HI/Prabhupada 0611 - जैसे ही तुम सेवा की भावना को खो दोगे, यह मंदिर एक बड़ा निराशजनक बन जाएगा: Difference between revisions

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तो कम से कम हम भारतीय, हम उस तरह से प्रशिक्षित किए जाते हैं । न केवल प्रशिक्षित, हम जन्म से भक्त हैं । जिस किसी नें भारत में जन्म लिया है, यह विशेष सुविधा है । उनके पिछले जन्म में, उन्होंने कई तपस्या की है, बहुत तपस्या । यहां तक ​​कि देवता भी, वे इच्छा रखते हैं यह अवसर पाने के लिए भारत में जन्म लेने के लिए । तो भारत ... मत सोचो.....भारत का मतलब है यह ग्रह, भारतवर्श ... . अच्छा अवसर है । तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए - अगर हम सोचते हैं कि "यहां एक पत्थर की मूर्ति है," तो यह कई दिनों तक नहीं रहेगा । यह नहीं होगा ... गलग्रह । विग्रह नहीं, लेकिन गलग्रह । मान लीजिए मैंने इस मंदिर की स्थापना की है । अब, मेरे निर्देशन में, मेरे शिष्य विग्रह की पूजा कर रहे हैं । विग्रह का मतलब है प्रभु का रूप, रूप । लेकिन अगर नियामक सिद्धांतों का कोई पालन नहीं होता है, तो मेरी मौत के बाद यह गलग्रह हो जाएगा, एक बोझ, कि, " हमारे कमीने गुरु महाराज नें इस मंदिर की स्थापना की, और हमें पूजा करनी पड रही है, सुबह जल्दी उठना पडता है, सब परेशानी ।" यह होगा ... इसे गलग्रह कहा जाता है, एक बोझ, " उन्होंने हमारे लिए एक बोझ छोड़ दिया है ।" यह जोखिम है । तो फिर इस तरह का एक बड़ा मंदिर कुप्रबन्धित होगा, और तुम पाअोगे कि "यह टूट रहा है" और "यह अशुद्ध है" और कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है । यह होगा हमारा ... यही गलग्रह कहा जाता है: "कमीने नें हमें एक बोझ दिया है ।" तो यह बहुत मुश्किल है । अगर हम खो देते हैं ..., अगर हम यह अहसास खो देते हैं कि, "यहां श्री कृष्ण हैं । यहाँ उनकी सेवा करने का मौका है ..." साक्शाद-धरित्वेन समस्त शास्त्रै: .... ऐसा नहीं है कि । श्री-विग्रहाराधन नित्य नाना श्रृंगार तन मंदिर मारजनादौ । जैसे ही.... इसलिए हम बहुत ज्यादा सतर्क हैं, "क्यों तुमने एसा नहीं किया ? क्यों तुमने एसा नहीं किया ? क्यों...?" जैसे ही भक्ति सेवा की भावना खो दी जाएगी, यह मंदिर एक बोझ हो जाएगा । इस तरह से होता है । यह इतना बड़ा मंदिर होगा, प्रबंधित करने के लिए, यह एक बड़ा बोझ होगा । तो वे बोझ महसूस कर रहे हैं । इसलिए उन्हे कोई फर्क नहीं पडता है कि कहीं कुछ टूटा है । "ठीक है, हमें, जो कुछ पैसा है हमारे पास, सब से पहले खा लेते हैं ।" यह स्थिति है । विग्रह अौर गलग्रह । तुम्हें समझना चाहिए । अगर हम भूल जाते हैं कि "यहाँ कृष्ण व्यक्तिगत रूप से मौजूद हैं । हमें उनका बहुत अच्छी तरह से स्वागत करना चाहिए । हमें उन्हें अच्छा अच्छा भोजन देना चाहिए, अच्छे वस्त्र, अच्छे ... " तो यह सेवा है । और जैसे ही यह अहसास होता है कि "यहाँ एक पत्थर की मूर्ति है" .. वे कभी कभी कहते हैं "मूर्ति पूजा" - "और हमें निर्देश दिया गया है उन्हें वस्त्र पहनाने के लिए, देने के लिए.... सब परेशानी है । तब समाप्त । समाप्त । यह हर जगह आ गया है । मैंने नासिक में देखा है बहुत, बहुत बड़ा मंदिरों में