HI/Prabhupada 0536 - वेदों का अध्ययन करने का क्या फायदा है अगर तुम कृष्ण को समझ नहीं सके: Difference between revisions

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जब कृष्ण कुरुक्षेत्र युद्ध के मैदान में थे, तो तुमने चित्र देखा है, वे बीस साल के एक लड़के की तरह हैं, या ज्यादा से ज्यादा, चौबीस साल की उम्र लेकिन उस समय, उनके पर पोते थे । इसलिए, कृष्ण हमेशा युवा हैं । नवयौवनम च । यह वैदिक साहित्य के बयान हैं ।
जब कृष्ण कुरुक्षेत्र युद्ध के मैदान में थे, तो तुमने चित्र देखा है, वे बीस साल के एक लड़के की तरह हैं, या ज्यादा से ज्यादा, चौबीस साल की उम्र लेकिन उस समय, उनके पर-पोते थे । इसलिए, कृष्ण हमेशा युवा हैं । नवयौवनम च । यह वैदिक साहित्य के बयान हैं ।  


:अद्वैतम अच्युतम अनादिम अनन्त-रूपम
:अद्वैतम अच्युतम अनादिम अनन्त-रूपम  
:अाद्यम पुराण-पुरुषम नव-यौवनम च
:अाद्यम पुराण-पुरुषम नव-यौवनम च  
:वेदेषु दुर्लभम अदुर्लभम अात्म-भक्तौ
:वेदेषु दुर्लभम अदुर्लभम अात्म-भक्तौ  
:( ब्र स ५।३३)
:(ब्रह्मसंहिता ५.३३)  


तो कृष्ण को समझने के लिए, अगर हम एक औपचारिकता के रूप में वैदिक साहित्य पढ़ते हैं, तो बहुत मुश्किल हो जाएगा समझना कि यह कृष्ण क्या हैं । वेदेषु दुर्लभम । हालांकि सभी वेद कृष्ण को समझने के लिए हैं । भगवद गीता में यह कहा जाता है, वेदैष च सर्वैर अहम एव वेद्यो । अहम एव वेद्यो । तो वेदों का अध्ययन करने का क्या फायदा है अगर तुम कृष्ण को समझ नहीं सके? क्योंकि शिक्षा का अंतिम लक्ष्य है समझना, परम प्रभु, परम पिता, सर्वोच्च कारण को । यह वेदांत सूत्र में कहा जाता हैर, जन्मादि अस्य यत: ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्री भ १।१।१]]) । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । ब्रह्म जिज्ञासा, परम निरपेक्ष सत्य ब्रह्मण के बारे में चर्चा करना । ब्रह्मण क्या है? जन्मादि अस्य यत: ब्रह्मण का मतलब है कि जहाँ से सब कुछ उत्पन्न होता है । तो विज्ञान, दर्शन, का मतलब है पता लगाना कि परम कारण क्या है । यह हमें शास्त्रों से मिल रहा है, वैदिक साहित्य, कि कृष्ण सभी कारणों के कारण हैं । सर्व-कारण-कारणम । सर्व-कारण-कारणम ।
तो कृष्ण को समझने के लिए, अगर हम एक औपचारिकता के रूप में वैदिक साहित्य पढ़ते हैं, तो समझना बहुत मुश्किल हो जाएगा कि यह कृष्ण क्या हैं । वेदेषु दुर्लभम । हालांकि सभी वेद कृष्ण को समझने के लिए हैं । भगवद गीता में यह कहा जाता है, वेदैष च सर्वैर अहम एव वेद्यो । अहम एव वेद्यो । तो वेदों का अध्ययन करने का क्या फायदा है अगर तुम कृष्ण को समझ नहीं सके ? क्योंकि शिक्षा का अंतिम लक्ष्य है समझना, परम भगवान, परम पिता, सर्वोच्च कारण को । यह वेदांत सूत्र में कहा जाता हैर, जन्मादि अस्य यत: ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्रीमद भागवतम १.१.१]]) । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । ब्रह्म जिज्ञासा, परम निरपेक्ष सत्य, ब्रह्म, के बारे में चर्चा करना । ब्रह्म क्या है ? जन्मादि अस्य यत: । ब्रह्म का मतलब है कि जहाँ से सब कुछ उत्पन्न होता है । तो विज्ञान, तत्वज्ञान, का मतलब है पता लगाना कि परम कारण क्या है । यह हमें शास्त्रों से मिल रहा है, वैदिक साहित्य से, कि कृष्ण सभी कारणों के कारण हैं । सर्व-कारण-कारणम । सर्व-कारण-कारणम ।  


