HI/Prabhupada 0472 - इस अंधेरे में मत रहो । बस प्रकाश के राज्य में अपने आप को स्थानांतरण करो: Difference between revisions

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प्रभुपाद: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम् भजामि ।
प्रभुपाद: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि ।  


भक्त : गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम् भजामि ।
भक्त : गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि ।  


प्रभुपाद: तो हम गोविन्दम की पूजा कर रहे हैं सभी सुखों का भंडार, गोविंदा, कृष्ण । और वे आदि-पुरुष, मूल व्यक्ति हैं । तो गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम् भजामि । भजामि का अर्थ है " मैं पूजता हूँ " "मैं उन्हे पर्यत आत्मसमर्पण करता हूँ और मैं उन्हे प्यार करने के लिए सहमत हूँ ।" ये शब्द दिए गए हैं ब्रह्मा द्वारा, भजन के रूप में । यह ब्रह्म संहिता काफी एक बड़ी किताब है । पहला श्लोक पांचवें अध्याय में कहा गया है कि प्रभु, गोविंदा, उनका विशेष ग्रह है, जिसे गोलोक वृन्दावन कहा जाता है । यह इस भौतिक आकाश से परे है । इस भौतिक आकाश को तुम देख सकते हो जहाँ तक तुम्हारी नज़र जाती है, लेकिन भौतिक आसमान से परे आध्यात्मिक आकाश है । यह भौतिक आसमान भौतिक ऊर्जा से ढका है, महत-तत्त्व, और सात परतें हैं उस कवर की पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और उस कवर से परे, एक सागर है, और उस समुद्र से परे आध्यात्मिक आकाश शुरू होता है । और उस आध्यात्मिक आकाश में, उच्चतम ग्रह गोलोक वृन्दावन कहा जाता है । ये बातें वैदिक साहित्य में वर्णित हैं, भगवद गीता में भी । भगवद गीता बहुत जानी पहचानी किताब है । वहाँ भी यह कहा गया है,
प्रभुपाद: तो हम गोविन्दम की पूजा कर रहे हैं, सभी सुखों का भंडार, गोविंद, कृष्ण । और वे आदि-पुरुष, मूल व्यक्ति हैं । तो गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि । भजामि का अर्थ है " मैं पूजता हूँ," "मैं उन्हे आत्मसमर्पण करता हूँ और मैं उन्हे प्यार करने के लिए सहमत हूँ ।" ये शब्द दिए गए हैं ब्रह्मा द्वारा, भजन के रूप में । यह ब्रह्म संहिता काफी एक बड़ी किताब है । पहला श्लोक पांचवें अध्याय में कहा गया है कि प्रभु, गोविंद, उनका विशेष ग्रह है, जिसे गोलोक वृन्दावन कहा जाता है । यह इस भौतिक आकाश से परे है । इस भौतिक आकाश को तुम देख सकते हो जहाँ तक तुम्हारी नज़र जाती है, लेकिन भौतिक आसमान से परे आध्यात्मिक आकाश है । यह भौतिक आसमान भौतिक शक्ति, महत-तत्त्व, से ढका है, और उस पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु के आवरण की सात परतें हैं। और उस आवरण से परे, एक सागर है, और उस समुद्र से परे आध्यात्मिक आकाश शुरू होता है । और उस आध्यात्मिक आकाश में, उच्चतम ग्रह गोलोक वृन्दावन कहा जाता है । ये बातें वैदिक साहित्य में वर्णित हैं, भगवद गीता में भी । भगवद गीता बहुत जानी पहचानी किताब है । वहाँ भी यह कहा गया है,  


:न यत्र भासयते सूर्यो
:न यत्र भासयते सूर्यो  
:न शशांको न पावक:
:न शशांको न पावक:
:यद गत्वा न निवर्तन्ते
:यद गत्वा न निवर्तन्ते  
:तद धाम परमम् मम
:तद धाम परमम मम  
:([[Vanisource:BG 15.6|भ गी १५।६]])
:([[HI/BG 15.6|भ.गी. १५.६]])  


