HI/Prabhupada 0478 - यहाँ तुम्हारे हृदय के भीतर एक टीवी बॉक्स है: Difference between revisions

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प्रभुपाद: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम् भजामि ।
प्रभुपाद: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि ।  


भक्त: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम् भजामि ।
भक्त: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि ।  


प्रभुपाद: तो हम गोविन्दम की पूजा कर रहे हैं, देवत्व के परम व्यक्तित्व, मूल व्यक्ति । तो यह ध्वनि, गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम् भजामि, उन तक पहुंच रही है । वे सुन रहे हैं । तुम नही कह सकते कि वे सुन नहीं रहे । तुम कह सकते हो ? नहीं । खास तौर पर इस वैज्ञानिक युग में, जब टेलीविजन, रेडियो संदेश, हजारों मील दूर सेप्रसारित किए जाता है, और तुम सुन सकते हो, अब कैसे तुम ......? क्यों कृष्ण तुम्हारी प्रार्थना सुन नहीं सकते, सच्ची प्रार्थना? तुम यह कैसे कह सकते हो ? कोई भी इसे इनकार नहीं कर सकता । तो, प्रेमान्जन-छुरित भक्ति विलोचनेन संत: सदैव ह्रदयेषु वोलोकयन्ति ( ब्र स ५।३८) वैसे ही जैसे हजारों मील दूर तुम टीवी की तस्वीर का हस्तांतरण कर सकते हो, या तुम्हारी रेडियो ध्वनि का, इसी तरह, अगर तुम अपने आप को तैयार कर सकते हो, तो तुम हमेशा गोविंदा को देख सकते हो । यह मुश्किल नहीं है । यह ब्रह्मा संहिता में कहा गया है, तो, प्रेमान्जन-छुरित भक्ति विलोचनेन । बस तुम्हे अपनी आंखों के तैयार करना है इस तरह से, अपने दिमाग को । यहाँ तुम्हारे दिल के भीतर एक टीवी बॉक्स है । यही योग की पूर्णता है । एसा नहीं है कि तुम्हे एक मशीन खरीदना है, या टीवी सेट । यह पहले से है, और भगवान भी हैं । तुम देख सकते हो, तुम बात कर सकते हो, सुन सकते हो, अगर तुम्हारे पास मशीन है तो । तुम इसकी मरम्मत करो, बस । मरम्मत की प्रक्रिया ही कृष्ण भावनामृत है । अन्यथा, सब कुछ आपूर्ति किया गया है, पूरी तरह, तुम्हारे भीतर मशीन का पूरा सेट है । और जै मरम्मत के लिए, आवश्यकता है एक विशेषज्ञ मैकेनिक की इसी तरह, तुम्हे किसी विशेषज्ञ की सहायता की आवश्यकता है । तो फिर तुम देखोगे कि तुम्हारी मशीन काम कर रही है । यह समझना मुश्किल नहीं है । कोई भी यह नहीं कह सकता है कि यह संभव नहीं है । शास्त्र में भी हम सुनते हैं । साधु शास्त्र, गुरु वाक्य, तिनेते करिय अैक्य । आध्यात्मिक बोध तीन समानांतर प्रक्रिया द्वारा सिद्ध किया जा सकता है । साधु । साधु का मतलब है महात्मा , आत्म बोध सज्जन, साधु । और शास्त्र । शास्त्र का मतलब है वेद, प्रामाणिक ग्रंथ, वैदिक ग्रंथ । साधु, शास्त्र, गुरू, एक आध्यात्मिक गुरु । तीन समानांतर रेखा । और अगर तुम अपनी कार या वाहन को इन तीन समानांतर रेखा पर रखते हो, तुम्हारी कार कृष्ण को सीधे जाएगी । तिनेते करिय अैक्य । जैसे रेलवे लाइन में तुम दो समानांतर लाइनों को देखते हो । अगर वे ठीक से काम रही हैं तो, रेलवे गाड़ी अासानी से मंज़िल तक पहुँच जाती है । यहाँ भी, तीन समानांतर लाइनें हैं - साधु, शास्त्र, गुरु : साधु व्यक्ति, साधु व्यक्ति का संग, सदाशयी आध्यात्मिक गुरु की स्वीकृति, और शास्त्रों में विश्वास । बस । फिर तुम्हारी गाड़ी अच्छी तरह से चलेगी, किसी भी गड़बड़ी के बिना । साधु