HI/Prabhupada 0559 - वे मूर्खतावश सोचते हैं कि बस "मैं हर चीज़ का राजा हूँ ": Difference between revisions

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प्रभुपाद: यह माया का आकर्षण है । उसे नीचे आना होगा । एक शलोक है,
यह माया का आकर्षण है । उसे नीचे आना होगा ।  


:ये अन्ये अरविन्दाक्ष विमुक्त मानिनास
प्रभुपाद: एक श्लोक है,
:त्वयि अस्त-भावाद अविशुद्ध-बुद्धय:
:अारुह्य कृच्छ्रेन परम पदम तत:
:पतंति अधो अनादृत-यश्माद अंग्रय:
:([[Vanisource:SB 10.2.32|श्री भ १०।२।३२]])


यह प्रहलाद महाराज द्वारा प्रार्थना है । वे कहते हैं, "मेरे प्रिय प्रभु, कमल आंखों वाले, अरविंदाक्ष ये अन्य "कुछ तृतीय वर्ग के पुरुष, वे इस भौतिक जीवन को समाप्त करने पर बहुत ज्यादा गर्व करते हैं, ये निर्वाण या ये मायावादी ।" विमुक्त मानिन: विमुक्त मानिन: - वे बस झूठ मूठ सोच रहे हैं कि वे माया के चंगुल से बच गए हैं । झूठ मूठ । विमुक्त मानिन: । जैसे तुम झूठ मूठ सोचते हो कि "मैं इस लॉस एंजिल्स शहर का मालिक हूँ," यह तुम्हारी झूठी सोच नहीं है? इसी तरह, अगर कोई सोचता है िक "अब मैंने निर्वाण प्राप्त किया है या मैं परम में विलय हो गया हूँ ।" तुम ऐसा सोच सकते हो । यह माया बहुत बलवान है । तुम इस तरह की झूठी प्रतिष्ठा से फूल सकते हो । विमुक्त मानिन: भागवत कहता है, त्वयि अस्त-भावाद अविशुद्ध-बुद्धय: ([[Vanisource:SB 10.2.32|श्री भ १०।२।३२]]) "लेकिन क्योंकि उन्होंने अापके चरण कमलों की खोज नहीं की है, इसलिए उनकी चेतना अशुद्ध है, सोच, 'मैं कुछ हूँ ।" अविशुद्ध-बुद्धय । "उनकी बुद्धि, चेतना शुद्ध नहीं है ।" इसलिए अारुह्य कृच्छ्रेन "वे बहुत गंभीर अभ्यास करते हैं ।" जैसे बौद्धों की तरह, वे बहुत ... अब जो अभ्यास नहीं कर रहे हैं, यह अलग बात है । लेकिन नियम और कानून, भगवान बुद्ध ने स्वयं, उन्होंने दिखाया । उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया और बस ध्यान में लगे रहे । कौन कर रहा है? कोई भी नहीं कर रहा है । शंकराचार्य की पहली शर्त यह है कि, " सबसे पहले तुम संयास लो अौर उसके बाद नारायण के बारे में बात करो ।" कौन सन्यास ले रहा है? इसलिए वे बस झूठा सोच रहे हैं । दरअसल, उनकी बुद्धि अशुद्ध है, चेतना अशुद्ध है । इसलिए इस तरह के प्रयासों के बावजूद, परिणाम है, अारुह्य कृच्छ्रेन परम हालांकि वे बहुत ही ऊँचा जाते हैं, मान लो २५००० मील या लाखों मील ऊपर उन्हे आश्रय नहीं मिलता है, कहां हैचंद्रमा ग्रह, कहां है । वे तुम्हारे मास्को शहर में फिर से नीचे आते हैं, बस । या न्यूयॉर्क शहर, बस । ये उदाहरण हैं । जब वे उच्च ऊपर हों, अोह, या वे फोटोग्राफ लेंगे. "ओह, ये ग्रह इतना, तो यह सांसारिक ग्रह इतना हरा या इतना छोटा है । मैं घूम रहा हूँ दिन अौर रात अौर एक घंटे में तीन बार दिन और रात को देख रहा हूं । " बहुत अच्छा है, ठीक है । कृपया फिर से नीचे आ जाअो । (हंसते हुए) बस । माया इतनी बलवान है, वह कहती है, "हाँ, बहुत अच्छा । तुम बहुत उन्नत हो अपने वैज्ञानिक ज्ञान में, लेकिन कृपया नीचे आअो । यहाँ आओ । नहीं तो तुम्हे अटलांटिक महासागर में डाल दिया जाएगा ।" बस । और वे फिर भी फूले हुए हैं, "ओह, हम प्रगति कर रहे हैं । अगले दस वर्षों में, तुम टिकट खरीद कर सकते हो या चाँद पर जा सकते हो । " तुम्हें पता है, रूस में उन्होंने भूमि बेचा है, और विज्ञापन दिया है कि " मास्को का सागर है । हमनें हमारा ध्वज फहराया है समुद्र में.... " तो ये प्रचार है । वे यहां के सबसे नजदीकी ग्रह में नहीं जा सकते, आध्यात्मिक दुनिया की क्या बात करें । यदि हम आध्यात्मिक दुनिया और वैकुणठ जाने के लिए वास्तव में गंभीर हैं, फिर हमें इस सरल विधि को अपनाना होगा, हरे कृष्ण । बस ।
:ये अन्ये अरविन्दाक्ष विमुक्त मानिनास
:त्वयि अस्त-भावाद अविशुद्ध-बुद्धय:
:अारुह्य कृच्छ्रेण परम पदम तत:
:पतंति अधो अनादृत-युश्माद अंघ्रय:
:([[Vanisource:SB 10.2.32|श्रीमद भागवतम १०.२.३२]])