भगवद गीता में यह कहा जाता है कि एक और आध्यात्मिक आकाश है जहॉ धूप है की कोई जरूरत नहीं है । न यत्र भासयते सूर्यो । सूर्य का मतलब है सूरज, और भासयते का मतलब है धूप का वितरण । तो धूप की कोई जरूरत नहीं है । न यत्र भासयते सूर्यो न शशांको । शशांक का मतलब है चंद्रमा । न तो चांदनी की जरूरत है । न शशांको न पावक: । न तो बिजली की जरूरत है । इसका मतलब है प्रकाश का राज्य । इधर, इस भौतिक दुनिया में अंधेरे का साम्राज्य है । आप सभी को पता है । यह वास्तव में अंधेरा है । जैसे ही सूर्य इस पृथ्वी के दूसरे पक्ष पर जाता है, यहॉ अंधेरा है । इसका मतलब है कि स्वभाव से अंधेरा है । बस धूप से, चांदनी से, और बिजली के द्वारा हम यह प्रकाश रख रहे हैं । दरअसल, यह अंधेरा है । और अंधेरा का अर्थ अज्ञान भी है । जैसे रात को लोग अधिक अज्ञानी होते हैं । हम अज्ञानी हैं, लेकिन रात में हम अधिक अज्ञानी होते हैं । इसलिए वैदिक शिक्षा है तमसि मा ज्योतिर गम । वेदों कहते हैं, "इस अंधेरे में मत रहो । बस प्रकाश के राज्य में अपने आप को हस्तांतरण करो ।" और भगवद गीता भी कहता है कि वहाँ एक विशेष आकाश है, या एक आध्यात्मिक आकाश, जहां धूप की कोई जरूरत नहीं है, चांदनी की कोई ज़रूरत नहीं है, वहां बिजली की कोई जरूरत नहीं है, और यद गत्वा न निवर्तन्ते ([[Vanisource:BG 15.6|भ गी १५।६]]) - और अगर कोई भी प्रकाश के उस राज्य में चला जाता है, वह फिर कभी वापस नहीं आता है अंधेरे के इस राज्य में । तो कैसे हम प्रकाश के उस राज्य में स्थानांतरित करें अपने अाप को? पूरी मानव सभ्यता इन सिद्धांतों पर आधारित है । वेदांत कहता है अथातो ब्रह्म जिज्ञासा अथ अत: "इसलिए अभी तुम्हे ब्रह्मण के बारे में पूछताछ करनी चाहिए, निरपेक्ष बारे में ।" "इसलिए अब" इसका मतलब है ... हर शब्द महत्वपूर्ण है । "इसलिए" का अर्थ है क्योंकि तुम्हे यह मानव शरीर मिला है - "इसलिए" और अत: का मतलब है "इसके बाद" "इसके बाद", का मतलब है तुम कई, कई जीवन के माध्यम से पारित होते हो, जीवन के ,४००,००० प्रजातियों से । तैराकी - ९००००० । जलजा नव-लक्षाणि स्थावरा लक्ष-विमशति
भगवद गीता में यह कहा जाता है कि एक और आध्यात्मिक आकाश है जहॉ सूर्यप्रकाश की कोई जरूरत नहीं है । न यत्र भासयते सूर्यो । सूर्य का मतलब है सूरज, और भासयते का मतलब है सूर्यप्रकाश का वितरण । तो सूर्यप्रकाश की कोई जरूरत नहीं है । न यत्र भासयते सूर्यो न शशांको । शशांक का मतलब है चंद्र । न तो चांदनी की जरूरत है । न शशांको न पावक: । न तो बिजली की जरूरत है । इसका मतलब है प्रकाश का राज्य । इधर, इस भौतिक दुनिया में अंधेरे का साम्राज्य है । आप सभी को पता है । यह वास्तव में अंधेरा है । जैसे ही सूर्य इस पृथ्वी के दूसरे पक्ष पर जाता है, यहॉ अंधेरा है । इसका मतलब है कि स्वभाव से अंधेरा है । बस धूप से, चांदनी से, और बिजली के द्वारा हम यह प्रकाश रख रहे हैं । दरअसल, यह अंधेरा है । और अंधेरे का अर्थ अज्ञान भी है । जैसे रात को लोग अधिक अज्ञानी होते हैं । हम अज्ञानी हैं, लेकिन रात में हम अधिक अज्ञानी होते हैं ।  
 
इसलिए वैदिक शिक्षा है तमसि मा ज्योतिर गम । वेद कहते हैं, "इस अंधेरे में मत रहो । बस प्रकाश के राज्य में अपने आप को ले जाओ ।" और भगवद गीता भी कहता है कि वहाँ एक विशेष आकाश है, या एक आध्यात्मिक आकाश, जहां सूर्यप्रकाश की कोई जरूरत नहीं है, चांदनी की कोई ज़रूरत नहीं है, वहां बिजली की कोई जरूरत नहीं है, और यद गत्वा न निवर्तन्ते ([[HI/BG 15.6|भ.गी. १५.६]]) - और अगर कोई भी प्रकाश के उस राज्य में चला जाता है, वह फिर कभी वापस नहीं आता है अंधेरे के इस राज्य में । तो कैसे हम प्रकाश के उस राज्य में स्थानांतरित करें अपने अाप को? पूरी मानव सभ्यता इन सिद्धांतों पर आधारित है । वेदांत कहता है अथातो ब्रह्म जिज्ञासा | अथ अत: | "इसलिए अभी तुम्हे ब्रह्म के बारे में पूछताछ करनी चाहिए, निरपेक्ष बारे में ।" "इसलिए अब" इसका मतलब है... हर शब्द महत्वपूर्ण है । "इसलिए" का अर्थ है क्योंकि तुम्हे यह मानव शरीर मिला है - "इसलिए | " और अत: का मतलब है "इसके बाद | " "इसके बाद", का मतलब है तुम कई, कई जीवन के माध्यम से पसार हुए हो, जीवन के ८४,००,००० प्रजातियों से । जल में रहने वाले - ९,००,००० । जलजा नव-लक्षाणि स्थावरा लक्ष-विंशति |
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture -- Seattle, October 7, 1968

