HI/Prabhupada 0533 - राधारानी हैं हरि प्रिया, कृष्ण की बहुत प्रिय हैं

Revision as of 17:13, 27 July 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0533 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1971 Category:HI-Quotes - Lec...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

Radhastami, Srimati Radharani's Appearance Day -- London, August 29, 1971

राधारानी है हरि- प्रिया, कृष्ण की बहुत प्रिय है । तो अगर हम राधारानी के माध्यम से कृष्ण के समीप जा सकते हैं , राधारानी की दया के माध्यम से, तो यह बहुत आसान हो जाता है । अगर राधारानी सिफारिश करती हैं कि " यह भक्त बहुत अच्छा है," तब कृष्ण तुरंत स्वीकार करते हैं, कितना ही मूर्ख क्यों न हो वह व्यक्ति । क्योंकि राधारानी ने सिफारिश की है, कृष्ण स्वीकार करते हैं । इसलिए वृन्दावन में तुम पाअोगे कि सब भक्त वे अधिक राधारानी का नाम जप रहे हैं कृष्ण की तुलना में । जहाँ भी तुम जाअोगे, तुम भक्तों को सुनोगे संबोधित करते हुए "जय राधे ।" तुम वृन्दावन में अभी भी पाअोगे । वे राधारानी की बड़ाई कर रहे हैं । वे अधिक रुचि रखते हैं राधारानी की पूजा में । लेकिन कितना भी मैं गिरा हुअा क्यों न हूँ, अगर मैं किसी भी तरह से राधारानी को प्रसन्न कर सकूँ, फिर कृष्ण को समझना मेरे लिए बहुत आसान होगा । अन्यथा,

मनुष्यानाम् सहस्रेषशु
कश्चिद यतति सिद्धये
यतताम अपि सिद्धानाम
कश्चिद माम तत्वत:
(भ गी ७।३)

