HI/Prabhupada 0278 - शिष्य का मतलब है जो अनुशासन स्वीकार करे: Difference between revisions

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अब यह ज्ञान वह व्क्ती समझ पाएगा जिसने कृष्ण के साथ संबंध बना लिया है अौर समर्पित अात्मा है। बिना समर्पण के, बहुत कठिन है नियंत्रक अौर उस्की शक्तियों को समझना, वह कैसे सब नियत्रित करता है। तुभ्याम प्रपन्नाय अशेशतह समग्रेन उपदेक्श्यामि। यह है शर्त। अखरी अध्यायों मे कृष्ण कहते हैं, नाहम प्रकाश सरवस्य ([[Vanisource:BG 7.25|भ गी ७।२५]]) जैसे अगर तुम किसी शैक्षिक संस्थान मे प्रवेश करते हो अगर तुम संस्था के िनयमों के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करते हो, कैसे तुम संस्था द्वारा दिए ज्ञान का लाभ प्राप्त कर सकते हो? हर जगह, जहाँ भी तुम्हे कुछ प्राप्त करना है अापको नियंत्रण में रहना पडता है या तुम्हे नियमों के समक्ष शरणागत होना पडता है। जैसे इस उपदेश में हम भगवत गीता के कुछ सबक प्रदान कर रहे हैं, अौर अगर तुम िनयमो का पालन नहि करोगे तो यह ज्ञान प्राप्त करना असम्भव है। इस प्रकार, नियंत्रक अौर उस्की शक्तियों का सम्पूर्ण ज्ञान तभी समझा जा सकता है जब हम अर्जुन की तरह समर्पित हों। जब तक व्यक्ति शरणागत नहीं होता, तब तक यह सम्भव नहीं। तुम हमेशा याद रखना कि कृष्ण, अजर्न कृष्ण के समक्ष शरणागत हुए थे। शिश्यस ते अहम शाधि मामं प्रपन्नम् ([[Vanisource:BG 2.7|(भ गी २।७]]) तो इसीलिए कृष्ण भी उन्से बोल रहे है।
अब यह ज्ञान वह व्यक्ति समझ पाएगा जिसने कृष्ण के साथ संबंध बना लिया है अौर समर्पित अात्मा है। बिना समर्पण के, बहुत कठिन है नियंत्रक अौर उनकी शक्तियों को समझना, वह कैसे सब नियत्रित करते है। तुभ्याम प्रपन्नाय अशेशत: समग्रेण उपदेक्ष्यामि ।  यह है शर्त। आखरी अध्यायों मे कृष्ण कहते हैं, नाहम प्रकाश सर्वस्य ([[HI/BG 7.25|भ.गी. ७.२५]]) |  


