HI/Prabhupada 0541 - अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो तुम्हे मेरे कुत्ते से प्यार करना होगा: Difference between revisions

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तुम भगवान के शब्दों पर व्याख्या नहीं कर सकते हो । यह संभव नहीं है । और धर्म का मतलब है धर्मम् तु साक्षाद भगवत-प्रनीतम ([[Vanisource:SB 6.3.19|श्री भ ६।३।१९]]) तुम अपने घर में धार्मिक प्रणाली का निर्माण नहीं कर सकते हो । धूर्तता यही है, यह बेकार है । धर्म का मतलब है साक्षाद भगवत-प्रनीतम । जैसे कानून की तरह । कानून का मतलब है सरकार द्वारा दिया गया । तुम अपने घर पर कानून का निर्माण नहीं कर सकते हो । मान लीजिए सड़क पर, सामान्य ज्ञान है ये , सरकार का कानून है दाहिने या बाईं अौर रहना तुम नहीं कह सकते हो, " क्या हुअा अगर मैं दाहिने या बाईं ओर जाउँ?" नहीं, तुम यह नहीं कर सकते हो ।तो फिर तुम अपराधी हो जाअोगे । इसी प्रकार आजकल ... आजकल नहीं- अति प्राचीन काल से, इतने सारे धार्मिक व्यवस्थाऍ हैं । कई सारी । लेकिन असली धार्मिक व्यवस्था है जो भगवान कहते हैं, या कृष्ण कहते हैं । सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[Vanisource:BG 18.66|भ गी १८।६६]]) यह धर्म है । सरल । तुम धर्म का निर्माण नहीं कर सकते ।
तुम भगवान के शब्दों का अर्थघटन नहीं कर सकते । यह संभव नहीं है । और धर्म का मतलब है धर्मम तु साक्षाद भगवत-प्रणितम ([[Vanisource:SB 6.3.19|श्रीमद भागवतम ६.३.१९]]) तुम अपने घर में धार्मिक प्रणाली का निर्माण नहीं कर सकते हो । धूर्तता यही है, यह बेकार है । धर्म का मतलब है साक्षाद भगवत-प्रणितम । जैसे कानून । कानून का मतलब है सरकार द्वारा दिया गया । तुम अपने घर पर कानून का निर्माण नहीं कर सकते हो । मान लीजिए सड़क पर, सामान्य ज्ञान है ये, सरकार का कानून है दाए या बाईं अौर रहना तुम नहीं कह सकते हो, "क्या हुअा अगर मैं दाहिने या बाईं ओर जाऊँ ?" नहीं, तुम यह नहीं कर सकते हो । तो फिर तुम अपराधी हो जाअोगे । इसी प्रकार आजकल... आजकल नहीं, अति प्राचीन काल से, इतनी सारी धार्मिक प्रणाली हैं । कई सारी । लेकिन असली धार्मिक प्रणाली है जो भगवान कहते हैं, या कृष्ण कहते हैं । सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[HI/BG 18.66|भ.गी. १८.६६]]) यह धर्म है । सरल । तुम धर्म का निर्माण नहीं कर सकते ।  


इसलिए श्रीमद-भागवतम में, शुरुआत है धर्म: प्रोज्हित-कैतवो अत्र परमो निर्मत्सरानाम ([[Vanisource:SB 1.1.2|श्री भ १।१।२]]) तो ... कोई ईर्ष्या कर सकते है, कि इस व्यक्ति के परिष्कृत कुछ शिष्य हैं, और वे प्रार्थना और पूजा पेश कर रहे हैं । नहीं, यह प्रणाली है । ईर्ष्या मत करो ... अाचार्यम माम विजानीयान नावमन्यते कर्हिचित ([[Vanisource:SB 11.17.27|श्री भ ११।१७।२७]]) आचार्य भगवान के प्रतिनिधि हैं । यस्य प्रसादाद भगवत-प्रसादो अगर तुम पूजा करते हो, आचार्य को सम्मान देते हो तब श्री कृष्ण, देवत्व के परम व्यक्तित्व प्रसन्न होते हैं । उन्हे खुश करने के लिए तुम्हे उनके प्रतिनिधि को खुश करना होगा । "अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो तुम्हे मेरे कुत्ते से प्यार करना होगा ।" और भगवद गीता मैं यह कहा गया है, अाचार्योपासनम । अाचार्योपासनम । हमें आचार्य की पूजा करनी पडेगी
इसलिए श्रीमद-भागवतम में, शुरुआत है, धर्म: प्रोज्हित-कैतवो अत्र परमो निर्मत्सराणाम ([[Vanisource:SB 1.1.2|श्रीमद भागवतम १.१.२]]) तो... कोई ईर्ष्या कर सकता है, कि इस व्यक्ति के परिष्कृत कुछ शिष्य हैं, और वे प्रार्थना और पूजा कर रहे हैं । नहीं, यह प्रणाली है । ईर्ष्या मत करो... अाचार्यम माम विजानीयान नावमन्यते कर्हिचित ([[Vanisource:SB 11.17.27|श्रीमद भागवतम ११.१७.२७]]) आचार्य भगवान के प्रतिनिधि हैं । यस्य प्रसादाद भगवत-प्रसादो अगर तुम पूजा करते हो, आचार्य को सम्मान देते हो, तब श्रीकृष्ण, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान प्रसन्न होते हैं । उन्हे खुश करने के लिए तुम्हें उनके प्रतिनिधि को खुश करना होगा । "अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो तुम्हें मेरे कुत्ते से प्यार करना होगा ।" और भगवद गीता में यह कहा गया है, अाचार्योपासनम । अाचार्योपासनम । हमें आचार्य की पूजा करनी पड़ेगी ।  