अतिथि: मैं नास्तिकता में दिलचस्पी रखता हूँ ।
यह प्रहलाद महाराज द्वारा प्रार्थना है । वे कहते हैं, "मेरे प्रिय प्रभु, कमल आंखों वाले, अरविंदाक्ष," ये अन्ये | "कुछ तृतीय वर्ग के पुरुष, वे इस भौतिक जीवन को समाप्त करने पर बहुत ज्यादा गर्व करते हैं, ये निर्वाण या ये मायावादी ।" विमुक्त मानिन: | विमुक्त मानिन: - वे बस झूठ मूठ सोच रहे हैं कि वे माया के चंगुल से बच गए हैं । झूठ मूठ । विमुक्त मानिन: । जैसे तुम झूठ मूठ सोचते हो कि "मैं इस लॉस एंजलिस शहर का मालिक हूँ," यह तुम्हारी झूठी सोच नहीं है? इसी तरह, अगर कोई सोचता है की "अब मैंने निर्वाण प्राप्त किया है या मैं परम में विलय हो गया हूँ ।" तुम ऐसा सोच सकते हो । यह माया बहुत बलवान है । तुम इस तरह की झूठी प्रतिष्ठा से फूल सकते हो । विमुक्त मानिन: |


प्रभुपाद: (अतिथि को ना सुनते हुए या देखे बिना) यह भगवान चैतन्य का उपहार है । नमो महा वदन्याय । इसलिए रूप गोसस्वामी कहते हैं, "अाप सभी धर्मार्थ व्यक्तियों में सबसे श्रेष्ठ हें क्योंकि आप सबसे बड़ा वरदान दे रहे हैं । "कृष्ण-प्रेम-प्रदाय ते ([[Vanisource:CC Madhya 19.53|चै च मध्य १९।५३]]) "अाप कृष्ण का प्रेम दे रहे हैं, जो मुझे कृष्ण का लोक दिलाएगा ।" यह मानव समाज के लिए सबसे बड़ा उपहार है । लेकिन मूर्ख व्यक्तियों को यह समझ में नहीं आता । मैं क्या कर सकता हूँ ? दैवि हि एश गुणमयी ([[Vanisource:BG 7.14|भ गी ७।१४]]) । माया बहुत बलवान है । अगर हम कहते हैं कि "यहां एक छोटी सी पुस्तिका है, "अन्य ग्रहों के लिए आसान रास्ता" ," वे इसे नहीं लेंगे । वे योजना बनाएँगे कि स्पूटनिक द्वारा कैसे अन्य ग्रह में जाऍ, जो असंभव है । तुम कहीं नहीं जा सकते. । यही हमारा सशर्त जीवन है । सशर्त का मतलब है कि तुम्हे यहाँ रहना होगा । तुम्हे यहाँ रहना होगा । कौन अन्य ग्रह में जाने की अनुमति दे रहा है? यहॉ अाने के लिए, तुम्हारे देश के स्थायी वीजा के लिए, मुझे इतना प्रयत्न करना पडा, और तुम चंद्रमा ग्रह पर जा रहे हो ? कोई वीजा नहीं है ? वे तुम्हे ही प्रवेश करने की अनुमति देंगे ? यह इतनी आसान बात है ? लेकिन वे मूर्खतावश सोचते हैं कि बस "मैं हर चीज़ का राजा हूँ ।" यह ग्रह राजा है, और सभी अन्य ग्रह वे सब अधीन हैं ।" वे हमारी इंद्रियों को संतुष्ट करेंगे । यह मूर्खता है । ठीक है । हरे कृष्ण मंत्र का जाप करो ।
भागवत कहता है, त्वयि अस्त-भावाद अविशुद्ध-बुद्धय: ([[Vanisource:SB 10.2.32|श्रीमद भागवतम १०.२.३२]]) | "लेकिन क्योंकि उन्होंने अापके चरण कमलों की खोज नहीं की है, इसलिए उनकी चेतना अशुद्ध है, सोचते हुए की, 'मैं कुछ हूँ' ।" अविशुद्ध-बुद्धय । "उनकी बुद्धि, चेतना शुद्ध नहीं है ।" इसलिए अारुह्य कृच्छ्रेण "वे बहुत गंभीर अभ्यास करते हैं ।" जैसे बौद्धों की तरह, वे बहुत... अब जो अभ्यास नहीं कर रहे हैं, यह अलग बात है । लेकिन नियम और कानून, भगवान बुद्ध ने स्वयं, उन्होंने दिखाया । उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया और बस ध्यान में लगे रहे । कौन कर रहा है ? कोई भी नहीं कर रहा है । शंकराचार्य की पहली शर्त यह है कि, "सबसे पहले तुम सन्यास लो अौर उसके बाद नारायण बनने के बारे में बात करो ।" कौन सन्यास ले रहा है ? इसलिए वे बस झूठा सोच रहे हैं । दरअसल, उनकी बुद्धि अशुद्ध है, चेतना अशुद्ध है ।
 
