HI/Prabhupada 0027 - उन्हे पता ही नहीं की पुनर्जिवन है: Difference between revisions

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तो (पढ़ते हुए:) एक व्यक्ति भौतिक अस्तित्व कि बद्ध अवस्था में, बेबसी के माहौल में है । लेकिन एक बद्ध आत्मा, माया या बाहरी शक्ति के भ्रम में, सोचता है वह पूरी तरह से अपने देश, समाज, दोस्ती और प्यार से सुरक्षित है, न जानते हुए कि मृत्यु के समय इनमें से कोई भी उसे बचा नहीं सकते हैं ।" इसे माया कहा जाता है । लेकिन वह विश्वास नहीं करता । माया के भ्रम के तहत, वह विश्वास नहीं करता कि बचाव का क्या मतलब है । बचाव । बचाव का अर्थ है, जन्म और मृत्यु के चक्र से अपने आप को बचाना । वह असली बचाव है । लेकिन वे नहीं जानते । (पढ़ने:) "भौतिक प्रकृति के नियम इतने मजबूत हैं कि हमारी कोई भी भौतिक संपत्ति हमें मौत के क्रूर हाथों से बचा नहीं सकती है । " हर कोई यह जानता है । और यही हमारी असली समस्या है । कौन मृत्यु से नहीं डरता है ? हर किसी को मृत्यु से भय है । क्यों ? क्योंकि कोई भी जीव, वह मरने के लिए नहीं बना है । वह शाश्वत है, इसलिए जन्म, मृत्यु, जरा और व्याधि ये बातें उसके लिए परेशानी हैं । क्योंकि वह शाश्वत है, वह जन्म नहीं लेता है, ना जायते, और जो जन्म नहीं लेता है, तो वह मरता भी नहीं, न मृयते कदाचित । यह हमारी वास्तविक स्थिति है । इसलिए हमें मत्यु से भय है । यह हमारा प्राकृतिक झुकाव है । तो मृत्यु से हमें बचाने के लिए ... यही मानव जाती का पहला कार्य है । हम केवल इस उद्देश्य से इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को सिखा रहे हैं । यही हर किसी का उद्देश्य होना चाहिए । यही शास्त्र की निषेधाज्ञा है । जो लोग अभिभावक हैं .. सरकार, पिता, शिक्षक, वे बच्चों के अभिभावक हैं । उन्हे यह पता होना चाहिए, कैसे संरक्षण दे सकते हैं दुनिया के ... न मोचयेद य: समुपेत मृत्युं । तो यह सब तत्त्वज्ञान है कहाँ दुनिया भर में ? ऐसा कोई तत्त्वज्ञान नहीं है । यह केवल कृष्ण भावनामृत आंदोलन है जो इस तत्त्वज्ञान को पेश कर रहा है, मन घडंत नहीं लेकिन अधिकृत शास्त्र, वैदिक साहित्य, अधिकारियों से । इसलिए यह हमारा अनुरोध है । हम मानव समाज के लाभ के लिए दुनिया भर में विभिन्न केन्द्र खोल रहे हैं कि उन्हे जीवन के उद्देश्य का पता नहीं, मृत्यु के बाद अगले जन्म के बारे में उन्हें पता नहीं । यह बातें वे नहीं जानते । अगला जन्म निस्संदेह है, और अाप इस जीवन में अपने अगले जन्म कि तैयारी कर सकते हैं अाप उपरी लोकों में जा सकते हैं, बेहतर आराम, भोतिक आराम के लिए । अाप एक सुरक्षित स्थिति में यहां रह सकते हैं ।" सुरक्षित स्थिति का अर्थ है यह भौतिक जीवन । जैसे यह कहा जाता है: यान्ति देव व्रता देवान्् पितृन् यान्ति पितृ व्रता: भूतानि यान्ति भूतेज्या मद याजिनो अपि यान्ति माम् (भ गी ९।२५) तो अाप अपने आप को तैयार कर सकते हैं स्वर्गीय लोकों में बेहतर जीवन के लिए या इस दुनिया में एक बेहतर समाज में या उन लोकों पर जाने के लिए जहां भूत और अन्य नीच नियंत्रित कर रहे हैं, या फिर अाप उस लोक को जा सकते हैं, जहां कृष्ण हैं । सब कुछ अापके लिए खुला है । यान्ति भूतेज्या भूतानि मद याजिनो अपि यान्ति माम् । केवल अापको अपने आप को तैयार करना होगा । जैसे युवा जीवन में वे शिक्षित किये जा रहे हैं - कोइ इंजीनियर बनने जा रहा है, कोइ चिकित्सक बनने जा रहा है, कोइ वकील और कई अन्य पेशेवर आदमी बनने जा रहा है - और वे शिक्षा द्वारा तैयार हो रहे हैं, वैसे ही, अाप अपना अगला जीवन तैयार कर सकते हो । यह समझना मुश्किल नहीं है । हालांकि यह बहुत आम भावना है पर वे अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं । वास्तव में अगला जीवन है क्योंकि कृष्ण कहते हैं, और हम यह तत्त्वज्ञान समझ सकते हैं थोडी बुद्धिमत्ता से कि अगला जीवन है । तो हमारा प्रस्ताव है कि "अगर अापको अगले जीवन के लिए अपने आप को तैयार करना ही है, तो क्यों अाप भगवद्धाम जाने के लिए तैयारी की परेशानी नहीं उठाते हैं ? " यह हमारा प्रस्ताव है ।
तो (पढ़ते हुए:) "एक व्यक्ति भौतिक अस्तित्व की बद्ध अवस्था में, बेबसी के माहौल में है । लेकिन एक बद्ध आत्मा, माया या बाहरी शक्ति के भ्रम में, सोचता है वह पूरी तरह से अपने देश, समाज, दोस्ती और प्यार से सुरक्षित है, न जानते हुए कि मृत्यु के समय इनमें से कोई भी उसे बचा नहीं सकते हैं ।" इसे माया कहा जाता है । लेकिन वह विश्वास नहीं करता । माया के भ्रम के तहत, वह विश्वास नहीं करता कि बचाव का क्या मतलब है । बचाव । बचाव का अर्थ है, जन्म और मृत्यु के चक्र से अपने आप को बचाना । वह असली बचाव है । लेकिन वे नहीं जानते । (पढ़ते हुए:) "भौतिक प्रकृति के नियम इतने मजबूत हैं कि हमारी कोई भी भौतिक संपत्ति हमें मौत के क्रूर हाथों से बचा नहीं सकती ।" हर कोई यह जानता है । और यही हमारी असली समस्या है । कौन मृत्यु से नहीं डरता है ? हर किसी को मृत्यु से भय है । क्यों ? क्योंकि कोई भी जीव, वह मरने के लिए नहीं बना है । वह शाश्वत है, इसलिए जन्म, मृत्यु, जरा और व्याधि ये बातें उसके लिए परेशानी हैं । क्योंकि वह शाश्वत है, वह जन्म नहीं लेता है, ना जायते ([[HI/BG 2.20|भ गी २.२०]]), और जो जन्म नहीं लेता है, वह मरता भी नहीं, न मृयते कदाचित ([[HI/BG 2.20|भ गी २.२०]]) । यह हमारी वास्तविक स्थिति है ।इसलिए हमें मत्यु से भय है । यह हमारा प्राकृतिक झुकाव है ।
 
