HI/Prabhupada 0440 - मायावादी सिद्धांत है कि परम आत्मा अवैयक्तिक है: Difference between revisions

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प्रभुपाद: अागे पढो ।
प्रभुपाद: अागे पढो ।  


भक्त: "श्वेताश्वतार उपनिषद में, यह कहा जाता है कि देवत्व के परम व्यक्तित्व असंख्य जीवों के अनुरक्षक हैं, उनके अलग अलग परिस्थितियों के संदर्भ में, व्यक्तिगत कर्म और कर्म की प्रतिक्रिया के अनुसार । वह देवत्व के परम व्यक्तित्व हर जीव के दिल में विराजमान हैं, उनके पूर्ण अंश के द्वारा भी । केवल साधु व्यक्ति, जो भीतर अौर बाहर इस देवत्व के परम व्यक्तित्व को देख सकते हैं, वास्तव में पूर्ण शांति अनन्त को प्राप्त कर सकते हैं । यही वैदिक सच्चाई अर्जुन को यहॉ दिया गया है, अौर इस माध्यम से दुनिया में सभी व्यक्तियों को जो ढोंग करते हैं खुद को बहुत ज्ञानी होने का लिकिन तथ्यात्मक ज्ञान के बहुत गरीब हैं । भगवान स्पष्ट रूप से कहते हैं कि वे खुद, अर्जुन और युद्ध के मैदान में इकट्ठा हुए सभी राजा, अनन्त व्यक्तिगत जीव हैं, अौर भगवान भगवान सदा व्यक्तिगत जीवों के अनुरक्षक हैं । "
भक्त: "श्वेताश्वतर उपनिषद में, यह कहा जाता है कि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान असंख्य जीवों के पालक हैं, उनके अलग अलग परिस्थितियों के संदर्भ में, व्यक्तिगत कर्म और कर्म की प्रतिक्रिया के अनुसार । वह पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हर जीव के हृदय में विराजमान हैं, उनके पूर्ण अंश के द्वारा भी । केवल साधु व्यक्ति, जो भीतर अौर बाहर इस पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान को देख सकते हैं, वास्तव में पूर्ण अनन्त शांति को प्राप्त कर सकते हैं । यही वैदिक सच्चाई अर्जुन को यहॉ दी गई है, अौर इस माध्यम से दुनिया में सभी व्यक्तियों को जो ढोंग करते हैं खुद को बहुत ज्ञानी होने का लिकिन वास्तव में ज्ञान से बहुत गरीब हैं । भगवान स्पष्ट रूप से कहते हैं कि वे खुद, अर्जुन और युद्ध के मैदान में इकट्ठा हुए सभी राजा, अनन्त व्यक्तिगत जीव हैं, अौर भगवान शाश्वत रूप से व्यक्तिगत जीवों के पालक हैं । "  


प्रभुपाद: मूल श्लोक क्या है? तुम पढ़ो ।
प्रभुपाद: मूल श्लोक क्या है? तुम पढ़ो ।  


भक्त: "एसा कोई समय नहीं था जब मैं मौजूद नहीं था, न ही तुम, न ही ये राजा.... ([[Vanisource:BG 2.12|भ गी २।१२]])
भक्त: "एसा कोई समय नहीं था जब मैं मौजूद नहीं था, न ही तुम, न ही ये राजा....([[HI/BG 2.12|भ.गी. २.१२]]) "


