HI/Prabhupada 0722 - आलसी मत बनो । हमेशा संलग्न रहो

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Arrival Lecture -- Mexico, February 11, 1975, (With Spanish Translator)

तो मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है तुम्हे देखकर, इतने सारे कृष्ण के अभिन्न अंग । तुम कृष्ण भावनामृत को समझने के लिए आए हो । तो इन सिद्धांतों से जुडे रहो, तो तुम्हारा जीवन सफल होगा । सिद्धांत है खुद को शुद्ध करना । जैसे जब कोई आदमी बीमार हो जाता है, उसे नियामक सिद्धांत से खुद को शुद्ध करना होता है, दवा से, आहार से, इसी तरह, हमारी यह भौतिक बिमारी है, भौतिक शरीर द्वारा ढके जाना, और दुख के लक्षण जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । तो जो कोई इस भौतिक बंधन से बाहर होने के बारे में गंभीर है, और जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी से मुक्त होना चाहता है, तो उसे इस कृष्ण भावनामृत को अपनाना होगा । यह बहुत ही सरल और आसान है ।

अगर तुम नहीं जानते हो, अगर तुम शिक्षित नहीं हो, अगर तुम्हारी कोई संपत्ति नहीं है, तुम केवल हरे कृष्ण महा-मंत्र का जप कर सकते हो । और अगर तुम शिक्षित हो, तर्कशास्त्री, तत्वज्ञानी, तुम हमारी किताबें पढ सकते हो, जो संख्या में पचास हैं । चार सौ पृष्ठों की लगभग पचहत्तर पुस्तकें हैं, तत्वज्ञानी, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों को समझाने के लिए कि कृष्ण भावनामृत है क्या । यह अंग्रेजी में है और साथ ही अन्य यूरोपीय भाषाओं में प्रकाशित हुआ है । इसका लाभ लो । इस मंदिर में अर्चविग्रह की पूजा के साथ साथ, कम से कम पांच घंटे के लिए प्रवचन करो ।

जैसे स्कूलों और कॉलेजों में नियमित रूप से कक्षा होती है, पैंतालीस मिनट की क्लास, फिर पांच या दस मिनट का अवकाश, फिर पैंतालीस मिनट का प्रवचन, इस तरह से, तो हमारे अध्ययन करने के लिए पर्याप्त विषय वस्तु है । अौर अगर हम इन सभी पुस्तकों का अध्ययन करते हैं, कम से कम पच्चीस साल लगेंगे उन्हें खत्म करने के लिए । तो तुम सभी युवक हो । मैं अनुरोध करता हूँ तुमसे की अपना समय संलग्न करो किताबें पढ़ने में, पुस्तकों की बिक्री में, प्रचार के लिए जाने में, अर्च विग्रह की पूजा में, जप में । आलसी मत बनो । हमेशा संलग्न रहो । तब वह कृष्ण भावनामृत है ।

कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं,

माम हि पार्थ व्यपाश्रित्य
ये अपि स्यु: पाप-योनय:
स्त्रिय: वैश्यास तथा शूद्रास
ते अपि यान्ति पराम गतिम
(भ.गी. ९.३२)

कोई भेदभाव नहीं है कि "इस आदमी को अनुमति दी जानी चाहिए; इस महिला को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए ।" नहीं । कृष्ण कहते हैं, "कोई भी" - स्त्रिय: वैश्यास तथा शूद्रास | जो कोई भी कृष्ण भावनामृत को अपनाता है, वह भौतिक बंधन से मुक्त हो जाता है और घर वापस जाता है, वापस भगवद धाम । इसलिए इस आंदोलन को गंभीरता से लो और सिद्धांत पर अमल करो, अर्थात कोई मांसाहार नहीं, कोई अवैध यौन जीवन नहीं, कोई नशा नहीं, कोई जुआ नहीं, और सोलह माला का जप ।