तो मृत्यु से हमें बचाने के लिए ... यही मानव जाती का पहला कार्य है । हम केवल इस उद्देश्य से इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को सिखा रहे हैं । यही हर किसी का उद्देश्य होना चाहिए । यही शास्त्र की आज्ञा है । जो लोग अभिभावक हैं .. सरकार, पिता, शिक्षक, वे बच्चों के अभिभावक हैं । उन्हें यह पता होना चाहिए, कैसे संरक्षण दे सकते हैं दुनिया के ... न मोचयेद य: समुपेत मृत्युं ([[Vanisource:SB 5.5.18 |श्रीमद भागवतम ५.५.१८]]) । तो यह देर्शन है कहाँ दुनिया भर में ? ऐसा कोई दर्शन नहीं है । यह केवल कृष्ण भावनामृत आंदोलन है जो इस दर्शन को पेश कर रहा है, मन घडंत नहीं लेकिन अधिकृत शास्त्र, वैदिक साहित्य, अधिकारियों से । इसलिए यह हमारा अनुरोध है । हम मानव समाज के लाभ के लिए दुनिया भर में विभिन्न केन्द्र खोल रहे हैं कि उन्हें जीवन के उद्देश्य का पता नहीं, मृत्यु के बाद अगले जन्म के बारे में उन्हें पता नहीं । यह बातें वे नहीं जानते । अगला जन्म निस्संदेह है, और तुम इस जीवन में अपने अगले जन्म की तैयारी कर सकते हो तुम उपरी लोकों में जा सकते हो, बेहतर आराम, भोतिक आराम के लिए । तुम एक सुरक्षित स्थिति में यहाँ रह सकते हो ।" सुरक्षित स्थिति का अर्थ है यह भौतिक जीवन । जैसे यह कहा जाता है:
 