कोई पुजारी नहीं है और कुत्तों मल कर रहे हैं । वे तोड़ ही नहीं रहे हैं । पश्चिमी देशों में भी चर्चों को बंद कर दिया जा रहा है । बड़े, बड़े चर्च, लंदन में मैंने देखा है, बहुत बड़ा, बड़ा चर्च , लेकिन वे बंद हैं । रविवार को बैठक होती है जब, कार्यवाहक, दो, तीन पुरुष और कोई बूढ़ी औरत, वे आते हैं । कोई नहीं आता है । और हम खरीद रहे हैं । हमने कई चर्च खरीदा रहे हैं । क्योंकि यह अब बेकार है । यह बेकार है । हमारे लॉस एंजिल्स में हमने खरीदा है, और कई दूसरे । टोरंटो में, हाल ही में हमने खरीदा है । बड़े, बड़े चर्च । लेकिन वे हमें बेचने के लिए तैयार नहीं थे । एक चर्च, पुजारी ने कहा कि, "मैं इस चर्च में आग लगा दूँगा, फिर भी मैं भक्तिवेदांत स्वामी को नहीं दूँगा ।" (हंसी) यह टोरंटो चर्च भी उस तरह था । और मेलबोर्न में, शर्त थी, बिक्री की शर्त, कि तुम्हे इस चर्च को तोडना होगा । हमने कहा, "क्यों?" उन्होंने कहा, " अगर उपयोग मंदिर का होता है अब जिस हालत में है वो, तब हम आपको नहीं देंगे ।" उन्होंने मना कर दिया । तुम्हें पता है ? तो उन्हे पसंद नहीं है कि "यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन हमारे चर्चों को खरीदे और राधा कृष्ण अर्च विग्रह को स्थापित करे ।" उन्हे यह पसंद नहीं हैं । लेकिन यह चल रहा है । तो पश्चिमी देशों के चर्चों ही नहीं, यहां भी । जैसे ही तुम सेवा की भावना को खो दोगे, यह मंदिर एक बड़ा निराशजनक बन जाएगा, बस । मंदिर नहीं रहेगा । तो हमें सेवा भावना को बनाए रखना है । इसलिए हम इतना खास ज़ोर देते हैं - "क्यों ताजा फूल वहाँ नहीं हैं ?" यदि आपको लगता है, "यहाँ एक पत्थर की मूर्ति है । ताजा फूल या पुराने फूल का क्या अर्थ है ? हमें कुछ फूल देना है । बस ।" लेकिन कोई भाव नहीं है कि "यहां श्री कृष्ण हैं । हमें ताजा फूल देना चाहिए ।" जैसे मैं एक जीवित आदमी हूँ, अगर तुम मुझे एक ताजा फूल देते हो, और तुम कुछ कचरा लेकर अाते हो, और अगर तुम मुझे देते हो, मैं खुश हो जाऊँगा ? क्या लगता है तुम्हे ? तो यह भाव, हार है शुरुआत से ही कि, "हम कुछ बकवास, कचरा फूलों के साथ इस मूर्ति को संतुष्ट करेंगे । वे विरोध नहीं करेंगे ।" हाँ, वे विरोध नहीं करेंगे । लेकिन तम्हारा जीवन खत्म हो जाएगा । विरोध इश्र तरह से आएगा । जैसे ही तुम वह भाव खो देते हो, भाव, बुद्धा भाव-समन्विता: ([[Vanisource:BG 10.8|भ गी १०।८]]) कौन कृष्ण की पूजा कर सकते हो ? जब भाव है, स्थायि भावा । इसकी भक्ति-रसामृत-सिंधु में चर्चा की गई है, भाव क्या है । लेकिन तुममें कोई भाव न हो, तो तुम भौतक (अस्पष्ट), कनिश्ठ अधीकरी । केवल दिखावा । एक दिखावा कई दिनों तक नहीं कायम रहता है । दिखावा बहुत जल्द ही खत्म हो जाएगा ।
तो कम से कम हम भारतीय, हम उस तरह से प्रशिक्षित किए जाते हैं । न केवल प्रशिक्षित, हम जन्म से भक्त हैं । जिस किसी नें भारत में जन्म लिया है, यह विशेष सुविधा है । उनके पिछले जन्म में, उन्होंने कई तपस्या की है, बहुत तपस्या । यहां तक ​​कि देवता भी, वे इच्छा रखते हैं यह अवसर पाने के लिए भारत में जन्म लेने के लिए । तो भारत... मत सोचो... भारत का मतलब है यह ग्रह, भारतवर्ष... अच्छा अवसर है ।  
 
तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए - अगर हम सोचते हैं कि "यहां एक पत्थर की मूर्ति है," तो यह कई दिनों तक नहीं रहेगा । यह नहीं होगा... गलग्रह । विग्रह नहीं, लेकिन गलग्रह । मान लीजिए मैंने इस मंदिर की स्थापना की है । अब, मेरे निर्देशन में, मेरे शिष्य विग्रह की पूजा कर रहे हैं । विग्रह का मतलब है भगवान का स्वरूप, रूप । लेकिन अगर नियामक सिद्धांतों का कोई पालन नहीं होता है, तो मेरी मौत के बाद यह गलग्रह हो जाएगा, एक बोझ, कि, " हमारे बदमाश गुरु महाराज नें इस मंदिर की स्थापना की, और हमें पूजा करनी पड रही है, सुबह जल्दी उठना पडता है, सब परेशानी ।"  
 
यह होगा... इसे गलग्रह कहा जाता है, एक बोझ, "उन्होंने हमारे लिए एक बोझ छोड़ दिया है ।" यह जोखिम है । तो फिर इस तरह का एक बड़ा मंदिर कुप्रबन्धित होगा, और तुम पाअोगे कि "यह टूट रहा है" और "यह अशुद्ध है" और कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है । यह होगा हमारा... यही गलग्रह कहा जाता है: "दुष्ट नें हमें एक बोझ दिया है ।" तो यह बहुत मुश्किल है । अगर हम खो देते हैं..., अगर हम यह अहसास खो देते हैं कि, "यहां श्री कृष्ण हैं । यहाँ उनकी सेवा करने का मौका है..." साक्षाद-हरित्वेन समस्त शास्त्रै:.... ऐसा नहीं है की । श्री-विग्रहाराधन नित्य नाना श्रृंगार तन मंदिर मार्जनादौ ।  
 
जैसे ही... इसलिए हम बहुत ज्यादा सतर्क हैं, "क्यों तुमने एसा नहीं किया ? क्यों तुमने एसा नहीं किया ? क्यों...?" जैसे ही भक्ति सेवा की भावना खो दी जाएगी, यह मंदिर एक बोझ हो जाएगा । इस तरह से होता है । यह इतना बड़ा मंदिर होगा, प्रबंधित करने के लिए, यह एक बड़ा बोझ होगा । तो वे बोझ महसूस कर रहे हैं । इसलिए उन्हे कोई फर्क नहीं पडता है कि कहीं कुछ टूटा है । "ठीक है, जो कुछ पैसा है हमारे पास, सब से पहले खा लेते हैं ।" यह स्थिति है । विग्रह अौर गलग्रह । तुम्हें समझना चाहिए ।  
 
अगर हम भूल जाते हैं कि "यहाँ कृष्ण व्यक्तिगत रूप से मौजूद हैं । हमें उनका बहुत अच्छी तरह से स्वागत करना चाहिए । हमें उन्हें अच्छा अच्छा भोजन देना चाहिए, अच्छे वस्त्र, अच्छे... " तो यह सेवा है । और जैसे ही यह अहसास होता है कि "यहाँ एक पत्थर की मूर्ति है".. वे कभी कभी कहते हैं "मूर्ति पूजा" - "और हमें निर्देश दिया गया है उन्हें वस्त्र पहनाने के लिए, देने के लिए... सब परेशानी है । फिर समाप्त । समाप्त । यह हर जगह आ गया है ।  
 
