HI/Prabhupada 0211 - हमारा मिशन है श्री चैतन्य महाप्रभु की इच्छा की स्थापना करना: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0211 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1975 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 7: Line 7:
[[Category:HI-Quotes - in India, Mayapur]]
[[Category:HI-Quotes - in India, Mayapur]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0210 - पूरा भक्ति मार्ग भगवान की दया पर निर्भर करता है|0210|HI/Prabhupada 0212 - वैज्ञानिक दृष्टिकोण से , मृत्यु के बाद जीवन है|0212}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 15: Line 18:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|6Guj-dmlVVc|हमारा मिशन है श्री चैतन्य महाप्रभु की इच्छा की स्थापना करना - Prabhupāda 0211}}
{{youtube_right|aYC7GtQ99oo|हमारा मिशन है श्री चैतन्य महाप्रभु की इच्छा की स्थापना करना - Prabhupāda 0211}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>http://vaniquotes.org/w/images/750328CC.MAY_clip.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/750328CC.MAY_clip.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 27: Line 30:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
तुम श्री चैतन्य महाप्रभु की दया से गुजरे बिना कृष्ण भावनामृत पर नहिं पहुँच सकते हो । और श्री चैतन्य महाप्रभु के माध्यम से जाने का मतलब है छह गोस्वामी के माध्यम से जाना । यह परम्परा प्रणाली है । इसलिए नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं, एइ छाय गोसाई जार तार मुइ दास ता-सबार पद-रेणु मोर पंच-ग्रास यह परम्परा प्रणाली है । तुम कूद नहीं सकते हो । तुम्हे परम्परा प्रणाली के माध्यम से जाना चाहिए । तुम्हे अपने आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से गोस्वामीयों के समीप जाना होगा और गोस्वामी के माध्यम से तुम्हे श्री चैतन्य महाप्रभु के समीप जा सकते हो, और श्री चैतन्य महाप्रभु के माध्यम से तुम कृष्ण के समीप जा सकते हो । इस तरह से है । इसलिए नरोतत्म दासा ठाकुर ने कहा: एइ छाय गोसाई जार तार मुइ दास हम नौकर के नौकर हैं । यही चैतन्य महाप्रभु का निर्देश है, गोपी-भर्तु: पद-कमलयोर दास-दासदासानुदास ([[Vanisource:CC Madhya 13.80|चैच मध्य १३।८०]]) जितना अधिक तुम दास के दास बन जाते हो, और अधिक तुम पूर्ण होते हो । अौर अगर अचानक तुम सभी के मालिक बनना चाहते हो, तो तुम नरक में जाअोगे । बस । ऐसा मत करो । यही श्री चैतन्य महाप्रभु का शिक्षण है । अगर तुम नौकर, नौकर, नौकर के माध्यम से जाते हो, तो तुम उन्नती कर रहे हो । अौर अगर तुम्हे लगता है कि तुम अब मालिक बन गए हो, तो तुम नरक में जा रहे हो । यह प्रक्रिया है । दास-दासानुदास: चैतन्य महाप्रभु ने कहा । तो नौकर, नौकर, नौकर, नौकरों का नौकर, इसका मतलब है कि अब वह उन्नत है । वह उन्नत है । और जो सीधे गुरु बन रहा है, तो वह नरक में है । तो अनार्पित-चरिम् चिरात । तो हमें हमेशा श्रील रूपा गोस्वमी की शिक्षा को याद रखना चाहिए । इसलिए हम प्रार्थना करते हैं, श्री चैतन्य-मनो अभीश्टम स्थापितम् येन भू-तले । हमारा मिशन है श्री चैतन्य महाप्रभु की इच्छा की स्थापना करना । यही हमारा काम है । श्री चैतन्य-मनो अभीश्टम स्थापितम् येन भू-तले । श्रील रूपा गौस्वामी नें ऐसा किया था । उन्होंने हमें इतनी सारी किताबें दी हैं विशेष रूप से भक्ति-रसामृत-सिंधु, जिसका हमने अंग्रेजी में अनुवाद किया है भक्ति रसामृत के रूप में, भक्ति सेवा के विज्ञान को समझने के लिए । यह श्रील रूपा गौस्वामी का सबसे बड़ा योगदान है, कैसे एक भक्त बना जाए । एक भक्त कैसे बनें । यह भावना नहीं है, यह विज्ञान है । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन एक महान विज्ञान है । यद विज्ञान-समन्वितम । जानम् मे परमम् गुह्यम यद विज्ञान समन्वितम । यह भावना नहीं है । अगर तुम इसे भावना के रूप में लेते हो, तो तुम अशांति पैदा करोगे । यही रूपा गोस्वामी का निर्देश है । उन्होंने कहा कि, श्रुति-स्म्रति-पुराणादि-पंचरात्रिकि-विधिम- विना एकांतिकि हरेर भक्तिर उत्पातायैव कल्पते ( भ र ्सि १।२।१०१)
तुम श्री चैतन्य महाप्रभु की दया से गुजरे बिना कृष्ण भावनामृत पर नहिं पहुँच सकते हो । और श्री चैतन्य महाप्रभु के माध्यम से जाने का मतलब है छह गोस्वामी के माध्यम से जाना । यह परम्परा प्रणाली है । इसलिए नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं, एइ छाय गोसाई जार तार मुइ दास ता-सबार पद-रेणु मोर पंच-ग्रास यह परम्परा प्रणाली है । तुम कूद नहीं सकते हो । तुम्हे परम्परा प्रणाली के माध्यम से जाना चाहिए । तुम्हे अपने आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से गोस्वामीयों के समीप जाना होगा, और गोस्वामी के माध्यम से तुम्हे श्री चैतन्य महाप्रभु के समीप जा सकते हो, और श्री चैतन्य महाप्रभु के माध्यम से तुम कृष्ण के समीप जा सकते हो । इस तरह से है ।  
 
