HI/Prabhupada 0495 - मुझे अपनी आँखें बंद करने दो । मैं खतरे से बाहर हूँ: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0495 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1974 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
No edit summary
 
Line 6: Line 6:
[[Category:HI-Quotes - in Germany]]
[[Category:HI-Quotes - in Germany]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0494 - नेपोलियन नें मजबूत निर्मित मेहराब का निर्माण किया, लेकिन वह कहाँ गया, कोई नहीं जानता|0494|HI/Prabhupada 0496 - श्रुति का मतलब है परम से सुनना|0496}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 14: Line 17:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|o-V9S_PDVQk|मुझे अपनी आँखें बंद करने दो । मैं खतरे से बाहर हूँ<br />- Prabhupāda 0495}}
{{youtube_right|MqqdAeQmBGQ|मुझे अपनी आँखें बंद करने दो । मैं खतरे से बाहर हूँ<br />- Prabhupāda 0495}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>http://vaniquotes.org/w/images/740621BG.GER_clip6.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/740621BG.GER_clip6.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 26: Line 29:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
श्रम एव हि केवलम ([[Vanisource:SB 1.2.8|श्री भ १।२।८]]) । श्रम एव हि केवलम का मतलब है केवल काम करना, बेकार में और समय बर्बाद करना । तुम प्रकृति के कानून को रोक नहीं सकते हो । मान लो तुम इस जीवन में बहुत बड़े नेता हो, प्रधानमंत्री, और सब कुछ । यह ठीक है, लेकिन तुम्हारी मानसिकता के अनुसार, तुम अपना अगला जीवन तैयार कर रहे हो । तो इस जीवन में तुम एक प्रधानमंत्री बने हुए हो, और अगले जन्म में तुम एक कुत्ता बन जाते हो । फिर लाभ क्या है? इसलिए ये नास्तिक मूर्ख, वे अगले जन्म को इनकार करना चाहते हैं । यही उनके लिए बहुत भयानक है । यह उनके लिए बहुत भयानक है । अगर वे अगले जीवन को स्वीकार करते हैं ... वे जानते हैं कि उनका जीवन बहुत पापी है । फिर उन्हें प्रकृति के नियमों के तहत क्या जीवन मिलेगा? जब वे इसके बारे में सोचते हैं, वे कंापते हैं । "बेहतर इसे इनकार करो । बेहतर इसे इनकार करो ।" एक खरगोश की तरह । दुश्मन उसके सामने है, और वह मरने जा रहा है, लेकिन सोचता है, "मुझे अपनी आँखें बंद करने दो । मैं खतरे से बाहर हूँ । " यह नास्तिक दृष्टिकोण है, कि वे भूलने की कोशिश कर रहे हैं कि, ... इसलिए वे इनकार करते हैं "कोई जीवन नहीं है।" क्यों नहीं? कृष्ण कहते हैं, कि, " तुम्हारा बचपन का शरीर था, तुम्हारा बच्चे का.... कहाँ है वह शरीर? तुम्हें उसे छोड़ दिया है । तुम एक अलग अलग शरीर में हो । इसी प्रकार, यह शरीर तुम बदलोगे । तुम्हे एक और शरीर मिलता है ।" और कौन कहते हैं? श्री कृष्ण कहते हैं । सबसे वरिष्ठ अधिकारी, वे कहते हैं । मैं शायद समझता नहीं, लेकिन जब वे कहते हैं ... यह हमारे ज्ञान की प्रक्रिया है । हम सही व्यक्ति से ज्ञान स्वीकार करते हैं । मैं मूर्ख हो सकता हूँ लेकिन सही व्यक्ति से प्राप्त किया गया ज्ञान परिपूर्ण है । यह हमारी प्रक्रिया है । हम कल्पना करने की कोशिश नहीं करते हैं । यही सफल या असफल हो सकता है, लेकिन अगर यह ज्ञान तुम सही प्राधिकारी से स्वीकार करो, तो यह ज्ञान सही है । जैसे कि अगर हम अटकलें करते हैं, "मेरे पिता कोन हैं?" तुम कल्पना कर सकते हो कि तुम्हारे पिता कौन हैं, लेकिन यह अटकलें तुम्हारी मदद नहीं करेंगी । तुम कभी नहीं समझ पाअपगे कि तुम्हारे पिता कौन हैं । लेकिन अगर तुम अपनी मां के पास जाओ, सर्वोच्च प्राधिकारी । वह तुरंत, "यहां तुम्हारे पिता है । " बस । और तुम किसी अन्य तरीके से अपने पिता का पता नहीं कर सकते हो । कोई दूसरा रास्ता नहीं है । यह व्यावहारिक है । तुम अपने पिता का पता नहीं कर सकते हो, अपनी मां के आधिकारिक बयान के बिना । इसी प्रकार, जो बातें तुम्हारी धारणा से परे हैं , अवन मानस-गोचर, तुम सोच नहीं सकते हो, तुम बात नहीं कर सकते हो । कभी कभी वे कहते हैं "भगवान के बारे में बात नहीं की जा सकती है । भगवान के बारे में सोचा नहीं जा सकता है।" यह सब ठीक है लेकिन अगर खुद भगवान तुम्हारे सामने आते हैं और कहते हैं, "मैं यहाँ हूँ," तो कहां कठिनाई है? मैं अपूर्ण हूँ । मैं पता नहीं कर सकता हूँ । कोई बात नहीं । लेकिन अगर खुद भगवान मेरे सामने आते हैं, ... (विराम)
श्रम एव हि केवलम ([[Vanisource:SB 1.2.8|श्रीमद भागवतम १.२.८]]) । श्रम एव हि केवलम का मतलब है केवल काम करना, बेकार में और समय बर्बाद करना । तुम प्रकृति के कानून को रोक नहीं सकते हो । मान लो तुम इस जीवन में बहुत बड़े नेता हो, प्रधानमंत्री, और सब कुछ । यह ठीक है, लेकिन तुम्हारी मानसिकता के अनुसार, तुम अपना अगला जीवन तैयार कर रहे हो । तो इस जीवन में तुम एक प्रधानमंत्री बने हुए हो, और अगले जन्म में तुम एक कुत्ता बन जाते हो । फिर लाभ क्या है? इसलिए ये नास्तिक मूर्ख, वे अगले जन्म का इनकार करना चाहते हैं । यही उनके लिए बहुत भयानक है । यह उनके लिए बहुत भयानक है । अगर वे अगले जीवन को स्वीकार करते हैं... वे जानते हैं कि उनका जीवन बहुत पापी है । फिर उन्हें प्रकृति के नियमों के तहत क्या जीवन मिलेगा? जब वे इसके बारे में सोचते हैं, वे काँप जाते हैं । "बेहतर इस का इनकार करो । बेहतर इस का इनकार करो ।" एक खरगोश की तरह । दुश्मन उसके सामने है, और वह मरने जा रहा है, लेकिन सोचता है, "मुझे अपनी आँखें बंद करने दो । मैं खतरे से बाहर हूँ । " यह नास्तिक दृष्टिकोण है, कि वे भूलने की कोशिश कर रहे हैं कि... इसलिए वे इनकार करते हैं "कोई जीवन नहीं है।" क्यों नहीं? कृष्ण कहते हैं, कि, "तुम्हारा बचपन का शरीर था... कहाँ है वह शरीर? तुमने उसे छोड़ दिया है । तुम एक अलग अलग शरीर में हो ।  
 
