HI/Prabhupada 0556 - आत्म साक्षात्कार की पहली समझ है, कि आत्मा शाश्वत है: Difference between revisions

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प्रभुपाद: भौतिकवादी व्यक्ति समझ नहीं सकते हैं कि भविष्य क्या है। वे सोच रहे हैं कि यह शरीर सब कुछ है । "हमें यह शरीर मिला है, और जब यह समाप्त हो जाएगा, तब सब कुछ खत्म हो जाएगा ।" ये सवालों की हमने पहले से ही चर्चा की है । लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है । यह आत्म-साक्षात्कार की पहली समझ है, कि अात्मा अनन्त है, इसका विनाश नहीं होता है शरीर के विनाश होने के बाद भी । यह आत्म-साक्षात्कार की शुरुआत है । तो ये लोग यह नहीं समझते हैं । वे इसके लिए परवाह नहीं करते हैं । यही उनकी निद्रा है । यह उनकी दयनीय हालत है । अागे पढो ।
प्रभुपाद: भौतिकवादी व्यक्ति समझ नहीं सकते हैं कि भविष्य क्या है । वे सोच रहे हैं कि यह शरीर सब कुछ है । "हमें यह शरीर मिला है, और जब यह समाप्त हो जाएगा, तब सब कुछ खत्म हो जाएगा ।" ये सवालों की हमने पहले से ही चर्चा की है । लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है । यह आत्म-साक्षात्कार की पहली समझ है, कि अात्मा शाश्वत है, शरीर के विनाश होने के बाद भी इसका विनाश नहीं होता । यह आत्म-साक्षात्कार की शुरुआत है । तो ये लोग यह नहीं समझते हैं । वे इसके लिए परवाह नहीं करते हैं । यही उनकी निद्रा है । यह उनकी दयनीय हालत है । अागे पढो ।  


तमाल कृष्ण: "वह भौतिक धातों से अविचलित रहकर अात्म-साक्षात्कार के कार्यों में लगा रहता है ।" ७०: "जो पुरुष समुद्र में निरन्तर प्रवेश करती रहने वाली नदियों के समान इच्छाअों के निरन्तर प्रहार से विचलित नहीं होता, अौर जो सदैव स्थिर रहता है, वही शान्ति प्राप्त कर सकता है, वह नहीं, जो एसी इच्छाओं को तुष्ट करने की चेष्टा करता हो ।
तमाल कृष्ण: "वह भौतिक प्रतिक्रियाओं से अविचलित रहकर अात्म-साक्षात्कार के कार्यों में लगा रहता है ।" ७०: "जो पुरुष समुद्र में निरन्तर प्रवेश करती रहने वाली नदियों के समान इच्छाअों के निरन्तर प्रहार से विचलित नहीं होता, अौर जो सदैव स्थिर रहता है, वही शान्ति प्राप्त कर सकता है, वह नहीं, जो एसी इच्छाओं को तुष्ट करने की चेष्टा करता हो ।  


प्रभुपाद: अब, यहाँ है ... एक भौतिकवादी व्यक्ति, उसकी अपनी इच्छाऍ हैं । मान लीजिए वह कुछ कारोबार कर रहा है, उसे पैसा मिल रहा है । तो वह भौतिकवादी तरीके से अपनी इच्छा को पूरी करता है । लेकिन एक कृष्ण के प्रति जागरूक व्यक्ति, मान लीजिए वह उसी तरह से कर रहा हो तो, वह भी योजना बना रहा है या कुछ कर रहा है कृष्ण भावनामृत के लिए । तो ये दो अलग अलग क्षेत्रों की गतिविधियॉकी एक ही स्तर पर नहीं है । अागे पढो ।
प्रभुपाद: अब, यहाँ है... एक भौतिकवादी व्यक्ति, उसकी अपनी इच्छाऍ हैं । मान लीजिए वह कुछ कारोबार कर रहा है, उसे पैसा मिल रहा है । तो वह भौतिकवादी तरीके से अपनी इच्छा को पूरी करता है । लेकिन एक कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति, मान लीजिए वह उसी तरह से कर रहा हो तो, वह भी योजना बना रहा है या कुछ कर रहा है कृष्ण भावनामृत के लिए । तो ये दो अलग अलग क्षेत्रों की गतिविधियॉकी एक ही स्तर पर नहीं है । अागे पढो ।  


