HI/Prabhupada 0435 - हम इन सभी सांसारिक समस्याओं से हैरान हैं, जो सभी झूठी हैं

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Lecture on BG 2.8-12 -- Los Angeles, November 27, 1968

भक्त: "मुझे कोई साधन नहीं मिल रहा है अपने दुख को मिटाने के लिए जो मेरे इन्द्रियों को सुखा रहा है । मैं इसे नष्ट करने में सक्षम नहीं हो पाऊँगा, चाहे मैं पृथ्वी पर एक बेजोड़ राज्य क्यों न जीत लूँ, जिसकी संप्रभुता स्वर्ग में देवताओं की तरह हो (भ गी २।८) संजय ने कहा: इस प्रकार बोल कर, अर्जुन, दुश्मन के ताड़क नें कृष्ण, गोविंद से कहा, 'मैं युद्ध नहीं करूँगा' और चुप हो गए । (भ गी २।९) हे भरत के वंशज, उस समय कृष्ण , मुस्कुराते हुए दोनो सेनाओं के बीच में, यह शब्द कहे पीडित अर्जुन से (भ गी २।१०) । धन्य प्रभु ने कहा ... "

प्रभुपाद: तो जब हम एक खतरनाक स्थिति में बहुत गंभीर हो जाते हैं, जैसे हम खो गए हों, लेकिन कृष्ण मुस्कुराते हैं । तुम देख रहे हो? कभी कभी हमें लगता है ... यही भ्रम कहा जाता है । वही उदाहरण, सपने में एक आदमी रो रहा है, "बाघ है, बाघ है । यह मुझे खा रहा है" और आदमी जब जागता है, जो वह मुस्कुराता है, "कहां बाघ है? बाघ है कहाँ?" और यह आदमी रो रहा है, "बाघ, बाघ, बाघ ।" इसी तरह, हम जब बहुत ज्यादा हैरान होते हैं ... नेताओं की तरह, जब वे राजनीतिक स्थिति में कभी कभी हैरान होते हैं और दावा करते हैं, " यह मेरी ज़मीन है, मेरा देश है", और अन्य पार्टी भी दावा करती है, "यह मेरी ज़मीन है, मेरा देश है," और वे बहुत गंभीरता से लड़ रहे हैं. कृष्ण मुस्कुराते हैं । "क्या ये बकवास दावा कर रहे हैं, 'मेरा देश, मेरी ज़मीन ?" यह मेरा (कृष्ण का) देश है, और वे दावा कर रहे हैं 'मेरा देश' और लड़ रहे हैं ।" दरअसल, भूमि कृष्ण के अंतर्गत आती है, लेकिन यह लोग, भ्रम मे हैं, दावा करते हैं, "यह मेरी जमीन है, यह मेरा देश है" भूलते हुए कि वह कितने दिन इस देश का होके रहेगा । भ्रम इसे ही कहा जाता है । तो यह हमारी स्थिति है । हमारी वास्तविक स्थिति को समझे बिना हम इन सभी सांसारिक समस्याओं से हैरान हैं, जो सभी झूठे हैं । जनस्य मोहो अयम अहम ममेति (श्री भ ५।५।८) मोह, मोह का मतलब है माया । यह भ्रम है । तो हर कोई इस भ्रम में है । तो जो बुद्धिमान है वह समझ सकता है कि यह सांसारिक स्थिति केवल भ्रम है, ... जो मनगढ़ंत विचार मेरे मन मे हैं, "मैं" अौर "मेरा" के सिद्धांत पर आधारित, यह सब भ्रम है । तो, बुद्धिमान है जो इस भ्रम से बाहर निकलने के लिए , वह एक आध्यात्मिक गुरु को समर्पण करता है । यह अर्जुन द्वारा उदाहरण दिया जा रहा है । जब वह बहुत उलझन में हो ... वह दोस्त के रूप में कृष्ण के साथ बात कर रहे थे, लेकिन उन्होंने देखा कि "यह दोस्ताना बात मेरे प्रश्न का समाधान नहीं करेगा ।" उन्होंने कृष्ण का चयन किया क्योंकि कृष्ण का मूल्य वह जानते थे । कम से कम, उन्हे पता होना चाहिए । वह दोस्त हैं । और वह जानते हैं कि कृष्ण स्वीकार किया जात हैं ... "हालांकि वह मेरे दोस्त के रूप में व्यवहार कर रहे हैं , लेकिन महान अधिकारियों द्वारा कृष्ण देवत्व के परम व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार किए जाते हैं ।" यह अर्जुन जानते थे । तो उन्होंने कहा कि, " मैं इतना हैरान हूँ कि मैं समझ नहीं सकता । मान लो मैं इस लड़ाई में विजयी भी हो गया, फिर भी मैं खुश नहीं हो पाऊँगा । इस ग्रह पर विजयी होने की क्या बात है, अगर मैं अन्य सभी ग्रहों का रागा भी बन जाऊँ या मैं उच्च ग्रह में देवता भी बन जाऊँ, फिर भी इस संकट को कम नहीं किया जा सकता है ।"