HI/Prabhupada 0186 - भगवान भगवान है । जैसे सोना सोना है

Revision as of 18:17, 17 September 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Lecture on BG 7.1 -- Fiji, May 24, 1975

तो या तो हम फिजी में या इंग्लैंड में या कहीं भी रहें, क्योंकि कृष्ण हर जगह, हर चीज के मालिक हैं..., सर्व-लोक-महेश्वरम (भ.गी. ५.२९) । तो फिजी एक छोटा सा हिस्सा है सर्व-लोक का । अगर वे सभी लोकों के मालिक हैं, तो वे फिजी के भी मालिक हैं । इसके बारे में कोई संदेह नहीं है । इसलिए फिजी के निवासी, तुम कृष्ण भावनामृत को अपनाअो, यही जीवन की पूर्णता है । यही जीवन की पूर्णता है । कृष्ण की शिक्षा से विचलित न होना । बहुत सीधे, भगवान उवाच, सीधे भगवान बोल रहे हैं । तुम इसका लाभ लो । तो दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान है अगर तुम भगवद गीता को पढो । तुम कोई भी समस्या लाअो, समाधान है, अगर तुम समाधान को स्वीकार करो तो । आजकल वे भोजन की कमी का सामना कर रहे हैं । समाधान भगवद गीता में है । कृष्ण कहते हैं अन्नाद भवन्ति भूतानि: (भ.गी. ३।१४) "भूतानी, सभी जीव, पशु और मनुष्य दोनों, वे बहुत अच्छी तरह से रह सकते हैं, किसी भी चिंता के बिना, अगर उन्हे पर्याप्त खाद्य पदार्थ मिले तो ।" अब इस के लिए तुम्हे क्या आपत्ति है? यह समाधान है ।

कृष्ण कहते हैं, अन्नाद भवन्ति भूतानि । तो यह काल्पनिक नहीं है, यह व्यावहारिक है । तुम्हारे पास पर्याप्त खाद्यान्न होना चाहिए इंसान और पशु को खिलाने के लिए, और सब कुछ तुरंत शांतिपूर्ण हो जाएगा । क्योंकि लोग, अगर भूखे हैं , वह परेशान रहते हैं । तो उसे सब से पहले खाना दो । यही कृष्ण का आदेश है । क्या यह बहुत असंभव है, अव्यावहारिक? नहीं । तुम भोजन उगाअो अौर वितरित करो । तो इतनी ज्यादा भूमि है, लेकिन हम भोजन नहीं उगा रहे हैं । हम बना रहे हैं, या व्यस्त रहते हैं, उपकरण और मोटर टायर का निर्माण करने में । तो फिर अब मोटर टायर खाअो । लेकिन कृष्ण का कहना है कि "तुम अन्न उगाअो ।" तो कमी का कोई सवाल ही नहीं है । अन्नाद भवन्ति भूतानि पर्जन्याद अन्न-सम्भव: । लेकिन अन्न का उत्पादन तब होता है जब पर्याप्त बारिश होती है । पर्जन्याद अन्न-सम्भव: । अौर यज्ञाद भवति पर्जन्य: (भ.गी. ३।१४) । अगर तुम यज्ञ करते हो, तो नियमित रूप से वर्षा होगी । यह रास्ता है ।

लेकिन किसी को भी यज्ञ में दिलचस्पी नहीं है, किसी को अनाज में दिलचस्पी नहीं है, अौर अगर तुम स्वयं अभाव पैदा करते हो, तो यह भगवान की गलती नहीं है, यह तुम्हारी गलती है । तो कुछ भी ले सकते हो, कोई भी सवाल - सामाजिक, राजनीतिक, दार्शनिक, धार्मिक कुछ भी - और समाधान है । जैसे भारत जाति प्रणाली के बारे में सामना कर रहा है । तो कई सारे जाति व्यवस्था के पक्ष में हैं, तो कई नहीं हैं पक्ष में । लेकिन कृष्ण समाधान बताते हैं । तो पक्ष में है या नहीं पक्ष में इसका कोई सवाल ही नहीं है । जाति व्यवस्था को नामित किया जाना चाहिए गुणवत्ता के अनुसार । चातुर- वर्ण्यम मया सृष्टम गुण-कर्म (भ.गी. ४।१३) । कभी नहीं कहते " जन्म से | " और श्रीमद-भागवतम में यह पुष्टि की है,

यस्य यल लक्षणम प्रोक्तम
पुंसो वर्णाभिव्यन्जकम
यद अन्यत्रापि द्रष्येत
तत तेनैव विनिर्दिशेत
(श्रीमद भागवतम ७.११.३५)|

नारद मुनि के स्पष्ट निर्देश । तो वैदिक साहित्य में पूरी तरह से सब कुछ मिलता है, और अगर हम पालन करें ... कृष्ण भावनामृत आंदोलन इस सिद्धांत पर लोगों को शिक्षित करने की कोशिश कर रहा है । हम कुछ भी निर्माण नहीं कर रहे हैं । यह हमारा काम नहीं है । क्योंकि हमे पता है कि हम अपूर्ण हैं । अगर हम कुछ निर्माण करें वह अपूर्ण है । हमारे बद्ध जीवन में चार दोष हैं: हम गलती करते हैं, हम दूसरों को धोखा देते हैं, हम भ्रमित हो जाते हैं और हमारी इन्द्रियॉ अपूर्ण हैं । तो हम कैसे उस व्यक्ति से संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं जिसमे, कहने का मतलब है, यह सभी दोष हैं ? इसलिए हमें ज्ञान प्राप्त करना चाहिए परम व्यक्ति से जो इन दोषों से प्रभावित नहीं है, मुक्त-पुरुष । यह पूर्ण ज्ञान है । तो हमारा अनुरोध है कि तुम भगवद गीता से ज्ञान लो और उसके अनुसार कार्य करो । कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्या हो । भगवान हर किसी के लिए है । भगवान भगवान है । जैसे सोना सोना है ।

अगर सोना हिंदू द्वारा नियंत्रित है, तो यह हिंदू सोना नहीं हो जाता । या सोना ईसाई द्वारा नियंत्रित है, यह ईसाई सोना नहीं हो जाता । सोना सोना है । इसी तरह, धर्म एक है । धर्म एक है । हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म नहीं हो सकता । यह कृत्रिम है । जैसे मुस्लिम सोना, हिन्दू सोना । यह संभव नहीं है । सोना सोना है । इसी प्रकार धर्म । धर्म का मतलब है ईश्वर द्वारा दिए गए कानून । धर्म यही है । धर्मम् तु साक्षाद भगवत-प्रणीतम न वै विदुर देवता: मनुष्या: (श्रीमद भागवतम ६.३.१९), इस तरह - मैं बस भूल गया - - कि "धर्म, धर्म का यह सिद्धांत, धार्मिक प्रणाली, भगवान द्वारा दिया जाता है | " तो भगवान एक है; इसलिए धर्म या धर्म प्रणाली, एक होना चाहिए । दो नहीं हो सकते ।