तमाल कृष्ण: ७०: "जो व्यक्ति नहीं ... ७१ : "जिस व्यक्ति नें इन्द्रियतृप्ति की समस्त इच्छाअों का परित्याग कर दिया है, जो इच्छाअों से रहित रहता है अौर जिसने सारी ममता त्याग दी है तथा अहंकार से रहित है, वही वास्तविक शांति को प्राप्त कर सकता है ।"
तमाल कृष्ण: ७०: "जो व्यक्ति नहीं... ७१ : "जिस व्यक्ति नें इन्द्रियतृप्ति की समस्त इच्छाअों का परित्याग कर दिया है, जो इच्छाअों से रहित रहता है अौर जिसने सारी ममता त्याग दी है तथा अहंकार से रहित है, वही वास्तविक शांति को प्राप्त कर सकता है ।"  


प्रभुपाद: हाँ. । तो जिस व्यक्ति नें इन्द्रियतृप्ति की समस्त इच्छाअों का परित्याग कर दिया है । हमें अपनी इच्छा को मारना नहीं है । तुम कैसे मार सकते हो ? इच्छा जीव का निरंतर साथी है । यही जीवित होने का लक्षण है । क्योंकि मैं जीव हूँ, क्योंकि तुम जीव हो, तुम इच्छा करते हो, मैं इच्छा करता हूँ । इस टेबल की तरह नहीं । टेबल में कोई जीवन नहीं है, इसलिए इसकी कोई इच्छा नहीं है । टेबल यह नहीं कह सकता कि, "मैं कई महीनों से यहाँ खड़ा हूँ । कृपाय मुझे अन्य जगह ले जाऍ ।" नहीं । क्योंकि उसकी कोई इच्छा नहीं है । लेकिन अगर, मैं तीन घंटे के लिए यहाँ बैठा हूँ, ओह, मैं कहता हूँ, "ओह, मैं थक गया । मुझे यहॉ से निकालो ... कृपया मुझे एक अौर जगह ले जाअो ।" तो इच्छा होनी ही चाहिए क्योंकि हम जीवित हैं । हम इच्छाओं के लक्षय को बदलना होगा । अगर हम इन्द्रिय संतुष्टि के लिए हमारी इच्छाओं को संलग्न करते हैं, यह भौतिक है । लेकिन अगर हम कृष्ण की अोर से कार्य करते हुए हमारी इच्छाओं को संलग्न करते हैं, वह हमारी, हम सभी इच्छाओं से मुक्त हैं । यहI मापदंड है ।
प्रभुपाद: हाँ । तो जिस व्यक्ति नें इन्द्रियतृप्ति की समस्त इच्छाअों का परित्याग कर दिया है । हमें अपनी इच्छा को मारना नहीं है । तुम कैसे मार सकते हो ? इच्छा जीव का निरंतर साथी है । यही जीवित होने का लक्षण है । क्योंकि मैं जीव हूँ, क्योंकि तुम जीव हो, तुम इच्छा करते हो, मैं इच्छा करता हूँ । इस टेबल की तरह नहीं । टेबल में कोई जीवन नहीं है, इसलिए इसकी कोई इच्छा नहीं है । टेबल यह नहीं कह सकता कि, "मैं कई महीनों से यहाँ खड़ा हूँ । कृपया मुझे अन्य जगह ले जाऍ ।" नहीं । क्योंकि उसकी कोई इच्छा नहीं है । लेकिन अगर, मैं तीन घंटे के लिए यहाँ बैठा हूँ, ओह, मैं कहता हूँ, "ओह, मैं थक गया । मुझे यहॉ से निकालो... कृपया मुझे एक अौर जगह ले जाअो ।"  


