HI/Prabhupada 0530 - हम इस संकट से बाहर अा सकते हैं जब हम विष्णु का अाश्रय लेते हैं: Difference between revisions

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अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । यह जीवन ब्रह्मण के बारे में पूछताछ करने के लिए है । ब्रह्मण, परमात्मा, भगवान । ये पूछताछ होनी चाहिए । जिज्ञासु । वे जिज्ञासु कहे जाते है , ब्रह्म-जिज्ञासा, जिज्ञासु, पूछताछ । जैसे हम हर सुबह पूछताछ करते हैं, "आज खबर क्या है?" इसके तत्काल बाद हम अखबार उठाते हैं । यह जिज्ञासा तो है । लेकिन हम केवल बहुत बुनियादी चीजों की पूछताछ कर रहे हैं । सबसे उत्तम सम्भावना के बारे में पूछताछ करने की कोई इच्छा नहीं है, ब्रह्म ज्ञान यही इस आधुनिक सभ्यता की कमी है । तहकीकात है कि कैसे पैसा कमाया जाए : दिवा चार्थैहया राजन कुटुम्ब भरनेन व ([[Vanisource:SB 2.1.3|श्री भ २।१।३]]) केवल इसी युग में नहीं ... इस युग में यह प्रमुख कारक बन गया है लेकिन इस भौतिक संसार में, हर कोई जीवन के इन शारीरिक जरूरतों के लिए बस लगा हुअा है । निद्रया ह्रियते नक्तम: रात में बहुत गहरी नींद सो जाओ, खर्राटे । या फिर सेक्स जीवन । निद्रया ह्रियते नक्तम व्यवायेन च वा वय: ([[Vanisource:SB 2.1.3|श्री भ २।१।३]]) इस तरह वे समय बर्बाद कर रहे हैं । और दिन में, दिवा चार्थेहया राजन ... और दिन के दौरान, "पैसे कहाँ है? पैसा कहां है? पैसे कहाँ है?" अर्थ इहाय । कुटुम्ब-भरनेन वा । और जैसे ही पैसा मिलता है, तो कैसे परिवार के लिए चीजें खरीदें, बस । खरीदारी, भंडारण । यही भौतिकवादी जीवन का व्यवसाय है । उनमे से , वास्तव में जो बुद्धिमान है, ... मनुष्यानाम् सहस्रेशु कश्चिद यतति सिध्धये ([[Vanisource:BG 7.3|भ गी ७।३]]) ऐसे कई मूर्ख व्यक्तियों में से जो पैसे कमाने, सोने, संभोग में लगे हुए हैं, और अच्छा घर और भोजन परिवार को उपलब्ध कराने में ... यह सामान्य व्यवसाय है । तो इन कई हजारों पुरुषों में से, कोइ एक जिज्ञासु है कि मनुष्य जीवन को आदर्श कैसे बनाया जाए । मनुष्यानाम् सहस्रेशु कश्चिद यतति सिध्धये
अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । यह जीवन ब्रह्म के बारे में पूछताछ करने के लिए है । ब्रह्म, परमात्मा, भगवान । ये पूछताछ होनी चाहिए । जिज्ञासु । वे जिज्ञासु कहे जाते है , ब्रह्म-जिज्ञासा, जिज्ञासु, पूछताछ । जैसे हम हर सुबह पूछताछ करते हैं, "आज की क्या खबर है ?" इसके तत्काल बाद हम अखबार उठाते हैं । यह जिज्ञासा तो है । लेकिन हम केवल बहुत बुनियादी चीजों की पूछताछ कर रहे हैं । सबसे उत्तम सम्भावना, ब्रह्म ज्ञान, के बारे में पूछताछ करने की कोई इच्छा नहीं है । यह इस आधुनिक सभ्यता की कमी है । पृच्छा है कि कैसे पैसा कमाया जाए, दिवा चार्थेहया राजन कुटुम्ब भरणेन वा ([[Vanisource:SB 2.1.3|श्रीमद भागवतम् २..]]) ।  


