HI/Prabhupada 0384 - गौरंगा बोलिते होबे तात्पर्य: Difference between revisions

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यह नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा गाया एक गीत है । वे कहते हैं, "वह दिन कब आएगा, जब मैं बस भगवान चैतन्य का नाम गाऊँगा, और मेरे शरीर में कंपन होगी? " गौरंगा बोलिते होबे पुलक-शरीर । पुलक शरीर का मतलब है शरीर का कांपना । जब कोई तथ्यात्मक, ट्रान्सेंडैंटल मंच पर स्थित है कभी कभी आठ प्रकार के लक्षण होते हैं: रोना, एक पागल की तरह बात करना, शरीर में कंपन, किसी भी अन्य पुरुषों की परवाह किए बिना नाचना ... यह लक्षण स्वचालित रूप से विकसित होते हैं । उनका कृत्रिम रूप से अभ्यास नहीं किया जा सकता है । तो नरोत्तम दास ठाकुर उस दिन के लिए इच्छुक हैं, एसा नहीं है कि कृत्रिम रूप से नकल करें । यह सिफारिश वे नहीं करते हैं । वे कहते हैं "वह दिन कब आएगा, कि बस भगवान चैतन्य का नाम लेने से, मेरे शरीर में कंपन होगी? " गौरंगा बोलिते होबे पुलक-शरीर । और हरि हरि बोलिते: "और जैसे ही मैं मंत्र का जाप करता हूँ "'हरि हरि,' या 'हरे कृष्ण,' मेरी आँखों से आँसू बहेंगे ।" " हरि हरि बोलिते नयने बाबे नीर । नीर का मतलब है पानी । इसी तरह, चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा कि "वह दिन कब आएगा?" हमें बस कामना करनी चाहिए । लेकिन, श्री कृष्ण की कृपा से, अगर हम उस मंच तक पहुंच सकते हैं, यह लक्षण स्वचालित रूप से आ जाऍगे । लेकिन नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैंयह संभव नहीं है, उस मंच तक पहुँचने के लिए भौतिक अासक्ति से मुक्त हुए बिना । इसलिए वे कहते हैं , आर कोबे निताई-चंदेर, कोरुना हौबे : "वह दिन कब आएगा, जब भगवान नित्यानंद की दया मुझ पर बरसेगी ताकि ..." विषय छाडिया । आर काबे निताई-चंदेर कोरुना हौबे, संसार-बासना मोर कबे तुच्छ होबे । संसार-बासना का मतलब है भौतिक आनंद की इच्छा । संसार-बासना मोर कबे तुच्छ होबे: "कब मेरी भौतिक आनंद की इच्छा नगण्य हो जाएगी, महत्वहीन ।" तुच्छ । तुच्छ का मतलब है जिसका हम कोई मूल्य नहीं लगाते हैं । "दूर फेंक दो ।" इसी तरह आध्यात्मिक उन्नति संभव है जब हम आश्वस्त हैं, कि "इस भौतिक दुनिया और भौतिक खुशी का कोई मूल्य नहीं है ।" यह मेरे जीवन को कोई वास्तविक आनंद नहीं दे सकता है ।" यह विश्वास बहुत आवश्यक है । संसार-बासना मोर कबे तुच्छ होबे । और वे यह भी कहते हैं कि, " कब मैं भौतिक भोग की इच्छाओं से मुक्त हो जाऊँगा, तब वृन्दावन की वास्तविक प्रकृति को देखना संभव होगा ।" विषय छाडिया कबे शुद्ध हबे मन: "कब मेरा मन पूरी तरह से शुद्ध हो जाएगा, भौतिक संदूषण से पवित्र, उस समय मेरा वृन्दावन को देखना संभव होगा ।" दूसरे शब्दों में हम बल द्वारा वृन्दावन जाकर नहीं रह सकते हैं, और दिव्य आनंद को प्राप्त कर सकते हैं । नहीं । हमें अपने मन को सभी भौतिक इच्छाओं से मुक्त करना होगा । फिर हम वृन्दावन में रह सकते हैं और आवासीय लाभ स्वाद कर सकते हैं । तो नरोत्तम