अगर तुम कृष्ण को समझने के लिए सट्टा प्रक्रिया अपनाअो, तो कई, कई जन्म लगेंगे । लेकिन अगर तुम भक्ति सेवा लेते हो, केवल राधारानी को प्रसन्न करने की कोशिश करो, और कृष्ण बहुत आसानी से मिल जाएँगे । क्योंकि राधारानी कृष्ण को वितरित कर सकती हैं । वह इतनी महान भक्त हैं, महा भागवत का प्रतीक हैं । कृष्ण भी राधारानी की गुणवत्ता को नहीं समझ सकते हैं । कृष्ण भी, हालांकि वह कहते हैं, वेदाहम समतीतानि (भ गी ७।२६) ​​"मैं सब कुछ जानता हूँ" फिर भी, वह राधारानी को समझने में विफल रहते हैं । राधारानी इतनी महान हैं । वह कहते हैं कि ... दरअसल, कृष्ण सब कुछ जानते हैं । राधारानी को समझने के लिए, कृष्ण नें राधारानी की स्थिति को स्वीकार किया । कृष्ण राधारानी की शक्ति को समझना चाहते थे । कृष्ण नें सोचा कि "मैं पूर्ण हूँ । मैं हर मामले में पूर्ण हूँ, लेकिन फिर भी, मैं राधारानी को समझना चाहता हूँ । क्यों? " इस प्रवृत्ति नें कृष्ण को बाध्य किया राधारानी की प्रवृत्तियों को स्वीकार करने के लिए कृष्ण को समझने के लिए, खुद को । ये, ज़ाहिर है, बहुत दिव्य, महान विज्ञान है । जो कृष्ण भाचनामृत में उन्नत हैं और अच्छी तरह से शास्त्र से परिचित हैं, वे समझ सकते हैं । लेकिन फिर भी, हम शास्त्र से चर्चा कर सकते हैं । जब कृष्ण खुद को समझना चाहते थे, उन्होंने श्रीमती राधारानी की प्रवृत्ति ले ली । और यह हैं चैतन्य महाप्रभु । राधा भाव-द्युति-सुवलितम । चैतन्य महाप्रभु श्री कृष्ण हैं, लेकिन उन्होंने राधारानी की प्रवृतियों को स्वीकार किया । जैसे राधारानी कृष्ण से जुदाई की भावनाओं में हमेशा रहती हैं, इसी तरह, राधारानी की स्थिति में, भगवान चैतन्य भी कृष्ण की जुदाई महसूस कर रहे थे । यही भगवान चैतन्य की शिक्षा है, जुदाई की भावना, मिलन नहीं । भक्ति सेवा की प्रक्रिया, जो सिखाया चैतन्य महाप्रभु और उनकी परम्परा नें कि कृष्ण से जुदाई कैसे महसूस करें । यही राधारानी की स्थिति है , हमेशा जुदाई का एहसास । गोस्वामी, वे भी, जब वे वृन्दावन में थे, उन्होंने कभी नहीं कहा कि "मैंने कृष्ण को देखा है ।" हालांकि वे पूर्ण थे, उन्होंने कभी नहीं कहा कि "मैंने कृष्ण को देखा है ।" उनकी प्रार्थना इस तरह से थी: हे राधे व्रज-देविके च ललिते हे नंद-सुनो कुत: । हे राधे, राधारानी, ​​हे राधे व्रज-देविके च ... राधारानी अकेले नहीं रहती हैं । वे(वह) उनेके (उसके) दोस्तों के साथ हमेशा रहती हैं, व्रज-देवी, ललिता या विशाखा और वृन्दावन की अन्य गोपियॉ तो गोस्वामी प्रार्थना कर रहे हैं, उनके परिपक्व चरण में, जब वे वृन्दावन में रह रहे थे, वे इस तरह से प्रार्थना कर रहे थे, हे राधे व्रज-देविके च ललिते हे नंद-सुनो कुत: । "कहां, राधारानी, ​​आप कहाँ हैं? अापके सहयोगि कहाँ हैं? आप कहाँ हैं, नंद-सुनो, नंदा महाराज के बेटे, कृष्ण? अाप कहाँ हो, सब? " वे खोज रहे थे । उन्होंने कभी नहीं कहा कि "मैंने कृष्ण को देखा है गोपियों के साथ नृत्य करते हुए । कल रात को मैंने देखा ।" (हंसी) यह सहजिया है । यह परिपक्व भक्त नहीं है । यह कहा जाता है ... वे सहजिया कहे जाते हैं । वे बहुत सस्ते से लेते हैं सब कुछ - कृष्ण बहुत सस्ता, राधारानी बहुत सस्ता - जैसे कि वे हर रात देख सकते हैं । नहीं । गोस्वामी हमें यह नहीं सिखाते हैं । वे खोज कर रहे हैं । हे राधे व्रज-देविके च ललिते हे नंद-सुनो कुत: । श्री गोवर्धन-पादप-तले कालिंदी-वन्ये कुत: "क्या अाप गोवर्धन पर्बत के नीचें हैं, या यमुना के तट पर? "कालिंदी-वन्ये कुत: । घोशान्ताव इति सर्वतो व्रज पुरे खेदैर महा-विह्वलौ । उनका काम था इस तरह से रोना, " कहॉ हैं अाप? आप कहाँ हैं राधारानी ?, कहाँ हैं अाप ललिता, विशाखा, राधारानी के सहयोगि? अाप कहाँ हो कृष्ण? आप गोवर्धन पर्बत के पास हैं या यमुना के तट पर? " घोशान्ताव इति सर्वतो व्रज पुरे । तो वृन्दावन के पूरे पथ पर वे रो रहे थे और उन्हें खोज रहे थे खेदैर महा-विह्वलौ, पागल आदमी की तरह । खेदैर महा-विह्वलौ, वंदे रूप-सनातनौ रघु-यगौ श्री जीव-गोपालकौ ।