HI/Prabhupada 0343 - हम मूढों को शिक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं: Difference between revisions

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कृष्ण, जब वह इस ग्रह पर मौजूद थे, उन्होंने व्यावहारिक रूप से प्रदर्शन किया, कि वे हर किसी को नियंत्रित करते हैं, लेकिन कोई भी उन्हे नियंत्रित नहीं करता है । यही ईश्वर है । यही परमेश्वर कहा जाता है । ईश्वर हर कोई हो सकता है । भगवान हर कोई हो सकता है । लेकिन देवत्व कृष्ण हैं । नित्यो नित्यानाम चेतनस् चेतनानाम ( कथा उपनिश २।२।१३) । इसलिए हमें बहुत अच्छी तरह से यह समझना चाहिए, और यह बहुत मुश्किल भी नहीं है । वही नियंत्रक हमारे सामने आ रहा है हम में से एक के रूप में, इंसान के रूप में । लेकिन हम उसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं । यही कठिनाई है । अवजानन्ति माम मूढा मानुषिम तनुम अाश्रितम ([[Vanisource:BG 9.11|भ गी ९।११]]) । यह बहुत अफसोस की बात है । कृष्ण कहते हैं कि, " मैं प्रदर्शन करने के लिए आ रहा हूँ कि कौन सर्वोच्च नियंत्रक है, और इंसान की भूमिका निभा रहा हूँ ताकि हर कोई समझ सके मैं भगवद गीता की शिक्षा दे रहा हूँ । फिर भी, ये मूर्ख, दुष्ट, वे नहीं समझ सकते । " तो ईश्वर हैं । हम भगवान का नाम दे रहे हैं, कृष्ण । भगवान का पता भी वृन्दावन, भगवान के पिता का नाम, माता का नाम तो क्यों ... भगवान का पता लगाने में कठिनाई कहां है? लेकिन वे स्वीकार नहीं करेंगे । वे स्वीकार नहीं करेंगे । मूढा । वे वर्णित हैं मूढा के रूप में । आज सुबह यह पत्रकार मुझसे पूछ रहे थे, "अापके आंदोलन का उद्देश्य क्या है?" तो मैंने कहा, " मूढों को शिक्षित करने के लिए, बस ।" यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन का सारांश है कि हम मूढों को शिक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं । और मूढ कौन है? यह कृष्ण द्वारा वर्णित है । न माम दुशकृतीनो मूढा प्रपद्यन्ते नराधमा: ([[Vanisource:BG 7.15|भ गी ७।१५]]) क्यों? माययापह्रत-ज्ञाना: । क्यों माया उनका ज्ञान दूर ले गई है? अासुरम भावम अाश्रित: । हमारे पास बहुत ही सरल परीक्षण है, जैसे एक रसायनज्ञ छोटे टेस्ट ट्यूब से विश्लेषण कर सकते है कि क्या तरल है । इसलिए हम बहुत बुद्धिमान नहीं हैं । हम भी कई मूढाों में से एक हैं, लेकिन हमारे पास टेस्ट ट्यूब है । कृष्ण कहते हैं ... हम मूढा रहना पसंद करते हैं, और कृष्ण से शिक्षा लेते हैं । यह कृष्ण भावनामृत है । हम अपने अाप को बहुत सीखा विद्वान और बहुत बहुश्रुत विद्वान नहीं बताते हैं- "हम सब कुछ जानते हैं ।"
कृष्ण, जब वह इस ग्रह पर उपस्थित थे, उन्होंने व्यावहारिक रूप से प्रदर्शित किया, कि वे हर किसी को नियंत्रित करते हैं, लेकिन कोई भी उन्हें नियंत्रित नहीं करता है । यह ईश्वर है । इसे ही परमेश्वर कहा जाता है । ईश्वर हर कोई हो सकता है । भगवान हर कोई हो सकता है । लेकिन परम भगवान कृष्ण हैं । नित्यो नित्यानाम् चेतनश चेतनानाम् (कठोपनिषद २.२.१३) । इसलिए हमें बहुत अच्छी तरह से यह समझना चाहिए, और यह बहुत मुश्किल भी नहीं है । वही नियंत्रक हमारे सामने आ रहे हैं हममें से एक के रूप में, मनुष्य के रूप में । लेकिन हम उन्हें स्वीकार नहीं कर रहे हैं । यही कठिनाई है । अवजानन्ति माम मूढा मानुषीम तनुम आश्रितम ([[HI/BG 9.11|भ.गी. ९.११]]) । यह बहुत अफ़सोस की बात है । कृष्ण कहते हैं कि, "मैं प्रदर्शन करने के लिए आ रहा हूँ कि कौन सर्वोच्च नियंत्रक है, और मैं मनुष्य की भूमिका निभा रहा हूँ ताकि हर कोई समझ सके, मैं भगवद्गीता में शिक्षा दे रहा हूँ । फिर भी, ये मूर्ख, दुष्ट, वे नहीं समझ पा रहे हैं । " तो ईश्वर हैं ।  