शास्त्र गुरू वाक्य तिनेते करिय अैक्य । तो यहाँ भगवद गीता में, देवत्व के परम व्यक्तित्व, श्री कृष्ण खुद को समझा रहे हैं । तो अगर तुम कहते हो, "मैं कैसे विश्वास करूँ कि कृष्ण ने कहा है ? किसी ने कृष्ण के नाम पर लिखा है कि, 'श्री कृष्ण ने कहा,' 'भगवान नें कहा ।" नहीं । यह परम्परा उत्तराधिकार कहा जाता है । तुम इस पुस्तक में देखोगे, भगवद गीता, कृष्ण, कृष्ण ने क्या कहा, और अर्जुन नें कैसे समझा । ये बातें वहाँ वर्णित है । और साधु, संत व्यक्ति, व्यासदेव से शुरुआत, नारद, कई अाचार्यों तक, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, विष्णु स्वामी, और नवीनतम, भगवान चैतन्य, इस तरह, उन्होनें स्वीकार किया है: "हाँ । यह श्री कृष्ण द्वारा बोल गया है ।" तो यह प्रमाण है । अगर साधुअों नें स्वीकार किया है ... उन्होंने इनकार नहीं किया है । प्राधिकरण, उन्होंनें स्वीकार किया है "हाँ ।" यह साधु कहलाता है । और क्योंकि साधु, साधुअों नें स्वीकार किया है, इसलिए यह शास्त्र है । यही परीक्षा है । जैसे ... यह सामान्य ज्ञान का मामला है । अगर वकील कुछ किताब को स्वीकार करते हैं, तो यह कानून की किताब समझा जाता है । तुम नहीं कह सकते कि "कैसे मैं इस कानून को स्वीकार कर सकता हूँ ?" सबूत यह है कि वकील स्वीकार कर रहे है । मेडिकल ... अगर डाक्टर मानता है, तो यह आधिकृत है । इसी प्रकार, अगर साधु भगवद गीता को स्वीकार कर रहे हैं , तुम इसे इनकार नहीं कर सकते । साधु शास्त्र: साधु और शास्त्र, दो बातें, और आध्यात्मिक गुरु, तीन, तीन समानांतर लाइन, कौन साधु और शास्त्र को स्वीकार करता है । साधु पुष्टि करता है शास्त्र की और आध्यात्मिक गुरु शास्त्र को स्वीकार करता है । सरल प्रक्रिया । तो वे असहमत नहीं हैं । जो कुछ भी शास्त्र में कहा जाता है वह साधु द्वारा स्वीकार किया जाता है, और जो कुछ शास्त्र में कहा जाता है, आध्यात्मिक गुरु सिर्फ वही बात बताता है । बस । तो माध्यम शास्त्र है । जैसे वकील और वादियों की तरह - माध्यम कानून की किताब है । इसी तरह, आध्यात्मिक गुरु, शास्त्र ... साधु का मतलब है जो वैदिक निषेधाज्ञा की पुष्टि करता है, जो स्वीकार करता है । और शास्त्र का मतलब है हो साधु द्वारा स्वीकार किया जाता है । और आध्यात्मिक गुरु का मतलब है जो शास्त्रों का अनुसरण करता है । तो जो बातें एक ही बात के बराबर है, वे एक दूसरे के बराबर भी हैं । यह स्वयंसिद्ध सत्य है । अगर तुम्हारे पास एक सौ डॉलर है, और एक और आदमी के पास सौ डॉलर है, अौर अगर मेरे पास सौ डॉलर है, तो हम सब बराबर हैं । इसी तरह, साधु शास्त्र गुरू वाक्य, जब ये तीन समानांतर लाइनें एक समान समझ की हैं, तब जीवन की सफलता है ।
प्रभुपाद: तो हम गोविन्दम की पूजा कर रहे हैं, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, मूल व्यक्ति । तो यह ध्वनि, गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि, उन तक पहुंच रही है । वे सुन रहे हैं । तुम नही कह सकते कि वे सुन नहीं रहे । तुम कह सकते हो ? नहीं । खास तौर पर इस वैज्ञानिक युग में, जब टेलीविजन, रेडियो संदेश, हजारों मील दूर से प्रसारित किया जाता है, और तुम सुन सकते हो, अब कैसे तुम ......? क्यों कृष्ण तुम्हारी प्रार्थना सुन नहीं सकते, सच्ची प्रार्थना? तुम यह कैसे कह सकते हो ? कोई भी इसे इनकार नहीं कर सकता । तो,  
 
