HI/Prabhupada 0473 - डार्विन नें इस उत्क्रांति के विचार को लिया है पद्म पुराण से: Difference between revisions

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डार्विन नें इस विकास के विचार को लिया है पद्म पुराण से । तुम्हे कोई भी तत्वज्ञान, कोई भी सिद्धांत दुनिया में नहीं मिलेगा, जो वैदिक साहित्य में नहीं मिलता हो । यह इतना पूण है, सब कुछ है । तो अवतारवाद, या क्या कहा जाता है, नृविज्ञान? डार्विन का नृविज्ञान पद्म पुराण में है । यह बहुत अच्छी तरह से वर्णित है । डार्विन व्याख्या नहीं कर सकता है कि अलग प्रजातियों की संख्या क्या है, लेकिन पद्म पुराण में कहा गया है पानी के भीतर ९००,००० जीवन की प्रजातियों हैं, समुद्र के भीतर । और समुद्र के ऊपर, जैसे ही समुद्र का पानी सूख जाता है, भूमि बाहर आ रही है, तुरंत वनस्पति शुरू होता है । विभिन्न प्रकार के पौधे और पेड़ बाहर आते हैं । तो जलजा नव-लक्षाणि स्थावरा लक्ष-विम्शति । दो लाख, लक्ष-विम्शति, बीस लाख । यह दो लाख है? वैसे भी ... स्थावरा लक्ष, स्थावरा का मतलब है जा हिल नहीं सकते हैं । विभिन्न प्रकार के जीव होते हैं । पेड़, पौधे, वे हिल नहीं सकते हैं । अन्य जीव जैसे पक्षि, जानवर, इंसान, वे हिल सकते हैं । तो स्थावरा और जंगम । जंगम का मतलब है जो हिल सकते हैं और स्थावरा का मतलब है जो हिल नहीं सकते हैं । पहाड़ि, पहाड़, वे स्थावरा में गिने जातें हैं । वे भी जीव हैं । कई पहाड़ियॉ हैं, वे बढ़ रहे हैं । इसका मतलब है कि जीवन है लेकिन निम्नतम स्तर पर: पत्थर । तो इस तरह से हम प्रगति कर रहे हैं । स्थावरा लक्ष-विम्शति क्रमयो रुद्र-संखयका: । सरीसृप और कीड़े । रुद्र-संखयाका: का मतलब है ग्यारह सौ हजार । फिर सरीसृप, कीड़े, पंख बढ़तद हैं -पक्षि । जब पंख बढते हैं ... तो यह पक्षी जीवन में अाते हैं । पक्षीनाम दश-लक्षणम : दस सौ हजार पक्षियों के । और फिर पशव: त्रिमशल-लक्षाणि, चार पैर वाले जानवर, तीस लाख हैं । तो नौ और बीस, उनतीस, ग्यारह, चालीस । और फिर पक्षि, दस, पचास, जानवर, तीस, ८०-८० सौ हजार । और फिर ... आठ लाख - और मानव जीवन की चार लाख प्रजातियॉ । मानव जीवन बड़ी मात्रा में नहीं है । उन में से ज्यादातर वे असभ्य हैं, और बहुत कम आर्य परिवार । आर्य परिवार - इन्डो-यूरोपीय परिवार, वे भी आर्य हैं - वे बहुत कुम हैं । यूरोपी, वे इन्डो-यूरोपीय समूह के हैं ।अमेरिकि, वे भी यूरोप से आते हैं । तो मानव समाज का यह समूह बहुत कम है । दूसरे, कई असभ्य समूह हैं । इसलिए वेदांत , का कहना है अथ अत: अब तुम्हे यह विकसित मानव जीवन मिला है, सभ्य जीवन, तुम्हे अपने आरामदायक जीवन के लिए अच्छी व्यवस्था मिली है । खासकर अमेरिका में तुम्हे सभी भौतिक आराम मिले हैं । तुम्हे कार मिले हैं, तुम्हे अच्छी सड़क मिली है, अच्छा खाना, अच्छा भवन, अच्छी पोशाक, अच्छे शरीर का रूप । सब कुछ भगवान नें तुम्हे बहुत अच्छा दिया है ।
डार्विन नें इस उत्क्रांति के विचार को लिया है पद्म पुराण से । तुम्हे कोई भी तत्वज्ञान, कोई भी सिद्धांत दुनिया में नहीं मिलेगा, जो वैदिक साहित्य में नहीं मिलता हो । यह इतना पूर्ण है, सब कुछ है । तो अवतारवाद, या क्या कहा जाता है, नृविज्ञान? डार्विन का नृविज्ञान पद्म पुराण में है । यह बहुत अच्छी तरह से वर्णित है । अलग प्रजातियों की संख्या क्या है वो डार्विन समझा नहीं सकता है, लेकिन पद्म पुराण में कहा गया है पानी के भीतर ९,००,००० जीवन की प्रजातियों हैं, समुद्र के भीतर । और समुद्र के ऊपर, जैसे ही समुद्र का पानी सूख जाता है, भूमि बाहर आ रही है, तुरंत वनस्पति शुरू होती है । विभिन्न प्रकार के पौधे और पेड़ बाहर आते हैं । तो जलजा नव-लक्षाणि स्थावरा लक्ष-विम्शति । बीस लाख, लक्ष-विम्शति, बीस लाख । यह बीस लाख है? वैसे भी ...   स्थावरा लक्ष, स्थावरा का मतलब है जा हिल नहीं सकते हैं ।  
 
