HI/Prabhupada 0519 - कृष्ण भावनामृत व्यक्ति, वे किसी छायाचित्र के पीछै नहीं पडे हैं: Difference between revisions

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हर कोई उत्कंठित है यह जानने के लिए कि भगवान क्या हैं, भगवान की प्रकृति क्या है । कोई कहता है कि भगवान नहीं है, कोई कहता है कि भगवान मर चुके हैं । ये सभी संदेह हैं । लेकिन यहाँ कृष्ण कहते हैं, असम्शय । तुम निस्संदेह हो जाअोगे । तुम महसूस करोगे, तुम पूर्णता से जानोगे, कि भगवान हैं, श्री कृष्ण हैं । और वे सभी शक्तियों के स्रोत हैं । वे आदिम भगवान हैं । ये बातें तुम किसी भी शक के बिना सीखोगे । पहली बात है, कि हम दिव्य ज्ञान में प्रगति नहीं कर सकते हैं, संदेह के कारण, सम्शय: । ये संदेह वास्तविक ज्ञान की संस्कृति से हटाए जा सकते हैं, असली संग द्वारा, असली तरीकों का पालन करके, संदेह हटाए जा सकते हैं । इसलिए कृष्ण भावनामृत व्यक्तिय, वे किसी छायाचित्र के पीछै नहीं पडे हैं । वे वास्तव में देवत्व के परम व्यक्तित्व की अोर प्रगति कर रहे हैं ।
हर कोई उत्कंठित है यह जानने के लिए कि भगवान क्या हैं, भगवान की प्रकृति क्या है । कोई कहता है कि भगवान नहीं है, कोई कहता है कि भगवान मर चुके हैं । ये सभी संदेह हैं । लेकिन यहाँ कृष्ण कहते हैं, असंशय । तुम निस्संदेह हो जाअोगे । तुम महसूस करोगे, तुम पूर्णता से जानोगे कि भगवान हैं, श्रीकृष्ण हैं । और वे सभी शक्तियों के स्रोत हैं । वे आदि भगवान हैं । ये बातें तुम किसी भी शक के बिना सीखोगे । पहली बात है, कि हम दिव्य ज्ञान में प्रगति नहीं कर सकते हैं, संदेह के कारण, संशयः । ये संदेह वास्तविक ज्ञान के पालन से हटाए जा सकते हैं, असली संग द्वारा, असली तरीकों का पालन करके, संदेह हटाए जा सकते हैं । इसलिए कृष्णभावनामृत व्यक्ति, वे किसी छायाचित्र के पीछै नहीं पडे़ हैं । वे वास्तव में पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की अोर प्रगति कर रहे हैं ।  


जैसे ब्रह्म संहिता में कहा गया है, चिंतामणी प्रकर सदमशु कल्प वृक्ष लक्षावृतेशु सुरभीर अभिपालयन्तम ( ब्र स ५।२९) एक ग्रह है जिसे चिंतामणी धाम कहा जाता है , गोलोक वृन्दावन। तो उस धाम में... जैसे भगवद गीता में कहा गया है, मद-धाम । धाम का मतलब है उनका निवास । कृष्ण कहते हैं, "मेरा एक निवास है, विशेष रूप से ।" हम कैसे इनकार कर सकते हैं? कैसे है वह निवास ? वह भी भगवद गीता में वर्णित है और कई अन्य वैदिक साहित्य में भी । यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम् मम ([[Vanisource:BG 15.6|भ गी १५।६]]) यहाँ, कोई भी धाम, किसी भी ग्रह में तुम जाओ ... या तो ... नहीं स्पुतनिक से, यहां तक ​​कि प्राकृतिक जन्म से । किसी भी ग्रह तुम जाओ ... जैसे हमें यह ग्रह मिला है । लेकिन हमें वापस इस ग्रह से जाना है । तुम्हे यहाँ रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी । तुम अमेरिकि हो, ठीक है, लेकिन तुम कब तक अमेरिकी में रहोगे? ये लोग, वे समझ नहीं पाते । तुम्हे किसी अन्य ग्रह में वापस जाना होगा, किसी अन्य जगह में । तुम नहीं कह सकते कि "नहीं, मैं यहाँ रहूँगा । मेरे पास वीजा है या स्थायी नागरिकता । नहीं । यह स्वीकार्य नहीं है । एक दिन मृत्यु अाएगी, "कृपया बाहर निकलें ।" "नहीं सर, मेरा इतना व्यवसाय है ।" "नहीं, अपने व्यवसाय को गोली मारो । चलो ।" तुम देखते हो? लेकिन अगर तुम कृष्णलोक गए, कृष्ण कहते हैं, यद गत्वा न निवर्तन्ते, तुम्हे फिर से वापस अाना नहीं पडेगा । यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम् मम ([[Vanisource:BG 15.6|भ गी १५।६]])
जैसे ब्रह्म संहिता में कहा गया है, चिंतामणि प्रकर सद्मशु कल्प वृक्ष लक्षावृतेशु सुरभीर अभिपालयन्तम (ब्रह्मसंहिता ५.२९) एक ग्रह है जिसे चिंतामणि धाम कहा जाता है, गोलोक वृन्दावन ।  तो उस धाम में... जैसे भगवद गीता में कहा गया है, मद-धाम । धाम का मतलब है उनका निवास । कृष्ण कहते हैं, "मेरा एक निवास है, विशेष रूप से ।" हम कैसे इनकार कर सकते हैं ? कैसा है वह निवास ? वह भी भगवद गीता में वर्णित है और कई अन्य वैदिक साहित्यों में भी । यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम मम ([[HI/BG 15.6|भ.गी. १५.]])