:ईष्वर: परम: कृष्ण:
:ईश्वर: परम: कृष्ण:  
:सच-चिद-अानन्द-विग्र:
:सच-चिद-अानन्द-विग्रह:  
:अनादिर अादिर गोविन्द:
:अनादिर अादिर गोविन्द:  
:सर्व -कारण-कारणम
:सर्व -कारण-कारणम  
:( ब्र स ५।१)
:(ब्रह्मसंहिता ५.१)  


सभी कारणों का कारण । बस समझने की कोशिश करो । मैं अपने पिता की वजह से हूँ । मेरे पिता अपने पिता की वजह से हैं । वह उनके पिता की वजह से हैं, उनके पिता ... खोजतो जाअो । तो तुम अंततः उस तक पहुँचोगे जो कारण है । लेकिन उनका कोई कारण नहीं है । अनादिर अादिर गोविन्द: ( ब्र स ५।१) मैं अपने बेटे के होने का कारण हो सकता हूँ, लेकिन मैं भी कारण का परिणाम हूँ, मेरे पिता, लेकिन शास्त्र का कहना है कि अनादिर अादिर, वह मूल व्यक्ति हैं , लेकिन उनका कोई कारण नहीं है । यही श्री कृष्ण हैं । इसलिए, कृष्ण कहते हैं कि जन्म कर्म च मे दिव्यम् यो जानाति तत्वत; ([[Vanisource:BG 4.9|भ गी ४।९]]) कृष्ण का आगमन, यह बहुत महत्वपूर्ण बात है । हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए कृष्ण को, वह क्यों अवतरित होते हैं, वह क्यों इस भौतिक संसार में आते हैं, क्या उनका काम है, उनकी गतिविधियों क्या हैं । अगर हम केवल कृष्ण को समझने की कोशिश करते हैं, तो क्या परिणाम है? परिणाम है त्यक्त्वा देहम् पुनर जन्म नैति माम एति कौन्तेय ([[Vanisource:BG 4.9|भ गी ४।९]]) तुम्हें अमरत्व मिलता ह । जीवन का उद्देश्य अमरत्व को प्राप्त करना है अम्रतत्वाय कल्पते । तो कृष्ण के आगमन में, हम कृष्ण के तत्वज्ञान को समझने की कोशिश करेंगे । महामहिम शांति की बात कर रहे थे । शांति सूत्र है, कृष्ण नें कहा है । वह क्या है?
सभी कारणों के कारण । बस समझने की कोशिश करो । मैं अपने पिता की वजह से हूँ । मेरे पिता अपने पिता की वजह से हैं । वह उनके पिता की वजह से हैं, उनके पिता... खोजते जाअो । तो तुम अंततः तुम उस तक पहुँचोगे जो कारण है । लेकिन उनका कोई कारण नहीं है । अनादिर अादिर गोविन्द: (ब्रह्मसंहिता ५.१) मैं अपने बेटे के होने का कारण हो सकता हूँ, लेकिन मैं भी कारण का परिणाम हूँ, मेरे पिता | लेकिन शास्त्र का कहना है कि अनादिर अादिर, वह मूल व्यक्ति हैं, लेकिन उनका कोई कारण नहीं है । यही श्रीकृष्ण हैं ।  


