HI/Prabhupada 0261 - भगवान और भक्त, वे एक ही स्थिति पर हैं

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Lecture -- Seattle, September 27, 1968

प्रभुपाद: अब तुम्हारे देश में ये लड़के इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का प्रचार करने की कोशिश कर रहे हैं । तो आप सभी से मेरा विनम्र अनुरोध है कि जीवन के इस उदात्त आशीर्वाद को समझने की कोशिश करें । बस हरे कृष्ण का जप करने से, आप धीरे - धीरे कृष्ण के लिए एक दिव्य प्यार का मनोभाव विकसित करेंगे । और जैसे ही आप कृष्ण को प्यार करना शुरू करेंगे, अापकी सभी मुसीबतें ... इसका मतलब है कि आप पूरी संतुष्टि महसूस करंगे । मुसीबत या संकट मन में है । एक आदमी को एक महीने में ६०००० डॉलर मिल रहे है, एक आदमी को २०० डॉलर प्रति माह । लेकिन मैंने कोलकाता में देखा है कि एक सज्जन, वे ६००० कमा रहे थे, उन्होंने आत्महत्या कर ली । आत्महत्या कर ली । क्यों? वह पैसे उन्हे संतुष्टि नहीं दे सका । वे किसी अौर चीज़ की तलाश में थे । तो यह भौतिक वातावरण, पैसे की बड़ी राशि कमा कर, आपको संतुष्टि नहीं देगा क्योंकि हम में से हर इन्द्रियों का नौकर है, इंद्रियों की सेवा का यह मंच स्थानांतरित किया जाना चाहिए, श्री कृष्ण की सेवा के मंच पर । और फिर आपको सभी समस्याओं का हल मिलेगा । बहुत बहुत धन्यवाद । (भक्त दंडवत करते हैं ) कोई सवाल?

भक्त: प्रभुपाद, कृष्ण की एक तस्वीर पूर्ण है, सही है? यह श्री कृष्ण है । एक शुद्ध भक्त की तस्वीर उसी तरह से पूर्ण है?

प्रभुपाद: भक्त की तस्वीर ?

भक्त: एक शुद्ध भक्त ।

प्रभुपाद: हाँ ।

भक्त: यह उसी तरह से पूर्ण है ...

प्रभुपाद: हाँ ।

भक्त: मान लीजिए प्रहलाद महाराज और भगवान न्रसिंह-देव की एक तस्वीर भी ... प्रहलाद भी उतने ही हैं जितना की भगवान नर्सिंह-देव हैं ।

प्रभुपाद: हाँ । भगवान और भक्त, वे एक ही स्थिति पर हैं । उनमें से हर एक । भगवान, उनका नाम, उनका रूप, उनकी गुणवत्ता, उनके पार्षद, उनकी सामग्री । सब कुछ, वे पूर्ण हैं । नाम गुण रूप लीला परीकर ... और लीलाऍ । जैसे हम कृष्ण के बारे में सुन रहे हैं, तो यह कृष्ण से अभीन्न है । जब हरे कृष्ण का जप होता है, इस हरे कृष्ण का, यह कंपन, श्री कृष्ण से अलग नहीं है । सब कुछ निरपेक्ष है । इसलिए कृष्ण के शुद्ध भक्त कृष्ण से अभीन्न हैं । यह एक साथ एक हैं और अलग भी हैं । अचिन्त्य -भेदाभेद-तत्व । यह तत्वज्ञान समझा जाना चाहिए, कि कृष्ण परम व्यक्ति शक्तिशाली हैं, और जो हम देखते हैं, सब कुछ, हम जो अनुभव करते हैं, वे सभी कृष्ण की विभिन्न शक्तियां हैं । और शक्ति और शक्तिमान अलग नहीं किए जा सकते हैं । इसलिए वे सभी पूर्णता के मंच पर हैं। बस जब यह माया या अज्ञान से ढक जाती है, यह अलग है । बस ।