:प्रेमान्जन-छुरित भक्ति विलोचनेन संत: सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति
:(ब्रह्मसंहिता ५.३८) |
 
वैसे ही जैसे हजारों मील दूर तुम टेलेविज़न की तस्वीर का हस्तांतरण कर सकते हो, या तुम्हारी रेडियो ध्वनि का, इसी तरह, अगर तुम अपने आप को तैयार कर सकते हो, तो तुम हमेशा गोविंद को देख सकते हो । यह मुश्किल नहीं है । यह ब्रह्मसंहिता में कहा गया है, तो, प्रेमान्जन-छुरित भक्ति विलोचनेन । बस तुम्हे अपनी आंखों के तैयार करना है इस तरह से, अपने दिमाग को । यहाँ तुम्हारे दिल के भीतर एक टेलीविज़न बॉक्स है । यही योग की पूर्णता है । एसा नहीं है कि तुम्हे एक यंत्र खरीदना है, या टेलिविज़न सेट । यह पहले से है, और भगवान भी हैं । तुम देख सकते हो, तुम बात कर सकते हो, सुन सकते हो, अगर तुम्हारे पास यंत्र है तो । तुम इसकी मरम्मत करो, बस । मरम्मत की प्रक्रिया ही कृष्ण भावनामृत है । अन्यथा, सब कुछ आपूर्ति किया गया है, पूरी तरह, तुम्हारे भीतर यंत्र का पूरा सेट है । और जैसे मरम्मत के लिए, आवश्यकता है एक विशेषज्ञ मैकेनिक की, इसी तरह, तुम्हे किसी विशेषज्ञ की सहायता की आवश्यकता है । तो फिर तुम देखोगे कि तुम्हारा यंत्र काम कर रहा है । यह समझना मुश्किल नहीं है ।  
 
कोई भी यह नहीं कह सकता है कि यह संभव नहीं है । शास्त्र में भी हम सुनते हैं । साधु शास्त्र, गुरु वाक्य, तिनेते करिय अैक्य । आध्यात्मिक बोध तीन समानांतर प्रक्रिया द्वारा सिद्ध किया जा सकता है । साधु । साधु का मतलब है महात्मा, आत्म साक्षात्कारी सज्जन, साधु । और शास्त्र । शास्त्र का मतलब है वेद, प्रामाणिक ग्रंथ, वैदिक ग्रंथ । साधु, शास्त्र, गुरू, एक आध्यात्मिक गुरु । तीन समानांतर रेखा । और अगर तुम अपनी गाडी या वाहन को इन तीन समानांतर रेखा पर रखते हो, तुम्हारी गाडी कृष्ण को सीधे जाएगी । तिनेते करिय अैक्य । जैसे रेलवे लाइन में तुम दो समानांतर लाइनों को देखते हो । अगर वे ठीक से काम रही हैं तो, रेलवे गाड़ी अासानी से मंज़िल तक पहुँच जाती है । यहाँ भी, तीन समानांतर लाइनें हैं - साधु, शास्त्र, गुरु: साधु व्यक्ति, साधु व्यक्ति का संग, प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु की स्वीकृति, और शास्त्रों में विश्वास । बस । फिर तुम्हारी गाड़ी अच्छी तरह से चलेगी, किसी भी गड़बड़ी के बिना । साधु शास्त्र गुरू वाक्य तिनेते करिय अैक्य ।  
 