वास्तव में, यह शास्त्र की चर्चा का प्रभाव नहीं होता, जब तक दर्शक अौर वक्ता में सम्बन्ध न हो। तो दर्शक का मतलब है शिष्य। शिष्य का मतलब है जो अनुशासन स्वीकार करे। शिष्य। शिष्य। सटीक संस्कृत शब्द है शिष्य। शिष्य का मतलब है.....एक क्रिया हे, संस्कृत क्रिया, जिसे शास कहते हैं। शास मतलब नियंत्रित. शास से शास्त्र अाता है। शास्त्र मतलब नियंत्रित पुस्तकें । अौर शास से शस्त्र। शस्त्र मतलब हथियार। जब तर्क विफल होता है ..............जैसे सरकार नियंत्रण करती है। पेहले वह कानून देते हैं। अगर तुम कानून तोडते हो, अगर तुम नियंत्रित पुस्तकें का पालन नहीं करते हो, मतलब शास्त्र, तो अगला कदम है शस्त्र। शस्त्र मतलब हथियार। अगर तुम सरकार के नियम का पालन नहीं करते हो, दाहिने तरफ रहिए, तब पोलिस का डंडा तो है ही - शस्त्र तो नियंत्रित तो तु्म्हे होना ही है। अगर तुम सज्जन व्यक्ति हो, तो तुम्हे शास्त्र के नियंत्रण में रहना होगा। अौर अगर तुमने अवहेलना कि , तो दुर्गा देवी का त्रिशूल है ही। तुमने दुरगादेवि की तस्वीर देखी है, त्रिशूल, तिगुना पीडा। तुम किसी भी नियमों का उल्लंघन नहिं कर सकते; जैसे सरकार, वैसे ही सर्वोच्च सरकार कृष्ण। यह मुम्किन नहि। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य के नियम हैं। अगर तुम ज्यादा खाअोगे, तो तुम्हे किसी बिमारी का शिकार होना पडेगा। तुम्हे बदहस्मी होगी अौर चिकित्सक सलाह देगा तीन दिन न खाने की। तो नियंत्रण तो है। प्रकृति से, प्रकृति मतलब भगवान का कानून, स्वचालित रूप से काम कर रहा है। मूर्ख लोग भगवान का कानून नही देखते है, पर भगवान का कानून है। सूरज समय पर उदय होता है, चाँद समय पर अाता है। साल का पहला महीना, जनवरी,सही समय पर अाया है। तो नियंत्रण तो है। मूर्ख लोग इसे नही देखते है। सब कुछ नियंत्रित है। तो भगवान को जानने के लिए अौर चीज़े कैसे चल रही है अौर नियंत्रित की जा रही है, यह सब जानना ज़रूरी है। हमें बस भावना पर नहीं जाना चाहिए। धार्मिक भावना, आँख बंद करके पालन करने वाले लोगों के लिए अच्छा है. लेकिन अाज कल, लोग तथाकथित शिक्षा के क्षेत्र में उन्नत कर रहे हैं तो भगवद गीता तुमहे पूरा ज्ञान देता है ताकी तुम भगवान को अपने तर्क, अपने ज्ञान के साथ अपना सको। यह अंधा निम्नलिखित नहीं है। कृष्ण चेतना एक भावना नहीं है। यह ज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान या विज्ञान के द्वारा समर्थित है। विज्ञान। ज्ञानम् विज्ञान सहितम। तो बिना विज्ञान सहितम अौर इस ज्ञान को समझने कि प्रक्रिया है शरणागत होना। इसलिए हम....शिष्य, शिष्य का मतलब है जो अनुशासन स्वीकार करे। बिना अनुशासन स्वीकार करे, हम प्रगती नहीं कर सकते। यह मुम्किन नहि। ज्ञान के किसी भी क्षेत्र, गतिविधियों के किसी भी क्षेत्र, अगर आप जागरूक होना चाहते हैं, वैज्ञानिक और तथ्यात्मक, तो आप को नियंत्रित करने के सिद्धांत को स्वीकार करना चाहिए। समग्रेन वक्श य स्वरूपम् सरवोकरम् यत्र धियम तद उभय विषयकम ज्ञानम् व्यक्तुम
जैसे अगर तुम किसी शैक्षिक संस्था मे प्रवेश करते हो, अगर तुम संस्था के नियमों के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करते हो, कैसे तुम संस्था द्वारा दिए ज्ञान का लाभ प्राप्त कर सकते हो? हर जगह, जहाँ भी तुम्हे कुछ प्राप्त करना है, अापको नियंत्रण में रहना पडता है या तुम्हे नियमों के समक्ष शरणागत होना पडता है। जैसे इस उपदेश में हम भगवत गीता से कुछ सबक प्रदान कर रहे हैं, अौर अगर तुम वर्गमे नियमो का पालन नहि करोगे, तो यह ज्ञान प्राप्त करना असम्भव है। इस प्रकार, नियंत्रक अौर उनकी शक्तियों का सम्पूर्ण ज्ञान तभी समझा जा सकता है जब हम अर्जुन की तरह समर्पित हों । जब तक व्यक्ति शरणागत नहीं होता, तब तक यह सम्भव नहीं। तुम हमेशा याद रखना कि कृष्ण, अजर्न कृष्ण के समक्ष शरणागत हुए थे। शिश्यस ते अहम शाधि माम प्रपन्नम ([[HI/BG 2.7|भ.गी. २.७]]) | तो इसीलिए कृष्ण भी उससे बोल रहे है।
 
वास्तव में, यह शास्त्र की चर्चा का प्रभाव नहीं होता, जब तक दर्शक अौर वक्ता में सम्बन्ध न हो। तो दर्शक का मतलब है शिष्य। शिष्य का मतलब है जो अनुशासन स्वीकार करे। शिष्य। शिष्य। सटीक संस्कृत शब्द है शिष्य। शिष्य का मतलब है.....एक क्रिया हे, संस्कृत क्रिया, जिसे शास कहते हैं। शास मतलब नियंत्रित. शास से शास्त्र अाता है। शास्त्र मतलब नियंत्रित पुस्तकें । अौर शास से शस्त्र। शस्त्र मतलब हथियार। जब तर्क विफल होता है ..............जैसे सरकार नियंत्रण करती है। पेहले वह कानून देते हैं।  
 
