HI/Prabhupada 0518 - बद्ध जीवन के चार कार्य का मतलब है, जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा, और रोग

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Lecture on BG 7.1 -- Los Angeles, December 2, 1968

अगर तुम भौतिक अस्तित्व का समाधान बनाना चाहते हो भौतिक तरीके से, यह संभव नहीं है । यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है । भगवद गीता में तुम पाअोगे, दैवी हि एश गुणमयी मम माया दुरत्यय (भ गी ७।१४)( भ गी ७।१४) यह भौतिक प्रकृति जो स्वीकार की गई है, "मेरी शक्ति" के रूप में कृष्ण द्वारा, " मम माया ... यह भी कृष्ण की एक और शक्ति है । सब कुछ सातवें अध्याय में समझाया जाएगा । तो इस शक्ति से बाहर निकलना बहुत मुश्किल है । व्यावहारिक रूप से हम देख रहे हैं - हम क्या हैं? हमारे प्रयास बहुत छोटे हैं भौतिक प्रकृति के नियमों पर जीत पाने के लिए यह बस समय की बर्बादी है । तुम भौतिक प्रकृति पर विजय पाकर खुश नहीं हो सकते । अब विज्ञान नें ऐसी बहुत सी बातें का खोज किया है । बस, भारत से हवाई जहाज । तुम्हारे देश तक पहुँचने के लिए एक साथ कई महीने लग जाते, लेकिन हवाई जहाज से हम रातों रात यहां आ सके । ये लाभ हैं । लेकिन इन फायदों के साथ साथ, कई नुकसान हैं । जब तुम आकाश पर विमान पर होते हो, तो तुम्हे पता है कि तुम रेगिस्तान के बीच में हो ... खतरे की । किसी भी समय दुर्घटना हो सकती है । तुम समुद्र में गिर सकते हप, तुम कहीं भी नीचे गिर सकते हो । तो यह बहुत सुरक्षित नहीं है । तो इसी तरह, हम किसी भी विधि का निर्माण करें, हम खोज करें, भौतिक प्रकृति के नियमों पर जीत के लिए, यह खतरनाक चीजों के साथ ही अाती है । यही प्रकृति का नियम है । यही जीवन की इस भौतिक कष्टों से बाहर निकलने का रास्ता नहीं है । असली रास्ता है मेरे सशर्त जीवन के इन चार कार्यों को रोकना । सशर्त जीवन के चार कार्य का मतलब है, जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा, और रोग । दरअसल, मैं एक आत्मा हूँ । यह भगवद गीता की शुरुआत में समझाया गया है, कि आत्मा का जन्म कभी नहीं होता है या कभी नहीं मरता है । इस विशेष प्रकार के शरीर के विनाश के बाद भी उसका जीवन जारी रहता है । यह शरीर केवल कुछ वर्षों के लिए, केवल एक फ्लैश है । लेकिन यह खत्म हो जाएगा । यह डिग्री में समाप्त हो रहा है । वैसे ही जैसे मैं एक बूढ़ा आदमी हूँ तिहत्तर साल का । मान लीजिए अगर मैं अस्सी साल या सौ साल जियुँ, ये तिहत्तर साल मैं पहले ही मर चुका हूँ । यह समाप्त हो गया है । अब कुछ साल मैं रह सकता हूँ । तो हम अपने जन्म की तारीख से मर रहे हैं । यह एक तथ्य है । तो भगवद गीता तुम्हे इन चार समस्याओं का समाधान देता है । और यहाँ कृष्ण सुझाव दे रहे हैं, मै अासक्त मना: पार्थ योगम युन्जन मद-अाश्रय: अगर तुम कृष्ण की शरण लेते हो और तुम हमेशा कृष्ण के बारे में सोचते हो, तुम्हारी चेतना, कृष्ण के विचारों के साथ हमेशा अभिभूत हो जाती है । तब कृष्ण परिणाम क्या होगा यह कहते हैं, असम्शयम समग्रम माम यथा ज्ञास्यसि तच श्रुणु (भ गी ७।१) "तो फिर तुम मुझे सही में समझ जाअोगे, किसी भी शक के बिना ।"