तो यहाँ भगवद गीता में, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, श्री कृष्ण, खुद को समझा रहे हैं । तो अगर तुम कहते हो, "मैं कैसे विश्वास करूँ जो कृष्ण ने कहा है ? किसी ने कृष्ण के नाम पर लिखा है की, 'श्री कृष्ण ने कहा,' 'भगवान नें कहा ।" नहीं । यह परम्परा उत्तराधिकार कहा जाता है । तुम इस पुस्तक में देखोगे, भगवद गीता, कृष्ण, कृष्ण ने क्या कहा, और अर्जुन नें कैसे समझा । ये बातें वहाँ वर्णित है । और साधु, संत व्यक्ति, व्यासदेव से शुरुआत, नारद, कई अाचार्यों तक, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, विष्णु स्वामी, और नवीनतम, भगवान चैतन्य, इस तरह, उन्होनें स्वीकार किया है: "हाँ । यह श्री कृष्ण द्वारा बोला गया है ।" तो यह प्रमाण है । अगर साधुअों नें स्वीकार किया है ... उन्होंने इनकार नहीं किया है । अधिकारी, उन्होंनें स्वीकार किया है "हाँ ।" यह साधु कहलाता है । और क्योंकि साधु, साधुअों नें स्वीकार किया है, इसलिए यह शास्त्र है । यही परीक्षा है ।  
 
जैसे... यह सामान्य ज्ञान का मामला है । अगर वकील कुछ किताब को स्वीकार करते हैं, तो यह कानून की किताब समझा जाता है । तुम नहीं कह सकते कि "कैसे मैं इस कानून को स्वीकार कर सकता हूँ ?" सबूत यह है कि वकील स्वीकार कर रहे है । मेडिकल... अगर डॉक्टर मानता है, तो यह आधिकृत है । इसी प्रकार, अगर साधु भगवद गीता को स्वीकार कर रहे हैं, तुम इसे इनकार नहीं कर सकते । साधु शास्त्र: साधु और शास्त्र, दो बातें, और आध्यात्मिक गुरु, तीन, तीन समानांतर लाइन, जो साधु और शास्त्र को स्वीकार करता है । साधु पुष्टि करता है शास्त्र की और आध्यात्मिक गुरु शास्त्र को स्वीकार करते है । सरल प्रक्रिया । तो वे असहमत नहीं हैं ।  
 
जो कुछ भी शास्त्र में कहा जाता है वह साधु द्वारा स्वीकार किया जाता है, और जो कुछ शास्त्र में कहा जाता है, आध्यात्मिक गुरु सिर्फ वही बात बताता है । बस । तो माध्यम शास्त्र है । जैसे वकील और मुक़दमेबाज़ की तरह - माध्यम कानून की किताब है । इसी तरह, आध्यात्मिक गुरु, शास्त्र ... साधु का मतलब है जो वैदिक आज्ञा की पुष्टि करते है, जो स्वीकार करते है । और शास्त्र का मतलब है जो साधु द्वारा स्वीकार किया जाता है । और आध्यात्मिक गुरु का मतलब है जो शास्त्रों का अनुसरण करता है । तो जो बातें एक ही बात के बराबर है, वे एक दूसरे के बराबर भी हैं । यह स्वयंसिद्ध सत्य है । अगर तुम्हारे पास एक सौ डॉलर है, और एक और आदमी के पास सौ डॉलर है, अौर अगर मेरे पास सौ डॉलर है, तो हम सब बराबर हैं । इसी तरह, साधु शास्त्र गुरू वाक्य, जब ये तीन समानांतर लाइनें एक समान समझ की हैं, तब जीवन की सफलता है ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture -- Seattle, October 18, 1968