नहीं । हम हैं ... चैतन्य महाप्रभु, वह भी एक मूढा बने रहने की कोशिश किए । वे, जब उन्होंने प्रकाशनन्द सरस्वती के साथ बात की थी..... वे मायावादी सन्यासी थे चैतन्य महाप्रभु नृत्य और जप कर रहे थे तो मायावादि संन्यासियों उनकि आलोचना कर रहे थे, "यह सन्यासी है, और वह बस जप कर रहे हा और कुछ भावुक व्यक्तियों के साथ नाच रहा है । यह क्या है? " इसलिए एक बैठक आयोजित की गई प्रकाशनन्द सरस्वती और चैतन्य महाप्रभु के बीच । उस बैठक में चैतन्य महाप्रभु नें एक विनम्र सन्यासी के रूप में भाग लिया । तो प्रकाशनन्द सरस्वती नें उनसे पूछताछ की, " सर, आप एक सन्यासी हैं, " आपका कर्तव्य है हमेशा वेदांत का अध्ययन करना तो कैसे, आप जप और नाच रहे हैं? आप वेदांत नहीं पढ़ रहे हैं ।" चैतन्य महाप्रभु नें कहा, " हाँ, यह एक तथ्य है । मैं एसा कर रहा हूँ क्योंकि मेरे गुरु महाराज नें मुझे मूढा के रुप में देखा ।" "वह कैसे?" "उन्होंने कहा कि, गुरू मोरे मूर्ख देखि करिल शासन ([[Vanisource:CC Adi 7.71|चै च अादि ७।७१]]) मेरे गुरु महाराज नें मुझे बेवकूफ नंबर एक के रूप में देखा था, और उन्होंने मुझे डांटा " " कैसे उन्होंने आपको डांटा? अब, "तुम्हे वेदांत का अध्ययन करने का कोई अधिकार नहीं है । यह तुम्हारे लिए संभव नहीं है तुम एक मूढा हो बेहतर होगा कि तुम हरे कृष्ण मंत्र का जाप करो । "
हम भगवान का नाम बता रहे हैं, कृष्ण । भगवान का पता भी, वृन्दावन, भगवान के पिता का नाम, माता का नाम । तो क्यों ... भगवान का पता लगाने में कठिनाई कहाँ है ? लेकिन वे स्वीकार नहीं करेंगे । वे स्वीकार नहीं करेंगे । मूढा वे मूढा के रूप में वर्णित हैं आज सुबह यह पत्रकार मुझसे पूछ रहे थे,"अापके आंदोलन का उद्देश्य क्या है ?" तो मैंने कहा, "मूढों को शिक्षित करना, बस ।" यही कृष्णभावनामृत आंदोलन का सारांश है कि हम मूढों को शिक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं । और मूढा कौन है ? यह कृष्ण द्वारा वर्णित है । न माम दुष्कृतिनो मूढ़ा प्रपद्यन्ते नराधमा: ([[HI/BG 7.15|भ.गी. ७.१५]]) । क्यों ? माययापहृत-ज्ञाना: । क्यों माया ने उनका ज्ञान हर लिया है ? अासुरम भावम अाश्रित: । हमारे पास बहुत ही सरल परीक्षण है, जैसे एक रसायणज्ञ छोटे टेस्ट ट्यूब से विश्लेषण कर सकता है कि प्रवाही क्या है । तो हम बहुत बुद्धिमान नहीं हैं हम भी कई मूढों में से एक हैं, लेकिन हमारे पास टेस्ट ट्यूब है । कृष्ण कहते हैं ... हम मूढ रहना पसंद करते हैं, और कृष्ण से शिक्षा लेते हैं । यह कृष्णभावनामृत है । हम अपने अाप को बहुत शिक्षित विद्वान और बहुत बहुश्रुत विद्वान नहीं बताते हैं की - "हम सब कुछ जानते हैं ।"  