तमाल कृष्ण: ७२: "यह आध्यात्मिक तथा ईश्वरीय जीवन का पथ है, जिसे प्राप्त करके मनुष्य मोहित नही होता यदि कोई जीवन के अन्तिम अमय में भी इस तरह स्थित हो, तो वह भगवद्धाम में प्रवेश कर सकता है ।" तात्पर्य: "मनुष्य कृष्णभावनामृत या दिव्य जीवन को एक क्षण में प्राप्त कर सकता है, अौर हो सकता है कि उसे लाखों जन्मों के बाद भी न प्राप्त हो
तो इच्छा होनी ही चाहिए क्योंकि हम जीवित हैं । हम इच्छाओं की प्रवृत्ति को बदलना होगा अगर हम इन्द्रिय संतुष्टि के लिए हमारी इच्छाओं को संलग्न करते हैं, यह भौतिक है । लेकिन अगर हम कृष्ण की अोर से कार्य करते हुए हमारी इच्छाओं को संलग्न करते हैं, वह हमारी, हम सभी इच्छाओं से मुक्त हैं ।  यह मापदंड है ।  


प्रभुपाद: कई बार यह सवाल थे कि "यह कृष्ण के प्रति जागरूक बनने के लिए कितना समय लगेगा?" मैंने पहले ही जवाब दे दिया है कि यह एक क्षण में हो सकता है । वही बात समझाई जा रही है । अागे पढो ।
तमाल कृष्ण: ७२: "यह आध्यात्मिक तथा ईश्वरीय जीवन का पथ है, जिसे प्राप्त करके मनुष्य मोहित नही होता । यदि कोई जीवन के अन्तिम अमय में भी इस तरह स्थित हो, तो वह भगवद्धाम में प्रवेश कर सकता है ।" तात्पर्य: "मनुष्य कृष्णभावनामृत या दिव्य जीवन को एक क्षण में प्राप्त कर सकता है, अौर हो सकता है कि उसे लाखों जन्मों के बाद भी न प्राप्त हो ।
 
प्रभुपाद: कई बार यह सवाल थे कि "यह कृष्ण भावनाभावित बनने के लिए कितना समय लगेगा ?" मैंने पहले ही जवाब दे दिया है कि यह एक क्षण में हो सकता है । वही बात समझाई जा रही है । अागे पढो ।  
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Latest revision as of 11:46, 14 October 2018



Lecture on BG 2.62-72 -- Los Angeles, December 19, 1968

प्रभुपाद: भौतिकवादी व्यक्ति समझ नहीं सकते हैं कि भविष्य क्या है । वे सोच रहे हैं कि यह शरीर सब कुछ है । "हमें यह शरीर मिला है, और जब यह समाप्त हो जाएगा, तब सब कुछ खत्म हो जाएगा ।" ये सवालों की हमने पहले से ही चर्चा की है । लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है । यह आत्म-साक्षात्कार की पहली समझ है, कि अात्मा शाश्वत है, शरीर के विनाश होने के बाद भी इसका विनाश नहीं होता । यह आत्म-साक्षात्कार की शुरुआत है । तो ये लोग यह नहीं समझते हैं । वे इसके लिए परवाह नहीं करते हैं । यही उनकी निद्रा है । यह उनकी दयनीय हालत है । अागे पढो ।

तमाल कृष्ण: "वह भौतिक प्रतिक्रियाओं से अविचलित रहकर अात्म-साक्षात्कार के कार्यों में लगा रहता है ।" ७०: "जो पुरुष समुद्र में निरन्तर प्रवेश करती रहने वाली नदियों के समान इच्छाअों के निरन्तर प्रहार से विचलित नहीं होता, अौर जो सदैव स्थिर रहता है, वही शान्ति प्राप्त कर सकता है, वह नहीं, जो एसी इच्छाओं को तुष्ट करने की चेष्टा करता हो ।