इसलिए इस तरह के प्रयासों के बावजूद, परिणाम है, अारुह्य कृच्छ्रेण परम, हालांकि वे बहुत ही ऊँचा जाते हैं, मान लो २५,००० मील या लाखों मील ऊपर, उन्हे आश्रय नहीं मिलता है, कहां चंद्र ग्रह है, कहां है (अस्पष्ट) । वे तुम्हारे मोस्को शहर में फिर से नीचे आते हैं, बस । या न्यूयॉर्क शहर, बस । ये उदाहरण हैं । जब वे ऊपर ऊँचे है, अोह, वे फोटोग्राफ लेंगे | "ओह, ये ग्रह इतना, तो यह पृथ्वी ग्रह इतना हरा या इतना छोटा है । मैं घूम रहा हूँ दिन अौर रात अौर एक घंटे में तीन बार दिन और रात को देख रहा हूं ।" बहुत अच्छा है, ठीक है । कृपया फिर से नीचे आ जाअो । (हंसते हुए) बस । माया इतनी बलवान है, वह कहती है, "हाँ, बहुत अच्छा । तुम बहुत उन्नत हो अपने वैज्ञानिक ज्ञान में, लेकिन कृपया नीचे आअो । यहाँ आओ । नहीं तो तुम्हे अटलांटिक महासागर में डाल दिया जाएगा ।" बस । और वे फिर भी फूले हुए हैं, "ओह, हम प्रगति कर रहे हैं । अगले दस वर्षों में, तुम टिकट खरीद कर सकते हो या चाँद पर जा सकते हो ।" तुम्हें पता है, रूस में उन्होंने भूमि बेची है, और विज्ञापन दिया है कि "मोस्को का सागर है । हमनें हमारा ध्वज फहराया है समुद्र में..."
 
तो ये कार्यक्रम चल रहे है । वे यहां के सबसे नजदीकी ग्रह में नहीं जा सकते, आध्यात्मिक दुनिया की क्या बात करें । यदि हम आध्यात्मिक दुनिया और वैकुण्ठलोक में जाने के लिए वास्तव में गंभीर हैं, फिर हमें इस सरल विधि को अपनाना होगा, हरे कृष्ण । बस ।
 
अतिथि: मैं नास्तिकता में दिलचस्पी रखता हूँ । प्र
 
भुपाद: (अतिथि को ना सुनते हुए या देखे बिना) यह भगवान चैतन्य का उपहार है । नमो महा वदन्याय । इसलिए रूप गोस्वामी कहते हैं, "अाप सभी दानी व्यक्तियों में सबसे श्रेष्ठ हें क्योंकि आप सबसे बड़ा वरदान दे रहे हैं ।" कृष्ण-प्रेम-प्रदाय ते ([[Vanisource:CC Madhya 19.53|चैतन्य चरितामृत मध्य १९.५३]]) | "अाप कृष्ण का प्रेम दे रहे हैं, जो मुझे कृष्ण का लोक दिलाएगा ।" यह मानव समाज के लिए सबसे बड़ा उपहार है । लेकिन मूर्ख व्यक्तियों को यह समझ में नहीं आता । मैं क्या कर सकता हूँ ? दैवि हि एषा गुणमयी ([[HI/BG 7.14|भ.गी. ७.१४]]) ।
 
