HI/Prabhupada 0083 - हरे कृष्ण का जप करो तब सब कुछ आ जाएगा: Difference between revisions

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तो प्रहलाद महाराज कहते है - हम इसके वारे मे बात कर चुके है उसके लिए कोई योग्यता की ज़रूरत नही है भगवान गो शांत या खुश करने के लिए, तुम्हे को योग्यता की ज़रूरत नही है तुम्हे विश्वविद्यालय मे परीक्षा उत्तीर्ण करना भी ज़रूर नही है. या तुम्हे एक धनी अददमी, - रॉकेफेल्लर या फ़ोर्ड जैसे, बनना पढ़े. या तुम्हे ये बनना है या वो बनना है... कोई ज़रूरत नही है. आहायतुकी अपतिहता. अगर तुम कृष्ण से प्रेम करना चाहते हो, तुम्हे कुछ भी नही रोक सकता. कुछ भी नही रोक सकता. रास्ता खुला है. तुम्हे बस घमबीर बनना पढ़ेगा. बस. फिर कृष्ण रास्ता खोल देगा. अगर घंभीरता है, तो कृष्ण का माया वहाँ है. वो हमेशा, माया हमेशा कोई न कोई कातीनाई डालेगी. "ये नही, ये नही, ये नही." तो प्रहलाद महाराज ने तय कर लिया की "मे बच्चा हूँ - इसके बौजूद भी... मेरे पास कोई शिक्षा नही है, मेरे पास वेदों का कोई ग्यान नही है, और मेरा जन्म एक नास्तिक पिता, नीच जाती द्वारा हुआ है, इतने खराब गॉग्यातैयं." तो, भगवान का आराधना बौद्धिक पवित्र लोग करते है वेदों का मंत्र अर्पित करते है, और ब्राह्मानो, उच्च और सुसंस्कृत. मेरे पास ऐसा कोए योग्यता नही है. लेकिन फिर भी, ये सारे देवताओं जो की इतने उँचे है, उनहों ने मुझे अनुरोध किया है. इसका मतलब है की भगवान मेरे द्वारा भी शांत हो सकते है. ऐसे नही होता तो वह मुझे अनुरोध क्यों करते? तो मेरे पास जो भी योग्यता है, जो भी बुद्धि है, मे सब कुछ कृष्ण को समर्पित करता हूँ." इसलिए, हमारा कृष्ण भावणामृत संघ ऐसा है. तुम्हारे पास चाहे कोई भी योग्यता हो, वो काफ़ी है. तुम उसी योग्यता से शुरू करते हो. तुम अपने योग्यता के हिसाब से कृष्ण का सेवा करते हो. क्योंकि असली योग्यता - तुम्हारा सेवा भाव. वो असली योग्यता होता है. तुम्हे वो भाव को भड़ाना चाहिए. तुम्हा बाहरी योग्यता, सुंदरता, धन, ग्यान, ये, वो, नही. इन चीज़ो का कोई मूल्य नही है. उनको तभी मूल्य होता है जब उनका प्रयोग कृष्णा का सेवा मैं होता है. अगर तुम बहुत धनी आदमी हो, अगर तुम अपने धन को कृष्ण के सेवा मे प्रयोग करते हो... तो वो ठीक है. परंतु धनी बनने का कोई ज़रूरत नही है. फिर तुम कृष्ण का सेवा कर सकते हो. तो प्रहलाद महाराज कहते है, निचो अजाया गुणा विसर्गम अनुप्रविश्तह पुएटा येन पुमान अनुवनितेना. तो कोई कह सकता है की प्रहलाद एक अषूध पिता के द्वारा से जन्म लिया था. ये एक तर्क है. प्रहलाद अषूध नही था. लेकिन तर्क के लिए, पर तर्क के लिए. एक नीच पिता या नीच परिवार से जन्म लिया था. बहुत सारे चीज़ बोलते है. पर प्रहलाद महाराज कहते है "अगर मे बस भगवान के वारे मे कुछ अच्छा बोलूं, तो मे शूध हो जौंगा." अगर मैं जप करता हूँ तो तो शुद्धता... यह हरे कृष्ण मंत्र ही शुध बनने का तरीका है. ऐसे नही की मुझे पहले शूध बनना पढ़ेगा, और उसके बाद मे हरे कृष्ण मंत्र का जप करूँगा. नही. तुम बस जप करो. वो शूध हो जाएगा. तुम शूध हो जाओगे. जप करो. चाहे तुम कोई भी स्तिथि मे हो. कोई बात नही. जब मैने शुरुआत किया था - मेरा, ये कृष्ण भावणामृत संघ का ऐसा नही है की सब मेरे पास अथि शूध स्तिथि मैं आ रहे थे की तुम, तुम मे से हर एक, जान ते हो, की जो मेरे पास आए थे, वो, बोल सकते है, की उनका पालन पोषण बचपन से हुआ है. भारत का स्तर से, उनको स्वच्छता के वारे मैं बी कुछ नही पता. शुधता के वारे मे क्या प्रश्न है? देखो. भारत मे यह स्तर बचपन से होता है. बच्चा को सिखाया जाता है की स्नान करो, अपने दाँत को माँजो. हाँ. मैं याद कर रहा हूँ. जब मेरा दूसरा बेटा चार साल का था, नाश्ता से पहले, मे उसको बोलता था, "मुझे डांन्त दिखाओ." ओर वो दिखता था..., "हाँ" "ठीक है, तुमने दाँत मांज लिया. ठीक है." तुम नाश्ता खा सकते हो." तो यह प्रशिक्षण पहले से है. परंतु इस देश मैं, यह परीक्षण... ज़रूर... कही ना कही है. पर इतना ज़्यादा नही है. तो कोई बात नही है. हरे कृष्ण का जप करिए. शुरुआत करिए हारे कृष्ण जपने का. सबकुछ अपने आप आ जायगे. सुबकुछ आ जाएगा.
तो प्रहलाद महाराज कहते हैं - हम इसके बारे में बात कर चुके हैं - कि उसके लिए कोई योग्यता की ज़रूरत नहीं है भगवान को शांत या प्रसन्न करने के लिए, तुम्हे कोई योग्यता की ज़रूरत नही है। तुम्हे विश्वविद्यालय मे परीक्षा उत्तीर्ण करना भी ज़रूर नही है। या तुम्हे एक धनी आदमी बनना पडे - रॉकेफेल्लर या फ़ोर्ड जैसे, या तुम्हे ये बनना है या वो बनना है... कोई शर्त नहीं है । अहैतुकी अप्रतिहता । अगर तुम कृष्ण से प्रेम करना चाहते हो, तो कोई रोक नहीं है । कोई रोक नहीं है । रास्ता खुला है तुम्हे केवल ईमानदार बनना है । बस फिर कृष्ण रास्ता खोल देंगे । अगर हम इमानदार नहीं, तो कृष्ण की माया तो है ही । वह हमेशा, माया हमेशा कोई न कोई कठिनाई डालेगी "यह नही, यह नही, यह नही "  
 