दास ठाकुर का कहना है कि विषय छाडिया कबे, शुद्ध हबे मन: "कब मेरा मन में इस भौतिक आनंद के प्रदूषण से मुक्त होगा और मैं शुद्ध हो जाऊँगा , तब मेरा वृन्दावन को देखना संभव होगा । " अन्यथा यह संभव नहीं है । और फिर कहते हैं कि वृन्दावन जाने का मतलब है राधा और कृष्ण की दिव्य लीलाओं को समझना । यह कैसे संभव होगा? इसलिए वे कहते हैं, रूप-रघुनाथ-पदे हौबे अाकुटि । रूप, रूप गोस्वामी, रूप गोस्वामी से शुरु होके रघुनाथ दासा गोस्वामी तक छह गोस्वामी थे : रूप, सनातन, गोपाल भट्ट, रघुनाथ भट्ट, जीव गोस्वामी, रघुनाथ दाम गोस्वामी । तो वे कहते हैं, रूप-रघुनाथ-पदे "रूप गोस्वामी से शुरु होके रघुनाथ दासा गोस्वामी तक," पदे, "उनके चरण कमलों में । कब मैं उनके चरण कमलों से अासक्त हो जाऊँगा । रूप-रघुनाथ-पदे, हौबे अाकुटि । अाकुटि, उत्सुकता । वह उत्सुकता क्या है? इसका मतलब है कि राधा कृष्ण को समझना गोस्वामियों के मार्गदर्शन के माध्यम से । हमें खुद के प्रयास से राधा कृष्ण को समझने की कोशिश नहीं करनी चाहिए । यह उसकी मदद नहीं करेगा । इन गोस्वामीयों नें हमें दिशा दी है, , जैसे भक्ति-रसामृत-सिंधु में हमें पालन करना है, कदम के बाद कदम, कि कैसे प्रगति करें । तो तब एक भाग्यशाली दिन अाएगा जब हम समझने में सक्षम होंगे राधा और कृष्ण के बीच लीलाओं या प्यार के मामले क्या हैं । अन्यथा, अगर हम साधारण लड़का और लड़की के रूप में लेते हैं, उनकी प्यार की भावनाओं के अादान प्रदान को, तो हम गलत समझेंगे । फिर प्रकृत सहजिया का निर्माण होगा, वृन्दावन के पीड़ित । तो नरोत्तम दास ठाकुर नें हमें दिशा दी है, कैसे हम राधा और कृष्ण के साथ से जुड़ कर उच्चतम पूर्णता के मुकाम तक पहुंचा सकते हैं । पहली बात यह है कि हमें श्री चैतन्य महाप्रभु के साथ बहुत संलग्न होना चाहिए । यही नेतृत्व करेंगा । क्योंकि वे अाए थे श्री कृष्ण भावनामृत की समझ देने के लिए । इसलिए सबसे पहले श्री चैतन्य महाप्रभु को आत्मसमर्पण करना होगा । श्री चैतन्य महाप्रभु को समर्पण करके, नित्यानंद प्रभु प्रसन्न होंगे, और उन्हे प्रसन्न करके, हम भौतिक इच्छाओं से मुक्त होंगे । और जब भौतिक इच्छाऍ नहीं रहती हैं, तो हम वृन्दावन में प्रवेश करने में सक्षम हो जाएँगे । और वृन्दावन में प्रवेश करने के बाद जब हम छह गौस्वामी की सेवा करने के लिए उत्सुक होते हैं, तो हम राधा और कृष्ण की लीलाओं को समझने के मंच तक पहुँच सकते हैं ।
यह नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा गाया हुआ एक गीत है । वे कहते हैं, "वह दिन कब आएगा, जब मैं बस भगवान चैतन्य का नाम गाऊँगा, और मेरे शरीर में कंपन होगी? " गौरंग बोलिते होबे पुलक-शरीर । पुलक शरीर का मतलब है शरीर का कांपना । जब कोई वास्तव में दिव्य मंच पर स्थित है, कभी कभी आठ प्रकार के लक्षण होते हैं: रोना, एक पागल की तरह बात करना, शरीर में कंपन, किसी भी अन्य पुरुषों की परवाह किए बिना नाचना ... यह लक्षण स्वचालित रूप से विकसित होते हैं । उनका कृत्रिम रूप से अभ्यास नहीं किया जा सकता है ।  
 