:यान्ति देव व्रता देवान्
:पितृन् यान्ति पितृ व्रता:
:भूतानि यान्ति भूतेज्या  
:मद याजिनो अपि यान्ति माम्  
:([[HI/BG 9.25|भ गी ९.२५]])
 
तो तुम अपने आप को तैयार कर सकते हो स्वर्गीय लोकों में बेहतर जीवन के लिए या इस दुनिया में एक बेहतर समाज में या उन लोकों पर जाने के लिए जहाँ भूत और अन्य नीच जीव नियंत्रित कर रहे हैं, या फिर तुम उस लोक को जा सकते हो, जहाँ कृष्ण हैं । सब कुछ तुम्हारे लिए खुला है । यान्ति भूतेज्या भूतानि मद्याजिनोऽपि यान्ति माम् । केवल तुम्हें अपने आप को तैयार करना होगा । जैसे युवा जीवन में वे शिक्षित किये जा रहे हैं - कोइ इंजीनियर बनने जा रहा है, कोइ चिकित्सक बनने जा रहा है, कोइ वकील और कई अन्य पेशेवर आदमी बनने जा रहा है - और वे शिक्षा द्वारा तैयार हो रहे हैं, वैसे ही, तुम अपना अगला जीवन तैयार कर सकते हो । यह समझना मुश्किल नहीं है । हालांकि यह बहुत व्यावहारिक ज्ञान है, पर वे अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं । वास्तव में अगला जीवन है क्योंकि कृष्ण कहते हैं, और हम यह दर्शन समझ सकते हैं थोडी बुद्धिमत्ता से कि अगला जीवन है । तो हमारा प्रस्ताव है कि "अगर तुम्हें अगले जीवन के लिए अपने आप को तैयार करना ही है, तो तुम भगवद्धाम जाने के लिए तैयारी करने का कष्ट क्यों नहीं उठाते हो ?" यह हमारा प्रस्ताव है ।  
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Latest revision as of 18:00, 17 September 2020



Lecture on CC Adi-lila 7.1 -- Atlanta, March 1, 1975

तो (पढ़ते हुए:) "एक व्यक्ति भौतिक अस्तित्व की बद्ध अवस्था में, बेबसी के माहौल में है । लेकिन एक बद्ध आत्मा, माया या बाहरी शक्ति के भ्रम में, सोचता है वह पूरी तरह से अपने देश, समाज, दोस्ती और प्यार से सुरक्षित है, न जानते हुए कि मृत्यु के समय इनमें से कोई भी उसे बचा नहीं सकते हैं ।" इसे माया कहा जाता है । लेकिन वह विश्वास नहीं करता । माया के भ्रम के तहत, वह विश्वास नहीं करता कि बचाव का क्या मतलब है । बचाव । बचाव का अर्थ है, जन्म और मृत्यु के चक्र से अपने आप को बचाना । वह असली बचाव है । लेकिन वे नहीं जानते । (पढ़ते हुए:) "भौतिक प्रकृति के नियम इतने मजबूत हैं कि हमारी कोई भी भौतिक संपत्ति हमें मौत के क्रूर हाथों से बचा नहीं सकती ।" हर कोई यह जानता है । और यही हमारी असली समस्या है । कौन मृत्यु से नहीं डरता है ? हर किसी को मृत्यु से भय है । क्यों ? क्योंकि कोई भी जीव, वह मरने के लिए नहीं बना है । वह शाश्वत है, इसलिए जन्म, मृत्यु, जरा और व्याधि ये बातें उसके लिए परेशानी हैं । क्योंकि वह शाश्वत है, वह जन्म नहीं लेता है, ना जायते (भ गी २.२०), और जो जन्म नहीं लेता है, वह मरता भी नहीं, न मृयते कदाचित (भ गी २.२०) । यह हमारी वास्तविक स्थिति है ।इसलिए हमें मत्यु से भय है । यह हमारा प्राकृतिक झुकाव है ।