अगर तुम कानून तोडते हो, अगर तुम नियंत्रित पुस्तकें का पालन नहीं करते हो, मतलब शास्त्र, तो अगला कदम है शस्त्र। शस्त्र मतलब हथियार। अगर तुम सरकार के नियम का पालन नहीं करते हो, दाहिने तरफ रहिए, तब पोलिस का डंडा तो है ही - शस्त्र तो नियंत्रित तो तु्म्हे होना ही है। अगर तुम सज्जन व्यक्ति हो, तो तुम्हे शास्त्र के नियंत्रण में रहना होगा। अौर अगर तुमने अवहेलना की, तो दुर्गा देवी का त्रिशूल है ही। तुमने दुर्गादेवी की तस्वीर देखी है, त्रिशूल, तिगुना पीडा। तुम किसी भी नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकते; जैसे सरकार, वैसे ही सर्वोच्च सरकार कृष्ण । यह मुमकिन नहीं ।
 
उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य के नियम हैं। अगर तुम ज्यादा खाअोगे, तो तुम्हे किसी बिमारी का शिकार होना पडेगा। तुम्हे बदहस्मी होगी अौर चिकित्सक सलाह देगा तीन दिन न खाने की। तो नियंत्रण तो है। प्रकृति से, प्रकृति मतलब भगवान का कानून, स्वचालित रूप से काम कर रहा है। मूर्ख लोग भगवान का कानून नही देखते है, पर भगवान का कानून है। सूरज समय पर उदय होता है, चाँद समय पर अाता है। साल का पहला महीना, जनवरी, सही समय पर अाया है। तो नियंत्रण तो है। मूर्ख लोग इसे नही देखते है। सब कुछ नियंत्रित है। तो भगवान को जानने के लिए अौर चीज़े कैसे चल रही है अौर नियंत्रित की जा रही है, यह सब जानना ज़रूरी है।  
 
हमें बस भावना पर नहीं जाना चाहिए। धार्मिक भावना, आँख बंद करके पालन करने वाले लोगों के लिए अच्छा है | लेकिन अाज कल, लोग तथाकथित शिक्षा के क्षेत्र में उन्नत कर रहे हैं तो भगवद गीता तुम्हे पूरा ज्ञान देता है ताकी तुम भगवान को अपने तर्क, अपने ज्ञान के साथ अपना सको। यह अंधा अनुसरण नहीं है । कृष्ण भावनामृत एक भावना नहीं है। यह ज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान या विज्ञान के द्वारा समर्थित है। विज्ञान। ज्ञानम विज्ञान सहितम। तो बिना विज्ञान सहितम।।। अौर इस ज्ञान को समझने कि प्रक्रिया है शरणागत होना। इसलिए हम....शिष्य, शिष्य का मतलब है जो अनुशासन स्वीकार करे। बिना अनुशासन स्वीकार करे, हम प्रगति नहीं कर सकते। यह मुमकिन नहीं । ज्ञान के किसी भी क्षेत्र, गतिविधियों के किसी भी क्षेत्र, अगर आप जागरूक होना चाहते हैं, वैज्ञानिक और तथ्यात्मक, तो आप को नियंत्रित करने के सिद्धांत को स्वीकार करना चाहिए। समग्रेण वक्ष य स्वरूपम् सर्वोकरम यत्र धियम तद उभय विषयकम ज्ञानम व्यक्तुम |
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Latest revision as of 18:27, 17 September 2020



Lecture on BG 7.2 -- San Francisco, September 11, 1968

अब यह ज्ञान वह व्यक्ति समझ पाएगा जिसने कृष्ण के साथ संबंध बना लिया है अौर समर्पित अात्मा है। बिना समर्पण के, बहुत कठिन है नियंत्रक अौर उनकी शक्तियों को समझना, वह कैसे सब नियत्रित करते है। तुभ्याम प्रपन्नाय अशेशत: समग्रेण उपदेक्ष्यामि । यह है शर्त। आखरी अध्यायों मे कृष्ण कहते हैं, नाहम प्रकाश सर्वस्य (भ.गी. ७.२५) |

जैसे अगर तुम किसी शैक्षिक संस्था मे प्रवेश करते हो, अगर तुम संस्था के नियमों के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करते हो, कैसे तुम संस्था द्वारा दिए ज्ञान का लाभ प्राप्त कर सकते हो? हर जगह, जहाँ भी तुम्हे कुछ प्राप्त करना है, अापको नियंत्रण में रहना पडता है या तुम्हे नियमों के समक्ष शरणागत होना पडता है। जैसे इस उपदेश में हम भगवत गीता से कुछ सबक प्रदान कर रहे हैं, अौर अगर तुम वर्गमे नियमो का पालन नहि करोगे, तो यह ज्ञान प्राप्त करना असम्भव है। इस प्रकार, नियंत्रक अौर उनकी शक्तियों का सम्पूर्ण ज्ञान तभी समझा जा सकता है जब हम अर्जुन की तरह समर्पित हों । जब तक व्यक्ति शरणागत नहीं होता, तब तक यह सम्भव नहीं। तुम हमेशा याद रखना कि कृष्ण, अजर्न कृष्ण के समक्ष शरणागत हुए थे। शिश्यस ते अहम शाधि माम प्रपन्नम (भ.गी. २.७) | तो इसीलिए कृष्ण भी उससे बोल रहे है।

