HI/Prabhupada 0728 - जो राधा-कृष्ण लीला को भौतिक समझते हैं, वे पथभ्रष्ट हैं: Difference between revisions

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अग्नि कृष्ण से आती है मही, अर्थात पृथ्वी, वह भी कृष्ण से आती है | अग्नि, मही, गगन, अर्थात आकाश, वह भी कृष्ण से आता है | अम्बु, अर्थात जल, भी कृष्ण से आता है | अग्नि मही गगनं अम्बु....मारुत, वायु कृष्ण से आता है | चूंकि ये कृष्ण से आते हैं, ये कृष्ण से अभिन्न हैं | सब कुछ कृष्ण है | परन्तु जब आप वायु, जल, पृथ्वी एवं अग्नि को महसूस करते हैं आप यह नहीं कह सकते, "चूंकि वायु कृष्ण से आती है और जल भी कृष्ण से आता है, इसीलिए चाहे मैं हवा में रहूं या समुद्र में, सब समान है |" हम वायु में रहते हैं, परन्तु यदि में सोचूँ कि वायु और जल एक है, मैं समुद्र में कूद जाता हूँ, तो यह बुद्धिमानी नहीं है | परन्तु वास्तव में, वायु भी कृष्ण है, जल भी कृष्ण है, पृथ्वी भी कृष्ण है, अग्नि भी कृष्ण है, क्योंकि ये सब कृष्ण की शक्ति हैं | तो यदि हम तरह पंच-तत्व को समझने का प्रयास करें, श्री-कृष्ण-चैतन्य प्रभु-नित्यानंद, श्री-अद्वैत गदाधर श्रीवासादी-गौर-भक्त-वृन्द... यह पंच-तत्व हैं: श्री कृष्ण चैतन्य, श्री नित्यानंद, श्री अद्वैत, श्री गदाधर, और श्रीवासादी | श्रीवासादी अर्थात जीव-तत्व | जीव-तत्व, शक्ति-तत्व, विष्णु-तत्व, ये सभी तत्व हैं | इसीलिए पंच-तत्व | श्री कृष्ण चैतन्य परम तत्व, कृष्ण, हैं | श्री-कृष्ण-चैतन्य, राधा-कृष्ण नाहि अन्य | हम राधा-कृष्ण की पूजा कर रहे हैं | तो श्री कृष्ण चैतन्य राधा-कृष्ण के संयुक्त रूप हैं | श्री-कृष्ण-चैतन्य, राधा-कृष्ण नाहि अन्य |
अग्नि कृष्ण से आती है | मही, अर्थात पृथ्वी, वह भी कृष्ण से आती है | अग्नि, मही, गगन, अर्थात आकाश, वह भी कृष्ण से आता है | अम्बु, अर्थात जल, भी कृष्ण से आता है | अग्नि मही गगनम अम्बु... मारुत, वायु कृष्ण से आता है | चूंकि ये कृष्ण से आते हैं, ये कृष्ण से अभिन्न हैं | सब कुछ कृष्ण है | परन्तु जब आप वायु, जल, पृथ्वी एवम अग्नि को महसूस करते हैं आप यह नहीं कह सकते, "चूंकि वायु कृष्ण से आती है और जल भी कृष्ण से आता है, इसीलिए चाहे मैं हवा में रहूं या समुद्र में, सब समान है |"  


राधा-कृष्ण-प्रणय-विक्रितिर-ह्लादिनी-शक्तिर अस्माद
हम वायु में रहते हैं, परन्तु यदि में सोचूँ कि वायु और जल एक है, मैं समुद्र में कूद जाता हूँ, तो यह बुद्धिमानी नहीं है | परन्तु वास्तव में, वायु भी कृष्ण है, जल भी कृष्ण है, पृथ्वी भी कृष्ण है, अग्नि भी कृष्ण है, क्योंकि ये सब कृष्ण की शक्ति हैं | तो यदि हम इस तरह पंच-तत्व को समझने का प्रयास करें, श्री-कृष्ण-चैतन्य प्रभु-नित्यानंद, श्री-अद्वैत गदाधर श्रीवासादी-गौर-भक्त-वृन्द... यह पंच-तत्व हैं: श्री कृष्ण चैतन्य, श्री नित्यानंद, श्री अद्वैत, श्री गदाधर, और श्रीवासादी | श्रीवासादी अर्थात जीव-तत्व | जीव-तत्व, शक्ति-तत्व, विष्णु-तत्व, ये सभी तत्व हैं | इसीलिए पंच-तत्व | श्री कृष्ण चैतन्य परम तत्व, कृष्ण, हैं | श्री-कृष्ण-चैतन्य, राधा-कृष्ण नाहि अन्य | हम राधा-कृष्ण की पूजा कर रहे हैं | तो श्री कृष्ण चैतन्य राधा-कृष्ण के संयुक्त रूप हैं | श्री-कृष्ण-चैतन्य, राधा-कृष्ण नाहि अन्य |  
एकात्मानाव अपि भुवि देह-भेदम गतौ तौ
चैतान्याख्यम प्रकटम अधुना तद-द्वयम चैक्यम आप्तं...
:([[Vanisource:CC Adi 1.5|चै.च. आदि १.५]])