इसलिए नरोत्तम दास ठाकुर ने कहा: एइ छाय गोसाई जार तार मुइ दास | हम नौकर के नौकर हैं । यही चैतन्य महाप्रभु का निर्देश है, गोपी-भर्तु: पद-कमलयोर दास-दासदासानुदास ([[Vanisource:CC Madhya 13.80|चैतन्य चरितामृत मध्य १३.८०]) | जितना अधिक तुम दास के दास बन जाते हो, और अधिक तुम पूर्ण होते हो । अौर अगर अचानक तुम सभी के मालिक बनना चाहते हो, तो तुम नरक में जाअोगे । बस । ऐसा मत करो । यही श्री चैतन्य महाप्रभु का शिक्षण है । अगर तुम नौकर, नौकर, नौकर के माध्यम से जाते हो, तो तुम उन्नती कर रहे हो । अौर अगर तुम्हे लगता है कि तुम अब मालिक बन गए हो, तो तुम नरक में जा रहे हो । यह प्रक्रिया है । दास-दासानुदास: | चैतन्य महाप्रभु ने कहा ।  
 
तो नौकर, नौकर, नौकर, नौकरों का नौकर, इसका मतलब है कि अब वह उन्नत है । वह उन्नत है । और जो सीधे गुरु बन रहा है, तो वह नरक में है । तो अनार्पित-चरिम् चिरात । तो हमें हमेशा श्रील रूप गोस्वमी की शिक्षा को याद रखना चाहिए । इसलिए हम प्रार्थना करते हैं, श्री चैतन्य-मनो अभीष्टम स्थापितम् येन भू-तले । हमारा मिशन है श्री चैतन्य महाप्रभु की इच्छा की स्थापना करना । यही हमारा काम है । श्री चैतन्य-मनो अभीष्टम स्थापितम् येन भू-तले । श्रील रूप गौस्वामी नें ऐसा किया था । उन्होंने हमें इतनी सारी किताबें दी हैं, विशेष रूप से भक्ति-रसामृत-सिंधु, जिसका हमने अंग्रेजी में अनुवाद किया है नेक्टर ऑफ़ डिवोशन के रूप में, भक्ति सेवा के विज्ञान को समझने के लिए ।  
 
यह श्रील रूप गौस्वामी का सबसे बड़ा योगदान है, कैसे एक भक्त बना जाए । एक भक्त कैसे बनें । यह भावना नहीं है, यह विज्ञान है । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन एक महान विज्ञान है । यद विज्ञान-समन्वितम । जानम् मे परमम् गुह्यम यद विज्ञान समन्वितम । यह भावना नहीं है । अगर तुम इसे भावना के रूप में लेते हो, तो तुम अशांति पैदा करोगे । यही रूप गोस्वामी का निर्देश है । उन्होंने कहा कि, श्रुति-स्मृति-पुराणादि-पंचरात्रिकि-विधिम- विना एकांतिकि हरेर भक्तिर उत्पातायैव कल्पते (भक्तिरसामृतसिन्धु १.२.१०१) |
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture on CC Adi-lila 1.4 -- Mayapur, March 28, 1975