:यस्य देवे परा भक्तिर
:यस्य देवे परा भक्तिर  
:यथा देवे तथा गुरौ
:यथा देवे तथा गुरौ  
:तस्यैते कथित हि अर्थ:
:तस्यैते कथित हि अर्थ:  
:प्रकाशन्ते मतात्मान:
:प्रकाशन्ते महात्मन:  
:( श्वे उ ६।२३)
:(श्वेताश्वतर उपनिषद ६.२३)  


यह वैदिक मंत्र है । तद-विज्ञानार्थम स गुरुम एवाभिगच्छेत ( मु उ १।२।१२)
यह वैदिक मंत्र है । तद-विज्ञानार्थम स गुरुम एवाभिगच्छेत् (मुंडक उपनिषद १.२.१२)


:तस्माद गुरुम प्रपद्येत
:तस्माद गुरुम प्रपद्येत  
:जिज्ञासुळ श्रेय उत्तमम
:जिज्ञासु: श्रेय उत्तमम  
:शब्दे पारे निशनातम
:शब्दे परे निष्णातम
:ब्रह्मनि उपशमाश्रयम
:ब्रह्मणि उपशमाश्रयम
:([[Vanisource:SB 11.3.21|श्री भ ११।३।२१]])
:([[Vanisource:SB 11.3.21|श्रीमद भागवतम ११.३.२१]])


तद विद्धी प्रनिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ([[Vanisource:BG 4.34|भ गी ४।३४]]) । तो यह निषेधाज्ञा हैं । गुरु को परम्परा प्रणाली के माध्यम से आना चाहिए । फिर वह सदाशयी है । नहीं तो वह एक बदमाश है । परम्परा प्रणाली के माध्यम से आना ही चाहिए, और समझने के लिए तद-विज्ञानम दिव्य विज्ञान, तुम्हे गुरु के पास जाना होगा । तुम नहीं कह सकते हो "मैं घर पर ही समझ सकता हूँ ।" नहीं । यह संभव नहीं है । यही सभी शास्त्रों का आदेश है । तस्माद गुरुम प्रपद ... किसको एक गुरु की आवश्यकता है? गुरु फैशन नहीं है जैसे तुम एक फैशन के लिए एक कुत्ते को रखते हो, आधुनिक सभ्यता, इसी तरह हमें एक गुरु रखना है । नहीं, ऐसा नहीं है । किसे एक गुरु की आवश्यकता है? तस्माद गुरुम प्रपद्येत जिज्ञासु श्रेय उत्तमम वास्तव में आत्मा के विज्ञान को समझने के लिए जो गंभीर है । तद विजानम । ओम तत सत । उसे एक गुरु की आवश्यकता होती है । गुरू एक फैशन नहीं है ।
तद विद्धी प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ([[HI/BG 4.34|भ.गी. ४.३४]]) । तो ये आज्ञा हैं । गुरु को परम्परा प्रणाली के माध्यम से आना चाहिए । फिर वह प्रमाणिक है । नहीं तो वह एक बदमाश है । परम्परा प्रणाली के माध्यम से आना ही चाहिए, और तद-विज्ञानम समझने के लिए, दिव्य विज्ञान, तुम्हें गुरु के पास जाना होगा । तुम नहीं कह सकते हो "मैं घर पर ही समझ सकता हूँ ।" नहीं । यह संभव नहीं है । यही सभी शास्त्रों का आदेश है । तस्माद गुरुम प्रपद... किसे गुरु की आवश्यकता है ? गुरु फैशन नहीं है जैसे तुम एक फैशन के लिए एक कुत्ते को रखते हो, आधुनिक सभ्यता, इसी तरह हमें एक गुरु रखना है । नहीं, ऐसा नहीं है । किसे गुरु की आवश्यकता है ? तस्माद गुरुम प्रपद्येत जिज्ञासु श्रेय उत्तमम ([[Vanisource:SB 11.3.21|श्रीमद भागवतम ११.३.२१]]) । वास्तव में आत्मा के विज्ञान को समझने के लिए जो गंभीर है । तद विज्ञानम । ओम तत सत । उसे गुरु की आवश्यकता है । गुरू एक फैशन नहीं है ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Sri Vyasa-puja -- Hyderabad, August 19, 1976

