HI/Prabhupada 0721 - तुम ईश्वर के बारे में कल्पना नहीं कर सकते हो । यह मूर्खता है: Difference between revisions

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तुम किसी अन्य प्रक्रिया द्वारा कृष्ण को नहीं समझ सकते हो - ज्ञान द्वारा, योग द्वारा तपस्या से, कर्म से, त्याग से, दान से । तुम नहीं समझ सकते । केवल, कृष्ण कहते हैं, भक्त्या माम अभिजानाति । अगर तुम कृष्णप को यथा रू जानना चाहते हो, तो तुम्हे इस प्रक्रिया को अपनाना होगा, बहुत ही सरल प्रक्रिया, मन-मना भव मद-भक्तो मद-याजी माम् नमस्कुरु ([[Vanisource:BG 18.65|भ गी १८।६५]]) "हमेशा मेरा स्मरण करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे पर्यत सम्मानीय दण्डवत प्रणाम प्रदान करो ।" चार बातें । यहाँ यह है । हरे कृष्ण मंत्र का जाप करो । यह कृष्ण के बारे में स्मरण हुअा, मन-मना । अौर जब तक तुम भक्त नहीं हो, तुम अपना समय संलग्न नहीं कर सकते हो इस तरह से । तो फिर अगर तुम हरे कृष्ण महा-मंत्र का जाप करते हो, स्वचालित रूप से तुम भक्त बन जाते हो । तो फिर तुम अर्च विग्रह की पूजा करो । जब तक तुम एक भक्त नहीं हो, तुम कृष्ण की पूजा नहीं कर सकते हो । नास्तिकों का कहना होगा "वे किसी मूर्ति की पूजा कर रहे हैं ।" नहीं । यह सच नहीं है । वे जानते नहीं हैं कि कृष्ण व्यक्तिगत रूप से यहॉ उपस्थित हैं । वे भक्तों की सेवा स्वीकार कर रहे हैं इस तरह से जिसके तहत हम वर्तमान क्षण में उनकी सेवा कर सकें । अगर कृष्ण अपना विराट-रूप दिखाते हैं, तो तुम उसकी सेवा नहीं कर सकोगे । तुम कहाँ से विराट-रूप के लिए वस्त्र लाअोगे ? पूरी दुनिया की कपड़ा फैक्टरी तुम्हे असफल कर देगी । (हंसी) इसलिए कृष्ण नें स्वीकार किया है, एक चार फुट का छोटा अर्व विग्रह, ताकि तुम अपने क्षमता के अनुरासर कृष्ण के लिए वस्त्र प्राप्त कर सको । तुम अपनी क्षमता के अनुसार कृष्ण की सेवा कर सकते हो । यह कृष्ण की दया है । इसलिए यह मनाई है, अर्चये विष्णु शीला-धि: (पद्यावली ११५) अगर कोई भी बदमाश यह सोचता है कि विष्णू रूप में, पत्थर के रूप में, लकड़ी के रूप में; वैश्णवे जाति-बुद्धि:, यह मानना की भक्त किसी देश या जाती के हैं - ये नारकी बुद्धि है । ( अावाज़ में रुकावट) यह किया जाना नहीं चाहिए । यह तथ्य यह है कि यहां कृष्ण हैं । बहुत कृपालु, केवल मुझ पर कृपा करने के लिए, वे इस रूप में आए हैं । लेकिन वे कृष्ण हैं ; वे पत्थर नहीं हैं । अगर वह पत्थर भी है, तो भी वह कृष्ण है क्योंकि कृष्ण के अलावा कुछ अौर है ही नहीं, कुछ भी । कृष्ण के बिना, कोई अस्तित्व नहीं है । सर्वम खल्व इदम ब्रह्म (चंडोज्ञ उपनिषद ३।१४।१) तो कृष्ण की शक्ति है कि भी उनके तथाकथित पत्थर के आकार में भी वे तुम्हारी सेवा को स्वीकार कर सकते हैं । यही कृष्ण हैं ।  
तुम किसी अन्य प्रक्रिया द्वारा कृष्ण को नहीं समझ सकते हो - ज्ञान द्वारा, योग द्वारा, तपस्या से, कर्म से, त्याग से, दान से । तुम नहीं समझ सकते । केवल, कृष्ण कहते हैं, भक्त्या माम अभिजानाति ([[HI/BG 18.55|भ.गी. १८.५५]]) । अगर तुम कृष्ण को यथा रूप जानना चाहते हो, तो तुम्हे इस प्रक्रिया को अपनाना होगा, बहुत ही सरल प्रक्रिया, मन-मना भव मद-भक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु ([[HI/BG 18.65|भ.गी. १८.५५]]): "हमेशा मेरा स्मरण करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझेस सम्मानीय दण्डवत प्रणाम प्रदान करो ।" चार बातें । यहाँ यह है । हरे कृष्ण मंत्र का जप करो । यह कृष्ण के बारे में स्मरण हुअा, मन-मना । अौर जब तक तुम भक्त नहीं हो, तुम अपना समय संलग्न नहीं कर सकते हो इस तरह से । फिर अगर तुम हरे कृष्ण महा-मंत्र का जाप करते हो, स्वचालित रूप से तुम भक्त बन जाते हो । फिर तुम अर्च विग्रह की पूजा करो । जब तक तुम एक भक्त नहीं हो, तुम कृष्ण की पूजा नहीं कर सकते हो ।  


