HI/Prabhupada 0058 - आध्यात्मिक शरीर का अर्थ है शाश्वत जीवन

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Lecture on BG 2.14 -- Mexico, February 14, 1975

दरअसल, आध्यात्मिक शरीर का अर्थ है आनंद और ज्ञान का अनन्त जीवन। अब जो हमारा शरीर है, भौतिक शरीर, यह न तो शाश्वत है, न ही आनंदित, और न ही ज्ञान से भरा है। हम में से हर एक, हमें यह पता है कि यह भौतिक शरीर खत्म हो जाएगा। और यह अज्ञान से भरा हुआ है। हम कुछ भी नहीं कह सकते हैं, इस दीवार से परे क्या है । हमरे पास इन्द्रियॉ हैं , लेकिन वे सब अपूर्ण, सीमित हैं। कभी कभी हम बहुत गर्व करते हैं अपने देखनें पर और चुनौती देते हैं, "आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं?" लेकिन हम भूल जाते हैं कि जैसे ही प्रकाश चली जाती है, मेरे देखने की शक्ति भी चली जाती है। इसलिए पूरा शरीर अपूर्ण और अज्ञान से भरा हुआ है। आध्यात्मिक शरीर का मतलब है पूरा ज्ञान, बिल्कुल विपरीत।. तो हम यह शरीर पा सकते हैं, और हमें प्रयत्न करना पडेगा एसा शरीर पाने के लिए। हम अगला शरीर पाने के लिए प्रयत्न कर सकते हैं उच्च ग्रह प्रणाली में या हम अगला शरीर पाने का प्रयत्न कर सकते हैं बिल्लियों और कुत्ते की तरह और हम इस तरह के शरीर का प्रयत्न कर सकते हैं जो अनन्त, आनंदमय ज्ञान है। इसलिए सबसे अच्छा बुद्धिमान व्यक्ति परमानंद, ज्ञान, और अनंत काल से भरा अगला शरीर पाने की कोशिश करेंगा। भगवद गीता में स्पष्ट किया है कि, यद गत्वा ना निवर्तन्ते तद धाम परमम् मम् (भ गी १५।६) वह जगह, वह ग्रह, या वह आकाश, तुम जहॉ जाओगे और तुम इस भौतिक दुनिया में वापस लौटके कभी नहीं अाअोगे। भौतिक दुनिया में, यहां तक ​​कि अगर तुम उच्चतम ग्रह प्रणाली, ब्रह्म लोक में भी पहुँचो तो बी तुमहे वापस अाना होगा। और तुम पूरी तरह से कोशिश करते हो आध्यात्मिक दुनिया में जाने के लिए, वापस देवत्व, वापस अपने घर, तुम इस भौतिक शरीर को स्वीकार करने के लिए फिर से यहाँ नहीं आअोगे।