प्रभुपाद: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि ।

भक्त: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि ।

प्रभुपाद: तो हम गोविन्दम की पूजा कर रहे हैं, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, मूल व्यक्ति । तो यह ध्वनि, गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि, उन तक पहुंच रही है । वे सुन रहे हैं । तुम नही कह सकते कि वे सुन नहीं रहे । तुम कह सकते हो ? नहीं । खास तौर पर इस वैज्ञानिक युग में, जब टेलीविजन, रेडियो संदेश, हजारों मील दूर से प्रसारित किया जाता है, और तुम सुन सकते हो, अब कैसे तुम ......? क्यों कृष्ण तुम्हारी प्रार्थना सुन नहीं सकते, सच्ची प्रार्थना? तुम यह कैसे कह सकते हो ? कोई भी इसे इनकार नहीं कर सकता । तो,

प्रेमान्जन-छुरित भक्ति विलोचनेन संत: सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति
(ब्रह्मसंहिता ५.३८) |

वैसे ही जैसे हजारों मील दूर तुम टेलेविज़न की तस्वीर का हस्तांतरण कर सकते हो, या तुम्हारी रेडियो ध्वनि का, इसी तरह, अगर तुम अपने आप को तैयार कर सकते हो, तो तुम हमेशा गोविंद को देख सकते हो । यह मुश्किल नहीं है । यह ब्रह्मसंहिता में कहा गया है, तो, प्रेमान्जन-छुरित भक्ति विलोचनेन । बस तुम्हे अपनी आंखों के तैयार करना है इस तरह से, अपने दिमाग को । यहाँ तुम्हारे दिल के भीतर एक टेलीविज़न बॉक्स है । यही योग की पूर्णता है । एसा नहीं है कि तुम्हे एक यंत्र खरीदना है, या टेलिविज़न सेट । यह पहले से है, और भगवान भी हैं । तुम देख सकते हो, तुम बात कर सकते हो, सुन सकते हो, अगर तुम्हारे पास यंत्र है तो । तुम इसकी मरम्मत करो, बस । मरम्मत की प्रक्रिया ही कृष्ण भावनामृत है । अन्यथा, सब कुछ आपूर्ति किया गया है, पूरी तरह, तुम्हारे भीतर यंत्र का पूरा सेट है । और जैसे मरम्मत के लिए, आवश्यकता है एक विशेषज्ञ मैकेनिक की, इसी तरह, तुम्हे किसी विशेषज्ञ की सहायता की आवश्यकता है । तो फिर तुम देखोगे कि तुम्हारा यंत्र काम कर रहा है । यह समझना मुश्किल नहीं है ।

कोई भी यह नहीं कह सकता है कि यह संभव नहीं है । शास्त्र में भी हम सुनते हैं । साधु शास्त्र, गुरु वाक्य, तिनेते करिय अैक्य । आध्यात्मिक बोध तीन समानांतर प्रक्रिया द्वारा सिद्ध किया जा सकता है । साधु । साधु का मतलब है महात्मा, आत्म साक्षात्कारी सज्जन, साधु । और शास्त्र । शास्त्र का मतलब है वेद, प्रामाणिक ग्रंथ, वैदिक ग्रंथ । साधु, शास्त्र, गुरू, एक आध्यात्मिक गुरु । तीन समानांतर रेखा । और अगर तुम अपनी गाडी या वाहन को इन तीन समानांतर रेखा पर रखते हो, तुम्हारी गाडी कृष्ण को सीधे जाएगी । तिनेते करिय अैक्य । जैसे रेलवे लाइन में तुम दो समानांतर लाइनों को देखते हो । अगर वे ठीक से काम रही हैं तो, रेलवे गाड़ी अासानी से मंज़िल तक पहुँच जाती है । यहाँ भी, तीन समानांतर लाइनें हैं - साधु, शास्त्र, गुरु: साधु व्यक्ति, साधु व्यक्ति का संग, प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु की स्वीकृति, और शास्त्रों में विश्वास । बस । फिर तुम्हारी गाड़ी अच्छी तरह से चलेगी, किसी भी गड़बड़ी के बिना । साधु शास्त्र गुरू वाक्य तिनेते करिय अैक्य ।