प्रभुपाद: अब, यहाँ है... एक भौतिकवादी व्यक्ति, उसकी अपनी इच्छाऍ हैं । मान लीजिए वह कुछ कारोबार कर रहा है, उसे पैसा मिल रहा है । तो वह भौतिकवादी तरीके से अपनी इच्छा को पूरी करता है । लेकिन एक कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति, मान लीजिए वह उसी तरह से कर रहा हो तो, वह भी योजना बना रहा है या कुछ कर रहा है कृष्ण भावनामृत के लिए । तो ये दो अलग अलग क्षेत्रों की गतिविधियॉकी एक ही स्तर पर नहीं है । अागे पढो ।

तमाल कृष्ण: ७०: "जो व्यक्ति नहीं... ७१ : "जिस व्यक्ति नें इन्द्रियतृप्ति की समस्त इच्छाअों का परित्याग कर दिया है, जो इच्छाअों से रहित रहता है अौर जिसने सारी ममता त्याग दी है तथा अहंकार से रहित है, वही वास्तविक शांति को प्राप्त कर सकता है ।"

प्रभुपाद: हाँ । तो जिस व्यक्ति नें इन्द्रियतृप्ति की समस्त इच्छाअों का परित्याग कर दिया है । हमें अपनी इच्छा को मारना नहीं है । तुम कैसे मार सकते हो ? इच्छा जीव का निरंतर साथी है । यही जीवित होने का लक्षण है । क्योंकि मैं जीव हूँ, क्योंकि तुम जीव हो, तुम इच्छा करते हो, मैं इच्छा करता हूँ । इस टेबल की तरह नहीं । टेबल में कोई जीवन नहीं है, इसलिए इसकी कोई इच्छा नहीं है । टेबल यह नहीं कह सकता कि, "मैं कई महीनों से यहाँ खड़ा हूँ । कृपया मुझे अन्य जगह ले जाऍ ।" नहीं । क्योंकि उसकी कोई इच्छा नहीं है । लेकिन अगर, मैं तीन घंटे के लिए यहाँ बैठा हूँ, ओह, मैं कहता हूँ, "ओह, मैं थक गया । मुझे यहॉ से निकालो... कृपया मुझे एक अौर जगह ले जाअो ।"

तो इच्छा होनी ही चाहिए क्योंकि हम जीवित हैं । हम इच्छाओं की प्रवृत्ति को बदलना होगा । अगर हम इन्द्रिय संतुष्टि के लिए हमारी इच्छाओं को संलग्न करते हैं, यह भौतिक है । लेकिन अगर हम कृष्ण की अोर से कार्य करते हुए हमारी इच्छाओं को संलग्न करते हैं, वह हमारी, हम सभी इच्छाओं से मुक्त हैं । यह मापदंड है ।

तमाल कृष्ण: ७२: "यह आध्यात्मिक तथा ईश्वरीय जीवन का पथ है, जिसे प्राप्त करके मनुष्य मोहित नही होता । यदि कोई जीवन के अन्तिम अमय में भी इस तरह स्थित हो, तो वह भगवद्धाम में प्रवेश कर सकता है ।" तात्पर्य: "मनुष्य कृष्णभावनामृत या दिव्य जीवन को एक क्षण में प्राप्त कर सकता है, अौर हो सकता है कि उसे लाखों जन्मों के बाद भी न प्राप्त हो ।

प्रभुपाद: कई बार यह सवाल थे कि "यह कृष्ण भावनाभावित बनने के लिए कितना समय लगेगा ?" मैंने पहले ही जवाब दे दिया है कि यह एक क्षण में हो सकता है । वही बात समझाई जा रही है । अागे पढो ।