मैंने नासिक में देखा है बहुत, बहुत बड़े मंदिरों में कोई पुजारी नहीं है और कुत्ते मल पसार कर रहे हैं । वे बंध भी कर रहे हैं । पश्चिमी देशों में भी चर्चों को बंद कर दिया जा रहा है । बड़े, बड़े चर्च, लंडन में मैंने देखा है, बहुत बड़े, बड़े चर्च, लेकिन वे बंद हैं । रविवार को बैठक होती है जब, कार्यवाहक, दो, तीन पुरुष और कोई बूढ़ी औरत, वे आते हैं । कोई नहीं आता है । और हम खरीद रहे हैं । हमने कई चर्च ख़रीद रहे हैं । क्योंकि यह अब बेकार है । यह बेकार है । हमारे लॉस एंजिल्स में हमने खरीदा है, और कई दूसरे । टोरंटो में, हाल ही में हमने खरीदा है । बड़े, बड़े चर्च । लेकिन वे हमें बेचने के लिए तैयार नहीं थे ।  
 
एक चर्च, पुजारी ने कहा कि, "मैं इस चर्च में आग लगा दूँगा, फिर भी मैं भक्तिवेदांत स्वामी को नहीं दूँगा ।" (हंसी) यह टोरंटो चर्च भी उस तरह था । और मेलबोर्न में, शर्त थी, बिक्री की शर्त, कि तुम्हे इस चर्च को तोडना होगा । हमने कहा, "क्यों?" उन्होंने कहा, "अगर उपयोग मंदिर का होता है अब जिस हालत में है वो, तब हम आपको नहीं देंगे ।" उन्होंने मना कर दिया । तुम्हें पता है ? तो उन्हे पसंद नहीं है कि "यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन हमारे चर्चों को खरीदे और राधा कृष्ण अर्च विग्रह को स्थापित करे ।" उन्हे यह पसंद नहीं हैं । लेकिन यह चल रहा है ।  
 
तो पश्चिमी देशों के चर्च ही नहीं, यहां भी । जैसे ही तुम सेवा की भावना को खो दोगे, यह मंदिर एक बड़ा निराशजनक बन जाएगा, बस । मंदिर नहीं रहेगा । तो हमें सेवा भावना को बनाए रखना है । इसलिए हम इतना खास ज़ोर देते हैं - "क्यों ताजा फूल वहाँ नहीं हैं ?" यदि आपको लगता है, "यहाँ एक पत्थर की मूर्ति है । ताजा फूल या पुराने फूल का क्या अर्थ है ? हमें कुछ फूल देना है । बस ।" लेकिन कोई भाव नहीं है कि "यहां श्री कृष्ण हैं । हमें ताजा फूल देना चाहिए ।"  
 
जैसे मैं एक जीवित आदमी हूँ, अगर तुम मुझे एक ताजा फूल देते हो, और तुम कुछ कचरा लेकर अाते हो, और अगर तुम मुझे देते हो, क्या मैं खुश हो जाऊँगा ? क्या लगता है तुम्हे ? तो यह भाव, हार है शुरुआत से ही, कि, "हम कुछ बकवास, कचरे के फूलों के साथ इस मूर्ति को संतुष्ट करेंगे । वे विरोध नहीं करेंगे ।" हाँ, वे विरोध नहीं करेंगे । लेकिन तुम्हारा जीवन खत्म हो जाएगा । विरोध इस तरह से आएगा ।  
 
जैसे ही तुम वह भाव खो देते हो, भाव, बुधा भाव-समन्विता: ([[HI/BG 10.8|भ.गी. १०.८]])... कौन कृष्ण की पूजा कर सकता है ? जब भाव है, स्थायि-भाव । इसकी भक्ति-रसामृत-सिंधु में चर्चा की गई है, भाव क्या है । लेकिन तुममें कोई भाव न हो, तो तुम भौतक (अस्पष्ट), कनिश्ठ अधीकरी । केवल दिखावा । एक दिखावा कई दिनों तक नहीं कायम रहता है । दिखावा बहुत जल्द ही खत्म हो जाएगा ।  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