तो नरोत्तम दास ठाकुर उस दिन के लिए इच्छुक हैं, एसा नहीं है कि कृत्रिम रूप से नकल करें । यह सिफारिश वे नहीं करते हैं । वे कहते हैं "वह दिन कब आएगा, कि बस भगवान चैतन्य का नाम लेने से, मेरे शरीर में कंपन होगी? " गौरंग बोलिते होबे पुलक-शरीर । और हरि हरि बोलिते: "और जैसे ही मैं मंत्र का जाप करता हूँ 'हरि हरि,' या 'हरे कृष्ण,' मेरी आँखों से आँसू बहेंगे ।" " हरि हरि बोलिते नयने बाबे नीर । नीर का मतलब है पानी ।  
 
इसी तरह, चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा कि "वह दिन कब आएगा?" हमें बस कामना करनी चाहिए । लेकिन, श्री कृष्ण की कृपा से, अगर, हम उस मंच तक पहुंच सकते हैं, यह लक्षण स्वचालित रूप से आ जाऍगे । लेकिन नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं यह संभव नहीं है, उस मंच तक पहुँचने के लिए भौतिक अासक्ति से मुक्त हुए बिना । इसलिए वे कहते हैं, आर कबे निताई-चंदेर, कोरुणा होइबे: "वह दिन कब आएगा, जब भगवान नित्यानंद की दया मुझ पर बरसेगी ताकि ..." विषय छाडिया । आर काबे निताई-चंदेर कोरुणा होइबे, संसार-बासना मोर कबे तुच्छ हबे । संसार-बासना का मतलब है भौतिक आनंद की इच्छा । संसार-बासना मोर कबे तुच्छ हबे: "कब मेरी भौतिक आनंद की इच्छा नगण्य हो जाएगी, महत्वहीन ।" तुच्छ । तुच्छ का मतलब है जिसका हम कोई मूल्य नहीं लगाते हैं । "उसे फेंक दो ।"  
 
इसी तरह आध्यात्मिक उन्नति संभव है जब हम आश्वस्त हैं, कि "इस भौतिक दुनिया और भौतिक खुशी का कोई मूल्य नहीं है ।" यह मेरे जीवन को कोई वास्तविक आनंद नहीं दे सकता है ।" यह विश्वास बहुत आवश्यक है । संसार-बासना मोर कबे तुच्छ हबे । और वे यह भी कहते हैं कि, "कब मैं भौतिक भोग की इच्छाओं से मुक्त हो जाऊँगा, तब वृन्दावन की वास्तविक प्रकृति को देखना संभव होगा ।" विषय छाडिया कबे शुद्ध हबे मन: "जब मेरा मन पूरी तरह से शुद्ध हो जाएगा, भौतिक दूषण से पवित्र, उस समय मेरा वृन्दावन को देखना संभव होगा ।" दूसरे शब्दों में हम बल द्वारा वृन्दावन जाकर नहीं रह सकते हैं, और दिव्य आनंद को प्राप्त कर सकते हैं । नहीं । हमें अपने मन को सभी भौतिक इच्छाओं से मुक्त करना होगा । फिर हम वृन्दावन में रह सकते हैं और आवासीय लाभ स्वाद कर सकते हैं ।  
 
तो नरोत्तम दास ठाकुर का कहना है कि विषय छाडिया कबे, शुद्ध हबे मन: "जब मेरा मन में इस भौतिक आनंद के प्रदूषण से मुक्त होगा और मैं शुद्ध हो जाऊँगा, तब मेरा वृन्दावन को देखना संभव होगा । " अन्यथा यह संभव नहीं है । और फिर कहते हैं कि वृन्दावन जाने का मतलब है राधा और कृष्ण की दिव्य लीलाओं को समझना । यह कैसे संभव होगा? इसलिए वे कहते हैं, रूप-रघुनाथ-पदे होइबे अाकुटि । रूप, रूप गोस्वामी, रूप गोस्वामी से ले कर रघुनाथ दास गोस्वामी तक, छह गोस्वामी थे: रूप, सनातन, गोपाल भट्ट, रघुनाथ भट्ट, जीव गोस्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी । तो वे कहते हैं, रूप-रघुनाथ-पदे "रूप गोस्वामी से शुरु होके रघुनाथ दास गोस्वामी तक," पदे, "उनके चरण कमलों में । कब मैं उनके चरण कमलों से अासक्त हो जाऊँगा । रूप-रघुनाथ-पदे, होइबे अाकुटि । अाकुटि, उत्सुकता । वह उत्सुकता क्या है? इसका मतलब है कि राधा कृष्ण को समझना गोस्वामीयों के मार्गदर्शन के माध्यम से । हमें खुद के प्रयास से राधा कृष्ण को समझने की कोशिश नहीं करनी चाहिए । यह उसकी मदद नहीं करेगा ।  
 
