HI/Prabhupada 0029 - बुद्ध ने राक्षसों को धोखा दिया: Difference between revisions

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तो भगवान बुद्ध, उन्होंने राक्षसों को धोखा दिया । कयों उन्होंने धोखा दिया ? सदया ह्रदय दर्शित पशु घातम । वे बडे दयालु थे । भगवान हमेशा सभी जीवों के लिए सहानुभूति रखते हैं क्योंकि हर जीव उनका पुत्र है । तो यह दुष्ट अप्रतिबंधित हत्या कर रहे थे, केवल पशु हत्या ... अौर अगर तुम कहते हो, "ओह, तुम क्यों पशु की हत्या कर रहे हो ?" वे तुरंत कहेंगे : "ओह, यह वेदों में है: पशवो वधाय सृष्टा ।" पशु हत्या वेदों में है, लेकिन किस प्रयोजन से ? यह वैदिक मंत्र का परीक्षण करने के लिए है । एक पशु आग में डाल दिया जाएगा, और वैदिक मंत्र से वह दोबारा युवा हो जाएगा । यह बलि देना है, पशु की बलि । ऐसा नहीं कि उद्देश्य पशु को खाना है । इसलिए कली के इस युग में, चैतन्य महाप्रभु नें किसी भी तरह का यज्ञ मना किया है क्योंकि एसा कोई नहीं है, मेरे कहने का मतलब है, कोइ विशेषज्ञ ब्राह्मण जो मंत्र पढ़ सके और वैदिक मंत्रों का प्रयोग करे कि "यहाँ से बाहर आ रहा है ।" यह ... यज्ञ करने से पहले, कैसे वह मंत्र शक्तिशाली है, यह परीक्षण किया जाता था पशु की बली से और उसे फिर से नया जीवन देकर । तो यह समझ जा सकता है कि जो पुजारी मंत्र जप रहे थे, यह सही है । यह एक परीक्षण था । न कि पशु की हत्या के लिए । लेकिन ये दुष्ट, पशुअों के खाने के लिए आह्वान करते हैं, "यहाँ, पशु की हत्या लिखी गई है ।" जैसे कलकत्ता में ... तुम कलकत्ता गए हो ? और वहाँ एक सड़क है, कॉलेज स्ट्रीट । अब उसका अलग नाम है । शायद उसका नाम है विधान राया (?)। वैसे ही जैसे ... वैसे भी, तो कुछ क़साईख़ाने हैं । तो क़साईख़ाना का अर्थ है कि हिंदु , वे मुसलमानों की दुकान से मांस नहीं खरीदते हैं । यह अशुद्ध है । एक ही बात: मल इस तरफ और उस तरफ । वे मांस खा रहे हैं, और हिन्दू दुकान शुद्ध है, मुस्लिम दुकान अशुद्ध है । ये मानसिक मनगढ़ंत कहानी है । धर्म इस तरह से चल रहा है । इसलिए ... इसलिए लड़ रहे हैं: "मैं हिन्दू हूँ," "मैं मुसलमान हूँ," "मैं ईसाई हूँ ।" कोई भी धर्म को जानता नहीं है । तुम देख रहे हो ? उन्होंने धर्म का त्याग किया है, इन दुष्टों नें । कोई धर्म नहीं है । असली धर्म यह है, कृष्ण भावनामृत, जो सिखाता है कि कैसे भगवान से प्रेम करना चाहिए । बस । धर्म यही है । कोई भी धर्म, कोई फर्क नहीं पड़ता कि हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म, अगर तुम परमेश्वर के प्रति प्रेम को विकसित कर रहे हो, तो तुम अपने धर्म में परिपूर्ण हो ।
तो भगवान बुद्ध, उन्होंने राक्षसों को धोखा दिया । क्यों उन्होंने धोखा दिया ? सदया-ह्रदय-दर्शित-पशु-घातम (दशवतार स्तोत्र) । वे बहुत दयालु थे । भगवान हमेशा सभी जीवों के लिए सहानुभूति रखते हैं क्योंकि हर जीव उनका पुत्र है । तो यह दुष्ट अप्रतिबंधित हत्या कर रहे थे, केवल पशु हत्या ... अौर अगर तुम कहते हो, "ओह, तुम क्यों पशु की हत्या कर रहे हो ?" वे तुरंत कहेंगे : "ओह, यह वेदों में है: पशवो वधाय सृष्ट ।" पशु हत्या वेदों में है, लेकिन किस प्रयोजन से ? वह वैदिक मंत्र का परीक्षण करने के लिए है । एक पशु आग में डाल दिया जाएगा, और वैदिक मंत्र से वह दोबारा युवा हो जाएगा । यह बलि देना है, पशु की बलि । ऐसा नहीं कि उद्देश्य पशु को खाना है । इसलिए कलि के इस युग में, चैतन्य महाप्रभु नें किसी भी तरह का यज्ञ मना किया है क्योंकि एसा कोई नहीं है, मेरे कहने का मतलब है, कोइ विशेषज्ञ ब्राह्मण जो मंत्र पढ़ सके और वैदिक मंत्रों का प्रयोग करे कि "यहाँ से बाहर आ रहा है ।" यह ... यज्ञ करने से पहले, कैसे वह मंत्र शक्तिशाली है, यह परीक्षण किया जाता था पशु की बलि से और उसे फिर से नया जीवन देकर । तो यह समझा जा सकता है कि जो पुजारी मंत्र जप रहे थे, वह सही है । यह एक परीक्षण था । न कि पशु की हत्या के लिए ।
 