माया बहुत बलवान है । अगर हम कहते हैं कि "यहां एक छोटी सी पुस्तिका है, "अन्य ग्रहों के लिए आसान रास्ता," वे इसे नहीं लेंगे । वे योजना बनाएँगे कि अवकाशयान द्वारा कैसे अन्य ग्रह में जाऍ, जो असंभव है । तुम कहीं नहीं जा सकते । यही हमारा बद्ध जीवन है । बद्ध का मतलब है कि तुम्हे यहाँ रहना होगा । तुम्हे यहाँ रहना होगा । कौन अन्य ग्रह में जाने की अनुमति दे रहा है? यहॉ अाने के लिए, तुम्हारे देश के स्थायी वीज़ा के लिए, मुझे इतना प्रयत्न करना पडा, और तुम चंद्र ग्रह पर जा रहे हो ? कोई वीज़ा नहीं है ? वे तुम्हे ही प्रवेश करने की अनुमति देंगे ? यह इतनी आसान बात है ? लेकिन वे मूर्खतावश सोचते हैं कि बस "मैं हर चीज़ का राजा हूँ ।" यह ग्रह राजा है, और सभी अन्य ग्रह वे सब अधीन हैं ।" वे हमारी इंद्रियों को संतुष्ट करेंगे । यह मूर्खता है । ठीक है । हरे कृष्ण का कीर्तन करो ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on BG 2.62-72 -- Los Angeles, December 19, 1968

यह माया का आकर्षण है । उसे नीचे आना होगा ।

प्रभुपाद: एक श्लोक है,

ये अन्ये अरविन्दाक्ष विमुक्त मानिनास
त्वयि अस्त-भावाद अविशुद्ध-बुद्धय:
अारुह्य कृच्छ्रेण परम पदम तत:
पतंति अधो अनादृत-युश्माद अंघ्रय:
(श्रीमद भागवतम १०.२.३२)

यह प्रहलाद महाराज द्वारा प्रार्थना है । वे कहते हैं, "मेरे प्रिय प्रभु, कमल आंखों वाले, अरविंदाक्ष," ये अन्ये | "कुछ तृतीय वर्ग के पुरुष, वे इस भौतिक जीवन को समाप्त करने पर बहुत ज्यादा गर्व करते हैं, ये निर्वाण या ये मायावादी ।" विमुक्त मानिन: | विमुक्त मानिन: - वे बस झूठ मूठ सोच रहे हैं कि वे माया के चंगुल से बच गए हैं । झूठ मूठ । विमुक्त मानिन: । जैसे तुम झूठ मूठ सोचते हो कि "मैं इस लॉस एंजलिस शहर का मालिक हूँ," यह तुम्हारी झूठी सोच नहीं है? इसी तरह, अगर कोई सोचता है की "अब मैंने निर्वाण प्राप्त किया है या मैं परम में विलय हो गया हूँ ।" तुम ऐसा सोच सकते हो । यह माया बहुत बलवान है । तुम इस तरह की झूठी प्रतिष्ठा से फूल सकते हो । विमुक्त मानिन: |

भागवत कहता है, त्वयि अस्त-भावाद अविशुद्ध-बुद्धय: (श्रीमद भागवतम १०.२.३२) | "लेकिन क्योंकि उन्होंने अापके चरण कमलों की खोज नहीं की है, इसलिए उनकी चेतना अशुद्ध है, सोचते हुए की, 'मैं कुछ हूँ' ।" अविशुद्ध-बुद्धय । "उनकी बुद्धि, चेतना शुद्ध नहीं है ।" इसलिए अारुह्य कृच्छ्रेण "वे बहुत गंभीर अभ्यास करते हैं ।" जैसे बौद्धों की तरह, वे बहुत... अब जो अभ्यास नहीं कर रहे हैं, यह अलग बात है । लेकिन नियम और कानून, भगवान बुद्ध ने स्वयं, उन्होंने दिखाया । उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया और बस ध्यान में लगे रहे । कौन कर रहा है ? कोई भी नहीं कर रहा है । शंकराचार्य की पहली शर्त यह है कि, "सबसे पहले तुम सन्यास लो अौर उसके बाद नारायण बनने के बारे में बात करो ।" कौन सन्यास ले रहा है ? इसलिए वे बस झूठा सोच रहे हैं । दरअसल, उनकी बुद्धि अशुद्ध है, चेतना अशुद्ध है ।