सिद्धये । सिद्धि का मतलब है पूर्णता । तो यह जीवन पूर्णता के लिए है । पूर्णता क्या है? पूर्णता का मतलब हम जीवन की यह दयनीय हालत नहीं चाहते हैं और हमें इस से बाहर निकलना होगा । यही पूर्णता है । प्रत्येक व्यक्ति जीवन की इस दयनीय हालत से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है । लेकिन उन्हे दुखी जीवन की वास्तविक स्थिति क्या है यह पता नहीं है । जीवन की दयनीय हालत: त्रि-तप-यनत: तो इसे, मुक्ति, या मोक्ष कहा जाता है ... अात्यन्तिक-दुक्ख-निव्रत्ति: । दुक्ख, दुक्ख का मतलब है संकट । इसलिए सब लोग संकट से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं । लेकिन वह संकट से बाहर निललने का अंतिम लक्ष्य क्या है यह नहीं जानता है । न ते विदु: । वे नहीं जानते । ना ते विदु: स्वार्थ-गतिम हि विष्णु ([[Vanisource:SB 7.5.31|श्री भ ७।५।३१]]) । हम इस संकट से बाहर अा सकते हैं जब हम विष्णु का अाश्रय लेते हैं । तद विष्णुम् परमम् पदम सदा पश्यन्ति सूरय: । तद विष्णुम् परमम् पदम । विष्णु ग्रह ... जैसे इस भौतिक दुनिया में वे चंद्रमा ग्रह पर जाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह मूर्ख लोग नहीं जानते हैं कि, चंद्रमा ग्रह में जाने से उन्हे क्या लाभ होगा । यह भौतिक ग्रहों में से एक है । कृष्ण नें पहले से ही कहा है भगवद गीता में, अाब्रह्म-भुवनाल लोकान । इस चंद्रमा ग्रह की क्या बात करें - यह बहुत निकट है - भले ही तुम सर्वोच्च ग्रह में भी चले जाअो ... जिसे ब्रह्मलोक कहा जाता है.... यह तुम्हारे सामने है, तुम हर दिन, हर रात देख सकते हो, कितने लोक और ग्रह हैं । लेकिन तुम वहां नहीं जा सकते । तुम बस निकटतम ग्रह पर जाने के लिए कोशिश कर रहे हो । वह भी विफलता है । तो तुम्हारा वैज्ञानिक सुधार क्या है? लेकिन संभावना है । -ब्रह्म-भुवनाल लोकान । तुम जा सकते हो । भौतिक वैज्ञानिकों की गणना है कि अगर हम आगे चले जाते हैं चालीस हजारों साल के लिए प्रकाश की गति से, प्रकाश वर्ष की गति, तो हम भौतिक दुनिया के सर्वोच्च ग्रह के अोर रुख कर सकते हैं । तो कम से कम आधुनिक वैज्ञानिक गणना में तो, यह असंभव है । लेकिन जाया जा सकता है, एक प्रक्रिया है । यही हमने समझाने की कोशिश की है मेरी छोटी सी पुस्तिका - अन्य ग्रहों के लिए आसान रास्ता । योग प्रक्रिया द्वारा हम अपने पसंद की किसी भी ग्रह पर जा सकते हैं । यही योग की पूर्णता है । जब एक योगी परिपूर्ण हो जाता है, वह अपने पसंद की किसी भी ग्रह पर जा सकता है, और योग का अभ्यास चलता रहता है, जब तक कि वह योगी खुद को पूर्ण न समझे, अपने पसंद की किसी भी ग्रह को यात्रा के लिए । यही योग के अभ्यास की पूर्णता है । तो, यह जीवन की पूर्णता है, वह नन्हा, कृत्रिम तैरता उपग्रह नहीं, स्पूटनिक । (हंसी) वे जानते नहीं हैं कि जीवन की पूर्णता क्या है । तुम कहीं भी जा सकते हो ।
केवल इसी युग में नहीं... इस युग में यह प्रमुख कारक बन गया है, लेकिन इस भौतिक संसार में, हर कोई बस जीवन की इन शारीरिक जरूरतों में लगा हुअा है । निद्रया ह्रियते नक्तम: रात में बहुत गहरी नींद सो जाओ, खर्राटे मारते हुए । या फिर यौन जीवन । निद्रया ह्रियते नक्तम व्यवायेन च वा वय: ([[Vanisource:SB 2.1.3|श्रीमद भागवतम् २.१.३]]) । इस तरह वे समय बर्बाद कर रहे हैं । और दिन में, दिवा चार्थेहया राजन... और दिन के दौरान, "पैसे कहाँ है ? पैसे कहाँ है ? पैसे कहाँ है ?" अर्थ इहाय । कुटुम्ब-भरणेन वा । और जैसे ही पैसा मिलता है, तो कैसे परिवार के लिए चीजें खरीदें, बस । खरीदारी, भंडारण । 
 