यह भी कृष्ण का धाम है, क्योंकि सब कुछ भगवान कृष्ण के अंतर्गत आता है । अन्य कोई भी मालिक नहीं है यह दावा कि "यह भूमि, अमेरिका, हमारी है, संयुक्त राज्य अमेरिका की " यह झूठा दावा है । यह तुम्हारा नहीं हैं, किसी अौर का भी नहीं । जैसे कुछ साल पहले, चार सौ साल पहले, यह भारतीयों का, लाल भारतीयों का था, और किसी न किसी प्रकार से, तुमने अब कब्जा कर लिया है । कौन कह सकता है कि कोई अौर यहॉ अाके कब्जा नहीं करेगा? तो यह सब झूठे दावे हैं । असल में, सब कुछ कृष्ण के अंतर्गत आता है । कृष्ण कहते हैं कि सर्व लोक-महेश्वरम: "मैं सभी ग्रहों की परम मालिक, नियंत्रक, हूँ ।" तो सब कुछ उनका है । लेकिन कृष्ण कहते हैं कि सब कुछ उनका है । तो सब कुछ उनका धाम है, उनकी जगह, उनका निवास स्थान है । तो हम यहाँ क्यों बदलें? लेकिन वे कहते हैं कि यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम् मम ([[Vanisource:BG 15.6|भ गी १५।६]])
यहाँ, कोई भी धाम, किसी भी ग्रह में तुम जाओ... या तो...  अवकाश यान से नहीं, यहाँ तक ​​कि प्राकृतिक जन्म से । किसी भी ग्रह में तुम जाओ... जैसे हमें यह ग्रह मिला है । लेकिन हमें वापस इस ग्रह से जाना है । तुम्हे यहाँ रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी । तुम अमेरिकी हो, ठीक है, लेकिन तुम कब तक अमेरिकी रहोगे ? ये लोग, वे समझ नहीं पाते । तुम्हें किसी अन्य ग्रह में वापस जाना होगा, किसी अन्य जगह में । तुम नहीं कह सकते कि,"नहीं, मैं यहीं रहूँगा । मेरे पास वीज़ा है या स्थायी नागरिकता । नहीं । यह स्वीकार्य नहीं है । एक दिन मृत्यु अाएगी, "कृपया बाहर निकलें ।" "नहीं श्रीमान, मेरा इतना कार्य है ।"  "नहीं, अपने कार्य को गोली मारो । चलो ।"  तुम देखते हो ? लेकिन अगर तुम कृष्णलोक गए, कृष्ण कहते हैं, यद गत्वा न निवर्तन्ते, तुम्हें फिर से वापस अाना नहीं पडे़गा । यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम मम ([[HI/BG 15.6|भ.गी. १५.६]]) ।
 
यह भी कृष्ण का धाम है, क्योंकि सब कुछ भगवान कृष्ण के अंतर्गत आता है । अन्य कोई भी मालिक नहीं है यह दावा है कि, "यह भूमि, अमेरिका, हमारी है, संयुक्त राज्य अमेरिका की," यह झूठा दावा है । यह तुम्हारी नहीं हैं, किसी अौर की भी नहीं है । जैसे कुछ साल पहले, चार सौ साल पहले, यह भारतीयों का, लाल भारतीयों का था, और किसी न किसी प्रकार से, तुमने अब कब्जा कर लिया है । कौन कह सकता है कि कोई अौर यहाँ अाकर कब्जा नहीं करेगा ? तो यह सब झूठे दावे हैं ।  
 
असल में, सब कुछ कृष्ण के अंतर्गत आता है । कृष्ण कहते हैं कि सर्व लोक-महेश्वरम: ([[HI/BG 5.29|भ.गी. ५.२९]]): "मैं सभी ग्रहों का परम मालिक, नियंत्रक हूँ ।" तो सब कुछ उनका है । लेकिन कृष्ण कहते हैं कि सब कुछ उनका है । तो सब कुछ उनका धाम है, उनकी जगह, उनका निवास स्थान है । तो हम यहाँ क्यों बदलें ? लेकिन वे कहते हैं कि यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम मम ([[HI/BG 15.6|भ.गी. १५.६]])
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



