HI/Prabhupada 0492 - बुद्ध तत्वज्ञान है कि तुम इस शरीर को उद्ध्वस्त करो, निर्वाण

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Lecture on BG 2.14 -- Germany, June 21, 1974

अब यह शरीर क्या है? यह शरीर पदार्थों का संयोजन है । पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन, बुद्धि, अहंकार का संयोजन । आठ भौतिक तत्व, पांच स्थूल और तीन सूक्ष्म । यह शरीर इनसे बना है । तो बुद्ध तत्वज्ञान है कि तुम इस शरीर को उद्ध्वस्त करो, निर्वाण । जैसे इस घर की तरह जो पत्थर, ईंट और लकड़ी से बना है और बहुत सारी चीज़ें । तो तुम इसे तोड़ो, और फिर कोई पत्थर और कोई ईंट नहीं है । इस पृथ्वी पर वितरित किया जाता है । पृथ्वी पर फेंक दो । तो कोई घर नहीं रहता । इसी प्रकार अगर तुम शून्य हो जाते हो, कोई शरीर नहीं है, तो तुम दर्द और खुशी से मुक्त हो । यह उनका तत्वज्ञान है, निर्वाण तत्वज्ञान, शून्यवादी: "उसे शून्य करो ।" लेकिन यह संभव नहीं है । यह संभव नहीं है । तुम नहीं कर सकते । तुम आत्मा हो । यह समझाया जाएगा । आप अनन्त हैं । आप शून्य नहीं हो सकते हो ।

यह समझाया जाएगा न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ.गी. २.२०), कि हम इस शरीर को त्याग रहे हैं, लेकिन तुरंत मुझे एक और शरीर को स्वीकार करना होगा, तुरंत । फिर निराकरण का तुम्हारा सवाल कहाँ है? प्रकृति के नियम से आपको एक और शरीर मिलेगा । क्योंकि आप आनंद लेना चाहते हैं, इसलिए आप इस भौतिक दुनिया में यहां आए हैं । पूछने का कोई सवाल ही नहीं है । हर कोई जानता है कि, "मैं इस भौतिक संसार में हूँ । मैं पूरी हद तक आनंद लेना चाहता हूँ ।" जो व्यक्ति इस से बेखबर है कि "मैं एक और जन्म लेने वाला हूँ," वह सोच रहा है, "यह पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि - का एक संयोजन है । तो जब यह टूट जाएगा, तो सब कुछ खत्म हो जाएगा । तो जब तक मुझे यह अवसर मिला है, मुझे पूरी हद तक आनंद लेने दो । " इसे नास्तिक, भौतिक मानसिकता कहा जाता है, जो यह नहीं जानता है कि हम शाश्वत आत्मा हैं, हम केवल शरीर बदल रहे हैं । नास्तिक सोचते हैं कि खत्म होने के बाद...

यहां पश्चिमी देश में, बड़े, बड़े प्रोफेसर, वे भी उसी धारणा के तहत हैं कि जब शरीर समाप्त हो जाता है, सब कुछ समाप्त हो जाता है । नहीं। यह नहीं । इसलिए यह शिक्षा की शुरुआत है । देहिनो अस्मिन यथा देहे कौमारम यौवनम जरा (भ.गी. २.१३) | तुम विभिन्न शरीर बदल रहे हो । शरीर समाप्त होने पर, तुम समाप्त नहीं होते हो ।