यही भौतिकवादी जीवन का व्यवसाय है । उनमें से, वास्तव में जो बुद्धिमान हैं... मनुष्याणाम सहस्रेशु कश्चिद यतति सिद्धये ([[HI/BG 7.3|भ.गी. ७.३]]) । ऐसे कई मूर्ख व्यक्तियों में से जो पैसे कमाने, सोने, संभोग में लगे हुए हैं, और परिवार को अच्छा घर और भोजन उपलब्ध कराने में... यह सामान्य व्यवसाय है । तो इन कई हजारों पुरुषों में से, कोइ एक जिज्ञासु है की मनुष्य जीवन को आदर्श कैसे बनाया जाए । मनुष्याणाम सहस्रेशु कश्चिद यतति सिद्धये । सिद्धये ।  
 
सिद्धि का मतलब है पूर्णता । तो यह जीवन पूर्णता के लिए है । पूर्णता क्या है ? पूर्णता का मतलब हम जीवन की यह दयनीय हालत नहीं चाहते हैं, और हमें इससे बाहर निकलना होगा । यही पूर्णता है । प्रत्येक व्यक्ति जीवन की इस दयनीय हालत से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है । लेकिन उन्हें दुःखी जीवन की वास्तविक स्थिति क्या है यह पता नहीं है । जीवन की दयनीय हालत: त्रि-ताप-यनतन: तो इसे मुक्ति, या मोक्ष कहा जाता है... अात्यन्तिक-दुःख-निवृत्ति: । दुःख, दुःख का मतलब है संकट । इसलिए सब लोग संकट से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं । लेकिन वो संकट से बाहर निकलने का अंतिम लक्ष्य क्या है यह नहीं जानता है ।  
 
न ते विदु:। वे नहीं जानते । ते विदु: स्वार्थ-गतिम हि विष्णुम ([[Vanisource:SB 7.5.31|श्रीमद भागवतम् ७.५.३१]]) । हम इस संकट से बाहर अा सकते हैं जब हम विष्णु का अाश्रय लेते हैं । तद विष्णुम परमम पदम सदा पश्यन्ति सूरय: । तद विष्णुम परमम पदम । विष्णु ग्रह... जैसे इस भौतिक दुनिया में वे चंद्र ग्रह पर जाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह मूर्ख लोग नहीं जानते हैं कि, चंद्र ग्रह पे जाने से उन्हें क्या लाभ होगा । यह भौतिक ग्रहों में से एक है । कृष्ण नें पहले से ही कहा है भगवद गीता में, अाब्रह्म-भुवनाल लोकान । इस चंद्र ग्रह की क्या बात करें - यह बहुत निकट है - भले ही तुम सर्वोच्च ग्रह पे भी चले जाअो... जिसे ब्रह्मलोक कहा जाता है... यह तुम्हारे सामने है, तुम हर दिन, हर रात देख सकते हो, कितने लोक और ग्रह हैं । लेकिन तुम वहां नहीं जा सकते । तुम बस निकटतम ग्रह पर जाने के लिए कोशिश कर रहे हो । वह भी विफलता है ।  
 