वास्तव में, यह शास्त्र की चर्चा का प्रभाव नहीं होता, जब तक दर्शक अौर वक्ता में सम्बन्ध न हो। तो दर्शक का मतलब है शिष्य। शिष्य का मतलब है जो अनुशासन स्वीकार करे। शिष्य। शिष्य। सटीक संस्कृत शब्द है शिष्य। शिष्य का मतलब है.....एक क्रिया हे, संस्कृत क्रिया, जिसे शास कहते हैं। शास मतलब नियंत्रित. शास से शास्त्र अाता है। शास्त्र मतलब नियंत्रित पुस्तकें । अौर शास से शस्त्र। शस्त्र मतलब हथियार। जब तर्क विफल होता है ..............जैसे सरकार नियंत्रण करती है। पेहले वह कानून देते हैं।

अगर तुम कानून तोडते हो, अगर तुम नियंत्रित पुस्तकें का पालन नहीं करते हो, मतलब शास्त्र, तो अगला कदम है शस्त्र। शस्त्र मतलब हथियार। अगर तुम सरकार के नियम का पालन नहीं करते हो, दाहिने तरफ रहिए, तब पोलिस का डंडा तो है ही - शस्त्र तो नियंत्रित तो तु्म्हे होना ही है। अगर तुम सज्जन व्यक्ति हो, तो तुम्हे शास्त्र के नियंत्रण में रहना होगा। अौर अगर तुमने अवहेलना की, तो दुर्गा देवी का त्रिशूल है ही। तुमने दुर्गादेवी की तस्वीर देखी है, त्रिशूल, तिगुना पीडा। तुम किसी भी नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकते; जैसे सरकार, वैसे ही सर्वोच्च सरकार कृष्ण । यह मुमकिन नहीं ।

उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य के नियम हैं। अगर तुम ज्यादा खाअोगे, तो तुम्हे किसी बिमारी का शिकार होना पडेगा। तुम्हे बदहस्मी होगी अौर चिकित्सक सलाह देगा तीन दिन न खाने की। तो नियंत्रण तो है। प्रकृति से, प्रकृति मतलब भगवान का कानून, स्वचालित रूप से काम कर रहा है। मूर्ख लोग भगवान का कानून नही देखते है, पर भगवान का कानून है। सूरज समय पर उदय होता है, चाँद समय पर अाता है। साल का पहला महीना, जनवरी, सही समय पर अाया है। तो नियंत्रण तो है। मूर्ख लोग इसे नही देखते है। सब कुछ नियंत्रित है। तो भगवान को जानने के लिए अौर चीज़े कैसे चल रही है अौर नियंत्रित की जा रही है, यह सब जानना ज़रूरी है।

हमें बस भावना पर नहीं जाना चाहिए। धार्मिक भावना, आँख बंद करके पालन करने वाले लोगों के लिए अच्छा है | लेकिन अाज कल, लोग तथाकथित शिक्षा के क्षेत्र में उन्नत कर रहे हैं तो भगवद गीता तुम्हे पूरा ज्ञान देता है ताकी तुम भगवान को अपने तर्क, अपने ज्ञान के साथ अपना सको। यह अंधा अनुसरण नहीं है । कृष्ण भावनामृत एक भावना नहीं है। यह ज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान या विज्ञान के द्वारा समर्थित है। विज्ञान। ज्ञानम विज्ञान सहितम। तो बिना विज्ञान सहितम।।। अौर इस ज्ञान को समझने कि प्रक्रिया है शरणागत होना। इसलिए हम....शिष्य, शिष्य का मतलब है जो अनुशासन स्वीकार करे। बिना अनुशासन स्वीकार करे, हम प्रगति नहीं कर सकते। यह मुमकिन नहीं । ज्ञान के किसी भी क्षेत्र, गतिविधियों के किसी भी क्षेत्र, अगर आप जागरूक होना चाहते हैं, वैज्ञानिक और तथ्यात्मक, तो आप को नियंत्रित करने के सिद्धांत को स्वीकार करना चाहिए। समग्रेण वक्ष य स्वरूपम् सर्वोकरम यत्र धियम तद उभय विषयकम ज्ञानम व्यक्तुम |