढ़ना चाहिए ।"' तो मुझे ज्ञान नहीं है । मैं पढ़ नहीं सकता हूँ । फिर भी, गुरु महाराज ने कहा, तो मैं केवल उनके आदेश का पालन करने की कोशिश कर रहा हूँ और पृष्ठों को खोलता हूँ, और बस । मुझे पढ़ना नहीं अाता है । " चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि "तुम कभी कभी रोते हो, मैं देखता हूँ ।" फिर, "हाँ, मैं रोता हूँ ।" "तुम पढ़ नहीं सकते हो, तो क्यों रोते हो ?" नहीं, मैं जब इस भगवद्- गीता किताब को लेता हूँ, मैं एक तस्वीर देखता हूँ, कि कृष्ण इतने दयालु हैं कि वे अर्जुन के रथ के सारथी बन गए हैं । वह उनका भक्त है । तो श्री कृष्ण इतने दयालु हैं कि वह एक सेवक की पदवि को स्वीकार कर सकते हैं क्योंकि अर्जुन आदेश दे रहा था, '"मेरा रथ यहां रखो" और कृष्ण उसकि सेवा कर रहे थे । तो कृष्ण इतने दयालु हैं । इसलिए जब मैं अपने मन के भीतर इस तस्वीर को देखता हूँ, मैं रोता हूँ । " तो चैतन्य महाप्रभु ने तुरंत उसे गले लगा लिया कि " तुम भगवद्- गीता पढ़ रहे हो । किसी भी शिक्षा के बिना, तुम भगवद्- गीता पढ़ रहे हो ।" उन्होंने उसे गले लगा लिया । तो यह है ... कैसे वह तस्वीर देख रहा था ? क्योंकि वह कृष्ण का एक प्रेमी था, कोइ फर्क नहीं पडता है, कि वह इन श्लोकों को पढ़ा सकता था या नहीं । लेकिन वह कृष्ण के प्रेम में समाहित था और वह देख रहा था, कृष्ण वहां बैठे हुए थे, और वह अर्जुन का रथ चला रहे थे । यह आवश्यक है ।