HI/Prabhupada 0441 - कृष्ण सर्वोच्च हैं, और हम आंशिक हिस्से हैं

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Lecture on BG 2.8-12 -- Los Angeles, November 27, 1968

भक्त: "देवत्व के परम व्यक्तित्व, परम व्यक्तिगत व्यक्ति हैं, और अर्जुन, प्रभु के अनन्त सहयोगी, और सभी राजा वहॉ उपस्थित वे भी व्यक्तिगत अनन्त व्यक्ति हैं । एसा नहीं है कि वे अतीत में व्यक्ति के रूप में मौजूद नहीं थे, और एसा नहीं है कि वे अनन्त व्यक्ति के रूप में नहीं रहेंगे । उनका व्यक्तित्व अतीत में था, और उनका व्यक्तित्व भविष्य में रहेगा, बिना किसी रुकावट के । इसलिए विलाप का कोई कारण नहीं है किसी एक व्यक्तिगत जीव के लिए । मायाविदी या अवैयक्तिक सिद्धांत कि मुक्ति के बाद, व्यक्ति की आत्मा, जो अलग है माया या भ्रम से ढके होने के कारण, व्यक्तिगत अस्तित्व के बिना अवैयक्तिक ब्रह्मण में लीन होगा ... "

प्रभुपाद: अब, मायावादी का कहना है कि यह व्यक्तित्व ही माया है । तो उनकी धारणा है कि अात्मा, पूरी अात्मा एक ढेर है । उनका सिद्धांत है घटाकाश पोताकाश । घटाकाश पोताकाश का मतलब है ... जैसे आकाश । आकाश एक विस्तार है, एक अवैयक्तिक फैलाव । तो एक बर्तन में, एक पानी के बर्तन में, एक घड़े में जो बंद है ... अब, घड़े के भीतर, भी आकाश है, एक छोटे सा आकाश । अब जैसे ही घड़ा टूटता है, बड़ा, बाहर का आकाश, और घड़े के भीतर का छोटा आकाश घुल जाते हैं । यही मायावाद सिद्धांत है । लेकिन यह सादृश्य लागू नहीं किया जा सकता है । सादृश्य का मतलब है समानता के अंक । यही सादृश्य का कानून है । आकाश की तुलना नहीं की जा सकती ... घड़े के भीतर के छोटे आकाश की तुलना नहीं की जा सकती है जीव के साथ यह भौतिक है, भौतिक पदार्थ। अाकाश भौतिक पदार्थ है, और व्यक्तिगत जीव अात्मा है । तो तुम कैसे कह सकते हो? जैसे एक छोटी सी चींटी, यह आत्मा है । उसे उसका व्यक्तित्व मिला है । लेकिन एक बड़ा मृत पत्थर, पहाड़ी या पहाड़, उसका कोई व्यक्तित्व नहीं है । तो भौतिक पदार्थ का कोई व्यक्तित्व नहीं है । आत्मा का व्यक्तित्व है । तो अगर समानता के अंक अलग हैं, तो कोई सादृश्य नहीं है । यही सादृश्य का कानून है । तो तुम भौतिक पदार्थ और अात्मा की तुलना नहीं कर सकते हो । इसलिए यह तुलना ग़लत है । घटाकाश पोताकाश । फिर एक और सबूत भगवद गीता में है । कृष्ण कहते हैं कि ममैवाम्शो जीव भूत (भ गी १५।७) "यह व्यक्तिगत आत्माऍ, वे मेरा अभिन्न अंग हैं ।" जीव-लोके सनातन: । और वे अनन्त हैं । इसका मतलब है कि सदा वे अभिन्न अंग रहेंगे । फिर जब ... कैसे इस मायावाद सिद्धांत का समर्थन किया जा सकता है, कि माया के कारण, माया द्वारा ढके होने के कारण, वे अब व्यक्तिगत दिखाई दे रहे हैं, अलग लेकिन जब माया का अावरण उठेगा, वे घुल जाऍगे जेसे घड़े के अंदर छोटा आकाश और बड़ा आकाश बाहर का मिल जाते हैं ? तो यह सादृश्य ग़लत है तार्किक दृष्टिकोण से, अौर प्रामाणिक वैदिक दृष्टिकोण से भी । वे सदा के लिए अंश हैं । भगवद गीता में से कई अन्य सबूत हैं । भगवद गीता कहता है कि अात्म को खंडित नहीं किया जा सकता है । तो अगर तुम कहते हो कि माया के अावरण द्वारा आत्मा टुकड़ा बन गया है, तो यह संभव नहीं है । यह काटा नहीं जा सकता है । अगर तुम कागज के एक बड़ा टुकड़े को काटो छोटे टुकड़ों में, यह हो सकता है क्योंकि यह भौतिक पदार्थ है, लेकिन आध्यात्मिकता यह संभव नहीं है । आध्यात्मिक, सदा, टुकड़े टुकड़े ही रहेंगे, और परम परम ही । कृष्ण सर्वोच्च हैं, और हम आंशिक हिस्से हैं । हम सदा अंश ही रहेंगे । यह बातों बहुत अच्छी तरह से विभिन्न स्थानों में भगवद गीता में समझाई गई हैं । मैं आप सभी से अनुरोध करता हूँ कि इस भगवद गीता को अाप रखो, अाप में से हर एक, और इसे ध्यान से पढें । और आने वाले सितंबर में परीक्षा होगी । तो ... बेशक, यह स्वैच्छिक है । लेकिन मैं अनुरोध करता हूँ कि आप अगले सितंबर की परीक्षा के लिए तैयारी करें । और जो यह परीक्षा पास करगा उसे भक्ति-शास्त्री का शीर्षक मिलेगा । तुमने वितरित किया ... हां । करते रहो ।

भक्त: "न ही यह सिद्धांत यहॉ समर्थित है कि हम व्यक्तित्व के बारे में सोचते हैं केवल सशर्त हालत में कृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि भविष्य में भी भगवान और दूसरों का व्यक्तित्व बना रहेगा ... "

प्रभुपाद: कृष्ण कभी नहीं कहते हैं कि मुक्ति के बाद ये व्यक्तिगत आत्माऍ परमात्मा के साथ मिल जाऍगी । कृष्ण भगवद गीता में कभी नहीं कहते हैं ।