HI/Prabhupada 0397 - राधा कृष्ण बोल तात्पर्य: Difference between revisions
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"राधा कृष्ण" बोलो बोलो बोलो रे सोबाइ । यह ठाकुर भक्तिविनोद द्वारा गाया एक गीत है । यह कहा जाता है कि भगवान चैतन्य और नित्यानंद, वे नदिया शहर की सड़कों पर चल रहे हैं, इस अनुदेश को जपते हुए, हर किसी को संबोधित करते हुए । वे कहते हैं, "आप सब लोग, राधा कृष्ण या हरे कृष्ण का | "राधा कृष्ण" बोलो बोलो बोलो रे सोबाइ । यह ठाकुर भक्तिविनोद द्वारा गाया एक गीत है । यह कहा जाता है कि भगवान चैतन्य और नित्यानंद, वे नदिया शहर की सड़कों पर चल रहे हैं, इस अनुदेश को जपते हुए, हर किसी को संबोधित करते हुए । वे कहते हैं, "आप सब लोग, राधा कृष्ण या हरे कृष्ण का जप करें ।" "राधा कृष्ण" बोलो बोलो बोलो रे सोबाइ । "आप में से हर एक, केवल राधा कृष्ण या हरे कृष्ण का जप करो ।" यह निर्देश है । एइ शिक्षा दिया । भगवान चैतन्य और नित्यानंद, दोनों एक साथ, चलते अौर घूमते हुए सड़क पर, वे कहते हैं कि , "आप सभी केवल राधा कृष्ण कहो ।" | ||
एइ शिक्षा दिया, सब नदिया, फिरछे नेचे गौर-निताई । फिरछे, फिरछे का मतलब है चलना । सारे नदिया शहर में । वे यही सिखा रहे थे । एइ शिक्षा दिया, सब नदिया, फिरछे नेचे गौर-निताई । फिर वे कहते हैं, केनो मायार बोशे, जाच्छो भेशे । "तुम क्यों इस माया, भौतिक अज्ञान, की लहरों में बहे जा रहे हो ?" खाच्छो हाबुडुबु, भाई ।" और पूरे दिन और रात तुम चिंताओं से भरे हो, बस । जैसे एक आदमी जब उसे पानी में डाल दिया जाता है, कभी डूबता है, कभी ऊपर अाता है, लेकिन वह बहुत ही कठिन संघर्ष कर रहा है । इसी तरह, माया के सागर में, तुम क्यों इतना संघर्ष कर रहे हो ? कभी डूबना, कभी उपर अाना, कभी सुख अनुभव करना, कभी कोई सुख अनुभव न करना। दरअसल, कोई सुख नहीं है । पानी में, अगर तुम्हें पानी में ड़ाल दिया जाए, अौर अगर तुम कभी डूबते हो और कभी बाहर आते हो, तो इसका मतलब सुख नहीं है । कुछ समय के लिए बाहर आना, अस्थायी समय के लिए, और फिर से डूब जाना, यह सुख नहीं है ।" | |||
तो चैतन्य महाप्रभु की आज्ञा है, "तुम इतना क्यों परेशान हो रहे हो," मायार बोशे, "माया के प्रभाव में?" तो फिर क्या किया जाना चाहिए? वे कहते हैं कि जीव कृष्ण दास, ए-विश्वास, "केवल तुम यह विश्वास रखो कि तुम भगवान के सेवक हो, तुम कृष्ण के दास हो ।" जीव कृष्ण दास, ए- विश्वास, कोरले तो अार दुःख नाइ: "जैसे ही तुम इसे समझ जाते हो कि तुम भगवान के दास हो या कृष्ण के दास हो, तुरंत तुम्हारे सभी कष्ट खत्म हो जाते हैं। अब कोई परेशानी नहीं है।" तो यह अादेश भगवान चैतन्य द्वारा दिया जाता है सड़कों पर चलते हुए । जीव कृष्ण दास, ए विश्वास, कोरले तो अार दुःख नाइ | | |||
फिर भक्तिविनोद ठाकुर अपना व्यक्तिगत अनुभव देते हैं । वे कहते हैं, जाय सकल विपद, "मैं सभी प्रकार के खतरों से छूट गया ।" गाइ भक्तिविनोद । भक्तिविनोद ठाकुर, वे आचार्य हैं, वे अनुभवी हैं, वे कहते हैं कि, "जब भी मैं राधा कृष्ण या हरे कृष्ण मंत्र का जप करता हूँ, मैं सभी प्रकार के खतरों से मुक्त हो जाता हूँ ।" जाय सकल विपद, जखोन अामि अो-नाम गाइ, "जब मैं इस पवित्र नाम, हरे कृष्ण या राधा कृष्ण मंत्र का जप करता हूँ, तो तुरंत मेरी सभी विपदाएँ खत्म हो जाती हैं ।" "राधा कृष्ण" बोलो, संगे चलो । तो भगवान चैतन्य इसलिए कहते हैं कि, "मैं सड़क पर चल रहा हूँ और तुम से भीख मांगता हूँ । क्या है यह भीख ? कि तुम बस जपो । यह मेरा अनुरोध है, भीख । " "राधा कृष्ण" बोलो, संगे चलो । "और मेरा अनुसरण करो ।" "राधा कृष्ण" बोलो, संगे चलो, एइ मात्र भिक्षा चाइ, "मैं आपसे केवल यह योगदान चाहता हूँ, कि तुम हरे कृष्ण का जप करो और मेरा अनुसरण करो, ताकि इस भौतिक महासागर में तुम्हारा संघर्ष समाप्त हो जाए ।" | |||