तो तुम्हे इन बातों को समझना होगा, और, अगर तुम कृष्ण हैं क्या इसे ठीक से समझ गए, इतनी योग्यता तुम्हे इस जीवन में मुक्त होने के लिए भी तैयार कर देगी ।  
नास्तिकों का कहना होगा "वे किसी मूर्ति की पूजा कर रहे हैं ।" नहीं । यह सच नहीं है । वे जानते नहीं हैं कि कृष्ण व्यक्तिगत रूप से यहॉ उपस्थित हैं । वे भक्तों की सेवा स्वीकार कर रहे हैं इस तरह से जिसके तहत हम वर्तमान क्षण में उनकी सेवा कर सकें । अगर कृष्ण अपना विराट-रूप दिखाते हैं, तो तुम उनकी सेवा नहीं कर सकोगे । तुम कहाँ से विराट-रूप के लिए वस्त्र लाअोगे ? पूरी दुनिया की कपड़े की फैक्टरी भी तुम्हे असफल कर देगी । (हंसी) इसलिए कृष्ण नें स्वीकार किया है, एक चार फुट का छोटा अर्चविग्रह, ताकि तुम अपनी क्षमता के अनुरासर कृष्ण के लिए वस्त्र प्राप्त कर सको । तुम अपनी क्षमता के अनुसार कृष्ण की सेवा कर सको । यह कृष्ण की दया है ।  


:जन्म कर्म मे दिव्यम्
इसलिए यह मनाई  है, अर्च्ये विष्णु शीला-धि: (पद्यावली ११५) | अगर कोई भी बदमाश यह सोचता है कि विष्णु रूप में, पत्थर के रूप में, लकड़ी के रूप में; वैष्णवे जाति-बुद्धि:, यह मानना की भक्त किसी देश या जाती के हैं - ये नारकी बुद्धि है । (तोड़)  यह किया जाना नहीं चाहिए । यह तथ्य यह है कि यहां कृष्ण हैं । बहुत कृपा कर के, केवल मुझ पर कृपा करने के लिए, वे इस रूप में आए हैं । लेकिन वे कृष्ण हैं; वे पत्थर नहीं हैं । अगर वह पत्थर भी है, तो भी वह कृष्ण है क्योंकि कृष्ण के अलावा कुछ अौर है ही नहीं, कुछ भी । कृष्ण के बिना, कोई अस्तित्व नहीं है । सर्वम खल्व इदम ब्रह्म (चांडोज्ञ उपनिषद ३.१४.१) | तो कृष्ण की शक्ति है कि भी उनके तथाकथित पत्थर के आकार में भी, वे तुम्हारी सेवा को स्वीकार कर सकते हैं । यही कृष्ण हैं ।
 
तो तुम्हे इन बातों को समझना होगा, और, अगर तुम कृष्ण हैं क्या इसे ठीक से समझ गए, इतनी योग्यता तुम्हे इस जीवन में मुक्त होने के लिए तैयार कर देगी ।
 
:जन्म कर्म मे दिव्यम
:यो जानाति तत्वत:  
:यो जानाति तत्वत:  
:त्यक्त्वा देहम् पुनर जन्म  
:त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म  
:नैति माम एति कौन्तेय  
:नैति माम एति कौन्तेय  
:([[Vanisource:BG 4.9|भ गी ४।९]])
:([[HI/BG 4.9|भ.गी. ४.९]])
 
यह सब वहाँ कहा गया है । तो कृष्ण समझे जा सकते हैं केवल भक्ति सेवा द्वारा, किसी अन्य तरीके से नहीं । तुम अटकलें नहीं कर सकते हो, "कृष्ण इस तरह हो सकते हैं ।" जैसे मायावादियों की तरह, वे कल्पना करते हैं । यह कल्पना तुम्हारी मदद नहीं करेगी । तुम ईश्वर के बारे में कल्पना नहीं कर सकते हो । यह मूर्खता है । भगवान तुम्हारी कल्पना के अधीन नहीं हैं । तब वे भगवान नहीं हैं । क्यों वे तुम्हारी कल्पना के अधीन होंगे ?