तुम भगवान के शब्दों का अर्थघटन नहीं कर सकते । यह संभव नहीं है । और धर्म का मतलब है धर्मम तु साक्षाद भगवत-प्रणितम (श्रीमद भागवतम ६.३.१९) । तुम अपने घर में धार्मिक प्रणाली का निर्माण नहीं कर सकते हो । धूर्तता यही है, यह बेकार है । धर्म का मतलब है साक्षाद भगवत-प्रणितम । जैसे कानून । कानून का मतलब है सरकार द्वारा दिया गया । तुम अपने घर पर कानून का निर्माण नहीं कर सकते हो । मान लीजिए सड़क पर, सामान्य ज्ञान है ये, सरकार का कानून है दाए या बाईं अौर रहना । तुम नहीं कह सकते हो, "क्या हुअा अगर मैं दाहिने या बाईं ओर जाऊँ ?" नहीं, तुम यह नहीं कर सकते हो । तो फिर तुम अपराधी हो जाअोगे । इसी प्रकार आजकल... आजकल नहीं, अति प्राचीन काल से, इतनी सारी धार्मिक प्रणाली हैं । कई सारी । लेकिन असली धार्मिक प्रणाली है जो भगवान कहते हैं, या कृष्ण कहते हैं । सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६) । यह धर्म है । सरल । तुम धर्म का निर्माण नहीं कर सकते ।

इसलिए श्रीमद-भागवतम में, शुरुआत है, धर्म: प्रोज्हित-कैतवो अत्र परमो निर्मत्सराणाम (श्रीमद भागवतम १.१.२) । तो... कोई ईर्ष्या कर सकता है, कि इस व्यक्ति के परिष्कृत कुछ शिष्य हैं, और वे प्रार्थना और पूजा कर रहे हैं । नहीं, यह प्रणाली है । ईर्ष्या मत करो... अाचार्यम माम विजानीयान नावमन्यते कर्हिचित (श्रीमद भागवतम ११.१७.२७) । आचार्य भगवान के प्रतिनिधि हैं । यस्य प्रसादाद भगवत-प्रसादो । अगर तुम पूजा करते हो, आचार्य को सम्मान देते हो, तब श्रीकृष्ण, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान प्रसन्न होते हैं । उन्हे खुश करने के लिए तुम्हें उनके प्रतिनिधि को खुश करना होगा । "अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो तुम्हें मेरे कुत्ते से प्यार करना होगा ।" और भगवद गीता में यह कहा गया है, अाचार्योपासनम । अाचार्योपासनम । हमें आचार्य की पूजा करनी पड़ेगी ।

यस्य देवे परा भक्तिर
यथा देवे तथा गुरौ
तस्यैते कथित हि अर्थ:
प्रकाशन्ते महात्मन:
(श्वेताश्वतर उपनिषद ६.२३)

यह वैदिक मंत्र है । तद-विज्ञानार्थम स गुरुम एवाभिगच्छेत् (मुंडक उपनिषद १.२.१२) ।

तस्माद गुरुम प्रपद्येत
जिज्ञासु: श्रेय उत्तमम
शब्दे परे च निष्णातम
ब्रह्मणि उपशमाश्रयम
(श्रीमद भागवतम ११.३.२१)

तद विद्धी प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया (भ.गी. ४.३४) । तो ये आज्ञा हैं । गुरु को परम्परा प्रणाली के माध्यम से आना चाहिए । फिर वह प्रमाणिक है । नहीं तो वह एक बदमाश है । परम्परा प्रणाली के माध्यम से आना ही चाहिए, और तद-विज्ञानम समझने के लिए, दिव्य विज्ञान, तुम्हें गुरु के पास जाना होगा । तुम नहीं कह सकते हो "मैं घर पर ही समझ सकता हूँ ।" नहीं । यह संभव नहीं है । यही सभी शास्त्रों का आदेश है । तस्माद गुरुम प्रपद... किसे गुरु की आवश्यकता है ? गुरु फैशन नहीं है जैसे तुम एक फैशन के लिए एक कुत्ते को रखते हो, आधुनिक सभ्यता, इसी तरह हमें एक गुरु रखना है । नहीं, ऐसा नहीं है । किसे गुरु की आवश्यकता है ? तस्माद गुरुम प्रपद्येत जिज्ञासु श्रेय उत्तमम (श्रीमद भागवतम ११.३.२१) । वास्तव में आत्मा के विज्ञान को समझने के लिए जो गंभीर है । तद विज्ञानम । ओम तत सत । उसे गुरु की आवश्यकता है । गुरू एक फैशन नहीं है ।