HI/Prabhupada 0519 - कृष्ण भावनामृत व्यक्ति, वे किसी छायाचित्र के पीछै नहीं पडे हैं
Lecture on BG 7.1 -- Los Angeles, December 2, 1968
हर कोई उत्कंठित है यह जानने के लिए कि भगवान क्या हैं, भगवान की प्रकृति क्या है । कोई कहता है कि भगवान नहीं है, कोई कहता है कि भगवान मर चुके हैं । ये सभी संदेह हैं । लेकिन यहाँ कृष्ण कहते हैं, असम्शय । तुम निस्संदेह हो जाअोगे । तुम महसूस करोगे, तुम पूर्णता से जानोगे, कि भगवान हैं, श्री कृष्ण हैं । और वे सभी शक्तियों के स्रोत हैं । वे आदिम भगवान हैं । ये बातें तुम किसी भी शक के बिना सीखोगे । पहली बात है, कि हम दिव्य ज्ञान में प्रगति नहीं कर सकते हैं, संदेह के कारण, सम्शय: । ये संदेह वास्तविक ज्ञान की संस्कृति से हटाए जा सकते हैं, असली संग द्वारा, असली तरीकों का पालन करके, संदेह हटाए जा सकते हैं । इसलिए कृष्ण भावनामृत व्यक्तिय, वे किसी छायाचित्र के पीछै नहीं पडे हैं । वे वास्तव में देवत्व के परम व्यक्तित्व की अोर प्रगति कर रहे हैं ।
जैसे ब्रह्म संहिता में कहा गया है, चिंतामणी प्रकर सदमशु कल्प वृक्ष लक्षावृतेशु सुरभीर अभिपालयन्तम ( ब्र स ५।२९) एक ग्रह है जिसे चिंतामणी धाम कहा जाता है , गोलोक वृन्दावन। तो उस धाम में... जैसे भगवद गीता में कहा गया है, मद-धाम । धाम का मतलब है उनका निवास । कृष्ण कहते हैं, "मेरा एक निवास है, विशेष रूप से ।" हम कैसे इनकार कर सकते हैं? कैसे है वह निवास ? वह भी भगवद गीता में वर्णित है और कई अन्य वैदिक साहित्य में भी । यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम् मम (भ गी १५।६) यहाँ, कोई भी धाम, किसी भी ग्रह में तुम जाओ ... या तो ... नहीं स्पुतनिक से, यहां तक कि प्राकृतिक जन्म से । किसी भी ग्रह तुम जाओ ... जैसे हमें यह ग्रह मिला है । लेकिन हमें वापस इस ग्रह से जाना है । तुम्हे यहाँ रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी । तुम अमेरिकि हो, ठीक है, लेकिन तुम कब तक अमेरिकी में रहोगे? ये लोग, वे समझ नहीं पाते । तुम्हे किसी अन्य ग्रह में वापस जाना होगा, किसी अन्य जगह में । तुम नहीं कह सकते कि "नहीं, मैं यहाँ रहूँगा । मेरे पास वीजा है या स्थायी नागरिकता । नहीं । यह स्वीकार्य नहीं है । एक दिन मृत्यु अाएगी, "कृपया बाहर निकलें ।" "नहीं सर, मेरा इतना व्यवसाय है ।" "नहीं, अपने व्यवसाय को गोली मारो । चलो ।" तुम देखते हो? लेकिन अगर तुम कृष्णलोक गए, कृष्ण कहते हैं, यद गत्वा न निवर्तन्ते, तुम्हे फिर से वापस अाना नहीं पडेगा । यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम् मम (भ गी १५।६)
यह भी कृष्ण का धाम है, क्योंकि सब कुछ भगवान कृष्ण के अंतर्गत आता है । अन्य कोई भी मालिक नहीं है यह दावा कि "यह भूमि, अमेरिका, हमारी है, संयुक्त राज्य अमेरिका की " यह झूठा दावा है । यह तुम्हारा नहीं हैं, किसी अौर का भी नहीं । जैसे कुछ साल पहले, चार सौ साल पहले, यह भारतीयों का, लाल भारतीयों का था, और किसी न किसी प्रकार से, तुमने अब कब्जा कर लिया है । कौन कह सकता है कि कोई अौर यहॉ अाके कब्जा नहीं करेगा? तो यह सब झूठे दावे हैं । असल में, सब कुछ कृष्ण के अंतर्गत आता है । कृष्ण कहते हैं कि सर्व लोक-महेश्वरम: "मैं सभी ग्रहों की परम मालिक, नियंत्रक, हूँ ।" तो सब कुछ उनका है । लेकिन कृष्ण कहते हैं कि सब कुछ उनका है । तो सब कुछ उनका धाम है, उनकी जगह, उनका निवास स्थान है । तो हम यहाँ क्यों बदलें? लेकिन वे कहते हैं कि यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम् मम (भ गी १५।६)