:भोक्तारम् यज्ञ-तपसाम
इसलिए, कृष्ण कहते हैं कि जन्म कर्म च मे दिव्यम यो जानाति तत्वत: ([[HI/BG 4.9|भ.गी. ४.९]]) । कृष्ण का आगमन, यह बहुत महत्वपूर्ण बात है । हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए कृष्ण को, वह क्यों अवतरित होते हैं, वह क्यों इस भौतिक संसार में आते हैं, क्या उनका काम है, उनकी गतिविधियाँ क्या हैं । अगर हम केवल कृष्ण को समझने की कोशिश करते हैं, तो क्या परिणाम है ? परिणाम है त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति माम एति कौन्तेय ([[HI/BG 4.9|भ.गी. ४.९]]) । तुम्हें अमरत्व मिलता है । जीवन का उद्देश्य अमरत्व को प्राप्त करना है । अमृतत्वाय कल्पते । तो कृष्ण के आगमन में, हम कृष्ण के तत्वज्ञान को समझने की कोशिश करेंगे । महामहिम शांति की बात कर रहे थे । शांति सूत्र है, कृष्ण ने कहा है । वह क्या है ?
:सर्व लोक महेश्वरम
:सुह्रदम् सर्व भूतानाम्ज्ञा
:त्वा माम् शान्तिम ऋच्छति
:([[Vanisource:BG 5.29|भ गी ५।२९]])


अगर राजनेता, राजनयिक, वे दुनिया में शांति स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं ... संयुक्त राष्ट्र है, और कई अन्य संगठनें हैं । वे वास्तविक शांति और सौहार्द की कोशिश कर रहे हैं, आदमी अौर आदमी, राष्ट्र अौर राष्ट्र के बीच कोई गलतफहमी नहीं । लेकिन यह नहीं हो रहा है । यही नहीं हो रहा है । दोष यह है कि जड़ गलत है । हर कोई यह सोच रहा है " यह मेरा देश है। " यह मेरा परिवार है । यह मेरा समाज है । यह मेरी संपत्ति है ।" यह "मेरा" भ्रम है ।
:भोक्तारम् यज्ञ-तपसाम
:सर्व लोक महेश्वरम
:सुह्रदम सर्व भूतानाम
:ज्ञात्वा माम शान्तिम ऋच्छति
:([[HI/BG 5.29|भ.गी. ५.२९]])
 
अगर राजनेता, राजदूत, वे दुनिया में शांति स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं... संयुक्त राष्ट्र है, और कई अन्य संगठन हैं । वे वास्तविक शांति और सौहार्द की कोशिश कर रहे हैं, आदमी अौर आदमी, राष्ट्र अौर राष्ट्र के बीच कोई गलतफ़हमी न हो । लेकिन यह नहीं हो रहा है । यही नहीं हो रहा है । दोष यह है कि मूल ही गलत है । हर कोई यह सोच रहा है, "यह मेरा देश है।" यह मेरा परिवार है । यह मेरा समाज है । यह मेरी संपत्ति है ।" यह "मेरा" भ्रम है ।  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



Janmastami Lord Sri Krsna's Appearance Day Lecture -- London, August 21, 1973

जब कृष्ण कुरुक्षेत्र युद्ध के मैदान में थे, तो तुमने चित्र देखा है, वे बीस साल के एक लड़के की तरह हैं, या ज्यादा से ज्यादा, चौबीस साल की उम्र । लेकिन उस समय, उनके पर-पोते थे । इसलिए, कृष्ण हमेशा युवा हैं । नवयौवनम च । यह वैदिक साहित्य के बयान हैं ।

अद्वैतम अच्युतम अनादिम अनन्त-रूपम
अाद्यम पुराण-पुरुषम नव-यौवनम च
वेदेषु दुर्लभम अदुर्लभम अात्म-भक्तौ
(ब्रह्मसंहिता ५.३३)

