HI/Prabhupada 0299 - एक सन्यासी अपनी पत्नी से नहीं मिल सकता है

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Lecture -- Seattle, October 4, 1968

तमाल कृष्ण: प्रभुपाद, भगवान चैतन्य के सन्यास लेने के बाद, भगवान चैतन्य की शिक्षाऍ में कहा है की वे अपनी मां से मिले । मैंने हमेशा सोचता था कि एक सन्यासी एसा नहीं कर सकता ।

प्रभुपाद: नहीं, एक सन्यासी अपनी पत्नी से नहीं मिल सकता है । एक सन्यासी का घर जाना मना है, और अपनी पत्नी से कभी नहीं मिलता है, लेकिन वह मिल सकता है, अगर अन्य ... लेकिन यह ... चैतन्य महाप्रभु अपने घर नहीं गए । यह व्यवस्था से हुअा ।

अद्वैत प्रभु उनकी माँ को चैतन्य महाप्रभु से मिलने के लिए ले कर आये । चैतन्य महाप्रभु, सन्यास स्वीकार करने के बाद वे सिर्फ कृष्ण के पीछे पागल की तरह थे । वे गंगा के तट पर जाते थे यह भूलकर की यह गंगा है । वे सोच रहे थे कि, "यह यमुना है । मैं वृन्दावन जा रहा हूँ, अनुसरन करते हुए ........" इसलिए नित्यानंद प्रभु नें एक आदमी भेजा, जो "मैं चैतन्य का अनुसरन कर रहा हूँ । अद्वैत को सूचित करें घाट में एक नाव लाने के लिए ताकि वे उसे उनके घर ले जाने में सक्षम हो जाएँ । " तो चैतन्य महाप्रभु परमानंद में थे ।

तब उन्होंने अचानक देखा कि अद्वैत एक नाव के साथ इंतजार कर रहे थे | तो उन्होंने उस से पूछा, "अद्वैत, तुम यहाँ क्यों हो ? यहाँ, यह यमुना है ।" अद्वैत ने कहा, "हाँ, मेरे प्यारे प्रभु, जहाँ भी आप हैं यमुना वहॉ है । तो अाप मेरे साथ आओ ।" तो वे गए, और जब वे गए.......वे अद्वैत के घर गए । फिर उन्होंने देखा, "तुमने मुझे गुमराह किया है । तुम अपने घर में मुझे ले अाए हो । यह वृन्दावन नहीं है । यह कैसे ?" "ठीक है, सर, आप गलती से आए हैं, तो ... " (हंसी) "कृपया यहाँ रहिए ।" तो उन्होंने तुरंत अपनी माँ के पास एक आदमी को भेजा । क्योंकि उन्हें पता था कि चैतन्य महाप्रभु नें सन्यास स्वीकार किया है; वे घर को फिर से वापस कभी नहीं अाऍगे । तो उनकी मां बेटे के पीछे पागल है । वह इकलौता बेटा था । तो उन्होंने एक मौका दिया उनकी माँ को उन्हें एक अाखरी बार देखने के लिए । यही अद्वैत द्वारा आयोजित किया गया । तो जब उनकी मां आई, चैतन्य महाप्रभु तुरंत अपनी माँ के पैरों पर गिर गए ।

वे एक जवान आदमी थे, चौबीस साल की उम्र के, और माँ, जब उन्होंने देखा कि उसके बेटे नें सन्यास स्वीकार किया है, बहू घर में है, स्वाभाविक रूप से औरत, वह बहुत ज्यादा प्रभावित हो गई, रोने लगी | तो चैतन्य महाप्रभु बहुत अच्छे शब्दों के साथ उन्हें शांत करने की कोशिश कर रहे थे । उन्होंने कहा, "मेरी प्रिय मां, यह शरीर तुम्हारे द्वारा दिया गया है, इसलिए मुझे आपकी सेवा में मेरे शरीर को संलग्न करना चाहिए था । लेकिन मैं अापका मूर्ख बेटा हूँ । मैंनें कुछ गलती की है । कृपया मुझे क्षमा करें ।" तो वह दृश्य बहुत दयनीय है - मां से जुदाई ... (अस्पष्ट)