इसलिए इस तरह के प्रयासों के बावजूद, परिणाम है, अारुह्य कृच्छ्रेण परम, हालांकि वे बहुत ही ऊँचा जाते हैं, मान लो २५,००० मील या लाखों मील ऊपर, उन्हे आश्रय नहीं मिलता है, कहां चंद्र ग्रह है, कहां है (अस्पष्ट) । वे तुम्हारे मोस्को शहर में फिर से नीचे आते हैं, बस । या न्यूयॉर्क शहर, बस । ये उदाहरण हैं । जब वे ऊपर ऊँचे है, अोह, वे फोटोग्राफ लेंगे | "ओह, ये ग्रह इतना, तो यह पृथ्वी ग्रह इतना हरा या इतना छोटा है । मैं घूम रहा हूँ दिन अौर रात अौर एक घंटे में तीन बार दिन और रात को देख रहा हूं ।" बहुत अच्छा है, ठीक है । कृपया फिर से नीचे आ जाअो । (हंसते हुए) बस । माया इतनी बलवान है, वह कहती है, "हाँ, बहुत अच्छा । तुम बहुत उन्नत हो अपने वैज्ञानिक ज्ञान में, लेकिन कृपया नीचे आअो । यहाँ आओ । नहीं तो तुम्हे अटलांटिक महासागर में डाल दिया जाएगा ।" बस । और वे फिर भी फूले हुए हैं, "ओह, हम प्रगति कर रहे हैं । अगले दस वर्षों में, तुम टिकट खरीद कर सकते हो या चाँद पर जा सकते हो ।" तुम्हें पता है, रूस में उन्होंने भूमि बेची है, और विज्ञापन दिया है कि "मोस्को का सागर है । हमनें हमारा ध्वज फहराया है समुद्र में..."

तो ये कार्यक्रम चल रहे है । वे यहां के सबसे नजदीकी ग्रह में नहीं जा सकते, आध्यात्मिक दुनिया की क्या बात करें । यदि हम आध्यात्मिक दुनिया और वैकुण्ठलोक में जाने के लिए वास्तव में गंभीर हैं, फिर हमें इस सरल विधि को अपनाना होगा, हरे कृष्ण । बस ।

अतिथि: मैं नास्तिकता में दिलचस्पी रखता हूँ । प्र

भुपाद: (अतिथि को ना सुनते हुए या देखे बिना) यह भगवान चैतन्य का उपहार है । नमो महा वदन्याय । इसलिए रूप गोस्वामी कहते हैं, "अाप सभी दानी व्यक्तियों में सबसे श्रेष्ठ हें क्योंकि आप सबसे बड़ा वरदान दे रहे हैं ।" कृष्ण-प्रेम-प्रदाय ते (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.५३) | "अाप कृष्ण का प्रेम दे रहे हैं, जो मुझे कृष्ण का लोक दिलाएगा ।" यह मानव समाज के लिए सबसे बड़ा उपहार है । लेकिन मूर्ख व्यक्तियों को यह समझ में नहीं आता । मैं क्या कर सकता हूँ ? दैवि हि एषा गुणमयी (भ.गी. ७.१४) ।

माया बहुत बलवान है । अगर हम कहते हैं कि "यहां एक छोटी सी पुस्तिका है, "अन्य ग्रहों के लिए आसान रास्ता," वे इसे नहीं लेंगे । वे योजना बनाएँगे कि अवकाशयान द्वारा कैसे अन्य ग्रह में जाऍ, जो असंभव है । तुम कहीं नहीं जा सकते । यही हमारा बद्ध जीवन है । बद्ध का मतलब है कि तुम्हे यहाँ रहना होगा । तुम्हे यहाँ रहना होगा । कौन अन्य ग्रह में जाने की अनुमति दे रहा है? यहॉ अाने के लिए, तुम्हारे देश के स्थायी वीज़ा के लिए, मुझे इतना प्रयत्न करना पडा, और तुम चंद्र ग्रह पर जा रहे हो ? कोई वीज़ा नहीं है ? वे तुम्हे ही प्रवेश करने की अनुमति देंगे ? यह इतनी आसान बात है ? लेकिन वे मूर्खतावश सोचते हैं कि बस "मैं हर चीज़ का राजा हूँ ।" यह ग्रह राजा है, और सभी अन्य ग्रह वे सब अधीन हैं ।" वे हमारी इंद्रियों को संतुष्ट करेंगे । यह मूर्खता है । ठीक है । हरे कृष्ण का कीर्तन करो ।