इसलिए इन बातों को ठीक से समझना चाहिए, अौर कोई ठीक से समझ सकता है जब वह शुद्ध भक्त है । अन्यथा नहीं । नाहम् प्रकाश: सर्वस्य योग-माया समावृता: ([[Vanisource:BG 7.25|भ गी ७।२५]]) "मैं हर किसी को नहीं दिखाई देता हूँ ।" वह हर किसी को क्यों दिखाई दें ? जब वे प्रसन्न होते हैं, तब बे खुद को उजागर करते हैं । सेवन्मुखे हि जिह्वदौ स्वयम एव स्फुरति अद: ( भ र सि १।२।२३४) तुम तुरंत सूरज को प्रकट होने के लिए नहीं कह सकते हो । जब वे प्रसन्न होते हैं, तब वे सुबह में दिखाई देंगे । इसी तरह, तुम्हे कृष्ण को प्रसन्न करना होगा, तब वे तुम्हारे सामने प्रकट होंगे, और तुम्से बात करेंगे और तुम्हे आशीर्वाद देंगे ।  
यह सब कुछ वहाँ कहा गया है । तो कृष्ण समझे जा सकते हैं केवल भक्ति सेवा द्वारा, किसी अन्य तरीके से नहीं । तुम अटकलें नहीं कर सकते हो, "कृष्ण इस तरह हो सकते हैं ।" जैसे मायावादियों की तरह, वे कल्पना करते हैं । यह  कल्पना तुम्हारी मदद नहीं करेगी । तुम ईश्वर के बारे में कल्पना नहीं कर सकते हो । यह मूर्खता है । भगवान तुम्हारी कल्पना के अधीन नहीं हैं । तब वे भगवान नहीं हैं । क्यों वे तुम्हारी कल्पना के अधीन होंगे ? इसलिए इन बातों को ठीक से समझना चाहिए, अौर कोई ठीक से समझ सकता है जब वह शुद्ध भक्त है । अन्यथा नहीं । नाहम प्रकाश: सर्वस्य योग-माया समावृता: ([[HI/BG 7.25|भ.गी. ७.२५]]): "मैं हर किसी को नहीं दिखाई देता हूँ ।" वह हर किसी को क्यों दिखाई दें ? जब वे प्रसन्न होते हैं, तब वे खुद को प्रकट करते हैं । सेवन्मुखे हि जिह्वादौ स्वयम एव स्फुरति अद: (भक्तिरसामृतसिंधु १.२.२३४) | तुम तुरंत सूर्य को प्रकट होने के लिए नहीं कह सकते हो । जब वे प्रसन्न होते हैं, तब वे सुबह में दिखाई देंगे । इसी तरह, तुम्हे कृष्ण को प्रसन्न करना होगा, तब वे तुम्हारे सामने प्रकट होंगे, और तुमसे बात करेंगे और तुम्हे आशीर्वाद देंगे ।  


बहुत बहुत धन्यवाद ।  
बहुत बहुत धन्यवाद ।  


भक्त: जय ! श्रील प्रभुपाद की जय!
भक्त: जय ! श्रील प्रभुपाद की जय !  
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Latest revision as of 19:10, 17 September 2020



Arrival Address -- Los Angeles, February 9, 1975

तुम किसी अन्य प्रक्रिया द्वारा कृष्ण को नहीं समझ सकते हो - ज्ञान द्वारा, योग द्वारा, तपस्या से, कर्म से, त्याग से, दान से । तुम नहीं समझ सकते । केवल, कृष्ण कहते हैं, भक्त्या माम अभिजानाति (भ.गी. १८.५५) । अगर तुम कृष्ण को यथा रूप जानना चाहते हो, तो तुम्हे इस प्रक्रिया को अपनाना होगा, बहुत ही सरल प्रक्रिया, मन-मना भव मद-भक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु (भ.गी. १८.५५): "हमेशा मेरा स्मरण करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझेस सम्मानीय दण्डवत प्रणाम प्रदान करो ।" चार बातें । यहाँ यह है । हरे कृष्ण मंत्र का जप करो । यह कृष्ण के बारे में स्मरण हुअा, मन-मना । अौर जब तक तुम भक्त नहीं हो, तुम अपना समय संलग्न नहीं कर सकते हो इस तरह से । फिर अगर तुम हरे कृष्ण महा-मंत्र का जाप करते हो, स्वचालित रूप से तुम भक्त बन जाते हो । फिर तुम अर्च विग्रह की पूजा करो । जब तक तुम एक भक्त नहीं हो, तुम कृष्ण की पूजा नहीं कर सकते हो ।