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020
"राधा कृष्ण" बोलो बोलो बोलो रे सोबाइ । यह ठाकुर भक्तिविनोद द्वारा गाया एक गीत है । यह कहा जाता है कि भगवान चैतन्य और नित्यानंद, वे नदिया शहर की सड़कों पर चल रहे हैं, इस अनुदेश को जपते हुए, हर किसी को संबोधित करते हुए । वे कहते हैं, "आप सब लोग, राधा कृष्ण या हरे कृष्ण का जप करें ।" "राधा कृष्ण" बोलो बोलो बोलो रे सोबाइ । "आप में से हर एक, केवल राधा कृष्ण या हरे कृष्ण का जप करो ।" यह निर्देश है । एइ शिक्षा दिया । भगवान चैतन्य और नित्यानंद, दोनों एक साथ, चलते अौर घूमते हुए सड़क पर, वे कहते हैं कि , "आप सभी केवल राधा कृष्ण कहो ।"
एइ शिक्षा दिया, सब नदिया, फिरछे नेचे गौर-निताई । फिरछे, फिरछे का मतलब है चलना । सारे नदिया शहर में । वे यही सिखा रहे थे । एइ शिक्षा दिया, सब नदिया, फिरछे नेचे गौर-निताई । फिर वे कहते हैं, केनो मायार बोशे, जाच्छो भेशे । "तुम क्यों इस माया, भौतिक अज्ञान, की लहरों में बहे जा रहे हो ?" खाच्छो हाबुडुबु, भाई ।" और पूरे दिन और रात तुम चिंताओं से भरे हो, बस । जैसे एक आदमी जब उसे पानी में डाल दिया जाता है, कभी डूबता है, कभी ऊपर अाता है, लेकिन वह बहुत ही कठिन संघर्ष कर रहा है । इसी तरह, माया के सागर में, तुम क्यों इतना संघर्ष कर रहे हो ? कभी डूबना, कभी उपर अाना, कभी सुख अनुभव करना, कभी कोई सुख अनुभव न करना। दरअसल, कोई सुख नहीं है । पानी में, अगर तुम्हें पानी में ड़ाल दिया जाए, अौर अगर तुम कभी डूबते हो और कभी बाहर आते हो, तो इसका मतलब सुख नहीं है । कुछ समय के लिए बाहर आना, अस्थायी समय के लिए, और फिर से डूब जाना, यह सुख नहीं है ।"
तो चैतन्य महाप्रभु की आज्ञा है, "तुम इतना क्यों परेशान हो रहे हो," मायार बोशे, "माया के प्रभाव में?" तो फिर क्या किया जाना चाहिए? वे कहते हैं कि जीव कृष्ण दास, ए-विश्वास, "केवल तुम यह विश्वास रखो कि तुम भगवान के सेवक हो, तुम कृष्ण के दास हो ।" जीव कृष्ण दास, ए- विश्वास, कोरले तो अार दुःख नाइ: "जैसे ही तुम इसे समझ जाते हो कि तुम भगवान के दास हो या कृष्ण के दास हो, तुरंत तुम्हारे सभी कष्ट खत्म हो जाते हैं। अब कोई परेशानी नहीं है।" तो यह अादेश भगवान चैतन्य द्वारा दिया जाता है सड़कों पर चलते हुए । जीव कृष्ण दास, ए विश्वास, कोरले तो अार दुःख नाइ |
फिर भक्तिविनोद ठाकुर अपना व्यक्तिगत अनुभव देते हैं । वे कहते हैं, जाय सकल विपद, "मैं सभी प्रकार के खतरों से छूट गया ।" गाइ भक्तिविनोद । भक्तिविनोद ठाकुर, वे आचार्य हैं, वे अनुभवी हैं, वे कहते हैं कि, "जब भी मैं राधा कृष्ण या हरे कृष्ण मंत्र का जप करता हूँ, मैं सभी प्रकार के खतरों से मुक्त हो जाता हूँ ।" जाय सकल विपद, जखोन अामि अो-नाम गाइ, "जब मैं इस पवित्र नाम, हरे कृष्ण या राधा कृष्ण मंत्र का जप करता हूँ, तो तुरंत मेरी सभी विपदाएँ खत्म हो जाती हैं ।" "राधा कृष्ण" बोलो, संगे चलो । तो भगवान चैतन्य इसलिए कहते हैं कि, "मैं सड़क पर चल रहा हूँ और तुम से भीख मांगता हूँ । क्या है यह भीख ? कि तुम बस जपो । यह मेरा अनुरोध है, भीख । " "राधा कृष्ण" बोलो, संगे चलो । "और मेरा अनुसरण करो ।" "राधा कृष्ण" बोलो, संगे चलो, एइ मात्र भिक्षा चाइ, "मैं आपसे केवल यह योगदान चाहता हूँ, कि तुम हरे कृष्ण का जप करो और मेरा अनुसरण करो, ताकि इस भौतिक महासागर में तुम्हारा संघर्ष समाप्त हो जाए ।"