इसी प्रकार, यह शरीर भी तुम बदलोगे । तुम्हे एक और शरीर मिलता है ।" और कौन कहते हैं? श्री कृष्ण कहते हैं । सबसे वरिष्ठ अधिकारी, वे कहते हैं । मैं शायद समझता नहीं, लेकिन जब वे कहते हैं... यह हमारे ज्ञान की प्रक्रिया है । हम सही व्यक्ति से ज्ञान स्वीकार करते हैं । मैं मूर्ख हो सकता हूँ लेकिन सही व्यक्ति से प्राप्त किया गया ज्ञान परिपूर्ण है । यह हमारी प्रक्रिया है । हम कल्पना करने की कोशिश नहीं करते हैं । यही सफल या असफल हो सकता है, लेकिन अगर यह ज्ञान तुम सही प्राधिकारी से स्वीकार करो, तो यह ज्ञान सही है । जैसे कि अगर हम अटकलें करते हैं, "मेरे पिता कोन हैं?" तुम कल्पना कर सकते हो कि तुम्हारे पिता कौन हैं, लेकिन यह अटकलें तुम्हारी मदद नहीं करेंगी । तुम कभी नहीं समझ पाअपगे कि तुम्हारे पिता कौन हैं । लेकिन अगर तुम अपनी मां के पास जाओ, सर्वोच्च प्राधिकारी के पास । वह तुरंत, "यहां तुम्हारे पिता है ।" बस । और तुम किसी अन्य तरीके से अपने पिता का पता नहीं कर सकते हो । कोई दूसरा रास्ता नहीं है । यह व्यावहारिक है ।  
 
तुम अपने पिता का पता नहीं कर सकते हो, अपनी मां के आधिकारिक बयान के बिना । इसी प्रकार, जो बातें तुम्हारी धारणा से परे हैं, अवन मानस-गोचर, तुम सोच नहीं सकते हो, तुम बात नहीं कर सकते हो । कभी कभी वे कहते हैं "भगवान के बारे में बात नहीं की जा सकती है । भगवान के बारे में सोचा नहीं जा सकता है।" यह सब ठीक है | लेकिन अगर खुद भगवान तुम्हारे सामने आते हैं और कहते हैं, "मैं यहाँ हूँ," तो कहां कठिनाई है? मैं अपूर्ण हूँ । मैं पता नहीं कर सकता हूँ । कोई बात नहीं । लेकिन अगर खुद भगवान मेरे सामने आते हैं... (तोड़)  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 15:19, 12 October 2018