इन गोस्वामीयों नें हमें दिशा दी है, जैसे भक्ति-रसामृत-सिंधु में, हमें पालन करना है, कदम के बाद कदम, कि कैसे प्रगति करें । तो तब एक भाग्यशाली दिन अाएगा जब हम समझने में सक्षम होंगे, राधा और कृष्ण के बीच लीलाओं या प्यार के मामले क्या हैं । अन्यथा, अगर हम साधारण लड़का और लड़की के रूप में लेते हैं, उनकी प्यार की भावनाओं के अादान प्रदान को, तो हम गलत समझेंगे । फिर प्रकृत सहजिया का निर्माण होगा, वृन्दावन के पीड़ित । तो नरोत्तम दास ठाकुर नें हमें दिशा दी है, कैसे हम राधा और कृष्ण के साथ से जुड़ कर उच्चतम पूर्णता के मुकाम तक पहुंच सकते हैं ।  
 
पहली बात यह है कि हमें श्री चैतन्य महाप्रभु के साथ बहुत संलग्न होना चाहिए । यही नेतृत्व करेंगा । क्योंकि वे अाए थे कृष्ण भावनामृत की समझ देने के लिए । इसलिए सबसे पहले श्री चैतन्य महाप्रभु को आत्मसमर्पण करना होगा । श्री चैतन्य महाप्रभु को समर्पण करके, नित्यानंद प्रभु प्रसन्न होंगे, और उन्हे प्रसन्न करके, हम भौतिक इच्छाओं से मुक्त होंगे । और जब भौतिक इच्छाऍ नहीं रहती हैं, तो हम वृन्दावन में प्रवेश करने में सक्षम हो जाएँगे । और वृन्दावन में प्रवेश करने के बाद जब हम छह गौस्वामी की सेवा करने के लिए उत्सुक होते हैं, तो हम राधा और कृष्ण की लीलाओं को समझने के मंच तक पहुँच सकते हैं ।  
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Latest revision as of 15:07, 9 October 2018



Purport to Gauranga Bolite Habe -- Los Angeles, January 5, 1969

यह नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा गाया हुआ एक गीत है । वे कहते हैं, "वह दिन कब आएगा, जब मैं बस भगवान चैतन्य का नाम गाऊँगा, और मेरे शरीर में कंपन होगी? " गौरंग बोलिते होबे पुलक-शरीर । पुलक शरीर का मतलब है शरीर का कांपना । जब कोई वास्तव में दिव्य मंच पर स्थित है, कभी कभी आठ प्रकार के लक्षण होते हैं: रोना, एक पागल की तरह बात करना, शरीर में कंपन, किसी भी अन्य पुरुषों की परवाह किए बिना नाचना ... यह लक्षण स्वचालित रूप से विकसित होते हैं । उनका कृत्रिम रूप से अभ्यास नहीं किया जा सकता है ।

तो नरोत्तम दास ठाकुर उस दिन के लिए इच्छुक हैं, एसा नहीं है कि कृत्रिम रूप से नकल करें । यह सिफारिश वे नहीं करते हैं । वे कहते हैं "वह दिन कब आएगा, कि बस भगवान चैतन्य का नाम लेने से, मेरे शरीर में कंपन होगी? " गौरंग बोलिते होबे पुलक-शरीर । और हरि हरि बोलिते: "और जैसे ही मैं मंत्र का जाप करता हूँ 'हरि हरि,' या 'हरे कृष्ण,' मेरी आँखों से आँसू बहेंगे ।" " हरि हरि बोलिते नयने बाबे नीर । नीर का मतलब है पानी ।

इसी तरह, चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा कि "वह दिन कब आएगा?" हमें बस कामना करनी चाहिए । लेकिन, श्री कृष्ण की कृपा से, अगर, हम उस मंच तक पहुंच सकते हैं, यह लक्षण स्वचालित रूप से आ जाऍगे । लेकिन नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं यह संभव नहीं है, उस मंच तक पहुँचने के लिए भौतिक अासक्ति से मुक्त हुए बिना । इसलिए वे कहते हैं, आर कबे निताई-चंदेर, कोरुणा होइबे: "वह दिन कब आएगा, जब भगवान नित्यानंद की दया मुझ पर बरसेगी ताकि ..." विषय छाडिया । आर काबे निताई-चंदेर कोरुणा होइबे, संसार-बासना मोर कबे तुच्छ हबे । संसार-बासना का मतलब है भौतिक आनंद की इच्छा । संसार-बासना मोर कबे तुच्छ हबे: "कब मेरी भौतिक आनंद की इच्छा नगण्य हो जाएगी, महत्वहीन ।" तुच्छ । तुच्छ का मतलब है जिसका हम कोई मूल्य नहीं लगाते हैं । "उसे फेंक दो ।"