तो उनका उद्देश्य क्या है? उद्देश्य है, वर्तमान क्षण में, ये मूढा, कैसे वे वेदांत समझेंगे? बेहतर है हरे कृष्ण मंत्र का जाप करना । तो फिर तुम्हे सब ज्ञान मिलेगा ।
नहीं । चैतन्य महाप्रभु, उन्होंने भी मूढ बने रहने की कोशिश की । वे, जब उन्होंने बात की थी प्रकाशानन्द सरस्वती के साथ ... वे मायावादी संन्यासी थे । चैतन्य महाप्रभु नृत्य और जप कर रहे थे । तो मायावादी संन्यासी उनकी आलोचना कर रहे थे, "यह संन्यासी है, और वह बस जप कर रहे हैं और कुछ भावुक व्यक्तियों के साथ नाच रहे हैं । यह क्या है ? " इसलिए एक बैठक आयोजित की गई प्रकाशानन्द सरस्वती और चैतन्य महाप्रभु के बीच । उस बैठक में चैतन्य महाप्रभु ने एक विनम्र संन्यासी के रूप में भाग लिया । तो प्रकाशानन्द सरस्वती ने उनसे पूछताछ की, "महोदय, आप एक संन्यासी हैं । आपका कर्तव्य है हमेशा वेदांत का अध्ययन करना । तो यह कैसे है, आप जप और नृत्य कर रहे हैं ? आप वेदांत नहीं पढ़ रहे हैं ।" चैतन्य महाप्रभु ने कहा, "हाँ, यह तथ्य है । मैं एेसा कर रहा हूँ क्योंकि मेरे गुरु महाराज ने मुझे मूढ के रुप में देखा ।" "वह कैसे ?" "उन्होंने कहा कि, गुरू मोरे मूर्ख देखि करिल शासन  ([[Vanisource:CC Adi 7.71|चैतन्य चरितामृत अादि ७.७१]]) । मेरे गुरु महाराज ने मुझे अव्वल दर्जे मुर्ख के रूप में देखा, और उन्होंने मुझे डाँटा ।" "कैसे उन्होंने आपको डाँटा?" अब, "तुम्हें वेदांत का अध्ययन करने का कोई अधिकार नहीं है । यह तुम्हारे लिए संभव नहीं है । तुम एक मूढ हो । बेहतर होगा कि तुम हरे कृष्ण मंत्र का जप करो।"


:हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवालम
तो उनका उद्देश्य क्या है ? उद्देश्य है, वर्तमान में, ये मूढ, कैसे वे वेदांत समझेंगे ? बेहतर है हरे कृष्ण मंत्र का जप करो । फिर तुम्हें सब ज्ञान मिल जाएगा ।
:कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
:([[Vanisource:CC Adi 17.21|चै च अादि १७।२१]])


इस युग में लोग इतने गिरे हुए हैं कि वे क्या वेदांत समझेंगे और किसके पास समय है वेदांत को पढ़ने के लिए ? तो बेहतर है वेदांत की शिक्षा लो जो सीधे कृष्ण कहते हैं, वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्य: ([[Vanisource:BG 15.15|भ गी १५।१५]])
:हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम एव केवलम
:कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
:([[Vanisource:CC Adi 17.21|चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१]])