प्रभुपाद: अब, "एसा कोई समय नहीं था जब मैं मौजूद नहीं था, न ही तुम, न ही ये लोग ।" अब वे विश्लेषणात्मक कहते हैं, "मैं, तुम, और ..." पहला व्यक्ति, दूसरा व्यक्ति, और तीसरा व्यक्ति । यह पूर्ण है । "मैं, तुम, और दूसरे ।" to कृष्ण कहते हैं, "एक कोई समय नहीं था जब मैं, तुम, और ये सब व्यक्ति जो इस युद्ध के मैदान में इकट्ठा हुए हैं मौजूद नहीं थे । " इसका मतलब है कि "अतीत में, मैं, तुम, और ये सभी, उनका व्यक्तिगत अस्तित्व था ।" व्यक्तिगत रूप से । मायावादी सिद्धांत है कि परम आत्मा अवैयक्तिक है । तो फिर कैसे कृष्ण कह सकते हैं कि " एसा कोई समय नहीं था जब मैं, तुम, और ये सब व्यक्ति नही थे"? इसका मतलब है कि, "मैं व्यक्तिगत रूप में जीवित हूँ , तुम्हारा व्यक्तिगत रूप में अस्तित्व हैं, और ये सभी व्यक्ति जो हमारे सामने हैं, वे व्यक्तिगत रूप में जीवित हैं । कभी एसा समय नहीं था ।" अब, तुम्हारा जवाब क्या है, दीनदयाल? कृष्ण कभी नहीं कहते कि हम मिश्रित हैं । हम सभी व्यक्तिगत हैं । और वे कहते हैं कि "हम रहेंगे, "... एसा समय कभी नहीं होगा जब हम मौजूद नहीं होंगे । " इसका मतलब है कि हम अतीत में व्यक्तिगत थे, वर्तमान में हम व्यक्तिगत हैं इसमें कोई शक नहीं है, और भविष्य में भी, हम व्यक्तिगत रहेंगे । फिर अवैयक्तिक धारणा कहाँ से अाती है? अतीत, वर्तमान, भविष्य में, तीन समय हैं । है ना? हर समय में हम व्यक्तिगत हैं । तो जब भगवान अवैयक्तिक हो जाते हैं, या मैं अवैयक्तिक हो जाता हूँ, या तुम अवैयक्तिक हो जाते हो? मौका कहां है? कृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं, "एसा समय कभी नहीं था जब मैं, तुम, और यह सभी व्यक्तिगत राजा या सैनिक ... एसा नहीं था कि हम अतीत में मौजूद नहीं थे ।" इसलिए अतीत में हम, व्यक्तिगत के रूप में थे और वर्तमान में इसमें कोई शक नहीं है । हम व्यक्तिगत रूप में विद्यमान हैं । तुम मेरे शिष्य हो, मैं तुम्हारा आध्यात्मिक गुरु हूँ, लेकिन तुम्हारा अपना व्यक्तित्व है, मेरा अपना व्यक्तित्व है । अगर तुम मेरे साथ सहमत नहीं , तुम मुझे छोड़ सकते हो । यह तुम्हारा व्यक्तित्व है । तो अगर तुम्हे कृष्ण पसंद नहीं है, तो तुम कृष्ण भावनामृत को नहीं अपना नहीं सकते, यह तुम्हारा व्यक्तित्व है । तो यह व्यक्तित्व जारी रहेगा । इसी प्रकार कृष्ण, अगर वे तुम्हे पसंद नहीं करते हैं तो वे तुम्हे कृष्ण भावनामृत को प्रदान करने से मना सकते हैं । एसा नहीं है कि क्योंकि तुम सभी नियमों और विनियमों का पालन कर रहे हो, कृष्ण तुम्हे स्वीकार करने के लिए बाध्य हो । नहीं । अगर वे सोचते हैं कि "वह बकवास है, मैं उसे स्वीकार नहीं कर सकता । " वे तुम्हे अस्वीकार कर देंगे । तो उनका व्यक्तित्व है, तुम्हारा व्यक्तित्व है, हर किसी का व्यक्तित्व है । अवैयक्तिक का सवाल कहां से आ रहा है? कोई संभावना नहीं है । और अगर तुम कृष्ण पर विश्वास नहीं करते हो, तुम वेदों पर विश्वास नहीं करते हो, और सब से अलग, कृष्ण स्वीकार किए जाता हैं सर्वोच्च प्राधिकारी के रूप में, देवत्व के व्यक्तित्व । फिर अगर हम उनपर विश्वास नहीं करते हैं तो ज्ञान में आगे बढ़ाने की संभावना कहाँ है ? कोई संभावना नहीं है । तो व्यक्तित्व का कोई सवाल ही नहीं है । यह अधिकारियों का बयान है । अब, प्राधिकरण के बयान से अलग, तुम्हे अपने विवेक और तर्क को लागू करना चाहिए । क्या तुम कह सकते हो कि दो पक्षों के बीच समझौता है ? नहीं, तुम अध्ययन करो, जाओ . राज्य में, परिवार में, समाज में, देश में, कोई समझौता नहीं है . यहां तक ​​कि विधानसभा में, यहां तक ​​कि तुम्हारे देश में । मान लीजिए सीनेट में, हर किसी को देश का हित है, लेकिन वह अपने व्यक्तिगत रास्ते में सोच रहा है । हम सोच रहे हैं, "मेरे देश का कल्याण इस तरह से होगा ।" नहीं तो, क्यों अध्यक्ष के चुनाव के दौरान प्रतिस्पर्धा है । हर कोई कह रहा है कि "अमेरिका को निक्सन की जरूरत है ।" और एक अन्य व्यक्ति, वह भी कहता है, "अमेरिका को मेरी जरूरत है ।" तो, लेकिन क्यों दो? अगर अमेरिका तुम, और तुम दोनों हो ... नहीं । व्यक्तित्व है । श्री निक्सन की राय कुछ और है । श्री एक और उम्मीदवार की राय कुछ और है । विधानसभा में सीनेट में, कांग्रेस में, संयुक्त राष्ट्र में, हर कोई अपने व्यक्तिगत दृश्य के साथ लड़ रहा है । नहीं तो क्यों दुनिया में इतने सारे झंडे हैं ? तुम नहीं कह सकते कहीं भी अवैयक्तिकता । व्यक्तित्व हर जगह प्रधान है । हर जगह, व्यक्तित्व, व्यक्तित्व, प्रमुख है । इसलिए हमें स्वीकार करना होगा । हमें अपना विवेक, तर्क, लागू करना चाहिए और अधिकार को स्वीकार करना चाहिए । तो फिर सवाल हल हो जाएगा । अन्यथा यह सबसे कठिन है ।
प्रभुपाद: अब, "एसा कोई समय नहीं था जब मैं मौजूद नहीं था, न ही तुम, न ही ये लोग ।" अब वे विश्लेषणात्मक कहते हैं, "मैं, तुम, और ..." पहला व्यक्ति, दूसरा व्यक्ति, और तीसरा व्यक्ति । यह पूर्ण है । "मैं, तुम, और दूसरे ।" तो कृष्ण कहते हैं, "कभी ऐसा कोई समय नहीं था जब मैं, तुम, और ये सब व्यक्ति जो इस युद्ध के मैदान में इकट्ठा हुए हैं मौजूद नहीं थे । " इसका मतलब है कि "अतीत में, मैं, तुम, और ये सभी, उनका व्यक्तिगत अस्तित्व था ।" व्यक्तिगत रूप से ।  
 