राधा-कृष्ण....कृष्ण परम हैं | जब कृष्ण भोग करना चाहते हैं....भोक्ता... भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम ([[Vanisource:BG 5.29|भ.गी. ५.२९]]) | वे भोक्ता हैं | तो जब वे भोग करना चाहते हैं, वह भौतिक भोग नहीं है | वह आध्यात्मिक आनंद है - परा शक्ति, भौतिक शक्ति नहीं | चूंकि कृष्ण परम हैं, इसीलिए वे परा शक्ति का भोग करते हैं | इसीलिए कृष्ण...यह राधा-कृष्ण लीला भौतिक नहीं है | जो राधा-कृष्ण लीला को भौतिक समझते हैं, वे पथभ्रष्ट हैं | कृष्ण किसी भौतिक वस्तु का भोग नहीं करते | यदि आप कहें कि, "हम प्रत्येक दिन देखते हैं कि आप प्रसाद चढाते हैं, सब्जी, चावल, ये सब भौतिक हैं," नहीं, ये भौतिक नहीं हैं | यही सही समझ है | भौतिक कैसे नहीं है | यह अचिन्त्य है, जो कल्पना के परे है | कृष्ण भौतिक को आध्यात्मिक बना सकते हैं और आध्यात्मिक को भौतिक बना सकते हैं | यह कृष्ण की अचिन्त्य-शक्ति है | जब तक आप कृष्ण की अचिन्त्य-शक्ति को स्वीकार नहीं करते, तब तक आप कृष्ण को नहीं समझ सकते | अचिन्त्य-शक्ति |
:राधा-कृष्ण-प्रणय-विक्रितिर-आह्लादिनी-शक्तिर अस्माद
:एकात्मानाव अपि भुवि देह-भेदम गतौ तौ
:चैतान्याख्यम प्रकटम अधुना तद-द्वयम चैक्यम आप्तम...
:([[Vanisource:CC Adi 1.5|चैतन्य चरितामृत आदि १.५]])
 
राधा-कृष्ण... कृष्ण परम हैं | जब कृष्ण भोग करना चाहते हैं... भोक्ता... भोक्तारम यज्ञतपसाम सर्वलोक महेश्वरम ([[HI/BG 5.29|भ.गी. ५.२९]]) | वे भोक्ता हैं | तो जब वे भोग करना चाहते हैं, वह भौतिक भोग नहीं है | वह आध्यात्मिक आनंद है - परा शक्ति, भौतिक शक्ति नहीं | चूंकि कृष्ण परम हैं, इसीलिए वे परा शक्ति का भोग करते हैं | तो कृष्ण... यह राधा-कृष्ण लीला भौतिक नहीं है | जो राधा-कृष्ण लीला को भौतिक समझते हैं, वे पथभ्रष्ट हैं | कृष्ण किसी भौतिक वस्तु का भोग नहीं करते | यदि आप कहें कि, "हम प्रत्येक दिन देखते हैं कि आप प्रसाद चढाते हैं, सब्जी, चावल | ये सब भौतिक हैं, "नहीं, ये भौतिक नहीं हैं | यही सही समझ है | भौतिक कैसे नहीं है | यह अचिन्त्य है, जो कल्पना के परे है | कृष्ण भौतिक को आध्यात्मिक बना सकते हैं और आध्यात्मिक को भौतिक बना सकते हैं | यह कृष्ण की अचिन्त्य-शक्ति है | जब तक आप कृष्ण की अचिन्त्य-शक्ति को स्वीकार नहीं करते, तब तक आप कृष्ण को नहीं समझ सकते | अचिन्त्य-शक्ति |  
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Latest revision as of 19:11, 17 September 2020