तो यहाँ भगवद गीता में, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, श्री कृष्ण, खुद को समझा रहे हैं । तो अगर तुम कहते हो, "मैं कैसे विश्वास करूँ जो कृष्ण ने कहा है ? किसी ने कृष्ण के नाम पर लिखा है की, 'श्री कृष्ण ने कहा,' 'भगवान नें कहा ।" नहीं । यह परम्परा उत्तराधिकार कहा जाता है । तुम इस पुस्तक में देखोगे, भगवद गीता, कृष्ण, कृष्ण ने क्या कहा, और अर्जुन नें कैसे समझा । ये बातें वहाँ वर्णित है । और साधु, संत व्यक्ति, व्यासदेव से शुरुआत, नारद, कई अाचार्यों तक, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, विष्णु स्वामी, और नवीनतम, भगवान चैतन्य, इस तरह, उन्होनें स्वीकार किया है: "हाँ । यह श्री कृष्ण द्वारा बोला गया है ।" तो यह प्रमाण है । अगर साधुअों नें स्वीकार किया है ... उन्होंने इनकार नहीं किया है । अधिकारी, उन्होंनें स्वीकार किया है "हाँ ।" यह साधु कहलाता है । और क्योंकि साधु, साधुअों नें स्वीकार किया है, इसलिए यह शास्त्र है । यही परीक्षा है ।

जैसे... यह सामान्य ज्ञान का मामला है । अगर वकील कुछ किताब को स्वीकार करते हैं, तो यह कानून की किताब समझा जाता है । तुम नहीं कह सकते कि "कैसे मैं इस कानून को स्वीकार कर सकता हूँ ?" सबूत यह है कि वकील स्वीकार कर रहे है । मेडिकल... अगर डॉक्टर मानता है, तो यह आधिकृत है । इसी प्रकार, अगर साधु भगवद गीता को स्वीकार कर रहे हैं, तुम इसे इनकार नहीं कर सकते । साधु शास्त्र: साधु और शास्त्र, दो बातें, और आध्यात्मिक गुरु, तीन, तीन समानांतर लाइन, जो साधु और शास्त्र को स्वीकार करता है । साधु पुष्टि करता है शास्त्र की और आध्यात्मिक गुरु शास्त्र को स्वीकार करते है । सरल प्रक्रिया । तो वे असहमत नहीं हैं ।

जो कुछ भी शास्त्र में कहा जाता है वह साधु द्वारा स्वीकार किया जाता है, और जो कुछ शास्त्र में कहा जाता है, आध्यात्मिक गुरु सिर्फ वही बात बताता है । बस । तो माध्यम शास्त्र है । जैसे वकील और मुक़दमेबाज़ की तरह - माध्यम कानून की किताब है । इसी तरह, आध्यात्मिक गुरु, शास्त्र ... साधु का मतलब है जो वैदिक आज्ञा की पुष्टि करते है, जो स्वीकार करते है । और शास्त्र का मतलब है जो साधु द्वारा स्वीकार किया जाता है । और आध्यात्मिक गुरु का मतलब है जो शास्त्रों का अनुसरण करता है । तो जो बातें एक ही बात के बराबर है, वे एक दूसरे के बराबर भी हैं । यह स्वयंसिद्ध सत्य है । अगर तुम्हारे पास एक सौ डॉलर है, और एक और आदमी के पास सौ डॉलर है, अौर अगर मेरे पास सौ डॉलर है, तो हम सब बराबर हैं । इसी तरह, साधु शास्त्र गुरू वाक्य, जब ये तीन समानांतर लाइनें एक समान समझ की हैं, तब जीवन की सफलता है ।