तो प्रहलाद महाराज ने तय किया की "हॉलाकि मैं बालक हूँ, मेरे पास कोई शिक्षा नहीं है, मेरे पास वेदों का कोई ज्ञान नहीं है, और मेरा जन्म एक नास्तिक पिता, नीच जाती में, इतने खराब गुण.... तो, भगवान की आराधना धर्मपरायण बुद्धिजीवी व्यक्ति से होती है, वेदों का मंत्र अर्पित करते हुए, और ब्राह्मण, अत्यधिक संवर्धित व्यक्ति से । तो मेरे पास ऐसी कोई योग्यता नहीं है लेकिन फिर भी, ये सारे देवता जो इतने उँच पद पर हैं, उन्होंने मुझसे अनुरोध किया है इसका मतलब है की भगवान मेरे द्वारा भी शांत हो सकते हैं । नहीं तो कैसे वह सिफारिश करते ? तो मेरे पास जो भी योग्यता है, जो भी बुद्धि है, मैं सब कुछ कृष्ण को समर्पित करता हूँ "  
 
इसलिए, हमारा कृष्ण भावनामृत आन्दोलन है, कि तुम्हारे पास चाहे कोई भी योग्यता हो, वह काफ़ी है तुम उसी योग्यता से शुरू करो । तुम अपनी योग्यता के हिसाब से कृष्ण की सेवा करने का प्रयास करो । क्योंकि असली योग्यता - तुम्हारा सेवा भाव । वह असली योग्यता है । तो तुम उसी भाव को विकसित करो, तुम्हारी बाहरी योग्यता नहीं, सुंदरता, धन, ज्ञान, यह, वह, नहीं । इन चीज़ो का कोई मूल्य नहीं है । उनका तभी मूल्य है जब तक उनका प्रयोग कृष्ण की सेवा में होता है अगर तुम बहुत धनी आदमी हो, अगर तुम अपने धन को कृष्ण की सेवा मे प्रयोग करते हो... तो वो ठीक है परंतु धनी बनने की कोई ज़रूरत नही है फिर तुम कृष्ण की सेवा कर सकते हो
 
