HI/Prabhupada 0531 - हम वैदिक साहित्य से समझते हैं, कृष्ण की शक्तियों की कई किस्में हैं

Revision as of 17:43, 1 October 2020 by Elad (talk | contribs) (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Radhastami, Srimati Radharani's Appearance Day -- London, August 29, 1971

जीव का नाम है सर्व-ग: । सर्व-ग: का मतलब है "वह जो कहीं भी जा सकता है ।" जैसे नारद मुनि । नारद मुनि, कहीं भी यात्रा कर सकते हैं, या तो आध्यात्मिक दुनिया में या भौतिक संसार में । तो तुम भी ऐसा कर सकते हो । संभावना है । एक दुर्वासा मुनि थे, महान योगी । एक वर्ष के भीतर वे ब्रह्मांड भर में घूम अाए, और विष्णु लोक गए अौर फिर से वापस आ गए । यह इतिहास में दर्ज है । तो ये जीवन की पूर्णता है । और यह पूर्णता कैसे प्राप्त की जा सकती है ? कृष्ण को समझ कर । यस्मिन विज्ञाते सर्वम एव विज्ञातम भवन्ति । उपनिषद कहते हैं कि अगर तुम केवल कृष्ण को समझो, तो इन सब बातों को बहुत आसानी से समझा जा सकता है । कृष्ण भावनामृत इतनी अच्छी चीज़ है । तो आज, इस शाम, हम राधाष्टमी के बारे में बात कर रहे हैं । हम कृष्ण की प्रमुख शक्ति को समझने की कोशिश कर रहे हैं । राधारानी कृष्ण की आनंद शक्ति हैं । हम वैदिक साहित्य से समझते हैं, कृष्ण की शक्तियों की कई किस्में हैं । परास्य शक्तिर विविधैव श्रुयते (चैतन्य चरितामृत मध्य १३.६५, तात्पर्य) ।

वही उदाहरण, एक बड़े आदमी के कई सहायक और सचिव हैं तो उसे व्यक्तिगत रूप से कुछ भी करना नहीं पडता है, बस उसकी इच्छा से सब कुछ किया जाता है, इसी तरह, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की कई शक्तिया हैं, और सब कुछ बहुत अच्छी तरह से किया जा रहा है । जैसे इस भौतिक शक्ति की तरह । यह भौतिक दुनिया, जहां अभी हम रह रहे हैं... इसे भौतिक शक्ति कहा जाता है ।बहिर-अंग-शक्ति । संस्कृत नाम है बहिर-अंग, कृष्ण की बाहरी शक्ति । तो कैसे अच्छी तरह से सब कछ किया जा रहा है, भौतिक शक्ति में । वह भी भगवद गीता में स्पष्ट किया है, मयाध्यक्षेण प्रकृति: सुयते स-चराचरम: (भ.गी. ९.१०) "मेरा अध्यक्षता में भौतिक शक्ति काम कर रही है ।" भौतिक शक्ति अंधी नहीं है । यह है... पृष्ठभूमि पर कृष्ण हैं । मयाध्यक्षेण प्रकृति: (भ.गी. ९.१०) । प्रकृति का मतलब है भौतिक शक्ति । इसी प्रकार... यह बाहरी शक्ति है ।

इसी तरह, एक और शक्ति है जो आंतरिक शक्ति है । आंतरिक शक्ति से आध्यात्मिक दुनिया प्रकट हो रही है । परस तस्मात तु भाव: अन्य (भ.गी. ८.२०) । एक और शक्ति, परा, उच्च, दिव्य, आध्यात्मिक दुनिया । जैसे यह भौतिक संसार का बाहरी शक्ति के तहत हेरफेर किया जा रहा है, इसी तरह, आध्यात्मिक दुनिया भी आंतरिक शक्ति द्वारा आयोजित की जाती है । यह आंतरिक शक्ति राधारानी हैं ।

राधारानी... आज राधारानी का अाविर्भाव दिवस है । तो हमें राधारानी के रूप को समझने की कोशिश करनी चाहिए । राधारानी विहार शक्ति है, आह्लादिनी शक्ति । अानन्दमयो अभ्यासात (वेदांत सूत्र १.१.१२) । वेदांत सूत्र में, निरपेक्ष सत्य वर्णित हैं अानन्दमय के रूप में, हमेशा आनंद शक्ति में । वह अानन्दमय, विहार शक्ति... जैसे आनंद की तरह । जब तुम आनंद, खुशी पाना चाहते हो, तो तुम उसे अकेले नहीं पा सकते हो । अकेले, तुम अानन्द नहीं ले सकते हो । जब तुम अपने दोस्तों के साथ होते हो, या परिवार, या अन्य सहयोगी, तुम अानन्द महसूस करते हो । वैसे ही जैसे मैं बोल रहा हूं । मेरा बोलना मधुर है जब बहुत सारे लोग यहाँ हैं । मैं यहाँ अकेले नहीं बोल सकता हूँ । वह आनंद नहीं है । मैं यहाँ रात में बोल सकता हूँ, अाधी रात को, यहाँ कोई नहीं होता । यह आनंद नहीं है । आनंद का मतलब है दूसरों को वहाँ होना चाहिए ।