Lecture on BG 7.1 -- Los Angeles, December 2, 1968

हर कोई उत्कंठित है यह जानने के लिए कि भगवान क्या हैं, भगवान की प्रकृति क्या है । कोई कहता है कि भगवान नहीं है, कोई कहता है कि भगवान मर चुके हैं । ये सभी संदेह हैं । लेकिन यहाँ कृष्ण कहते हैं, असंशय । तुम निस्संदेह हो जाअोगे । तुम महसूस करोगे, तुम पूर्णता से जानोगे कि भगवान हैं, श्रीकृष्ण हैं । और वे सभी शक्तियों के स्रोत हैं । वे आदि भगवान हैं । ये बातें तुम किसी भी शक के बिना सीखोगे । पहली बात है, कि हम दिव्य ज्ञान में प्रगति नहीं कर सकते हैं, संदेह के कारण, संशयः । ये संदेह वास्तविक ज्ञान के पालन से हटाए जा सकते हैं, असली संग द्वारा, असली तरीकों का पालन करके, संदेह हटाए जा सकते हैं । इसलिए कृष्णभावनामृत व्यक्ति, वे किसी छायाचित्र के पीछै नहीं पडे़ हैं । वे वास्तव में पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की अोर प्रगति कर रहे हैं ।

जैसे ब्रह्म संहिता में कहा गया है, चिंतामणि प्रकर सद्मशु कल्प वृक्ष लक्षावृतेशु सुरभीर अभिपालयन्तम (ब्रह्मसंहिता ५.२९) । एक ग्रह है जिसे चिंतामणि धाम कहा जाता है, गोलोक वृन्दावन । तो उस धाम में... जैसे भगवद गीता में कहा गया है, मद-धाम । धाम का मतलब है उनका निवास । कृष्ण कहते हैं, "मेरा एक निवास है, विशेष रूप से ।" हम कैसे इनकार कर सकते हैं ? कैसा है वह निवास ? वह भी भगवद गीता में वर्णित है और कई अन्य वैदिक साहित्यों में भी । यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम मम (भ.गी. १५.६) ।

यहाँ, कोई भी धाम, किसी भी ग्रह में तुम जाओ... या तो... अवकाश यान से नहीं, यहाँ तक ​​कि प्राकृतिक जन्म से । किसी भी ग्रह में तुम जाओ... जैसे हमें यह ग्रह मिला है । लेकिन हमें वापस इस ग्रह से जाना है । तुम्हे यहाँ रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी । तुम अमेरिकी हो, ठीक है, लेकिन तुम कब तक अमेरिकी रहोगे ? ये लोग, वे समझ नहीं पाते । तुम्हें किसी अन्य ग्रह में वापस जाना होगा, किसी अन्य जगह में । तुम नहीं कह सकते कि,"नहीं, मैं यहीं रहूँगा । मेरे पास वीज़ा है या स्थायी नागरिकता । नहीं । यह स्वीकार्य नहीं है । एक दिन मृत्यु अाएगी, "कृपया बाहर निकलें ।" "नहीं श्रीमान, मेरा इतना कार्य है ।" "नहीं, अपने कार्य को गोली मारो । चलो ।" तुम देखते हो ? लेकिन अगर तुम कृष्णलोक गए, कृष्ण कहते हैं, यद गत्वा न निवर्तन्ते, तुम्हें फिर से वापस अाना नहीं पडे़गा । यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम मम (भ.गी. १५.६) ।

यह भी कृष्ण का धाम है, क्योंकि सब कुछ भगवान कृष्ण के अंतर्गत आता है । अन्य कोई भी मालिक नहीं है । यह दावा है कि, "यह भूमि, अमेरिका, हमारी है, संयुक्त राज्य अमेरिका की," यह झूठा दावा है । यह तुम्हारी नहीं हैं, किसी अौर की भी नहीं है । जैसे कुछ साल पहले, चार सौ साल पहले, यह भारतीयों का, लाल भारतीयों का था, और किसी न किसी प्रकार से, तुमने अब कब्जा कर लिया है । कौन कह सकता है कि कोई अौर यहाँ अाकर कब्जा नहीं करेगा ? तो यह सब झूठे दावे हैं ।

असल में, सब कुछ कृष्ण के अंतर्गत आता है । कृष्ण कहते हैं कि सर्व लोक-महेश्वरम: (भ.गी. ५.२९): "मैं सभी ग्रहों का परम मालिक, नियंत्रक हूँ ।" तो सब कुछ उनका है । लेकिन कृष्ण कहते हैं कि सब कुछ उनका है । तो सब कुछ उनका धाम है, उनकी जगह, उनका निवास स्थान है । तो हम यहाँ क्यों बदलें ? लेकिन वे कहते हैं कि यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम मम (भ.गी. १५.६) ।