तो मृत्यु से हमें बचाने के लिए ... यही मानव जाती का पहला कार्य है । हम केवल इस उद्देश्य से इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को सिखा रहे हैं । यही हर किसी का उद्देश्य होना चाहिए । यही शास्त्र की आज्ञा है । जो लोग अभिभावक हैं .. सरकार, पिता, शिक्षक, वे बच्चों के अभिभावक हैं । उन्हें यह पता होना चाहिए, कैसे संरक्षण दे सकते हैं दुनिया के ... न मोचयेद य: समुपेत मृत्युं (श्रीमद भागवतम ५.५.१८) । तो यह देर्शन है कहाँ दुनिया भर में ? ऐसा कोई दर्शन नहीं है । यह केवल कृष्ण भावनामृत आंदोलन है जो इस दर्शन को पेश कर रहा है, मन घडंत नहीं लेकिन अधिकृत शास्त्र, वैदिक साहित्य, अधिकारियों से । इसलिए यह हमारा अनुरोध है । हम मानव समाज के लाभ के लिए दुनिया भर में विभिन्न केन्द्र खोल रहे हैं कि उन्हें जीवन के उद्देश्य का पता नहीं, मृत्यु के बाद अगले जन्म के बारे में उन्हें पता नहीं । यह बातें वे नहीं जानते । अगला जन्म निस्संदेह है, और तुम इस जीवन में अपने अगले जन्म की तैयारी कर सकते हो । तुम उपरी लोकों में जा सकते हो, बेहतर आराम, भोतिक आराम के लिए । तुम एक सुरक्षित स्थिति में यहाँ रह सकते हो ।" सुरक्षित स्थिति का अर्थ है यह भौतिक जीवन । जैसे यह कहा जाता है:

यान्ति देव व्रता देवान्
पितृन् यान्ति पितृ व्रता:
भूतानि यान्ति भूतेज्या
मद याजिनो अपि यान्ति माम्
(भ गी ९.२५)

तो तुम अपने आप को तैयार कर सकते हो स्वर्गीय लोकों में बेहतर जीवन के लिए या इस दुनिया में एक बेहतर समाज में या उन लोकों पर जाने के लिए जहाँ भूत और अन्य नीच जीव नियंत्रित कर रहे हैं, या फिर तुम उस लोक को जा सकते हो, जहाँ कृष्ण हैं । सब कुछ तुम्हारे लिए खुला है । यान्ति भूतेज्या भूतानि मद्याजिनोऽपि यान्ति माम् । केवल तुम्हें अपने आप को तैयार करना होगा । जैसे युवा जीवन में वे शिक्षित किये जा रहे हैं - कोइ इंजीनियर बनने जा रहा है, कोइ चिकित्सक बनने जा रहा है, कोइ वकील और कई अन्य पेशेवर आदमी बनने जा रहा है - और वे शिक्षा द्वारा तैयार हो रहे हैं, वैसे ही, तुम अपना अगला जीवन तैयार कर सकते हो । यह समझना मुश्किल नहीं है । हालांकि यह बहुत व्यावहारिक ज्ञान है, पर वे अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं । वास्तव में अगला जीवन है क्योंकि कृष्ण कहते हैं, और हम यह दर्शन समझ सकते हैं थोडी बुद्धिमत्ता से कि अगला जीवन है । तो हमारा प्रस्ताव है कि "अगर तुम्हें अगले जीवन के लिए अपने आप को तैयार करना ही है, तो तुम भगवद्धाम जाने के लिए तैयारी करने का कष्ट क्यों नहीं उठाते हो ?" यह हमारा प्रस्ताव है ।