प्रभुपाद: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि ।

भक्त : गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि ।

प्रभुपाद: तो हम गोविन्दम की पूजा कर रहे हैं, सभी सुखों का भंडार, गोविंद, कृष्ण । और वे आदि-पुरुष, मूल व्यक्ति हैं । तो गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि । भजामि का अर्थ है " मैं पूजता हूँ," "मैं उन्हे आत्मसमर्पण करता हूँ और मैं उन्हे प्यार करने के लिए सहमत हूँ ।" ये शब्द दिए गए हैं ब्रह्मा द्वारा, भजन के रूप में । यह ब्रह्म संहिता काफी एक बड़ी किताब है । पहला श्लोक पांचवें अध्याय में कहा गया है कि प्रभु, गोविंद, उनका विशेष ग्रह है, जिसे गोलोक वृन्दावन कहा जाता है । यह इस भौतिक आकाश से परे है । इस भौतिक आकाश को तुम देख सकते हो जहाँ तक तुम्हारी नज़र जाती है, लेकिन भौतिक आसमान से परे आध्यात्मिक आकाश है । यह भौतिक आसमान भौतिक शक्ति, महत-तत्त्व, से ढका है, और उस पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु के आवरण की सात परतें हैं। और उस आवरण से परे, एक सागर है, और उस समुद्र से परे आध्यात्मिक आकाश शुरू होता है । और उस आध्यात्मिक आकाश में, उच्चतम ग्रह गोलोक वृन्दावन कहा जाता है । ये बातें वैदिक साहित्य में वर्णित हैं, भगवद गीता में भी । भगवद गीता बहुत जानी पहचानी किताब है । वहाँ भी यह कहा गया है,

न यत्र भासयते सूर्यो
न शशांको न पावक: ।
यद गत्वा न निवर्तन्ते
तद धाम परमम मम
(भ.गी. १५.६)

भगवद गीता में यह कहा जाता है कि एक और आध्यात्मिक आकाश है जहॉ सूर्यप्रकाश की कोई जरूरत नहीं है । न यत्र भासयते सूर्यो । सूर्य का मतलब है सूरज, और भासयते का मतलब है सूर्यप्रकाश का वितरण । तो सूर्यप्रकाश की कोई जरूरत नहीं है । न यत्र भासयते सूर्यो न शशांको । शशांक का मतलब है चंद्र । न तो चांदनी की जरूरत है । न शशांको न पावक: । न तो बिजली की जरूरत है । इसका मतलब है प्रकाश का राज्य । इधर, इस भौतिक दुनिया में अंधेरे का साम्राज्य है । आप सभी को पता है । यह वास्तव में अंधेरा है । जैसे ही सूर्य इस पृथ्वी के दूसरे पक्ष पर जाता है, यहॉ अंधेरा है । इसका मतलब है कि स्वभाव से अंधेरा है । बस धूप से, चांदनी से, और बिजली के द्वारा हम यह प्रकाश रख रहे हैं । दरअसल, यह अंधेरा है । और अंधेरे का अर्थ अज्ञान भी है । जैसे रात को लोग अधिक अज्ञानी होते हैं । हम अज्ञानी हैं, लेकिन रात में हम अधिक अज्ञानी होते हैं ।

इसलिए वैदिक शिक्षा है तमसि मा ज्योतिर गम । वेद कहते हैं, "इस अंधेरे में मत रहो । बस प्रकाश के राज्य में अपने आप को ले जाओ ।" और भगवद गीता भी कहता है कि वहाँ एक विशेष आकाश है, या एक आध्यात्मिक आकाश, जहां सूर्यप्रकाश की कोई जरूरत नहीं है, चांदनी की कोई ज़रूरत नहीं है, वहां बिजली की कोई जरूरत नहीं है, और यद गत्वा न निवर्तन्ते (भ.गी. १५.६) - और अगर कोई भी प्रकाश के उस राज्य में चला जाता है, वह फिर कभी वापस नहीं आता है अंधेरे के इस राज्य में । तो कैसे हम प्रकाश के उस राज्य में स्थानांतरित करें अपने अाप को? पूरी मानव सभ्यता इन सिद्धांतों पर आधारित है । वेदांत कहता है अथातो ब्रह्म जिज्ञासा | अथ अत: | "इसलिए अभी तुम्हे ब्रह्म के बारे में पूछताछ करनी चाहिए, निरपेक्ष बारे में ।" "इसलिए अब" इसका मतलब है... हर शब्द महत्वपूर्ण है । "इसलिए" का अर्थ है क्योंकि तुम्हे यह मानव शरीर मिला है - "इसलिए | " और अत: का मतलब है "इसके बाद | " "इसके बाद", का मतलब है तुम कई, कई जीवन के माध्यम से पसार हुए हो, जीवन के ८४,००,००० प्रजातियों से । जल में रहने वाले - ९,००,००० । जलजा नव-लक्षाणि स्थावरा लक्ष-विंशति |