तो प्रहलाद महाराज कहते हैं, नीचो अजया गुणा-विसर्गं अनुप्रविश्ठ: पूयेत येन पुमान अनुवर्नितेन ([[Vanisource:SB 7.9.12|श्रीमद भागवतम ७.९.१२]) । अब, कोई सवाल कर सकता है की प्रहलाद एक अशुद्ध पिता से जन्मे । यह एक तर्क है प्रहलाद अशुद्ध नहीं हैं, लेकिन तर्क के लिए, एक नीच पिता या नीच परिवार में जन्मे, या बहुत सारी चीज़ बोलते हैं । लेकिन प्रहलाद महाराज कहते हैं कि "अगर मैं प्रारम्भ करूं, केवल भगवान की स्तुती करूं, तो मे शुद्ध हो जाऊंगा ।" अगर मैं जप करता हूँ तो शुद्धता... यह हरे कृष्ण मंत्र शुद्ध बनने का तरीका है ऐसे नहीं कि मुझे पहले किसी और तरीके से शूद्ध होना होगा, और उसके बाद हरे कृष्ण मंत्र का जप करना होगा । नहीं । तुम केवल जप करना शुरू करो । तो शुद्ध हो जाओगे । तुम शुद्ध हो जाओगे जप करना शुरू करो चाहे तुम किसी भी स्थिति मे हो, कोई बात नहीं ।
 
वास्तवमें मैने शुरुआत की, इस कृष्ण भावनामृत आन्दोलन की - ऐसा नहीं है की वे सब मेरे पास अति शुद्ध अवस्था में आ रहे थे । हम, तुम में से हर एक, जानता है, की जो मेरे पास आए थे, वे, उनको बचपन से प्रशिक्षित किया गया है ..... भारतीय स्तर के अनुसार, उन्हें स्वच्छता के नियम का पता भी नहीं । शुद्धता का क्या प्रश्न है ? समझ रहे हो । भारत मे यह प्रणाली बचपन से होती है, बच्चे को सिखाया जाता है स्नान करना, अपने दाँत को माँजना ।  हाँ । मुझे याद है, जब मेरा दूसरा बेटा चार साल का था, नाश्ते से पहले, मैं उसको पूछता था, "मुझे अपने दांत दिखाओ " तो वह दिखता..., "हाँ" "ठीक है, तुमने दाँत मांज लिया है । ठीक है तुम नाश्ता खा सकते हो " तो यह प्रशिक्षण था । परंतु, इस देश मैं, यह परीक्षण... कहीं कहीं है, लेकिन सख्ती से नहीं । तो कोई बात नही है हरे कृष्ण का जप करो । शुरु करो हरे कृष्ण । तब सब कुछ आएगा। सुब कुछ आएगा ।
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Latest revision as of 12:40, 5 October 2018



Lecture on SB 7.9.11-13 -- Hawaii, March 24, 1969

तो प्रहलाद महाराज कहते हैं - हम इसके बारे में बात कर चुके हैं - कि उसके लिए कोई योग्यता की ज़रूरत नहीं है । भगवान को शांत या प्रसन्न करने के लिए, तुम्हे कोई योग्यता की ज़रूरत नही है। तुम्हे विश्वविद्यालय मे परीक्षा उत्तीर्ण करना भी ज़रूर नही है। या तुम्हे एक धनी आदमी बनना पडे - रॉकेफेल्लर या फ़ोर्ड जैसे, या तुम्हे ये बनना है या वो बनना है... कोई शर्त नहीं है । अहैतुकी अप्रतिहता । अगर तुम कृष्ण से प्रेम करना चाहते हो, तो कोई रोक नहीं है । कोई रोक नहीं है । रास्ता खुला है । तुम्हे केवल ईमानदार बनना है । बस । फिर कृष्ण रास्ता खोल देंगे । अगर हम इमानदार नहीं, तो कृष्ण की माया तो है ही । वह हमेशा, माया हमेशा कोई न कोई कठिनाई डालेगी । "यह नही, यह नही, यह नही ।"