तो वेदांत का ज्ञान है शब्दाद अनावृत्ति । शब्द-ब्रह्मा का जप करके हम मुक्त हो सकते हैं । तो यह, इसकी शास्त्रों में सिफारिश की गई है:
इस युग में लोग इतने गिरे हुए हैं कि वे वेदांत क्या समझेंगे और किसके पास समय है वेदांत को पढ़ने के लिए ? तो बेहतर है सीधे वेदांत की शिक्षा लो जैसा कृष्ण कहते हैं, वेदैश्च सर्वैर अहम एव वेद्य: ([[HI/BG 15.15|भ.गी. १५.१५]]) । तो वेदांत का ज्ञान शब्दाद अनावृत्ति है । शब्द-ब्रह्म का जप करके हम मुक्त हो सकते हैं । तो यह, इसकी शास्त्रों में संस्तुति की गई है: हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम एव केवलम कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा ([[Vanisource:CC Adi 17.21|चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१]]) ।  अगर हम वास्तव में रुचि रखते हैं कि कैसे इस भौतिक बंधन से मुक्त हों, जन्म-मृत्य-जरा-व्याधि ([[HI/BG 13.8-12|भ.गी. १३.९]]) ये समस्याएँ हैं - तो शास्त्र के अनुसार, महाजनों के अनुसार, हमें इस हरे कृष्ण महा मंत्र का जप करना चाहिए । यही हमारा, मेरे कहने का मतलब है, उद्देश्य है ।  
 
:हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवालम
:कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
:([[Vanisource:CC Adi 17.21|चै च अादि १७।२१]])
 
अगर हम वास्तव में रुचि रखते हैं कि कैसे इस भौतिक बंधन से मुक्त हो सकते हैं, जन्म-मृत्य-जरा-व्याधी ([[Vanisource:BG 13.9|भ गी १३।९]]) ये समस्याएं हैं - तो शास्त्र के अनुसार, महाजनों के अनुसार, हमें इस हरे कृष्ण महा मंत्र का जप करना चाहिए । यही हमारा, मेरे कहने का मतलब है, उद्देश्य है ।
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture on BG 3.27 -- Madras, January 1, 1976

कृष्ण, जब वह इस ग्रह पर उपस्थित थे, उन्होंने व्यावहारिक रूप से प्रदर्शित किया, कि वे हर किसी को नियंत्रित करते हैं, लेकिन कोई भी उन्हें नियंत्रित नहीं करता है । यह ईश्वर है । इसे ही परमेश्वर कहा जाता है । ईश्वर हर कोई हो सकता है । भगवान हर कोई हो सकता है । लेकिन परम भगवान कृष्ण हैं । नित्यो नित्यानाम् चेतनश चेतनानाम् (कठोपनिषद २.२.१३) । इसलिए हमें बहुत अच्छी तरह से यह समझना चाहिए, और यह बहुत मुश्किल भी नहीं है । वही नियंत्रक हमारे सामने आ रहे हैं हममें से एक के रूप में, मनुष्य के रूप में । लेकिन हम उन्हें स्वीकार नहीं कर रहे हैं । यही कठिनाई है । अवजानन्ति माम मूढा मानुषीम तनुम आश्रितम (भ.गी. ९.११) । यह बहुत अफ़सोस की बात है । कृष्ण कहते हैं कि, "मैं प्रदर्शन करने के लिए आ रहा हूँ कि कौन सर्वोच्च नियंत्रक है, और मैं मनुष्य की भूमिका निभा रहा हूँ ताकि हर कोई समझ सके, मैं भगवद्गीता में शिक्षा दे रहा हूँ । फिर भी, ये मूर्ख, दुष्ट, वे नहीं समझ पा रहे हैं । " तो ईश्वर हैं ।

हम भगवान का नाम बता रहे हैं, कृष्ण । भगवान का पता भी, वृन्दावन, भगवान के पिता का नाम, माता का नाम । तो क्यों ... भगवान का पता लगाने में कठिनाई कहाँ है ? लेकिन वे स्वीकार नहीं करेंगे । वे स्वीकार नहीं करेंगे । मूढा । वे मूढा के रूप में वर्णित हैं । आज सुबह यह पत्रकार मुझसे पूछ रहे थे,"अापके आंदोलन का उद्देश्य क्या है ?" तो मैंने कहा, "मूढों को शिक्षित करना, बस ।" यही कृष्णभावनामृत आंदोलन का सारांश है कि हम मूढों को शिक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं । और मूढा कौन है ? यह कृष्ण द्वारा वर्णित है । न माम दुष्कृतिनो मूढ़ा प्रपद्यन्ते नराधमा: (भ.गी. ७.१५) । क्यों ? माययापहृत-ज्ञाना: । क्यों माया ने उनका ज्ञान हर लिया है ? अासुरम भावम अाश्रित: । हमारे पास बहुत ही सरल परीक्षण है, जैसे एक रसायणज्ञ छोटे टेस्ट ट्यूब से विश्लेषण कर सकता है कि प्रवाही क्या है । तो हम बहुत बुद्धिमान नहीं हैं । हम भी कई मूढों में से एक हैं, लेकिन हमारे पास टेस्ट ट्यूब है । कृष्ण कहते हैं ... हम मूढ रहना पसंद करते हैं, और कृष्ण से शिक्षा लेते हैं । यह कृष्णभावनामृत है । हम अपने अाप को बहुत शिक्षित विद्वान और बहुत बहुश्रुत विद्वान नहीं बताते हैं की - "हम सब कुछ जानते हैं ।"