Lecture on CC Adi-lila 7.5 -- Mayapur, March 7, 1974

अग्नि कृष्ण से आती है | मही, अर्थात पृथ्वी, वह भी कृष्ण से आती है | अग्नि, मही, गगन, अर्थात आकाश, वह भी कृष्ण से आता है | अम्बु, अर्थात जल, भी कृष्ण से आता है | अग्नि मही गगनम अम्बु... मारुत, वायु कृष्ण से आता है | चूंकि ये कृष्ण से आते हैं, ये कृष्ण से अभिन्न हैं | सब कुछ कृष्ण है | परन्तु जब आप वायु, जल, पृथ्वी एवम अग्नि को महसूस करते हैं आप यह नहीं कह सकते, "चूंकि वायु कृष्ण से आती है और जल भी कृष्ण से आता है, इसीलिए चाहे मैं हवा में रहूं या समुद्र में, सब समान है |"

हम वायु में रहते हैं, परन्तु यदि में सोचूँ कि वायु और जल एक है, मैं समुद्र में कूद जाता हूँ, तो यह बुद्धिमानी नहीं है | परन्तु वास्तव में, वायु भी कृष्ण है, जल भी कृष्ण है, पृथ्वी भी कृष्ण है, अग्नि भी कृष्ण है, क्योंकि ये सब कृष्ण की शक्ति हैं | तो यदि हम इस तरह पंच-तत्व को समझने का प्रयास करें, श्री-कृष्ण-चैतन्य प्रभु-नित्यानंद, श्री-अद्वैत गदाधर श्रीवासादी-गौर-भक्त-वृन्द... यह पंच-तत्व हैं: श्री कृष्ण चैतन्य, श्री नित्यानंद, श्री अद्वैत, श्री गदाधर, और श्रीवासादी | श्रीवासादी अर्थात जीव-तत्व | जीव-तत्व, शक्ति-तत्व, विष्णु-तत्व, ये सभी तत्व हैं | इसीलिए पंच-तत्व | श्री कृष्ण चैतन्य परम तत्व, कृष्ण, हैं | श्री-कृष्ण-चैतन्य, राधा-कृष्ण नाहि अन्य | हम राधा-कृष्ण की पूजा कर रहे हैं | तो श्री कृष्ण चैतन्य राधा-कृष्ण के संयुक्त रूप हैं | श्री-कृष्ण-चैतन्य, राधा-कृष्ण नाहि अन्य |

राधा-कृष्ण-प्रणय-विक्रितिर-आह्लादिनी-शक्तिर अस्माद
एकात्मानाव अपि भुवि देह-भेदम गतौ तौ
चैतान्याख्यम प्रकटम अधुना तद-द्वयम चैक्यम आप्तम...
(चैतन्य चरितामृत आदि १.५)

राधा-कृष्ण... कृष्ण परम हैं | जब कृष्ण भोग करना चाहते हैं... भोक्ता... भोक्तारम यज्ञतपसाम सर्वलोक महेश्वरम (भ.गी. ५.२९) | वे भोक्ता हैं | तो जब वे भोग करना चाहते हैं, वह भौतिक भोग नहीं है | वह आध्यात्मिक आनंद है - परा शक्ति, भौतिक शक्ति नहीं | चूंकि कृष्ण परम हैं, इसीलिए वे परा शक्ति का भोग करते हैं | तो कृष्ण... यह राधा-कृष्ण लीला भौतिक नहीं है | जो राधा-कृष्ण लीला को भौतिक समझते हैं, वे पथभ्रष्ट हैं | कृष्ण किसी भौतिक वस्तु का भोग नहीं करते | यदि आप कहें कि, "हम प्रत्येक दिन देखते हैं कि आप प्रसाद चढाते हैं, सब्जी, चावल | ये सब भौतिक हैं, "नहीं, ये भौतिक नहीं हैं | यही सही समझ है | भौतिक कैसे नहीं है | यह अचिन्त्य है, जो कल्पना के परे है | कृष्ण भौतिक को आध्यात्मिक बना सकते हैं और आध्यात्मिक को भौतिक बना सकते हैं | यह कृष्ण की अचिन्त्य-शक्ति है | जब तक आप कृष्ण की अचिन्त्य-शक्ति को स्वीकार नहीं करते, तब तक आप कृष्ण को नहीं समझ सकते | अचिन्त्य-शक्ति |