मायावादी सिद्धांत है कि परम आत्मा अवैयक्तिक है । तो फिर कैसे कृष्ण कह सकते हैं कि "एसा कोई समय नहीं था जब मैं, तुम, और ये सब व्यक्ति नही थे"? इसका मतलब है कि, "मैं व्यक्तिगत रूप में जीवित हूँ, तुम्हारा व्यक्तिगत रूप में अस्तित्व हैं, और ये सभी व्यक्ति जो हमारे सामने हैं, वे व्यक्तिगत रूप में जीवित हैं । कभी एसा समय नहीं था ।" अब, तुम्हारा जवाब क्या है, दीनदयाल? कृष्ण कभी नहीं कहते कि हम मिश्रित हैं । हम सभी व्यक्तिगत हैं । और वे कहते हैं कि "हम रहेंगे, "... एसा समय कभी नहीं होगा जब हम मौजूद नहीं होंगे । " इसका मतलब है कि हम अतीत में व्यक्तिगत थे, वर्तमान में हम व्यक्तिगत हैं इसमें कोई शक नहीं है, और भविष्य में भी, हम व्यक्तिगत रहेंगे । फिर अवैयक्तिक धारणा कहाँ से अाती है? अतीत, वर्तमान, भविष्य में, तीन समय हैं । है ना? हर समय में हम व्यक्तिगत हैं । तो जब भगवान अवैयक्तिक हो जाते हैं, या मैं अवैयक्तिक हो जाता हूँ, या तुम अवैयक्तिक हो जाते हो? मौका कहां है?  
 
कृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं, "एसा समय कभी नहीं था जब मैं, तुम, और यह सभी व्यक्तिगत राजा या सैनिक ... एसा नहीं था कि हम अतीत में मौजूद नहीं थे ।" इसलिए अतीत में हम, व्यक्तिगत के रूप में थे और वर्तमान में इसमें कोई शक नहीं है । हम व्यक्तिगत रूप में विद्यमान हैं । तुम मेरे शिष्य हो, मैं तुम्हारा आध्यात्मिक गुरु हूँ, लेकिन तुम्हारा अपना व्यक्तित्व है, मेरा अपना व्यक्तित्व है । अगर तुम मेरे साथ सहमत नहीं होते, तुम मुझे छोड़ सकते हो । यह तुम्हारा व्यक्तित्व है । तो अगर तुम्हे कृष्ण पसंद नहीं है, तो तुम कृष्ण भावनामृत को अपना नहीं सकते, यह तुम्हारा व्यक्तित्व है । तो यह व्यक्तित्व जारी रहेगा ।  
 
इसी प्रकार कृष्ण, अगर वे तुम्हे पसंद नहीं करते हैं तो वे तुम्हे कृष्ण भावनामृत को प्रदान करने से मना कर सकते हैं । एसा नहीं है कि क्योंकि तुम सभी नियमों और विनियमों का पालन कर रहे हो, कृष्ण तुम्हे स्वीकार करने के लिए बाध्य हो । नहीं । अगर वे सोचते हैं कि "वह बकवास है, मैं उसे स्वीकार नहीं कर सकता । " वे तुम्हे अस्वीकार कर देंगे । तो उनका व्यक्तित्व है, तुम्हारा व्यक्तित्व है, हर किसी का व्यक्तित्व है । अवैयक्तिक का सवाल कहां से आ रहा है? कोई संभावना नहीं है । और अगर तुम कृष्ण पर विश्वास नहीं करते हो, तुम वेदों पर विश्वास नहीं करते हो, और सब से अलग, कृष्ण स्वीकार किए जाता हैं सर्वोच्च प्राधिकारी के रूप में, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान । फिर अगर हम उन पर विश्वास नहीं करते हैं तो ज्ञान में आगे बढ़ाने की संभावना कहाँ है ? कोई संभावना नहीं है । तो व्यक्तित्व का कोई सवाल ही नहीं है । यह अधिकारियों का बयान है ।  
 
अब, प्राधिकरण के बयान से अलग, तुम्हे अपने विवेक और तर्क को लागू करना चाहिए । क्या तुम कह सकते हो कि दो पक्षों के बीच समझौता है ? नहीं, तुम अध्ययन करो, जाओ | राज्य में, परिवार में, समाज में, देश में, कोई सहमति नहीं है | यहां तक ​​कि विधानसभा में, यहां तक ​​कि तुम्हारे देश में । मान लीजिए सेनेट में, हर कोई देश का हित चाहता है, लेकिन वह अपने व्यक्तिगत रूप से सोच रहा है । हम सोच रहे हैं, "मेरे देश का कल्याण इस तरह से होगा ।" नहीं तो, क्यों अध्यक्ष के चुनाव के दौरान प्रतिस्पर्धा है । हर कोई कह रहा है कि "अमेरिका को निक्सन की जरूरत है ।" और एक अन्य व्यक्ति, वह भी कहता है, "अमेरिका को मेरी जरूरत है ।" तो, लेकिन क्यों दो? अगर अमेरिका तुम, और तुम दोनों हो ... नहीं । व्यक्तित्व है । श्रीमान निक्सन की राय कुछ और है ।  
 
श्रीमान एक और उम्मीदवार की राय कुछ और है । विधानसभा में सेनेट में, कांग्रेस में, संयुक्त राष्ट्र में, हर कोई अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण के साथ लड़ रहा है । नहीं तो क्यों दुनिया में इतने सारे झंडे हैं ? तुम नहीं कह सकते कहीं भी अवैयक्तिकता । व्यक्तित्व हर जगह प्रधान है । हर जगह, व्यक्तित्व, व्यक्तित्व, प्रमुख है । इसलिए हमें स्वीकार करना होगा । हमें अपना विवेक, तर्क, लागू करना चाहिए और अधिकार को स्वीकार करना चाहिए । तो फिर सवाल हल हो जाएगा । अन्यथा यह सबसे कठिन है ।  
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Latest revision as of 18:39, 17 September 2020