तो कृष्ण को समझने के लिए, अगर हम एक औपचारिकता के रूप में वैदिक साहित्य पढ़ते हैं, तो समझना बहुत मुश्किल हो जाएगा कि यह कृष्ण क्या हैं । वेदेषु दुर्लभम । हालांकि सभी वेद कृष्ण को समझने के लिए हैं । भगवद गीता में यह कहा जाता है, वेदैष च सर्वैर अहम एव वेद्यो । अहम एव वेद्यो । तो वेदों का अध्ययन करने का क्या फायदा है अगर तुम कृष्ण को समझ नहीं सके ? क्योंकि शिक्षा का अंतिम लक्ष्य है समझना, परम भगवान, परम पिता, सर्वोच्च कारण को । यह वेदांत सूत्र में कहा जाता हैर, जन्मादि अस्य यत: (श्रीमद भागवतम १.१.१) । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । ब्रह्म जिज्ञासा, परम निरपेक्ष सत्य, ब्रह्म, के बारे में चर्चा करना । ब्रह्म क्या है ? जन्मादि अस्य यत: । ब्रह्म का मतलब है कि जहाँ से सब कुछ उत्पन्न होता है । तो विज्ञान, तत्वज्ञान, का मतलब है पता लगाना कि परम कारण क्या है । यह हमें शास्त्रों से मिल रहा है, वैदिक साहित्य से, कि कृष्ण सभी कारणों के कारण हैं । सर्व-कारण-कारणम । सर्व-कारण-कारणम ।

ईश्वर: परम: कृष्ण:
सच-चिद-अानन्द-विग्रह:
अनादिर अादिर गोविन्द:
सर्व -कारण-कारणम
(ब्रह्मसंहिता ५.१)

सभी कारणों के कारण । बस समझने की कोशिश करो । मैं अपने पिता की वजह से हूँ । मेरे पिता अपने पिता की वजह से हैं । वह उनके पिता की वजह से हैं, उनके पिता... खोजते जाअो । तो तुम अंततः तुम उस तक पहुँचोगे जो कारण है । लेकिन उनका कोई कारण नहीं है । अनादिर अादिर गोविन्द: (ब्रह्मसंहिता ५.१) । मैं अपने बेटे के होने का कारण हो सकता हूँ, लेकिन मैं भी कारण का परिणाम हूँ, मेरे पिता | लेकिन शास्त्र का कहना है कि अनादिर अादिर, वह मूल व्यक्ति हैं, लेकिन उनका कोई कारण नहीं है । यही श्रीकृष्ण हैं ।

इसलिए, कृष्ण कहते हैं कि जन्म कर्म च मे दिव्यम यो जानाति तत्वत: (भ.गी. ४.९) । कृष्ण का आगमन, यह बहुत महत्वपूर्ण बात है । हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए कृष्ण को, वह क्यों अवतरित होते हैं, वह क्यों इस भौतिक संसार में आते हैं, क्या उनका काम है, उनकी गतिविधियाँ क्या हैं । अगर हम केवल कृष्ण को समझने की कोशिश करते हैं, तो क्या परिणाम है ? परिणाम है त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति माम एति कौन्तेय (भ.गी. ४.९) । तुम्हें अमरत्व मिलता है । जीवन का उद्देश्य अमरत्व को प्राप्त करना है । अमृतत्वाय कल्पते । तो कृष्ण के आगमन में, हम कृष्ण के तत्वज्ञान को समझने की कोशिश करेंगे । महामहिम शांति की बात कर रहे थे । शांति सूत्र है, कृष्ण ने कहा है । वह क्या है ?

भोक्तारम् यज्ञ-तपसाम
सर्व लोक महेश्वरम
सुह्रदम सर्व भूतानाम
ज्ञात्वा माम शान्तिम ऋच्छति
(भ.गी. ५.२९)

अगर राजनेता, राजदूत, वे दुनिया में शांति स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं... संयुक्त राष्ट्र है, और कई अन्य संगठन हैं । वे वास्तविक शांति और सौहार्द की कोशिश कर रहे हैं, आदमी अौर आदमी, राष्ट्र अौर राष्ट्र के बीच कोई गलतफ़हमी न हो । लेकिन यह नहीं हो रहा है । यही नहीं हो रहा है । दोष यह है कि मूल ही गलत है । हर कोई यह सोच रहा है, "यह मेरा देश है।" यह मेरा परिवार है । यह मेरा समाज है । यह मेरी संपत्ति है ।" यह "मेरा" भ्रम है ।