HI/Prabhupada 0443 - उनका घर, सब कुछ है । तो अवैयक्तिकता का कोई सवाल नहीं है

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Lecture on BG 2.8-12 -- Los Angeles, November 27, 1968

प्रभुपाद: अागे पढो ।

भक्त: "अगर व्यक्तित्व एक तथ्य नहीं है, तब श्री कृष्ण नें भविष्य के लिए इतना जोर दिया नहीं होता । "

प्रभुपाद: हाँ । वे कहते हैं कि एसा कोई समय नहीं था जब हम व्यक्तिगत नहीं थे, अौर भविष्य में ऐसा कोई समय नहीं होगा जब हम व्यक्तिगत नहीं रहेंगे । और जहॉ तक वर्तमान का संबंध है, हम सब व्यक्तिगत हैं । तुम्हें पता है । तो व्यक्तित्व को खोने की संभावना कहॉ है? बिना व्यक्तित्व के होना ? नहीं कोई संभावना नहीं है । ये शुन्यवादी, मायावादी, वे कृत्रिम तरीके से नकार रहें हैं, इस भौतिक अस्तित्व की विभिन्नता को । यह केवल नकारात्मक पक्ष है । यह एक सकारात्मक पक्ष नहीं है । एक सकारात्मक पक्ष यह है, जैसे कृष्ण कहते हैं, त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति माम एति कौन्तेय (भ.गी. ४.९) | "इस भौतिक निवास के बाद, तुम मेरे पास आते हो ।" जैसे इस कमरे से बाहर जाते के बाद, तुम्हे एक दूसरे कमरे में प्रवेश करना पडता है । तुम नहीं कह सकते हो कि "यह कमरा छोड़ने के बाद, मैं आसमान में रहूँगा ।"

इसी प्रकार, इस शरीर को छोड़ने के बाद, अगर तुम आध्यात्मिक राज्य में श्री कृष्ण के पास जाओगे, तुम्हारा व्यक्तित्व रहेगा, लेकिन तुम्हारा आध्यात्मिक शरीर होगा । जब आध्यात्मिक शरीर हो तो कोई परेशानी नहीं रहती । जैसे कि तुम्हारा शरीर जल में रहने वाले जानवरों के शरीर से अलग है। जल में रहने वाले जीव, उन्हे पानी से कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि उनका शरीर एसा बना है । वे शांति से वहां रह सकते हैं । तुम नहीं रह सकते हो । इसी तरह, मछलियॉ, अगर तुम उन्हें पानी से बाहर निकालो, तो वे नहीं रह सकते हैं । इसी प्रकार क्योंकि तुम आत्मा हो, तुम इस भौतिक संसार में शांति से नहीं रह सकते हो । यह विदेशी है । लेकिन जैसे ही तुम आध्यात्मिक दुनिया में प्रवेश करोगे, तुम्हारा जीवन, अनन्त आनंदित और ज्ञान, वास्तविक शांति से भरा है । त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति (भ.गी. ४.९) |

कृष्ण कहते हैं "इस शरीर को छोड़ने के बाद, वह भौतिक संसार के इन परेशानियों में वापस नहीं अाता है ।" माम एति, "वह मेरे पास अाता है ।" "मेरे" मतलब उनका राज्य, उनकी सामग्री, उनके सहयोगी, सब कुछ । अगर कोई अमीर आदमी या कोई राजा कहता है, "ठीक है, तुम मेरे पास आओ," इसका मतलब यह नहीं है कि वह अवैयक्तिक है । अगर एक राजा कहता है, " आओ ..." इसका मतलब है कि उसका महल है, उसक अपना सचिव है, उसका अच्छा घर है, सब कुछ है वहॉ । कैसे वह अव्यक्तिगत हो सकता है ? लेकिन वे कह रहे हैं, "मेरे पास आओ ।" यह "मेरे" का मतलब है सब कुछ । इस "मेरे" का मतलब अवैयक्तिक नहीं है । और हमें ब्रह्मा संहिता से जानकारी मिलती है, लक्षमी सहस्र शत सम्भ्रम सेव्यमानम......सुरभीर अभीपालयन्तम (ब्रह्मसंहिता ५.२९) | तो वे अवैयक्तिक नहीं हैं । वे गायों की परवरिश कर रहे हैं, वे सैकड़ों भाग्य की देवी के साथ हैं, उनके दोस्त, उनकी सामग्री, उनका राज्य, उनका घर, सब कुछ है । तो अवैयक्तिकता का कोई सवाल नहीं है ।