HI/Prabhupada 0092 - हमे कृष्ण को संतुष्ट करने के लिए अपनी इंद्रियों को प्रशिक्षित करना चाहिए

Revision as of 17:39, 1 October 2020 by Elad (talk | contribs) (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Lecture on BG 2.20-25 -- Seattle, October 14, 1968

जो भी इस भौतिक जगत में है, वे सब इन्द्रिय भोग में फँसे हुए हैं। ऊँचे लोकों में या नीचे के लोकों में । जैसे पशु जगत में इन्द्रिय प्रेरणा है, वेसे ही मनुष्यों में भी है । यह मनुष्य क्या हैं ? हम सभ्य मनुष्य हैं, हम क्या कर रहे हैं ? वही काम कर रहे हैं । खाना, सोना और मैथुन । वही काम जो कुत्ता करता है । तो भौतिक जगत में कहीं भी, उच्च लोकों में या नीचे के लोकों में, यह इन्द्रिय तृप्ति प्रमुख है । केवल अध्यात्मिक जगत मे कोई इन्द्रिय तृप्ति नहीं है । वहाँ केवल कृष्ण को संतुष्ट करने की इच्छा होती है । यह है... यहाँ सब अपनी इंद्रियों को सन्तुष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं । यह भौतिक संसार का नियम है । यही भौतिक जीवन है ।

जब तकआप अपनी इंद्रियों को सन्तुष्ट करने का कोशिश करेंगे, यह आपका भौतिक जीवन है । और जैसे ही आप कृष्ण की इन्द्रियों को संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं, यह आपका अध्यात्मिक जीवन है । यह बहुत सरल बात है । अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करने के स्थान पर... हृषिकेण हृषिकेश-सेवनं (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१७० ) यही भक्ति है । आपके पास इन्द्रियाँ हैं । आपको उन्हें संतुष्ट करना होगा । इन्द्रियाँ... इन्द्रियों से संतुष्ट करना होगा । या तो आप स्वयं को संतुष्ट करें... लेंकिन आप नहीं जानते हैं । बद्धजीव नहीं जानता है कि कृष्ण की इन्द्रियों को सन्तुष्ट करते ही उसकी इन्द्रियाँ संतुष्ट हो जाएँगी । वही उदाहरण । जैसे जड़ में पानी ड़ालना... या यह उंगलियाँ, मेरे शरीर का अंग हैं, पेट को खाद्य पदार्थ देती हैं, स्वत: ही उंगलियाँ सन्तुष्ट हो जाएँगी । यह रहस्य हम भूल जाते हैं । हम सोच रहे हैं कि हम अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करके खुश हो जाएँगे ।

कृष्णभावनामृत का अर्थ है की अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करने का प्रयास मत करो । आप कृष्ण की इन्द्रियों को संतुष्ट करने का प्रयास करो; स्वत: आपकी इन्द्रियाँ संतुष्ट हो जाएँगी । यही कृष्णभावनामृत का रहस्य है । विपरीत पक्ष, वे सोच रहे हैं, "मैं क्यों संतुष्ट करूँ ?" क्यों मैं कृष्ण के लिए दिन रात काम करूँ ? कर्मियों के लिए काम करके देखता हूँ ।" जैसे आप दिन रात कृष्ण के लिए काम कर रहे हैं और वे सोच रहे हैं, "देखो कितने मूर्ख हैं । हम बहुत बुद्धिमान हैं । हम अपनी इन्द्रिय संतुष्टि के लिए दिन रात काम कर रहे हैं, और वे कृष्ण के लिए क्यों काम कर रहे हैं ?" यही भौतिकवादी और अध्यात्मवादी के बीच में अंतर है । अध्यात्मवादी का प्रयास है कि दिन रात लगातार काम करे, बिना किसी रुकावट के, केवल कृष्ण के लिए । यही अध्यात्मिक जीवन है । और भौतिकवादी का अर्थ है वही प्रयत्न अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करने के लिए करे । यही भौतिकवादी और अध्यात्मवादी के बीच में अंतर है ।

तो कृष्ण भावनामृत आंदोलन का अर्थ है कि हमें अपनी इन्द्रियों को कृष्ण को संतुष्ट करने के लिए प्रशिक्षित करना होगा । बस इतना ही । इससे पहले, पिछले, कई, कई हज़ार ओर सैकड़ों जन्मों में, हमने केवल अपनी, खुद की इन्द्रियों को संतुष्ट करने की कोशिश की थी । हमारा यह जीवन कृष्ण की इन्द्रियों को सन्तुष्ट करने के लिए समर्पित होना चाहिए । यही कृष्णभावनामृत है । एक जीवन । हमने, कई जन्मों में, हमने अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करने की कोशिश की । यह जीवन, कम से कम एक जीवन, चलो कोशिश करता हूँ, देखते हैं क्या होता है । तो हमारा नुकसान नहीं होगा । चाहे हमें कुछ असुविधा हो अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट न करके, फिर भी हमार नुकसान नहीं होगा । कृष्ण की इन्द्रियों को संतुष्ट करने की कोशिश करो; फिर सब ठीक होगा ।