नहीं । चैतन्य महाप्रभु, उन्होंने भी मूढ बने रहने की कोशिश की । वे, जब उन्होंने बात की थी प्रकाशानन्द सरस्वती के साथ ... वे मायावादी संन्यासी थे । चैतन्य महाप्रभु नृत्य और जप कर रहे थे । तो मायावादी संन्यासी उनकी आलोचना कर रहे थे, "यह संन्यासी है, और वह बस जप कर रहे हैं और कुछ भावुक व्यक्तियों के साथ नाच रहे हैं । यह क्या है ? " इसलिए एक बैठक आयोजित की गई प्रकाशानन्द सरस्वती और चैतन्य महाप्रभु के बीच । उस बैठक में चैतन्य महाप्रभु ने एक विनम्र संन्यासी के रूप में भाग लिया । तो प्रकाशानन्द सरस्वती ने उनसे पूछताछ की, "महोदय, आप एक संन्यासी हैं । आपका कर्तव्य है हमेशा वेदांत का अध्ययन करना । तो यह कैसे है, आप जप और नृत्य कर रहे हैं ? आप वेदांत नहीं पढ़ रहे हैं ।" चैतन्य महाप्रभु ने कहा, "हाँ, यह तथ्य है । मैं एेसा कर रहा हूँ क्योंकि मेरे गुरु महाराज ने मुझे मूढ के रुप में देखा ।" "वह कैसे ?" "उन्होंने कहा कि, गुरू मोरे मूर्ख देखि करिल शासन (चैतन्य चरितामृत अादि ७.७१) । मेरे गुरु महाराज ने मुझे अव्वल दर्जे मुर्ख के रूप में देखा, और उन्होंने मुझे डाँटा ।" "कैसे उन्होंने आपको डाँटा?" अब, "तुम्हें वेदांत का अध्ययन करने का कोई अधिकार नहीं है । यह तुम्हारे लिए संभव नहीं है । तुम एक मूढ हो । बेहतर होगा कि तुम हरे कृष्ण मंत्र का जप करो।"

तो उनका उद्देश्य क्या है ? उद्देश्य है, वर्तमान में, ये मूढ, कैसे वे वेदांत समझेंगे ? बेहतर है हरे कृष्ण मंत्र का जप करो । फिर तुम्हें सब ज्ञान मिल जाएगा ।

हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम एव केवलम
कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
(चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१) ।

इस युग में लोग इतने गिरे हुए हैं कि वे वेदांत क्या समझेंगे और किसके पास समय है वेदांत को पढ़ने के लिए ? तो बेहतर है सीधे वेदांत की शिक्षा लो जैसा कृष्ण कहते हैं, वेदैश्च सर्वैर अहम एव वेद्य: (भ.गी. १५.१५) । तो वेदांत का ज्ञान शब्दाद अनावृत्ति है । शब्द-ब्रह्म का जप करके हम मुक्त हो सकते हैं । तो यह, इसकी शास्त्रों में संस्तुति की गई है: हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम एव केवलम कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा (चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१) । अगर हम वास्तव में रुचि रखते हैं कि कैसे इस भौतिक बंधन से मुक्त हों, जन्म-मृत्य-जरा-व्याधि (भ.गी. १३.९) ये समस्याएँ हैं - तो शास्त्र के अनुसार, महाजनों के अनुसार, हमें इस हरे कृष्ण महा मंत्र का जप करना चाहिए । यही हमारा, मेरे कहने का मतलब है, उद्देश्य है ।