लेकिन ये दुष्ट, पशुअों को खाने के लिए उद्धरण देते हैं, "यहाँ, पशु की हत्या लिखी गई है ।" जैसे कलकत्ता में ... तुम कलकत्ता गए हो ? और वहाँ एक सड़क है, कॉलेज स्ट्रीट । अब उसका अलग नाम है । शायद उसका नाम है विधान राया (?)। वैसे ही जैसे ... तो कुछ क़साईख़ाने हैं । तो क़साईख़ाने का अर्थ है कि हिंदू लोग , वे मुसलमानों की दुकान से मांस नहीं खरीदते हैं । यह अशुद्ध है । वही बात: मल इस तरफ और उस तरफ । वे मांस खा रहे हैं, और हिन्दू दुकान शुद्ध है, मुस्लिम दुकान अशुद्ध है । ये मानसिक मनगढ़ंत कहानी हैं धर्म इस तरह से चल रहा है । इसलिए ... इसलिए लड़ रहे हैं: "मैं हिन्दू हूँ," "मैं मुसलमान हूँ," "मैं ईसाई हूँ ।" कोई भी धर्म को जानता नहीं है । तुम देख रहे हो ? उन्होंने धर्म का त्याग किया है, इन दुष्टों नें । कोई धर्म नहीं है । असली धर्म यह है, कृष्ण भावनामृत, जो सिखाता है कि कैसे भगवान से प्रेम करना चाहिए । बस । धर्म यही है । कोई भी धर्म, कोई फर्क नहीं पड़ता कि हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म, अगर तुम परमेश्वर के प्रति प्रेम को विकसित कर रहे हो, तो तुम अपने धर्म में परिपूर्ण हो ।  
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Sri Isopanisad, Mantra 1 -- Los Angeles, May 3, 1970

तो भगवान बुद्ध, उन्होंने राक्षसों को धोखा दिया । क्यों उन्होंने धोखा दिया ? सदया-ह्रदय-दर्शित-पशु-घातम (दशवतार स्तोत्र) । वे बहुत दयालु थे । भगवान हमेशा सभी जीवों के लिए सहानुभूति रखते हैं क्योंकि हर जीव उनका पुत्र है । तो यह दुष्ट अप्रतिबंधित हत्या कर रहे थे, केवल पशु हत्या ... अौर अगर तुम कहते हो, "ओह, तुम क्यों पशु की हत्या कर रहे हो ?" वे तुरंत कहेंगे : "ओह, यह वेदों में है: पशवो वधाय सृष्ट ।" पशु हत्या वेदों में है, लेकिन किस प्रयोजन से ? वह वैदिक मंत्र का परीक्षण करने के लिए है । एक पशु आग में डाल दिया जाएगा, और वैदिक मंत्र से वह दोबारा युवा हो जाएगा । यह बलि देना है, पशु की बलि । ऐसा नहीं कि उद्देश्य पशु को खाना है । इसलिए कलि के इस युग में, चैतन्य महाप्रभु नें किसी भी तरह का यज्ञ मना किया है क्योंकि एसा कोई नहीं है, मेरे कहने का मतलब है, कोइ विशेषज्ञ ब्राह्मण जो मंत्र पढ़ सके और वैदिक मंत्रों का प्रयोग करे कि "यहाँ से बाहर आ रहा है ।" यह ... यज्ञ करने से पहले, कैसे वह मंत्र शक्तिशाली है, यह परीक्षण किया जाता था पशु की बलि से और उसे फिर से नया जीवन देकर । तो यह समझा जा सकता है कि जो पुजारी मंत्र जप रहे थे, वह सही है । यह एक परीक्षण था । न कि पशु की हत्या के लिए ।

लेकिन ये दुष्ट, पशुअों को खाने के लिए उद्धरण देते हैं, "यहाँ, पशु की हत्या लिखी गई है ।" जैसे कलकत्ता में ... तुम कलकत्ता गए हो ? और वहाँ एक सड़क है, कॉलेज स्ट्रीट । अब उसका अलग नाम है । शायद उसका नाम है विधान राया (?)। वैसे ही जैसे ... तो कुछ क़साईख़ाने हैं । तो क़साईख़ाने का अर्थ है कि हिंदू लोग , वे मुसलमानों की दुकान से मांस नहीं खरीदते हैं । यह अशुद्ध है । वही बात: मल इस तरफ और उस तरफ । वे मांस खा रहे हैं, और हिन्दू दुकान शुद्ध है, मुस्लिम दुकान अशुद्ध है । ये मानसिक मनगढ़ंत कहानी हैं । धर्म इस तरह से चल रहा है । इसलिए ... इसलिए लड़ रहे हैं: "मैं हिन्दू हूँ," "मैं मुसलमान हूँ," "मैं ईसाई हूँ ।" कोई भी धर्म को जानता नहीं है । तुम देख रहे हो ? उन्होंने धर्म का त्याग किया है, इन दुष्टों नें । कोई धर्म नहीं है । असली धर्म यह है, कृष्ण भावनामृत, जो सिखाता है कि कैसे भगवान से प्रेम करना चाहिए । बस । धर्म यही है । कोई भी धर्म, कोई फर्क नहीं पड़ता कि हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म, अगर तुम परमेश्वर के प्रति प्रेम को विकसित कर रहे हो, तो तुम अपने धर्म में परिपूर्ण हो ।