Lecture on SB 1.7.27 -- Vrndavana, September 24, 1976

तो कम से कम हम भारतीय, हम उस तरह से प्रशिक्षित किए जाते हैं । न केवल प्रशिक्षित, हम जन्म से भक्त हैं । जिस किसी नें भारत में जन्म लिया है, यह विशेष सुविधा है । उनके पिछले जन्म में, उन्होंने कई तपस्या की है, बहुत तपस्या । यहां तक ​​कि देवता भी, वे इच्छा रखते हैं यह अवसर पाने के लिए भारत में जन्म लेने के लिए । तो भारत... मत सोचो... भारत का मतलब है यह ग्रह, भारतवर्ष... अच्छा अवसर है ।

तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए - अगर हम सोचते हैं कि "यहां एक पत्थर की मूर्ति है," तो यह कई दिनों तक नहीं रहेगा । यह नहीं होगा... गलग्रह । विग्रह नहीं, लेकिन गलग्रह । मान लीजिए मैंने इस मंदिर की स्थापना की है । अब, मेरे निर्देशन में, मेरे शिष्य विग्रह की पूजा कर रहे हैं । विग्रह का मतलब है भगवान का स्वरूप, रूप । लेकिन अगर नियामक सिद्धांतों का कोई पालन नहीं होता है, तो मेरी मौत के बाद यह गलग्रह हो जाएगा, एक बोझ, कि, " हमारे बदमाश गुरु महाराज नें इस मंदिर की स्थापना की, और हमें पूजा करनी पड रही है, सुबह जल्दी उठना पडता है, सब परेशानी ।"

यह होगा... इसे गलग्रह कहा जाता है, एक बोझ, "उन्होंने हमारे लिए एक बोझ छोड़ दिया है ।" यह जोखिम है । तो फिर इस तरह का एक बड़ा मंदिर कुप्रबन्धित होगा, और तुम पाअोगे कि "यह टूट रहा है" और "यह अशुद्ध है" और कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है । यह होगा हमारा... यही गलग्रह कहा जाता है: "दुष्ट नें हमें एक बोझ दिया है ।" तो यह बहुत मुश्किल है । अगर हम खो देते हैं..., अगर हम यह अहसास खो देते हैं कि, "यहां श्री कृष्ण हैं । यहाँ उनकी सेवा करने का मौका है..." साक्षाद-हरित्वेन समस्त शास्त्रै:.... ऐसा नहीं है की । श्री-विग्रहाराधन नित्य नाना श्रृंगार तन मंदिर मार्जनादौ ।

जैसे ही... इसलिए हम बहुत ज्यादा सतर्क हैं, "क्यों तुमने एसा नहीं किया ? क्यों तुमने एसा नहीं किया ? क्यों...?" जैसे ही भक्ति सेवा की भावना खो दी जाएगी, यह मंदिर एक बोझ हो जाएगा । इस तरह से होता है । यह इतना बड़ा मंदिर होगा, प्रबंधित करने के लिए, यह एक बड़ा बोझ होगा । तो वे बोझ महसूस कर रहे हैं । इसलिए उन्हे कोई फर्क नहीं पडता है कि कहीं कुछ टूटा है । "ठीक है, जो कुछ पैसा है हमारे पास, सब से पहले खा लेते हैं ।" यह स्थिति है । विग्रह अौर गलग्रह । तुम्हें समझना चाहिए ।

अगर हम भूल जाते हैं कि "यहाँ कृष्ण व्यक्तिगत रूप से मौजूद हैं । हमें उनका बहुत अच्छी तरह से स्वागत करना चाहिए । हमें उन्हें अच्छा अच्छा भोजन देना चाहिए, अच्छे वस्त्र, अच्छे... " तो यह सेवा है । और जैसे ही यह अहसास होता है कि "यहाँ एक पत्थर की मूर्ति है".. वे कभी कभी कहते हैं "मूर्ति पूजा" - "और हमें निर्देश दिया गया है उन्हें वस्त्र पहनाने के लिए, देने के लिए... सब परेशानी है । फिर समाप्त । समाप्त । यह हर जगह आ गया है ।