विभिन्न प्रकार के जीव होते हैं । पेड़, पौधे, वे हिल नहीं सकते हैं । अन्य जीव जैसे पक्षी, जानवर, इंसान, वे हिल सकते हैं । तो स्थावरा और जंगम । जंगम का मतलब है जो हिल सकते हैं और स्थावरा का मतलब है जो हिल नहीं सकते हैं । पहाड़ि, पहाड़, वे स्थावरा में गिने जातें हैं । वे भी जीव हैं । कई पहाड़ियॉ हैं, वे बढ़ रहे हैं । इसका मतलब है कि जीवन है लेकिन निम्नतम स्तर पर: - पत्थर । तो इस तरह से हम प्रगति कर रहे हैं । स्थावरा लक्ष-विम्शति कृमयो रुद्र-संख्यका: । सरीसृप और कीड़े । रुद्र-संख्यका: का मतलब है ग्यारह लाख । फिर सरीसृप, कीड़े, पंख बढ़ते हैं - पक्षी । जब पंख बढते हैं... तो यह पक्षी जीवन में अाते हैं । पक्षीणाम दश-लक्षणम: दस लाख पक्षीयों के । और फिर पाशव: त्रिंशल-लक्षाणि, चार पैर वाले जानवर, तीस लाख हैं । तो नौ और बीस, उनतीस, ग्यारह, चालीस । और फिर पक्षी, दस, पचास, जानवर, तीस, ८० - ८० लाख ।  
 
और फिर ... अस्सी लाख - और मानव जीवन की चार लाख प्रजातियॉ । मानव जीवन बड़ी मात्रा में नहीं है । उन में से ज्यादातर वे असभ्य हैं, और बहुत कम आर्य परिवार । आर्य परिवार - इन्डो-यूरोपीय परिवार, वे भी आर्य हैं - वे बहुत कुम हैं । यूरोपी, वे इन्डो-यूरोपीय समूह के हैं । अमेरिकी, वे भी यूरोप से आते हैं । तो मानव समाज का यह समूह बहुत कम है । दूसरे, कई असभ्य समूह हैं । इसलिए वेदांत का कहना है अथ अत: अब तुम्हे यह विकसित मानव जीवन मिला है, सभ्य जीवन, तुम्हे अपने आरामदायक जीवन के लिए अच्छी व्यवस्था मिली है । खासकर अमेरिका में तुम्हे सभी भौतिक आराम मिले हैं । तुम्हारे पास गाड़िया हैं, तुम्हे अच्छी सड़क मिली है, अच्छा खाना, अच्छी इमारते, अच्छी पोशाक, अच्छे शरीर का रूप । सब कुछ भगवान नें तुम्हे बहुत अच्छा दिया है ।  
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture -- Seattle, October 7, 1968

