HI/Prabhupada 0030 - कृष्ण सिर्फ आनंद करते है: Difference between revisions

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"पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, हालांकि अपने निवास में स्थिर हैं, मन कि गती से भी ज्यादा तेज़ हैं और इस तीव्र गती से अन्य सभी को हरा सकते हैं । शक्तिशाली देवता उनके समीप नहीं जा सकते हैं । हालांकि वे एक ही स्थान में स्थित हैं, उनका नियंत्रण है उनपर जो हवा, वर्षा की आपूर्त करते हैं । वे उत्कृष्टता में सब से बढ़कर हैं ।" इसकि पुष्टि की गई है ब्रह्म-संहिता में: गोलोक एव निवसति अखिलात्म - भूत: (ब्र स ५।३७) । कृष्ण, हालांकि गोलोक वृंदावन में हमेशा रहते हैं, उन्हें वहॉ कुछ नहीं करना पड़ता है । वे केवल अपने साथियों की संगत में मज़े कर रहे हैं, गोपियॉ और ग्वालबाल, उनकी माँ, उनके पिता । स्वतंत्र, पूरी तरह से स्वतंत्र । और जो सहयोगी हैं, वे अौर भी अधिक स्वतंत्र हैं । क्योंकि जब सहयोगी खतरे में पड़ते हैं, कृष्ण कुछ चिंता मे रहते हैं कि कैसे उन्हें बचाया जाय, लेकिन वह सहयोगि, उनको कोई चिंता नही होती है । "ओह, कृष्ण तो हैं ।" ज़रा देखो । (हंसते हुए) ये साथी, उन्हे कोई चिंता नहीं है । कुछ भी, कुछ भी हो रहा है, तुम कृष्ण किताब में पढ़ोगे - इतने सारे खतरे । वह लड़के, कृष्ण के साथ, वे अपने बछड़ों और गायों के साथ हर दिन जाया करते थे और यमुना के तट पर जंगल में खेलते हैं, और कंस उन्हें नष्ट करने के लिए कुछ दानव भेजेगा । तो तुमने देखा है, तुम तस्वीरें भी देखोगे । तो वे केवल आनंद लेते हैं, क्योंकि उन्हे इतना विश्वास है । यही आध्यात्मिक जीवन है । अवश्य रक्षिबे कृष्ण विश्वास पालन । यह दृढ़ विश्वास, कि "किसी भी खतरनाक स्थिति में, कृष्ण मुझे बचाऍगे," यह आत्मसमर्पण है । आत्मसमर्पण के छह चरण होते हैं । पहली बात यह है कि हमें भक्ति सेवा के लिए अनुकूल जो है, उसे स्वीकार करना चाहिए; हमें भक्ति सेवा के लिए जो कुछ भी प्रतिकूल है उसे अस्वीकार करना चाहिए । और अगली बात है कि प्रभु के सहयोगियों के साथ अपना परिचय करना चाहिए । जैसा कि कृष्ण के कई सहयोगी हैं, तुम भी ... यह होगा, निश्चित रूप से ... कृत्रिम रूप से नहीं । जब तुम उन्नती करोगे तब तुम समझ पाअोगे कि कृष्ण के साथ तुमहारा संम्बंध क्या है । तो अगर तुम उन सहयोगीयों के साथ अपना परिचय करोगे, तो अगला चरण है यह विश्वास कि "कृष्ण मुझे संरक्षण देंगे ।" दरअसल, वह हर किसी को संरक्षण दे रहे हैं । यह एक तथ्य है । लेकिन माया में हम सोच रहे हैं कि हम अपनी रक्षा कर रहे हैं, हम अपना पालन कर रहे हैं । नहीं । यह तथ्य नहीं है ।
"पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, हालांकि अपने निवास में स्थिर हैं, मन कि गति से भी अधिक तीव्र हैं और इस तीव्र गति से अन्य सभी को हरा सकते हैं । शक्तिशाली देवता उनके समीप नहीं जा सकते हैं । हालांकि वे एक ही स्थान में स्थित हैं, उनका नियंत्रण है उनपर जो हवा, वर्षा की आपूर्ति करते हैं । वे उत्कृष्टता में सब से बढ़कर हैं ।" इसकी पुष्टि ब्रह्म-संहिता में की गई है: गोलोक एव निवसति अखिलात्म - भूत: (ब्रह्म संहिता ५.३७) । कृष्ण, हालांकि गोलोक वृंदावन में हमेशा रहते हैं, उन्हें वहाँ कुछ नहीं करना पड़ता है । वे केवल अपने साथियों की संगत में मज़े कर रहे हैं, गोपियाँ और ग्वालबाल, उनकी माँ, उनके पिता । स्वतंत्र, पूरी तरह से स्वतंत्र । और जो सहयोगी हैं, वे अौर भी अधिक स्वतंत्र हैं । क्योंकि जब सहयोगी खतरे में पड़ते हैं, कृष्ण कुछ चिंता मे रहते हैं कि कैसे उन्हें बचाया जाय, लेकिन वह सहयोगी, उनको कोई चिंता नही होती है । "ओह, कृष्ण तो हैं ।" ज़रा देखो । (हंसते हुए)
 