तुम श्री चैतन्य महाप्रभु की दया से गुजरे बिना कृष्ण भावनामृत पर नहिं पहुँच सकते हो । और श्री चैतन्य महाप्रभु के माध्यम से जाने का मतलब है छह गोस्वामी के माध्यम से जाना । यह परम्परा प्रणाली है । इसलिए नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं, एइ छाय गोसाई जार तार मुइ दास ता-सबार पद-रेणु मोर पंच-ग्रास यह परम्परा प्रणाली है । तुम कूद नहीं सकते हो । तुम्हे परम्परा प्रणाली के माध्यम से जाना चाहिए । तुम्हे अपने आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से गोस्वामीयों के समीप जाना होगा, और गोस्वामी के माध्यम से तुम्हे श्री चैतन्य महाप्रभु के समीप जा सकते हो, और श्री चैतन्य महाप्रभु के माध्यम से तुम कृष्ण के समीप जा सकते हो । इस तरह से है ।

इसलिए नरोत्तम दास ठाकुर ने कहा: एइ छाय गोसाई जार तार मुइ दास | हम नौकर के नौकर हैं । यही चैतन्य महाप्रभु का निर्देश है, गोपी-भर्तु: पद-कमलयोर दास-दासदासानुदास ([[Vanisource:CC Madhya 13.80|चैतन्य चरितामृत मध्य १३.८०]) | जितना अधिक तुम दास के दास बन जाते हो, और अधिक तुम पूर्ण होते हो । अौर अगर अचानक तुम सभी के मालिक बनना चाहते हो, तो तुम नरक में जाअोगे । बस । ऐसा मत करो । यही श्री चैतन्य महाप्रभु का शिक्षण है । अगर तुम नौकर, नौकर, नौकर के माध्यम से जाते हो, तो तुम उन्नती कर रहे हो । अौर अगर तुम्हे लगता है कि तुम अब मालिक बन गए हो, तो तुम नरक में जा रहे हो । यह प्रक्रिया है । दास-दासानुदास: | चैतन्य महाप्रभु ने कहा ।

तो नौकर, नौकर, नौकर, नौकरों का नौकर, इसका मतलब है कि अब वह उन्नत है । वह उन्नत है । और जो सीधे गुरु बन रहा है, तो वह नरक में है । तो अनार्पित-चरिम् चिरात । तो हमें हमेशा श्रील रूप गोस्वमी की शिक्षा को याद रखना चाहिए । इसलिए हम प्रार्थना करते हैं, श्री चैतन्य-मनो अभीष्टम स्थापितम् येन भू-तले । हमारा मिशन है श्री चैतन्य महाप्रभु की इच्छा की स्थापना करना । यही हमारा काम है । श्री चैतन्य-मनो अभीष्टम स्थापितम् येन भू-तले । श्रील रूप गौस्वामी नें ऐसा किया था । उन्होंने हमें इतनी सारी किताबें दी हैं, विशेष रूप से भक्ति-रसामृत-सिंधु, जिसका हमने अंग्रेजी में अनुवाद किया है नेक्टर ऑफ़ डिवोशन के रूप में, भक्ति सेवा के विज्ञान को समझने के लिए ।

यह श्रील रूप गौस्वामी का सबसे बड़ा योगदान है, कैसे एक भक्त बना जाए । एक भक्त कैसे बनें । यह भावना नहीं है, यह विज्ञान है । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन एक महान विज्ञान है । यद विज्ञान-समन्वितम । जानम् मे परमम् गुह्यम यद विज्ञान समन्वितम । यह भावना नहीं है । अगर तुम इसे भावना के रूप में लेते हो, तो तुम अशांति पैदा करोगे । यही रूप गोस्वामी का निर्देश है । उन्होंने कहा कि, श्रुति-स्मृति-पुराणादि-पंचरात्रिकि-विधिम- विना एकांतिकि हरेर भक्तिर उत्पातायैव कल्पते (भक्तिरसामृतसिन्धु १.२.१०१) |