Lecture on BG 2.14 -- Germany, June 21, 1974

श्रम एव हि केवलम (श्रीमद भागवतम १.२.८) । श्रम एव हि केवलम का मतलब है केवल काम करना, बेकार में और समय बर्बाद करना । तुम प्रकृति के कानून को रोक नहीं सकते हो । मान लो तुम इस जीवन में बहुत बड़े नेता हो, प्रधानमंत्री, और सब कुछ । यह ठीक है, लेकिन तुम्हारी मानसिकता के अनुसार, तुम अपना अगला जीवन तैयार कर रहे हो । तो इस जीवन में तुम एक प्रधानमंत्री बने हुए हो, और अगले जन्म में तुम एक कुत्ता बन जाते हो । फिर लाभ क्या है? इसलिए ये नास्तिक मूर्ख, वे अगले जन्म का इनकार करना चाहते हैं । यही उनके लिए बहुत भयानक है । यह उनके लिए बहुत भयानक है । अगर वे अगले जीवन को स्वीकार करते हैं... वे जानते हैं कि उनका जीवन बहुत पापी है । फिर उन्हें प्रकृति के नियमों के तहत क्या जीवन मिलेगा? जब वे इसके बारे में सोचते हैं, वे काँप जाते हैं । "बेहतर इस का इनकार करो । बेहतर इस का इनकार करो ।" एक खरगोश की तरह । दुश्मन उसके सामने है, और वह मरने जा रहा है, लेकिन सोचता है, "मुझे अपनी आँखें बंद करने दो । मैं खतरे से बाहर हूँ । " यह नास्तिक दृष्टिकोण है, कि वे भूलने की कोशिश कर रहे हैं कि... इसलिए वे इनकार करते हैं "कोई जीवन नहीं है।" क्यों नहीं? कृष्ण कहते हैं, कि, "तुम्हारा बचपन का शरीर था... कहाँ है वह शरीर? तुमने उसे छोड़ दिया है । तुम एक अलग अलग शरीर में हो ।

इसी प्रकार, यह शरीर भी तुम बदलोगे । तुम्हे एक और शरीर मिलता है ।" और कौन कहते हैं? श्री कृष्ण कहते हैं । सबसे वरिष्ठ अधिकारी, वे कहते हैं । मैं शायद समझता नहीं, लेकिन जब वे कहते हैं... यह हमारे ज्ञान की प्रक्रिया है । हम सही व्यक्ति से ज्ञान स्वीकार करते हैं । मैं मूर्ख हो सकता हूँ लेकिन सही व्यक्ति से प्राप्त किया गया ज्ञान परिपूर्ण है । यह हमारी प्रक्रिया है । हम कल्पना करने की कोशिश नहीं करते हैं । यही सफल या असफल हो सकता है, लेकिन अगर यह ज्ञान तुम सही प्राधिकारी से स्वीकार करो, तो यह ज्ञान सही है । जैसे कि अगर हम अटकलें करते हैं, "मेरे पिता कोन हैं?" तुम कल्पना कर सकते हो कि तुम्हारे पिता कौन हैं, लेकिन यह अटकलें तुम्हारी मदद नहीं करेंगी । तुम कभी नहीं समझ पाअपगे कि तुम्हारे पिता कौन हैं । लेकिन अगर तुम अपनी मां के पास जाओ, सर्वोच्च प्राधिकारी के पास । वह तुरंत, "यहां तुम्हारे पिता है ।" बस । और तुम किसी अन्य तरीके से अपने पिता का पता नहीं कर सकते हो । कोई दूसरा रास्ता नहीं है । यह व्यावहारिक है ।

तुम अपने पिता का पता नहीं कर सकते हो, अपनी मां के आधिकारिक बयान के बिना । इसी प्रकार, जो बातें तुम्हारी धारणा से परे हैं, अवन मानस-गोचर, तुम सोच नहीं सकते हो, तुम बात नहीं कर सकते हो । कभी कभी वे कहते हैं "भगवान के बारे में बात नहीं की जा सकती है । भगवान के बारे में सोचा नहीं जा सकता है।" यह सब ठीक है | लेकिन अगर खुद भगवान तुम्हारे सामने आते हैं और कहते हैं, "मैं यहाँ हूँ," तो कहां कठिनाई है? मैं अपूर्ण हूँ । मैं पता नहीं कर सकता हूँ । कोई बात नहीं । लेकिन अगर खुद भगवान मेरे सामने आते हैं... (तोड़)