मैंने नासिक में देखा है बहुत, बहुत बड़े मंदिरों में कोई पुजारी नहीं है और कुत्ते मल पसार कर रहे हैं । वे बंध भी कर रहे हैं । पश्चिमी देशों में भी चर्चों को बंद कर दिया जा रहा है । बड़े, बड़े चर्च, लंडन में मैंने देखा है, बहुत बड़े, बड़े चर्च, लेकिन वे बंद हैं । रविवार को बैठक होती है जब, कार्यवाहक, दो, तीन पुरुष और कोई बूढ़ी औरत, वे आते हैं । कोई नहीं आता है । और हम खरीद रहे हैं । हमने कई चर्च ख़रीद रहे हैं । क्योंकि यह अब बेकार है । यह बेकार है । हमारे लॉस एंजिल्स में हमने खरीदा है, और कई दूसरे । टोरंटो में, हाल ही में हमने खरीदा है । बड़े, बड़े चर्च । लेकिन वे हमें बेचने के लिए तैयार नहीं थे ।

एक चर्च, पुजारी ने कहा कि, "मैं इस चर्च में आग लगा दूँगा, फिर भी मैं भक्तिवेदांत स्वामी को नहीं दूँगा ।" (हंसी) यह टोरंटो चर्च भी उस तरह था । और मेलबोर्न में, शर्त थी, बिक्री की शर्त, कि तुम्हे इस चर्च को तोडना होगा । हमने कहा, "क्यों?" उन्होंने कहा, "अगर उपयोग मंदिर का होता है अब जिस हालत में है वो, तब हम आपको नहीं देंगे ।" उन्होंने मना कर दिया । तुम्हें पता है ? तो उन्हे पसंद नहीं है कि "यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन हमारे चर्चों को खरीदे और राधा कृष्ण अर्च विग्रह को स्थापित करे ।" उन्हे यह पसंद नहीं हैं । लेकिन यह चल रहा है ।

तो पश्चिमी देशों के चर्च ही नहीं, यहां भी । जैसे ही तुम सेवा की भावना को खो दोगे, यह मंदिर एक बड़ा निराशजनक बन जाएगा, बस । मंदिर नहीं रहेगा । तो हमें सेवा भावना को बनाए रखना है । इसलिए हम इतना खास ज़ोर देते हैं - "क्यों ताजा फूल वहाँ नहीं हैं ?" यदि आपको लगता है, "यहाँ एक पत्थर की मूर्ति है । ताजा फूल या पुराने फूल का क्या अर्थ है ? हमें कुछ फूल देना है । बस ।" लेकिन कोई भाव नहीं है कि "यहां श्री कृष्ण हैं । हमें ताजा फूल देना चाहिए ।"

जैसे मैं एक जीवित आदमी हूँ, अगर तुम मुझे एक ताजा फूल देते हो, और तुम कुछ कचरा लेकर अाते हो, और अगर तुम मुझे देते हो, क्या मैं खुश हो जाऊँगा ? क्या लगता है तुम्हे ? तो यह भाव, हार है शुरुआत से ही, कि, "हम कुछ बकवास, कचरे के फूलों के साथ इस मूर्ति को संतुष्ट करेंगे । वे विरोध नहीं करेंगे ।" हाँ, वे विरोध नहीं करेंगे । लेकिन तुम्हारा जीवन खत्म हो जाएगा । विरोध इस तरह से आएगा ।

जैसे ही तुम वह भाव खो देते हो, भाव, बुधा भाव-समन्विता: (भ.गी. १०.८)... कौन कृष्ण की पूजा कर सकता है ? जब भाव है, स्थायि-भाव । इसकी भक्ति-रसामृत-सिंधु में चर्चा की गई है, भाव क्या है । लेकिन तुममें कोई भाव न हो, तो तुम भौतक (अस्पष्ट), कनिश्ठ अधीकरी । केवल दिखावा । एक दिखावा कई दिनों तक नहीं कायम रहता है । दिखावा बहुत जल्द ही खत्म हो जाएगा ।