तो तुम्हारा वैज्ञानिक सुधार क्या है ? लेकिन संभावना है । -ब्रह्म-भुवनाल लोकान । तुम जा सकते हो । भौतिक वैज्ञानिकों की गणना है कि अगर हम आगे चले जाते हैं, चालीस हजारों साल के लिए प्रकाश की गति से, प्रकाश वर्ष की गति, तो हम भौतिक दुनिया के सर्वोच्च ग्रह पर पहुंच सकते हैं । तो कम से कम आधुनिक वैज्ञानिक गणना में तो, यह असंभव है । लेकिन जाया जा सकता है, एक प्रक्रिया है । यही हमने समझाने की कोशिश की है हमारी छोटी सी पुस्तिका - अन्य ग्रहों की सुगम यात्रा में । योग प्रक्रिया द्वारा हम अपने पसंद के किसी भी ग्रह पर जा सकते हैं । यही योग की पूर्णता है ।  
 
जब एक योगी परिपूर्ण हो जाता है, वह अपने पसंद की किसी भी ग्रह पर जा सकता है, और योग का अभ्यास चलता रहता है, जब तक कि वह योगी खुद को पूर्ण न समझे, अपना पसंद के किसी भी ग्रह की यात्रा के लिए । यही योग के अभ्यास की पूर्णता है । तो, यह जीवन की पूर्णता है, वह नन्हा, कृत्रिम तैरता अवकाशयान नहीं । (हँसी) वे जानते नहीं हैं कि जीवन की पूर्णता क्या है । तुम कहीं भी जा सकते हो ।  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



Radhastami, Srimati Radharani's Appearance Day -- London, August 29, 1971

अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । यह जीवन ब्रह्म के बारे में पूछताछ करने के लिए है । ब्रह्म, परमात्मा, भगवान । ये पूछताछ होनी चाहिए । जिज्ञासु । वे जिज्ञासु कहे जाते है , ब्रह्म-जिज्ञासा, जिज्ञासु, पूछताछ । जैसे हम हर सुबह पूछताछ करते हैं, "आज की क्या खबर है ?" इसके तत्काल बाद हम अखबार उठाते हैं । यह जिज्ञासा तो है । लेकिन हम केवल बहुत बुनियादी चीजों की पूछताछ कर रहे हैं । सबसे उत्तम सम्भावना, ब्रह्म ज्ञान, के बारे में पूछताछ करने की कोई इच्छा नहीं है । यह इस आधुनिक सभ्यता की कमी है । पृच्छा है कि कैसे पैसा कमाया जाए, दिवा चार्थेहया राजन कुटुम्ब भरणेन वा (श्रीमद भागवतम् २.१.३) ।

केवल इसी युग में नहीं... इस युग में यह प्रमुख कारक बन गया है, लेकिन इस भौतिक संसार में, हर कोई बस जीवन की इन शारीरिक जरूरतों में लगा हुअा है । निद्रया ह्रियते नक्तम: रात में बहुत गहरी नींद सो जाओ, खर्राटे मारते हुए । या फिर यौन जीवन । निद्रया ह्रियते नक्तम व्यवायेन च वा वय: (श्रीमद भागवतम् २.१.३) । इस तरह वे समय बर्बाद कर रहे हैं । और दिन में, दिवा चार्थेहया राजन... और दिन के दौरान, "पैसे कहाँ है ? पैसे कहाँ है ? पैसे कहाँ है ?" अर्थ इहाय । कुटुम्ब-भरणेन वा । और जैसे ही पैसा मिलता है, तो कैसे परिवार के लिए चीजें खरीदें, बस । खरीदारी, भंडारण ।

यही भौतिकवादी जीवन का व्यवसाय है । उनमें से, वास्तव में जो बुद्धिमान हैं... मनुष्याणाम सहस्रेशु कश्चिद यतति सिद्धये (भ.गी. ७.३) । ऐसे कई मूर्ख व्यक्तियों में से जो पैसे कमाने, सोने, संभोग में लगे हुए हैं, और परिवार को अच्छा घर और भोजन उपलब्ध कराने में... यह सामान्य व्यवसाय है । तो इन कई हजारों पुरुषों में से, कोइ एक जिज्ञासु है की मनुष्य जीवन को आदर्श कैसे बनाया जाए । मनुष्याणाम सहस्रेशु कश्चिद यतति सिद्धये । सिद्धये ।