डार्विन नें इस उत्क्रांति के विचार को लिया है पद्म पुराण से । तुम्हे कोई भी तत्वज्ञान, कोई भी सिद्धांत दुनिया में नहीं मिलेगा, जो वैदिक साहित्य में नहीं मिलता हो । यह इतना पूर्ण है, सब कुछ है । तो अवतारवाद, या क्या कहा जाता है, नृविज्ञान? डार्विन का नृविज्ञान पद्म पुराण में है । यह बहुत अच्छी तरह से वर्णित है । अलग प्रजातियों की संख्या क्या है वो डार्विन समझा नहीं सकता है, लेकिन पद्म पुराण में कहा गया है पानी के भीतर ९,००,००० जीवन की प्रजातियों हैं, समुद्र के भीतर । और समुद्र के ऊपर, जैसे ही समुद्र का पानी सूख जाता है, भूमि बाहर आ रही है, तुरंत वनस्पति शुरू होती है । विभिन्न प्रकार के पौधे और पेड़ बाहर आते हैं । तो जलजा नव-लक्षाणि स्थावरा लक्ष-विम्शति । बीस लाख, लक्ष-विम्शति, बीस लाख । यह बीस लाख है? वैसे भी ... स्थावरा लक्ष, स्थावरा का मतलब है जा हिल नहीं सकते हैं ।

विभिन्न प्रकार के जीव होते हैं । पेड़, पौधे, वे हिल नहीं सकते हैं । अन्य जीव जैसे पक्षी, जानवर, इंसान, वे हिल सकते हैं । तो स्थावरा और जंगम । जंगम का मतलब है जो हिल सकते हैं और स्थावरा का मतलब है जो हिल नहीं सकते हैं । पहाड़ि, पहाड़, वे स्थावरा में गिने जातें हैं । वे भी जीव हैं । कई पहाड़ियॉ हैं, वे बढ़ रहे हैं । इसका मतलब है कि जीवन है लेकिन निम्नतम स्तर पर: - पत्थर । तो इस तरह से हम प्रगति कर रहे हैं । स्थावरा लक्ष-विम्शति कृमयो रुद्र-संख्यका: । सरीसृप और कीड़े । रुद्र-संख्यका: का मतलब है ग्यारह लाख । फिर सरीसृप, कीड़े, पंख बढ़ते हैं - पक्षी । जब पंख बढते हैं... तो यह पक्षी जीवन में अाते हैं । पक्षीणाम दश-लक्षणम: दस लाख पक्षीयों के । और फिर पाशव: त्रिंशल-लक्षाणि, चार पैर वाले जानवर, तीस लाख हैं । तो नौ और बीस, उनतीस, ग्यारह, चालीस । और फिर पक्षी, दस, पचास, जानवर, तीस, ८० - ८० लाख ।

और फिर ... अस्सी लाख - और मानव जीवन की चार लाख प्रजातियॉ । मानव जीवन बड़ी मात्रा में नहीं है । उन में से ज्यादातर वे असभ्य हैं, और बहुत कम आर्य परिवार । आर्य परिवार - इन्डो-यूरोपीय परिवार, वे भी आर्य हैं - वे बहुत कुम हैं । यूरोपी, वे इन्डो-यूरोपीय समूह के हैं । अमेरिकी, वे भी यूरोप से आते हैं । तो मानव समाज का यह समूह बहुत कम है । दूसरे, कई असभ्य समूह हैं । इसलिए वेदांत का कहना है अथ अत: अब तुम्हे यह विकसित मानव जीवन मिला है, सभ्य जीवन, तुम्हे अपने आरामदायक जीवन के लिए अच्छी व्यवस्था मिली है । खासकर अमेरिका में तुम्हे सभी भौतिक आराम मिले हैं । तुम्हारे पास गाड़िया हैं, तुम्हे अच्छी सड़क मिली है, अच्छा खाना, अच्छी इमारते, अच्छी पोशाक, अच्छे शरीर का रूप । सब कुछ भगवान नें तुम्हे बहुत अच्छा दिया है ।