Lecture on BG 2.8-12 -- Los Angeles, November 27, 1968

प्रभुपाद: अागे पढो ।

भक्त: "श्वेताश्वतर उपनिषद में, यह कहा जाता है कि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान असंख्य जीवों के पालक हैं, उनके अलग अलग परिस्थितियों के संदर्भ में, व्यक्तिगत कर्म और कर्म की प्रतिक्रिया के अनुसार । वह पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हर जीव के हृदय में विराजमान हैं, उनके पूर्ण अंश के द्वारा भी । केवल साधु व्यक्ति, जो भीतर अौर बाहर इस पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान को देख सकते हैं, वास्तव में पूर्ण अनन्त शांति को प्राप्त कर सकते हैं । यही वैदिक सच्चाई अर्जुन को यहॉ दी गई है, अौर इस माध्यम से दुनिया में सभी व्यक्तियों को जो ढोंग करते हैं खुद को बहुत ज्ञानी होने का लिकिन वास्तव में ज्ञान से बहुत गरीब हैं । भगवान स्पष्ट रूप से कहते हैं कि वे खुद, अर्जुन और युद्ध के मैदान में इकट्ठा हुए सभी राजा, अनन्त व्यक्तिगत जीव हैं, अौर भगवान शाश्वत रूप से व्यक्तिगत जीवों के पालक हैं । "

प्रभुपाद: मूल श्लोक क्या है? तुम पढ़ो ।

भक्त: "एसा कोई समय नहीं था जब मैं मौजूद नहीं था, न ही तुम, न ही ये राजा....(भ.गी. २.१२) "

प्रभुपाद: अब, "एसा कोई समय नहीं था जब मैं मौजूद नहीं था, न ही तुम, न ही ये लोग ।" अब वे विश्लेषणात्मक कहते हैं, "मैं, तुम, और ..." पहला व्यक्ति, दूसरा व्यक्ति, और तीसरा व्यक्ति । यह पूर्ण है । "मैं, तुम, और दूसरे ।" तो कृष्ण कहते हैं, "कभी ऐसा कोई समय नहीं था जब मैं, तुम, और ये सब व्यक्ति जो इस युद्ध के मैदान में इकट्ठा हुए हैं मौजूद नहीं थे । " इसका मतलब है कि "अतीत में, मैं, तुम, और ये सभी, उनका व्यक्तिगत अस्तित्व था ।" व्यक्तिगत रूप से ।

मायावादी सिद्धांत है कि परम आत्मा अवैयक्तिक है । तो फिर कैसे कृष्ण कह सकते हैं कि "एसा कोई समय नहीं था जब मैं, तुम, और ये सब व्यक्ति नही थे"? इसका मतलब है कि, "मैं व्यक्तिगत रूप में जीवित हूँ, तुम्हारा व्यक्तिगत रूप में अस्तित्व हैं, और ये सभी व्यक्ति जो हमारे सामने हैं, वे व्यक्तिगत रूप में जीवित हैं । कभी एसा समय नहीं था ।" अब, तुम्हारा जवाब क्या है, दीनदयाल? कृष्ण कभी नहीं कहते कि हम मिश्रित हैं । हम सभी व्यक्तिगत हैं । और वे कहते हैं कि "हम रहेंगे, "... एसा समय कभी नहीं होगा जब हम मौजूद नहीं होंगे । " इसका मतलब है कि हम अतीत में व्यक्तिगत थे, वर्तमान में हम व्यक्तिगत हैं इसमें कोई शक नहीं है, और भविष्य में भी, हम व्यक्तिगत रहेंगे । फिर अवैयक्तिक धारणा कहाँ से अाती है? अतीत, वर्तमान, भविष्य में, तीन समय हैं । है ना? हर समय में हम व्यक्तिगत हैं । तो जब भगवान अवैयक्तिक हो जाते हैं, या मैं अवैयक्तिक हो जाता हूँ, या तुम अवैयक्तिक हो जाते हो? मौका कहां है?

कृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं, "एसा समय कभी नहीं था जब मैं, तुम, और यह सभी व्यक्तिगत राजा या सैनिक ... एसा नहीं था कि हम अतीत में मौजूद नहीं थे ।" इसलिए अतीत में हम, व्यक्तिगत के रूप में थे और वर्तमान में इसमें कोई शक नहीं है । हम व्यक्तिगत रूप में विद्यमान हैं । तुम मेरे शिष्य हो, मैं तुम्हारा आध्यात्मिक गुरु हूँ, लेकिन तुम्हारा अपना व्यक्तित्व है, मेरा अपना व्यक्तित्व है । अगर तुम मेरे साथ सहमत नहीं होते, तुम मुझे छोड़ सकते हो । यह तुम्हारा व्यक्तित्व है । तो अगर तुम्हे कृष्ण पसंद नहीं है, तो तुम कृष्ण भावनामृत को अपना नहीं सकते, यह तुम्हारा व्यक्तित्व है । तो यह व्यक्तित्व जारी रहेगा ।

इसी प्रकार कृष्ण, अगर वे तुम्हे पसंद नहीं करते हैं तो वे तुम्हे कृष्ण भावनामृत को प्रदान करने से मना कर सकते हैं । एसा नहीं है कि क्योंकि तुम सभी नियमों और विनियमों का पालन कर रहे हो, कृष्ण तुम्हे स्वीकार करने के लिए बाध्य हो । नहीं । अगर वे सोचते हैं कि "वह बकवास है, मैं उसे स्वीकार नहीं कर सकता । " वे तुम्हे अस्वीकार कर देंगे । तो उनका व्यक्तित्व है, तुम्हारा व्यक्तित्व है, हर किसी का व्यक्तित्व है । अवैयक्तिक का सवाल कहां से आ रहा है? कोई संभावना नहीं है । और अगर तुम कृष्ण पर विश्वास नहीं करते हो, तुम वेदों पर विश्वास नहीं करते हो, और सब से अलग, कृष्ण स्वीकार किए जाता हैं सर्वोच्च प्राधिकारी के रूप में, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान । फिर अगर हम उन पर विश्वास नहीं करते हैं तो ज्ञान में आगे बढ़ाने की संभावना कहाँ है ? कोई संभावना नहीं है । तो व्यक्तित्व का कोई सवाल ही नहीं है । यह अधिकारियों का बयान है ।

अब, प्राधिकरण के बयान से अलग, तुम्हे अपने विवेक और तर्क को लागू करना चाहिए । क्या तुम कह सकते हो कि दो पक्षों के बीच समझौता है ? नहीं, तुम अध्ययन करो, जाओ | राज्य में, परिवार में, समाज में, देश में, कोई सहमति नहीं है | यहां तक ​​कि विधानसभा में, यहां तक ​​कि तुम्हारे देश में । मान लीजिए सेनेट में, हर कोई देश का हित चाहता है, लेकिन वह अपने व्यक्तिगत रूप से सोच रहा है । हम सोच रहे हैं, "मेरे देश का कल्याण इस तरह से होगा ।" नहीं तो, क्यों अध्यक्ष के चुनाव के दौरान प्रतिस्पर्धा है । हर कोई कह रहा है कि "अमेरिका को निक्सन की जरूरत है ।" और एक अन्य व्यक्ति, वह भी कहता है, "अमेरिका को मेरी जरूरत है ।" तो, लेकिन क्यों दो? अगर अमेरिका तुम, और तुम दोनों हो ... नहीं । व्यक्तित्व है । श्रीमान निक्सन की राय कुछ और है ।

श्रीमान एक और उम्मीदवार की राय कुछ और है । विधानसभा में सेनेट में, कांग्रेस में, संयुक्त राष्ट्र में, हर कोई अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण के साथ लड़ रहा है । नहीं तो क्यों दुनिया में इतने सारे झंडे हैं ? तुम नहीं कह सकते कहीं भी अवैयक्तिकता । व्यक्तित्व हर जगह प्रधान है । हर जगह, व्यक्तित्व, व्यक्तित्व, प्रमुख है । इसलिए हमें स्वीकार करना होगा । हमें अपना विवेक, तर्क, लागू करना चाहिए और अधिकार को स्वीकार करना चाहिए । तो फिर सवाल हल हो जाएगा । अन्यथा यह सबसे कठिन है ।