नास्तिकों का कहना होगा "वे किसी मूर्ति की पूजा कर रहे हैं ।" नहीं । यह सच नहीं है । वे जानते नहीं हैं कि कृष्ण व्यक्तिगत रूप से यहॉ उपस्थित हैं । वे भक्तों की सेवा स्वीकार कर रहे हैं इस तरह से जिसके तहत हम वर्तमान क्षण में उनकी सेवा कर सकें । अगर कृष्ण अपना विराट-रूप दिखाते हैं, तो तुम उनकी सेवा नहीं कर सकोगे । तुम कहाँ से विराट-रूप के लिए वस्त्र लाअोगे ? पूरी दुनिया की कपड़े की फैक्टरी भी तुम्हे असफल कर देगी । (हंसी) इसलिए कृष्ण नें स्वीकार किया है, एक चार फुट का छोटा अर्चविग्रह, ताकि तुम अपनी क्षमता के अनुरासर कृष्ण के लिए वस्त्र प्राप्त कर सको । तुम अपनी क्षमता के अनुसार कृष्ण की सेवा कर सको । यह कृष्ण की दया है ।

इसलिए यह मनाई है, अर्च्ये विष्णु शीला-धि: (पद्यावली ११५) | अगर कोई भी बदमाश यह सोचता है कि विष्णु रूप में, पत्थर के रूप में, लकड़ी के रूप में; वैष्णवे जाति-बुद्धि:, यह मानना की भक्त किसी देश या जाती के हैं - ये नारकी बुद्धि है । (तोड़) यह किया जाना नहीं चाहिए । यह तथ्य यह है कि यहां कृष्ण हैं । बहुत कृपा कर के, केवल मुझ पर कृपा करने के लिए, वे इस रूप में आए हैं । लेकिन वे कृष्ण हैं; वे पत्थर नहीं हैं । अगर वह पत्थर भी है, तो भी वह कृष्ण है क्योंकि कृष्ण के अलावा कुछ अौर है ही नहीं, कुछ भी । कृष्ण के बिना, कोई अस्तित्व नहीं है । सर्वम खल्व इदम ब्रह्म (चांडोज्ञ उपनिषद ३.१४.१) | तो कृष्ण की शक्ति है कि भी उनके तथाकथित पत्थर के आकार में भी, वे तुम्हारी सेवा को स्वीकार कर सकते हैं । यही कृष्ण हैं ।

तो तुम्हे इन बातों को समझना होगा, और, अगर तुम कृष्ण हैं क्या इसे ठीक से समझ गए, इतनी योग्यता तुम्हे इस जीवन में मुक्त होने के लिए तैयार कर देगी ।

जन्म कर्म मे दिव्यम
यो जानाति तत्वत:
त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म
नैति माम एति कौन्तेय
(भ.गी. ४.९)

यह सब कुछ वहाँ कहा गया है । तो कृष्ण समझे जा सकते हैं केवल भक्ति सेवा द्वारा, किसी अन्य तरीके से नहीं । तुम अटकलें नहीं कर सकते हो, "कृष्ण इस तरह हो सकते हैं ।" जैसे मायावादियों की तरह, वे कल्पना करते हैं । यह कल्पना तुम्हारी मदद नहीं करेगी । तुम ईश्वर के बारे में कल्पना नहीं कर सकते हो । यह मूर्खता है । भगवान तुम्हारी कल्पना के अधीन नहीं हैं । तब वे भगवान नहीं हैं । क्यों वे तुम्हारी कल्पना के अधीन होंगे ? इसलिए इन बातों को ठीक से समझना चाहिए, अौर कोई ठीक से समझ सकता है जब वह शुद्ध भक्त है । अन्यथा नहीं । नाहम प्रकाश: सर्वस्य योग-माया समावृता: (भ.गी. ७.२५): "मैं हर किसी को नहीं दिखाई देता हूँ ।" वह हर किसी को क्यों दिखाई दें ? जब वे प्रसन्न होते हैं, तब वे खुद को प्रकट करते हैं । सेवन्मुखे हि जिह्वादौ स्वयम एव स्फुरति अद: (भक्तिरसामृतसिंधु १.२.२३४) | तुम तुरंत सूर्य को प्रकट होने के लिए नहीं कह सकते हो । जब वे प्रसन्न होते हैं, तब वे सुबह में दिखाई देंगे । इसी तरह, तुम्हे कृष्ण को प्रसन्न करना होगा, तब वे तुम्हारे सामने प्रकट होंगे, और तुमसे बात करेंगे और तुम्हे आशीर्वाद देंगे ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय ! श्रील प्रभुपाद की जय !