सिद्धि का मतलब है पूर्णता । तो यह जीवन पूर्णता के लिए है । पूर्णता क्या है ? पूर्णता का मतलब हम जीवन की यह दयनीय हालत नहीं चाहते हैं, और हमें इससे बाहर निकलना होगा । यही पूर्णता है । प्रत्येक व्यक्ति जीवन की इस दयनीय हालत से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है । लेकिन उन्हें दुःखी जीवन की वास्तविक स्थिति क्या है यह पता नहीं है । जीवन की दयनीय हालत: त्रि-ताप-यनतन: । तो इसे मुक्ति, या मोक्ष कहा जाता है... अात्यन्तिक-दुःख-निवृत्ति: । दुःख, दुःख का मतलब है संकट । इसलिए सब लोग संकट से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं । लेकिन वो संकट से बाहर निकलने का अंतिम लक्ष्य क्या है यह नहीं जानता है ।

न ते विदु:। वे नहीं जानते । न ते विदु: स्वार्थ-गतिम हि विष्णुम (श्रीमद भागवतम् ७.५.३१) । हम इस संकट से बाहर अा सकते हैं जब हम विष्णु का अाश्रय लेते हैं । तद विष्णुम परमम पदम सदा पश्यन्ति सूरय: । तद विष्णुम परमम पदम । विष्णु ग्रह... जैसे इस भौतिक दुनिया में वे चंद्र ग्रह पर जाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह मूर्ख लोग नहीं जानते हैं कि, चंद्र ग्रह पे जाने से उन्हें क्या लाभ होगा । यह भौतिक ग्रहों में से एक है । कृष्ण नें पहले से ही कहा है भगवद गीता में, अाब्रह्म-भुवनाल लोकान । इस चंद्र ग्रह की क्या बात करें - यह बहुत निकट है - भले ही तुम सर्वोच्च ग्रह पे भी चले जाअो... जिसे ब्रह्मलोक कहा जाता है... यह तुम्हारे सामने है, तुम हर दिन, हर रात देख सकते हो, कितने लोक और ग्रह हैं । लेकिन तुम वहां नहीं जा सकते । तुम बस निकटतम ग्रह पर जाने के लिए कोशिश कर रहे हो । वह भी विफलता है ।

तो तुम्हारा वैज्ञानिक सुधार क्या है ? लेकिन संभावना है । आ-ब्रह्म-भुवनाल लोकान । तुम जा सकते हो । भौतिक वैज्ञानिकों की गणना है कि अगर हम आगे चले जाते हैं, चालीस हजारों साल के लिए प्रकाश की गति से, प्रकाश वर्ष की गति, तो हम भौतिक दुनिया के सर्वोच्च ग्रह पर पहुंच सकते हैं । तो कम से कम आधुनिक वैज्ञानिक गणना में तो, यह असंभव है । लेकिन जाया जा सकता है, एक प्रक्रिया है । यही हमने समझाने की कोशिश की है हमारी छोटी सी पुस्तिका - अन्य ग्रहों की सुगम यात्रा में । योग प्रक्रिया द्वारा हम अपने पसंद के किसी भी ग्रह पर जा सकते हैं । यही योग की पूर्णता है ।

जब एक योगी परिपूर्ण हो जाता है, वह अपने पसंद की किसी भी ग्रह पर जा सकता है, और योग का अभ्यास चलता रहता है, जब तक कि वह योगी खुद को पूर्ण न समझे, अपना पसंद के किसी भी ग्रह की यात्रा के लिए । यही योग के अभ्यास की पूर्णता है । तो, यह जीवन की पूर्णता है, वह नन्हा, कृत्रिम तैरता अवकाशयान नहीं । (हँसी) वे जानते नहीं हैं कि जीवन की पूर्णता क्या है । तुम कहीं भी जा सकते हो ।