इसी तरह आध्यात्मिक उन्नति संभव है जब हम आश्वस्त हैं, कि "इस भौतिक दुनिया और भौतिक खुशी का कोई मूल्य नहीं है ।" यह मेरे जीवन को कोई वास्तविक आनंद नहीं दे सकता है ।" यह विश्वास बहुत आवश्यक है । संसार-बासना मोर कबे तुच्छ हबे । और वे यह भी कहते हैं कि, "कब मैं भौतिक भोग की इच्छाओं से मुक्त हो जाऊँगा, तब वृन्दावन की वास्तविक प्रकृति को देखना संभव होगा ।" विषय छाडिया कबे शुद्ध हबे मन: "जब मेरा मन पूरी तरह से शुद्ध हो जाएगा, भौतिक दूषण से पवित्र, उस समय मेरा वृन्दावन को देखना संभव होगा ।" दूसरे शब्दों में हम बल द्वारा वृन्दावन जाकर नहीं रह सकते हैं, और दिव्य आनंद को प्राप्त कर सकते हैं । नहीं । हमें अपने मन को सभी भौतिक इच्छाओं से मुक्त करना होगा । फिर हम वृन्दावन में रह सकते हैं और आवासीय लाभ स्वाद कर सकते हैं ।

तो नरोत्तम दास ठाकुर का कहना है कि विषय छाडिया कबे, शुद्ध हबे मन: "जब मेरा मन में इस भौतिक आनंद के प्रदूषण से मुक्त होगा और मैं शुद्ध हो जाऊँगा, तब मेरा वृन्दावन को देखना संभव होगा । " अन्यथा यह संभव नहीं है । और फिर कहते हैं कि वृन्दावन जाने का मतलब है राधा और कृष्ण की दिव्य लीलाओं को समझना । यह कैसे संभव होगा? इसलिए वे कहते हैं, रूप-रघुनाथ-पदे होइबे अाकुटि । रूप, रूप गोस्वामी, रूप गोस्वामी से ले कर रघुनाथ दास गोस्वामी तक, छह गोस्वामी थे: रूप, सनातन, गोपाल भट्ट, रघुनाथ भट्ट, जीव गोस्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी । तो वे कहते हैं, रूप-रघुनाथ-पदे "रूप गोस्वामी से शुरु होके रघुनाथ दास गोस्वामी तक," पदे, "उनके चरण कमलों में । कब मैं उनके चरण कमलों से अासक्त हो जाऊँगा । रूप-रघुनाथ-पदे, होइबे अाकुटि । अाकुटि, उत्सुकता । वह उत्सुकता क्या है? इसका मतलब है कि राधा कृष्ण को समझना गोस्वामीयों के मार्गदर्शन के माध्यम से । हमें खुद के प्रयास से राधा कृष्ण को समझने की कोशिश नहीं करनी चाहिए । यह उसकी मदद नहीं करेगा ।

इन गोस्वामीयों नें हमें दिशा दी है, जैसे भक्ति-रसामृत-सिंधु में, हमें पालन करना है, कदम के बाद कदम, कि कैसे प्रगति करें । तो तब एक भाग्यशाली दिन अाएगा जब हम समझने में सक्षम होंगे, राधा और कृष्ण के बीच लीलाओं या प्यार के मामले क्या हैं । अन्यथा, अगर हम साधारण लड़का और लड़की के रूप में लेते हैं, उनकी प्यार की भावनाओं के अादान प्रदान को, तो हम गलत समझेंगे । फिर प्रकृत सहजिया का निर्माण होगा, वृन्दावन के पीड़ित । तो नरोत्तम दास ठाकुर नें हमें दिशा दी है, कैसे हम राधा और कृष्ण के साथ से जुड़ कर उच्चतम पूर्णता के मुकाम तक पहुंच सकते हैं ।

पहली बात यह है कि हमें श्री चैतन्य महाप्रभु के साथ बहुत संलग्न होना चाहिए । यही नेतृत्व करेंगा । क्योंकि वे अाए थे कृष्ण भावनामृत की समझ देने के लिए । इसलिए सबसे पहले श्री चैतन्य महाप्रभु को आत्मसमर्पण करना होगा । श्री चैतन्य महाप्रभु को समर्पण करके, नित्यानंद प्रभु प्रसन्न होंगे, और उन्हे प्रसन्न करके, हम भौतिक इच्छाओं से मुक्त होंगे । और जब भौतिक इच्छाऍ नहीं रहती हैं, तो हम वृन्दावन में प्रवेश करने में सक्षम हो जाएँगे । और वृन्दावन में प्रवेश करने के बाद जब हम छह गौस्वामी की सेवा करने के लिए उत्सुक होते हैं, तो हम राधा और कृष्ण की लीलाओं को समझने के मंच तक पहुँच सकते हैं ।