HI/Prabhupada 0522 - अगर तुम ईमानदारी से इस मंत्र का जाप करते हो, तो सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा

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Lecture on BG 7.1 -- Los Angeles, December 2, 1968

प्रभुपाद: हाँ ।

विष्णुजन: इतने किस्से हैं भगवान चैतन्य के इतने सारे दुष्टों को परिवर्तित करने के । सिर्फ उनकी मौजूदगी से, वे हरे कृष्ण का जाप करते थे । हम कैसे उनकी दया प्राप्त कर सकते हैं ताकि हम हमारे आसपास के लोगों की मदद कर सकते हैं हरे कृष्ण का जाप करने के लिए?

प्रभुपाद: अगर तुम ईमानदारी से इस मंत्र का जाप करते हो, तो सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा । यह परिमार्जन की प्रक्रिया है । अगर तुम्हे कुछ खराब विचार अाते भी हैं, बदमाश संग, कोई बात नहीं है । तुम बस मंत्र का जप करो ... तुम व्यावहारिक रूप से जानते हो, हर कोई, कि यह जप की प्रक्रिया एकमात्र विधि है लोगों को उन्नत करने के लिए । तो यह विधि है, जप और सुनना । भगवद गीता या श्रीमद-भागवतम से व्याख्यान सुनो, समझने की कोशिश करो, और मंत्र का जाप करो, और नियमों का पालन करो । तो नियम और विनियमन बाद में । सबसे पहले, तुम सुनने का प्रयास करो और मंत्र जपो । श्रन्वताम स्व-कथाः कृष्ण: पुण्य श्रवण कीर्तन: । पुण्य श्रवण कीर्तन: (श्री भ १।२।१७) जो भी हरे कृष्ण को सुनता है, वह केवल सुनने से पवित्र हो जाता है । वह शुद्ध हो जाता है । तो एक समय पर, वह स्वीकार करेगा । लेकिन लोग सोचते हैं कि, "यह हरे कृष्ण का जाप क्या है?" तुम देखते हो? अगर तुम उन्हें कुछ धोखा देते हो, कुंडलिनी योग और यह सभ बकवास, वे बहुत ज्यादा खुश हो जाऍगे । तुम देखते हो? तो वे धोखा खाना चाहते हैं । और कुछ धोकेबाज़ आते हैं, "हाँ, तुम मुझे पैंतीस डॉलर दो, यह मंत्र लो, और तुम छह महीने के भीतर भगवान बन जाअोगे, तुम्हे चार हाथ अा जाऍगे । " (हंसी) तो हम धोखा खाना चाहते हैं । वह है, धोखा देने की प्रक्रिया सशर्त जीवन की वस्तुओं में से एक है । सशर्त जीवन के चार दोष हैं । एक दोष है कि हम गलती करते हैं, और एक अन्य दोष है कि हम कुछ स्वीकार करते हैं जो वह नहीं है । जैसे गलती करना, यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है । हम में से हर एक जानता है कि हम कैसे गलती, भूल करते हैं । यहां तक ​​कि महान पुरुष, वे भी बड़ी भूल करते हैं, तुम देखो । जैसे नेताओं में तो कई उदाहरण हैं, एक छोटी सी गलती या एक बड़ी भूल, महान भूल ... तो गलती, "गलती करना मानवता है," गलती तो है । इसी तरह, एक तथ्य को स्वीकार करना जो तथ्य नहीं है । यह कैसे होता है? जैसे सशर्त जीवन में हर कोई, वे सोचते हैं कि "यह शरीर मेरी आत्मा है ।" लेकिन मैं यह नहीं हूँ । मैं यह शरीर नहीं हूँ । तो इसे भ्रम, प्रमाद कहा जाता है । सबसे अच्छा उदाहरण है एक रस्सी को स्वीकार करना एक साँप के रूप में । मान लो अंधेरे में वहाँ इस तरह की एक रस्सी है, और तुम कहते हो, "ओह, यहाँ एक साँप है ।" यह भ्रम का सबसे अच्छा उदाहरण है । कुछ स्वीकारना जो वह नहीं है । तो यह दोष सशर्त जीवन में है । और त्रुटि और गलती करना, यह दोष है । और तीसरा दोष है हम धोखा देना चाहते हैं और हम धोखा खाना चाहते हैं । हम बहुत विशेषज्ञ हैं । हम हमेशा सोच रहे हैं कि मैं कैसे किसी को धोखा दे सकता हूँ । और जाहिर है, वह भी मुझे धोखा देने की सोच रहा है । तो पूरा सशर्त जीवन संघ है धोखा देना वालों का और धोखा खाने वालों का । तो यह एक और दोष है. । और चौथा दोष है कि हमारी इन्द्रियॉ अपूर्ण हैं । इसलिए जो भी ज्ञान हम प्राप्त करते हैं, वह अपूर्ण ज्ञान है । एक आदमी अटकलें कर सकता है, लेकिन वह अपने मन के साथ अटकलें कर सकता है । बस । लेकिन उसका मन अपूर्ण है ।कितनी भी वह अटकलें करे, वह कुछ बकवास का उत्पादन करेगा । क्योंकि उसका मन अपूर्ण है । कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर तुम हजारों शून्य जोड़ो, यह एक (नहीं) बनाता है । नहीं, यह अभी भी शून्य है । तो यह अटकलों की प्रक्रिया, परम को समझने के लिए, कुछ नहीं है पर शून्य । इसलिए हमारे सशर्त जीवन के इन सभी दोषों के साथ, इस वास्तविक जीवन में आना संभव नहीं है । इसलिए हमें कृष्ण जैसे व्यक्तित्व से इसे लेना होगा और उनके सदाशयी प्रतिनिधियों से । यही वास्तविक ज्ञान है । तो फिर तुम्हे पूर्णता मिलेगी ।