ये साथी, उन्हे कोई चिंता नहीं है । कुछ भी, कुछ भी हो रहा है, तुम कृष्ण पुस्तक में पढ़ोगे - इतनी सारी विपत्तियाँ । वह लड़के, कृष्ण के साथ, वे अपने बछड़ों और गायों के साथ हर दिन जाया करते थे और यमुना के तट पर जंगल में खेलते हैं, और कंस उन्हें नष्ट करने के लिए कुछ दानव भेजेगा । तो तुमने देखा है, तुम तस्वीरें भी देखोगे । तो वे केवल आनंद लेते हैं, क्योंकि उन्हें इतना विश्वास है । यही आध्यात्मिक जीवन है । अवश्य रक्षिबे कृष्ण विश्वास पालन (शरणागति) । यह दृढ़ विश्वास, कि "किसी भी विपत्तिजनक स्थिति में, कृष्ण मुझे बचाएंगे," यह शरणागति है ।
 
शरणागति के छह चरण होते हैं । पहली बात यह है कि हमें भक्तिमय सेवा के लिए अनुकूल जो है, उसे स्वीकार करना चाहिए; हमें भक्तिमय सेवा के लिए जो कुछ भी प्रतिकूल है उसे अस्वीकार करना चाहिए । और अगली बात है कि प्रभु के सहयोगियों के साथ अपना परिचय करना चाहिए । जैसा कि कृष्ण के कई सहयोगी हैं, तुम भी ... यह होगा, निश्चित रूप से ... कृत्रिम रूप से नहीं । जब तुम अधिक उन्नती करोगे तब तुम समझ पाअोगे कि कृष्ण के साथ तुम्हारा संम्बंध क्या है । तो अगर तुम उन पार्षदों के साथ अपना परिचय करोगे, तो अगला चरण है यह विश्वास कि "कृष्ण मुझे संरक्षण देंगे ।" वास्तव में, वे हर किसी को संरक्षण दे रहे हैं । यह एक तथ्य है । लेकिन माया में हम सोच रहे हैं कि हम अपनी रक्षा कर रहे हैं, हम अपना पालन कर रहे हैं । नहीं । यह तथ्य नहीं है ।  
 
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Latest revision as of 12:31, 5 October 2018



Sri Isopanisad, Mantra 2-4 -- Los Angeles, May 6, 1970

"पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, हालांकि अपने निवास में स्थिर हैं, मन कि गति से भी अधिक तीव्र हैं और इस तीव्र गति से अन्य सभी को हरा सकते हैं । शक्तिशाली देवता उनके समीप नहीं जा सकते हैं । हालांकि वे एक ही स्थान में स्थित हैं, उनका नियंत्रण है उनपर जो हवा, वर्षा की आपूर्ति करते हैं । वे उत्कृष्टता में सब से बढ़कर हैं ।" इसकी पुष्टि ब्रह्म-संहिता में की गई है: गोलोक एव निवसति अखिलात्म - भूत: (ब्रह्म संहिता ५.३७) । कृष्ण, हालांकि गोलोक वृंदावन में हमेशा रहते हैं, उन्हें वहाँ कुछ नहीं करना पड़ता है । वे केवल अपने साथियों की संगत में मज़े कर रहे हैं, गोपियाँ और ग्वालबाल, उनकी माँ, उनके पिता । स्वतंत्र, पूरी तरह से स्वतंत्र । और जो सहयोगी हैं, वे अौर भी अधिक स्वतंत्र हैं । क्योंकि जब सहयोगी खतरे में पड़ते हैं, कृष्ण कुछ चिंता मे रहते हैं कि कैसे उन्हें बचाया जाय, लेकिन वह सहयोगी, उनको कोई चिंता नही होती है । "ओह, कृष्ण तो हैं ।" ज़रा देखो । (हंसते हुए)

ये साथी, उन्हे कोई चिंता नहीं है । कुछ भी, कुछ भी हो रहा है, तुम कृष्ण पुस्तक में पढ़ोगे - इतनी सारी विपत्तियाँ । वह लड़के, कृष्ण के साथ, वे अपने बछड़ों और गायों के साथ हर दिन जाया करते थे और यमुना के तट पर जंगल में खेलते हैं, और कंस उन्हें नष्ट करने के लिए कुछ दानव भेजेगा । तो तुमने देखा है, तुम तस्वीरें भी देखोगे । तो वे केवल आनंद लेते हैं, क्योंकि उन्हें इतना विश्वास है । यही आध्यात्मिक जीवन है । अवश्य रक्षिबे कृष्ण विश्वास पालन (शरणागति) । यह दृढ़ विश्वास, कि "किसी भी विपत्तिजनक स्थिति में, कृष्ण मुझे बचाएंगे," यह शरणागति है ।

शरणागति के छह चरण होते हैं । पहली बात यह है कि हमें भक्तिमय सेवा के लिए अनुकूल जो है, उसे स्वीकार करना चाहिए; हमें भक्तिमय सेवा के लिए जो कुछ भी प्रतिकूल है उसे अस्वीकार करना चाहिए । और अगली बात है कि प्रभु के सहयोगियों के साथ अपना परिचय करना चाहिए । जैसा कि कृष्ण के कई सहयोगी हैं, तुम भी ... यह होगा, निश्चित रूप से ... कृत्रिम रूप से नहीं । जब तुम अधिक उन्नती करोगे तब तुम समझ पाअोगे कि कृष्ण के साथ तुम्हारा संम्बंध क्या है । तो अगर तुम उन पार्षदों के साथ अपना परिचय करोगे, तो अगला चरण है यह विश्वास कि "कृष्ण मुझे संरक्षण देंगे ।" वास्तव में, वे हर किसी को संरक्षण दे रहे हैं । यह एक तथ्य है । लेकिन माया में हम सोच रहे हैं कि हम अपनी रक्षा कर रहे हैं, हम अपना पालन कर रहे हैं । नहीं । यह तथ्य नहीं है ।