तो प्रहलाद महाराज ने तय किया की "हॉलाकि मैं बालक हूँ, मेरे पास कोई शिक्षा नहीं है, मेरे पास वेदों का कोई ज्ञान नहीं है, और मेरा जन्म एक नास्तिक पिता, नीच जाती में, इतने खराब गुण.... तो, भगवान की आराधना धर्मपरायण बुद्धिजीवी व्यक्ति से होती है, वेदों का मंत्र अर्पित करते हुए, और ब्राह्मण, अत्यधिक संवर्धित व्यक्ति से । तो मेरे पास ऐसी कोई योग्यता नहीं है । लेकिन फिर भी, ये सारे देवता जो इतने उँच पद पर हैं, उन्होंने मुझसे अनुरोध किया है । इसका मतलब है की भगवान मेरे द्वारा भी शांत हो सकते हैं । नहीं तो कैसे वह सिफारिश करते ? तो मेरे पास जो भी योग्यता है, जो भी बुद्धि है, मैं सब कुछ कृष्ण को समर्पित करता हूँ ।"

इसलिए, हमारा कृष्ण भावनामृत आन्दोलन है, कि तुम्हारे पास चाहे कोई भी योग्यता हो, वह काफ़ी है । तुम उसी योग्यता से शुरू करो । तुम अपनी योग्यता के हिसाब से कृष्ण की सेवा करने का प्रयास करो । क्योंकि असली योग्यता - तुम्हारा सेवा भाव । वह असली योग्यता है । तो तुम उसी भाव को विकसित करो, तुम्हारी बाहरी योग्यता नहीं, सुंदरता, धन, ज्ञान, यह, वह, नहीं । इन चीज़ो का कोई मूल्य नहीं है । उनका तभी मूल्य है जब तक उनका प्रयोग कृष्ण की सेवा में होता है । अगर तुम बहुत धनी आदमी हो, अगर तुम अपने धन को कृष्ण की सेवा मे प्रयोग करते हो... तो वो ठीक है । परंतु धनी बनने की कोई ज़रूरत नही है । फिर तुम कृष्ण की सेवा कर सकते हो ।

तो प्रहलाद महाराज कहते हैं, नीचो अजया गुणा-विसर्गं अनुप्रविश्ठ: पूयेत येन पुमान अनुवर्नितेन ([[Vanisource:SB 7.9.12|श्रीमद भागवतम ७.९.१२]) । अब, कोई सवाल कर सकता है की प्रहलाद एक अशुद्ध पिता से जन्मे । यह एक तर्क है । प्रहलाद अशुद्ध नहीं हैं, लेकिन तर्क के लिए, एक नीच पिता या नीच परिवार में जन्मे, या बहुत सारी चीज़ बोलते हैं । लेकिन प्रहलाद महाराज कहते हैं कि "अगर मैं प्रारम्भ करूं, केवल भगवान की स्तुती करूं, तो मे शुद्ध हो जाऊंगा ।" अगर मैं जप करता हूँ तो शुद्धता... यह हरे कृष्ण मंत्र शुद्ध बनने का तरीका है । ऐसे नहीं कि मुझे पहले किसी और तरीके से शूद्ध होना होगा, और उसके बाद हरे कृष्ण मंत्र का जप करना होगा । नहीं । तुम केवल जप करना शुरू करो । तो शुद्ध हो जाओगे । तुम शुद्ध हो जाओगे । जप करना शुरू करो । चाहे तुम किसी भी स्थिति मे हो, कोई बात नहीं ।

वास्तवमें मैने शुरुआत की, इस कृष्ण भावनामृत आन्दोलन की - ऐसा नहीं है की वे सब मेरे पास अति शुद्ध अवस्था में आ रहे थे । हम, तुम में से हर एक, जानता है, की जो मेरे पास आए थे, वे, उनको बचपन से प्रशिक्षित किया गया है ..... भारतीय स्तर के अनुसार, उन्हें स्वच्छता के नियम का पता भी नहीं । शुद्धता का क्या प्रश्न है ? समझ रहे हो । भारत मे यह प्रणाली बचपन से होती है, बच्चे को सिखाया जाता है स्नान करना, अपने दाँत को माँजना । हाँ । मुझे याद है, जब मेरा दूसरा बेटा चार साल का था, नाश्ते से पहले, मैं उसको पूछता था, "मुझे अपने दांत दिखाओ ।" तो वह दिखता..., "हाँ" "ठीक है, तुमने दाँत मांज लिया है । ठीक है । तुम नाश्ता खा सकते हो ।" तो यह प्रशिक्षण था । परंतु, इस देश मैं, यह परीक्षण... कहीं कहीं है, लेकिन सख्ती से नहीं । तो कोई बात नही है । हरे कृष्ण का जप करो । शुरु करो हरे कृष्ण । तब सब कुछ आएगा। सुब कुछ आएगा ।